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दिल्ली, तुम्हारी निगाहें बहुत बोलती हैं डायरी (14 सितंबर, 2021)

दिल्ली इन दिनों बहुत परेशान है। इसकी परेशानी का आलम यह है कि यहां के राजपथ पर हुक्मरानों की आवाजाही बढ़ गई है। हालांकि अभी कुछ भी कहना मुश्किल है कि दिल्ली की इस बेचैनी का परिणाम क्या होगा? वजह यह कि दिल्ली में जमे हुक्मरान जानते हैं कि उनके पास प्रचंड बहुमत की ताकत […]

दिल्ली इन दिनों बहुत परेशान है। इसकी परेशानी का आलम यह है कि यहां के राजपथ पर हुक्मरानों की आवाजाही बढ़ गई है। हालांकि अभी कुछ भी कहना मुश्किल है कि दिल्ली की इस बेचैनी का परिणाम क्या होगा? वजह यह कि दिल्ली में जमे हुक्मरान जानते हैं कि उनके पास प्रचंड बहुमत की ताकत है। यदि कोई भी ऊंच-नीच हो गयी तो फिर अपना संसद है और अपने सारे सांसद गुलाम हैं। वे रात को दिन और दिन को रात कहने के लिए पैदा हुए हैं। हुक्मरान इस बात को अच्छे से जानता है कि न केवल उसके सांसद बल्कि दूसरे दलों के सांसद भी उसकी मुट्ठी में हैं।

लेकिन दिल्ली परेशान क्यों है्? आखिर ऐसा क्या हुआ है कि पीएमओ और एचएमओ की नींदें उड़ी हुई हैं? पीएमओ मतलब प्रधानमंत्री कार्यालय और एचएमओ मतलब गृहमंत्री कार्यालय। कल तो हालत यह रही कि पीएम और एचएम दोनों ने पूर्व के निर्धारित कम से कम चार कार्यक्रमों को रद्द कर दिया। शायद दोनों के बीच प्रत्यक्ष बातचीत भी हुई। हालांकि अखबारों में इस मामले में खामोशी है। फिर भी मेरा अनुमान है कि आनेवाले एक-दो दिन दिल्ली को और परेशान करेंगे।

दरअसल दिल्ली की जिस परेशानी की बात कर रहा हूं, उसकी जड़ में कल सुप्रीम कोर्ट में पेगासस मामले में हुई सुनवाई है। दिल्ली को यकीन रहा कि सुप्रीम कोर्ट के वर्तमान मुख्य न्यायाधीश एनवी रमण, न्यायाधीश सूर्यकांत और न्यायाधीश हिमा कोहली इसका लिहाज रखेंगे कि वह दिल्ली से बात कर रहे हैं। दिल्ली को शायद यह गुमान भी है कि जैसे पूर्व के मुख्य न्यायाधीश ने उसके इशारे पर अयोध्या मामले में लीपापोती कर दी थी, वैसे ही इस मामले में भी हो जाएगा। बहुत होगा तो जजों को राज्यसभा में जगह दे दी जाएगी। दिल्ली के लिए राज्यसभा उच्च सदन नहीं, लोगों को संतुष्ट करने का जरिया मात्र है।

[bs-quote quote=”दिल्ली की जिस परेशानी की बात कर रहा हूं, उसकी जड़ में कल सुप्रीम कोर्ट में पेगासस मामले में हुई सुनवाई है। दिल्ली को यकीन रहा कि सुप्रीम कोर्ट के वर्तमान मुख्य न्यायाधीश एनवी रमण, न्यायाधीश सूर्यकांत और न्यायाधीश हिमा कोहली इसका लिहाज रखेंगे कि वह दिल्ली से बात कर रहे हैं। दिल्ली को शायद यह गुमान भी है कि जैसे पूर्व के मुख्य न्यायाधीश ने उसके इशारे पर अयोध्या मामले में लीपापोती कर दी थी, वैसे ही इस मामले में भी हो जाए” style=”style-2″ align=”center” color=”” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]

खैर, कल सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली से पूछ ही लिया और वह भी एक साफ-साफ वाले अंदाज में कि बताइए, आपने पेगासस का इस्तेमाल किया या नहीं? सुप्रीम कोर्ट के इस सवाल पर दिल्ली हिल गयी। इसके पहले दिल्ली ने सुप्रीम कोर्ट को हलफनामा देकर यह बताया था कि पेगासस से जुड़ा यह पूरा मामला ही काल्पनिक है और केवल मीडिया की रपटों पर आधारित है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली के इस हलफनामे को खारिज कर दिया और कहा कि लोग यह कह रहे हैं कि उनकी जासूसी करायी गयी है। जबकि देश में खास परिस्थितियों में किसी की जासूसी करने/करवाने का अधिकार दिल्ली के पास पहले से है।

दिल्ली को यह बात नागवार गुजरी। उसने कल सुप्रीम कोर्ट की आंख में आंख डालकर कहा कि उसने कौन सा सॉफ्टवेयर इस्तेमाल किया या नहीं किया, यह जन चर्चा का मुद्दा नहीं है। इस सूचना को हलफनामे में शामिल करना राष्ट्रहित में नहीं है। ये शब्द दिल्ली के थे और आवाज महान्यायवादी तुषार मेहता के। मुख्य न्यायाधीश व अन्य दो न्यायाधीश भी यह बात जानते हैं। लिहाजा उन्होंने दिल्ली से ही कहा – पिछली बार भी हमने हलफनामे की मांग की थी ताकि हम यह जान सकें कि आप खड़े कहां हैं। इसलिए आपको मोहलत दी थी। पर अब आप नई बात कर रहे हैं। हम दो-तीन दिनों में इस मामले में अपना अंतरिम फैसला सुनाएंगे। आपका मन बदले और लगे कि हलफानामा दायर करना है तो कर दिजीए।

तो कुल मिलाकर दिल्ली के समक्ष परेशानी यही है। अब दो सवाल हैं। पहला तो यही कि यदि यह बात सामने आ जाती है कि दिल्ली ने पेगासस का इस्तेमाल किया है (जो कि पहले ही पब्लिक डोमेन में है) तो कौन-सा बवंडर मच जाएगा? दूसरा सवाल यह कि क्या सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश और अन्य दो न्यायाधीश इतना साहस कर सकेंगे कि वह सरकार को कोई सजा सुना सकें?

[bs-quote quote=”कल ही तमिलनाडु में एम के स्टालिन की सरकार ने विधानसभा में एक विधेयक पेश किया और उसे सर्वसम्मति (भाजपा को छोड़कर) से पारित कर दिया गया। विधेयक का मसौदा यह रहा कि तमिलनाडु में अब नीट की परीक्षाएं नहीं होंगी। बारहवीं की परीक्षा के प्राप्तांक के आधार पर अब वहां छात्रों का दाखिला मेडिकल कॉलेजों में हो सकेगा। फिर इसके लिए आरक्षण की व्यवस्था भी स्वयं तमिलनाडु सरकार ही करेगी। ” style=”style-2″ align=”center” color=”” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]

मैं इन दो सवालों का जवाब अंतरिम फैसला आने तक छोड़ता हूं। वजह यह कि दोनों के जवाब बहुत सरल हैं। लेकिन फिलहाल तो मुझे दिल्ली की चिंता है। मेरी चिंता का सबब यह भी है कि देश में संघीय व्यवस्था में दरार बढ़ने लगी है। कल ही तमिलनाडु में एम के स्टालिन की सरकार ने विधानसभा में एक विधेयक पेश किया और उसे सर्वसम्मति (भाजपा को छोड़कर) से पारित कर दिया गया। विधेयक का मसौदा यह रहा कि तमिलनाडु में अब नीट की परीक्षाएं नहीं होंगी। बारहवीं की परीक्षा के प्राप्तांक के आधार पर अब वहां छात्रों का दाखिला मेडिकल कॉलेजों में हो सकेगा। फिर इसके लिए आरक्षण की व्यवस्था भी स्वयं तमिलनाडु सरकार ही करेगी।

दिल्ली के लिए यह खबर सकारात्मक खबर नहीं है। आज तमिलनाडु आंख दिखा रहा है। कल पंजाब दिखा सकता है और बिहार के पास भी आंखें हैं। वह भी आंख दिखा सकता है। महाराष्ट्र की आंखें तो वैसे ही बहुत बोल रही हैं।

आंखों के बोलने से एक गाने की याद आयी। यह शायद स्वयंवर फिल्म के गीत का हिस्सा है। पूरा गाना याद नहीं है। लेकिन यह गाना है बहुत रोमांटिक। इसका मुखड़ा है – मुझे छू रही हैं तेरी गर्म सांसें..

ओह माय दिल्ली, डोंट बी सो पैनिक। लेट्स सेलिब्रेट हिन्दी दिवस। इस मौके पर एक कविता मेरी ओर से

सावन और भादो का बीतना

बेमतलब का नहीं होता

यह आसमान भी जानता है

और धरती भी खूब समझती है।

और समझते वे भी हैं

जिनके हाथ तोड़ते हैं पत्थर

बुनते हैं कपड़े

पाथते हैं ईंटें

बनाते हैं इमारतें।

और जानते हैं

धान के पौधों की जड़ों से

खर-पतवार निकालने वाले हाथ भी

और उनकी आंखें 

सबकुछ देखती हैं

धान की बालियों के आने का मौसम आया है

और यह भी कि खेत के बाहर

खड़े हैं सौ के बदले साठ में

धान की बोरियां खरीदने वाले।

इस मुल्क में कोई अंधा नहीं है

कोई बहरा नहीं है

और कोई गूंगा नहीं है

सब जानते हैं 

सावन-भादो के बीतने का मतलब

तभी तो गाते हैं गीत

ताल दे करते हैं नृत्य

देखते हैं सपने

और सहेजते हैं सपने।

हां, इस देश का हुक्मरान भी जानता है

सावन-भादो का मतलब

और इसलिए उसे मालूम है

विद्रोह नहीं कर सकते

लाठी-गोलियां खाकर भी

खेतों में हरियाली देख सुध-बुध खोनेवाले।

नवल किशोर कुमार फारवर्ड प्रेस मे संपादक हैं ।

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