क्या आपको याद है कि पियाला का मेला भी कभी एक जलवेदार मेला होता था? यह प्रश्न जब मैंने अपने एक सहकर्मी से किया तो उन्होंने झट से कहा कि यह मुसलमानों का मेला होता था। अब उनकी बुद्धि को मैं क्या कहता। कुढ़ कर रह गया। हर वह चीज जो बहुजनों से जुड़ी है उसे कूढ़मगज लोग मुसलमानों से जोड़ देते हैं। यह एक जहरीले प्रचार का परिणाम है जिसके शिकार सिर्फ भोले-भले लोग ही नहीं समझदार और पढे-लिखे लोग भी हो रहे हैं। बहरहाल, आइये मेले में चलते हैं।

यह मेला रजक, धोबी, कसेरा और चौरसिया तीन जातियों का विशेष त्यौहार है। इस त्यौहार में बड़े, बूढ़े, युवा, महिला और बच्चे सभी लोग शामिल होकर मेले का आनंद उठाते हैं। साथ ही धोबी समुदाय के लोग कालिका देवी को प्याले में शराब तथा फूल माला के साथ पांच दीपों में भांग-गुड़, मदिरा, रोरी, मीठा और पानी भरकर चढ़ाते हैं। इसके साथ ही अपने पूर्वजों की विशेष आराधना करते हैं और अपने परिवार के सुखमय जीवन की कामना करते हैं। तत्पश्चात बड़े बुजुर्ग लोग प्याले में भरे हुए शराब का सेवन करते हैं।

वीडियो – गोकुल दलित
