कृषि कानून प्रस्ताव को संसद में लाये हुए लगभग एक वर्ष होने को है। वहीं इस प्रस्ताव के खिलाफ भारत के किसानों की लड़ाई को भी एक वर्ष होने को है। लेकिन लड़ाई अभी खत्म नहीं हुई है। लड़ाई जारी है। यह भारत ही नहीं दुनिया के किसान आंदोलनों में अपनी तरह की एक अनूठी घटना है। सच कहा जाय तो इन कृषि क़ानूनों के लागू होने से किसानों की तबाही का जो स्टोरी बोर्ड तैयार किया जा रहा है उसकी पटकथा पूरी तरह तैयार हो जाएगी। और उसके बाद किसानों के हाथ में कोई ताकत नहीं रह जाएगी। इसलिए कृषि कानूनों को लेकर किसानों का सरकार के प्रति गुस्सा जगजाहिर है। एक तरफ किसान इसको रद्द करने की मांग में लगे हुए हैं दूसरी तरफ सरकार इसे वापस लेने को तैयार नहीं हैं। किसानों के लिए यह जीवन को जीतने का संघर्ष है। सरकार की जीत कॉर्पोरेट की जीत होगी। कॉर्पोरेट का बुरी तरह दबाव झेल रही मोदी सरकार ने इस आंदोलन को खत्म करने के लिए हर तरह का षड्यंत्र किया। इस लड़ाई में कई घटनाएं हुईं, सैकड़ों की संख्या में (लगभग 700) लोगों की मौतें भी हुईं हैं लेकिन आन्दोलन अनवरत जारी है। हालांकि मेन स्ट्रीम की मीडिया के लिए यह मुद्दा अहम नहीं रहा है। यह कल की घटना से भी समझा जा सकता है।
किसान आन्दोलन में एक अहम आन्दोलन 20 अक्टूबर को लोकनीति सत्याग्रह किसान जन जागरण पदयात्रा का समापन किया गया जिसकी शुरुआत 2 अक्टूबर गांधी जयंती के दिन चम्पारण(बिहार) से बनारस के लिए की गई थी, जिसमें बिहार, मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश, बंगाल झारखण्ड और ज्यादातर उड़ीसा से सम्मलित हुये थे। प्रतीक के रूप में 8-10 किसान हरियाणा और पंजाब से भी थे। इन किसानों ने हाथों में कृषि कानून विरोधी पोस्टर लिए लगभग 350 किलोमीटर तक पैदल यात्रा कर कृषि कानूनों के प्रति अपना रोष व्यक्त किया।
एक दिन पहले इस यात्रा का मनोबल बढ़ाने के लिए सुप्रीम कोर्ट के सीनियर वकील प्रशांत भूषण भी वाराणसी आये हुये थे। प्रेस वार्ता के दौरान उन्होंने कहा कि इस यात्रा के माध्यम से जनजागरण हो रहा है, धीरे- धीरे लोग संगठित हो रहे हैं। इसी तरह के छोटे-छोटे प्रयास से ही बड़ी-बड़ी बात बनती है। और ये बहुत महत्वपूर्ण प्रयास है कि लगभग 400-500 किसान चम्पारण से बनारस तक की पदयात्रा कर रहे हैं। सरकार के सवाल पर उन्होंने कहा कि सरकार किसान आन्दोलन को बदनाम करने का हथकंडा अपना रही है। और बांटने का भी कि इसको हिंदू सिक्ख में कर दो मुस्लिमों को अराजक तत्व कह दो। पूरा जो मेन स्ट्रीम मीडिया है, वह गोदी मीडिया बन चुका है और सरकार उसका इस्तेमाल करके किसान आंदोलन को बदनाम करने की कोशिश में लगी हुई है लकिन वो विफल रही। और किसान आंदोलन लगातार बढ़ता जा रहा है। सरकार को इसकी बहुत चिंता है कि आन्दोलन से रोड जॉम हो रहे हैं लेकिन राज्यों में शहर में कई जगह पांच-पांच साल से काम चल रहा है और वो पूरी रोड ब्लॉक है। जिससे आने- जाने लोगों को परेशानी होती है लेकिन उसके बारे में कोई चिंता नहीं है। ये सरकार तो किसानों को कुचलके अफसोस भी नहीं जताती और आरोपित मंत्री को बर्खास्त भी नहीं किया जाता है। ऐसा आदमी जो गुंडो की तरह बात करता है उसको मंत्री बना रखा रहा है। इनकी मानसिकता यह है कि ये किसी के साथ कुछ कर सकते हैं कोई इनका कुछ नहीं कर सकता है। इस यात्रा के माध्यम से संदेश की बात जब कही गयी तो प्रशांत भूषण ने कहा कि, संदेश यही देना चाहते हैं यह जनजागरण यात्रा है किसानों के लिए क्योंकि आज किसानी और किसान बहुत संकट मे है। और बिल्किल हासिए पर है जितना कॉस्ट ऑफ प्रोडक्शन है उतना भी नहीं मिलता। खेती घाटे सौदा हो गया। तो किसानी को बचाना जरुरी है। क्योंकि अगर हमारी खेती अगर अडानी अंबानी के हाथ में चली गयी तो किसान कंगाली के कगर पर पंहुच जायेगा। इसलिए एमएसपी लागू होना चाहिए। कृषि कानून रद्द होने चाहिए।
20 अक्टूबर को इस पदयात्रा का आखिरी पड़ाव बनारस के शास्त्री घाट पर संपन्न हुआ। जहां सैकड़ों की संख्या में लोग पूरे जोर-शोर से कानून विरोधी नारे लगाते हुए शास्त्री घाट लगभग 1:30 बजे पहुंचे। उस भीड़ में बड़ी संख्या में महिलाएँ भी शामिल थीं। पदयात्रियों के उत्साहवर्धन और उनके स्वागत में गीत भी गये। कुछ लोगों के कंधों पर हल भी था। सभी किसान पदयात्रियों के बैठने के बाद मंच पर इस यात्रा की अगुवाई कर रहे सभी मुख्य लोगों और नवनिर्माण किसान आन्दोलन से सभी मुख्य सदस्यों को स्टेज पर बुलाकर बिठाया गया। और फिर सभी ने बारी-बारी इस आन्दोलन को लेकर किसानों के उत्साह में और कानून के विरोध में अपने–अपने विचार प्रस्तुत करने शुरू किये। मंच पर एक अस्थि कलश भी रखा हुआ था, यह अस्थि कलश लखीमपुर में शहीद हुये किसानों का था। जिसके पीछे के भाव यह थे कि सरकार किस तरह से क्रूर और निर्दयी हो गयी है इसका प्रमाण आपके सामने है। उनके सम्मान में लोगों एक मिनट का मौैन भी रखा।
मैंने भीड़ में बैठे लोगों से बात करनी शुरू की। महिलाओं से पूछा कि कहां से आयी हैं तो कुछ लोगों का जवाब था कि वे वाराणसी के किसी गांव से हैं, कुछ लोग मध्यप्रदेश के रीवा, सतना, जबलपुर तो कुछ महिलाएं छत्तीसगढ़ से थीं। फिर मैंने पूछा कैसे आयीं हैं पैदल? तो कुछ महिलाओं ने कहा कि गाड़ी से, तो कुछ ने कहा पैदल। ज़ाहिर है ये स्त्रियाँ दूर-दराज के इलाकों से विभिन्न संगठनों के माध्यम से आई थीं। मैंने पूछा किसलिए आयी हैं तो उनमें से कई ने एक साथ कहा कि मंहगाई बहुत बढ़ रही है इसलिए और किसानों के लिये। तभी मेरी नजर एक व्यक्ति पर पड़ी जिसके चेहरे पर दर्द जाहिर हो रहा था। वह व्यक्ति अपना पैर दबा रहा था। मैंने बात करनी चाही लेकिन उड़ीसा से होने के कारण मैं भाषा समझ नहीं पायी। लेकिन उनके चेहरे पर दर्द की रेखाएं स्पष्ट थीं। कई बार कहे से ज्यादा अनकहा महत्वपूर्ण होता है। ये लोग चंपारण से पैदल चलकर यहाँ तक पहुंचे थे। वे थककर चूर थे लेकिन उनकी गतिविधियों से यह स्पष्ट था कि किसान आंदोलन को लेकर वे कोई कठिनाई पार करना चाहते हैं। वहां जितने भी उड़िसा के लोग थे मैं उनकी भाषा तो नहीं समझ पा रही थी लेकिन सभी के भाव लगभग समान थे।
इस यात्रा के संयोजन हिमांशु तिवारी ने किया था। वे मंच पर थे। जब उनकी बारी आई तो उन्होंने कहा कि आज से 104 साल पहले गांधी जी आये थे चम्पारण नील की कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के खिलाफ लड़ाई लड़ने और आज पीएम मोदी पूरे देश में कॉन्ट्रैक्ट फॉर्मिंग को लागू करने के लिए आतूर हैं इसीलिए हम गांधी जी का संदेश लेकर प्रधान मंत्री के संसदीय क्षेत्र बनारस आये हैं। प्रधानमंत्री जी अपने आपको चौकिदार कहते हैं लेकिन हिंदुस्तान का चोर दरवाजा अडानी अंबानी जैसे लोगों के लिए खोल दिया है। हमारी उनसे सिर्फ यही मांग है कि काला कानून वापस लें और एमएसपी लागू करें।
मंच पर पूर्वाञ्चल मोर्चा के अनूप श्रमिक और समाजवादी किसान नेता रामजनम तमाम इंतज़ामों में लगे हुये थे। रामजनम से पिछली कई मुलाकातों में मेरी बात हुई है और वे शायद ही कभी कोई निजी बात करते हों। कृषि क़ानूनों को लेकर वे सतत आंदोलन में हिस्सेदारी कर रहे हैं। आज भी जब मैं दस बजे यहाँ आई तो वे यात्रा के आने के पहले के इंतज़ामों में लगे मिले। सीएए-एनआरसी के विरोध में रामजनम जेल में जा चुके हैं। यू पी सरकार ने इस यात्रा के यूपी में आने से पहले कई नेताओं को नजरबंद किया और गुंडा एक्ट लगाकर जेल में डाला है। लेकिन इन सभी के जज्बे को देखकर लगता है कि वे झुकने या हार मानने के लिए तैयार नहीं हैं। उन्होंने यह बता दिया कि सरकार का कोई भी रवैया इस आन्दोलन को झुका नहीं सकता है।
सरकार की हठधर्मिता और संवेदनहीनता से किसान आंदोलन लंबा खिंचता जा रहा है। आंदोलन कई सरकारी षडयंत्रों का निशाना बनाया गया है। लखीमपुर खीरी में निर्दोष किसानों पर गाड़ी चढ़ा दिया गया जिसमें चार किसान शहीद हुये। लेकिन लगता है आंदोलन की आंच अब पूरे देश में फैल रही है। ये लोग जो चंपारण से पदयात्रा करके यहाँ तक आए हैं वे अपने हिस्से का संघर्ष उन तमाम लोगों के बीच ले जाना चाहते हैं जिनके भीतर किसानों के लिए संवेदना है। यह आंदोलन की जीत का एक पड़ाव है जहां रुककर अपनी बात कहते लोगों को सुनना एक बड़ी लड़ाई का हिस्सेदार बनना है।