उत्तर प्रदेश का हाइपर विकास हो रहा है। इस विकास के लिए किसानों को उनकी ज़मीनों से विस्थापित किया जा रहा है। किसान जो देश की अर्थव्यस्ठा को मजबूत करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं को सड़क पर लाने का पूरा इंतजाम सरकार कर रही है। इस वजह से देश के अनेक हिस्सों में किसानों के छोटे-बड़े आंदोलन चल रहे हैं।
प्रदर्शनकारी किसान फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की कानूनी गारंटी सहित अपनी अन्य मांगों को स्वीकार करवाने के लिए केंद्र पर दबाव बनाने के लिए पंजाब और हरियाणा की सीमाओं पर डेरा डाले हुए हैं।
13 फरवरी से चल रहे किसान आंदोलन 'दिल्ली चलो' के नारे के साथ चल रहा है। हरियाणा के शंभू सीमा पर एकत्रित किसान किसी भी कीमत पर दिल्ली पहुँचना चाहते हैं। किसान नेता सरवन सिंह पंधेर आज दिल्ली सीमा पर सुरक्षा बलों की भारी तैनाती को देखते हुए कहा कि सरकार ने इस किसान आंदोलन को राष्ट्रव्यापी मान लिया है।
लोकतंत्र में चुनाव में जीते हुए लोग जब शासन व्यवस्था संभालते हैं, तो वे ऐसे नियम और कानूनों का प्रावधान करते हैं, जिससे कि लोगों का कल्याण हो सके। इन नियम कानूनों के लिए सरकार पूरी तरह से जनता के प्रति जवाबदेह होती है।
13 फरवरी से शुरू हुए किसान आंदोलन को कुचलने के लिए हरियाणा पुलिस ने तरह-तरह के हथकंडे अपनाए हैं। कल 22 फरवरी को अंबाला पुलिस ने किसान संगठनों के मुख्य पदाधिकारियों और आंदोलनकारियों के विरुद्ध राष्ट्रीय सुरक्षा कानून 1980 के तहत कार्रवाई शुरू की है।
सरवन सिंह पंढेर ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में बताया कि खनौरी और शंभू बोर्डर पर सरकार ने बर्बरतापूर्वक आँसू गैस के गोले दागे। केंद्र सरकार के अर्द्ध सैनिक बालों ने पंजाब की सीमा में जबरिया घुसकर आंदोलनकारियों पर हमला किया। जिसमें युवा किसान शुभकारण सिंह की मौत हो गई। तीन लोग बुरी तरह घायल हो गए और अनेक युवाओं का कुछ पता नहीं चल रहा है, वे लापता हैं।
पीयूसीएल किसानों के मार्च पर केंद्र सरकार की अलोकतांत्रिक, अत्याचारी प्रतिक्रिया की कड़ी निंदा करता है। केंद्र सरकार ने हिंसक कदम उठाए हैं किसानों को उनके लोकतांत्रिक अधिकारों का प्रयोग करने से रोकना घोर अन्याय है।
पंजाब-हरियाणा सीमा पर हरियाणा प्रशासन द्वारा तैनात सुरक्षाकर्मियों द्वारा किसानों के खिलाफ की गई कार्रवाई का जिक्र करते हुए किसान नेताओं ने किसानों के खिलाफ 'बल' प्रयोग करने के लिए अर्धसैनिक बल के जवानों की आलोचना की। इस कार्रवाई में कई लोग घायल हो गए थे। उन्होंने आंसू गैस के कुछ गोले भी दिखाए।
एसईसीएल ने स्वीकारा, भूविस्थापितों की आर्थिक नाकेबंदी से 5.39 करोड़ का नुकसान
कोरबा। एसईसीएल ने स्वीकार किया है कि 11-12 सितम्बर को छत्तीसगढ़ किसान सभा...
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में 28 जून, 2022 को जल-जंगल-ज़मीन की कॉर्पोरेट लूट, दमन और विस्थापन के खिलाफ जनसंघर्षों का एक दिवसीय राज्य सम्मेलन हुआ। इस सम्मेलन में देशभर के 15 राज्यों (छत्तीसगढ़, झारखण्ड, मध्यप्रदेश, ओड़िशा, जम्मू एंड कश्मीर, दिल्ली, महाराष्ट्र, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, हिमाचल प्रदेश, बिहार, गुजरात, तमिलनाडु और उत्तराखंड) से 500 से ज्यादा प्रतिनिधियों ने हिस्सेदारी की। सम्मेलन के अंत में नौ प्रस्ताव पारित किए गए। शुरुआती तीन प्रस्ताव छत्तीसगढ़ केंद्रित होते हुए भी सामान्य प्रकृति के हैं, जिनमें विकास के नाम पर जमीन की लूट रोकने, पांचवीं अनुसूची के क्षेत्रों में पेसा कानून और भूमि अधिग्रहण कानून, 2013 के अनुपालन की मांग दर्ज है। बाकी प्रस्ताव भी सामान्य प्रकृति के हैं। ये सभी प्रस्ताव मोटे तौर पर उन्हीं संकल्पों का दुहराव हैं जो आज से कोई आठ साल पहले ओडिशा के जगतसिंहपुर स्थित ढिंकिया में हुए जनसंघर्षों के दो दिवसीय सम्मेलन में पारित किए गए थे। तीन हिस्सों में प्रकाशित की जा रही अभिषेक श्रीवास्तव की लंबी रिपोर्ट का दूसरा भाग।
बीएचयू(वाराणसी): केन्द्र सरकार द्वारा किये गये वादाखिलाफी के विरोध में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के छात्र-छात्राओं द्वारा सोमवार के शाम लंका गेट पर विश्वासघात दिवस...
पिंडरा तहसील पर संयुक्त किसान मोर्चा, वाराणसी ने वादाखिलाफी प्रतिकार दिवस मनाया। राष्ट्रपति को सभा का संबोधित ज्ञापन सौंपा। सभा को रामजनम, अफलातून, लक्ष्मण...
किसान जिस एमएसपी गारंटी के कानून की बात कर रहे हैं, उसे लेकर देश का कारपोरेट जगत सदमे में है। दरअसल, यदि यह कानून बन गया तब किसानों को हर हाल में न्यूनतम समर्थन मूल्य प्राप्त होगा। ऐसे में वे खुले बाजार में न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम मूल्य में किसानों की उपज नहीं खरीद सकेंगे।
यह समय का पहिया घूमने जैसी बात है। दस साल हो रहे हैं जब 2009 में आई ग्रामीण विकास मंत्रालय एक मसविदा रिपोर्ट के 160 वें पन्ने पर भारत के आदिवासी इलाकों में कब्जाई जा रही ज़मीनों को धरती के इतिहास में 'कोलंबस के बाद की सबसे बड़ी लूट' बताया गया था। कमिटी ऑनस्टेट अग्रेरियन रिलेशंस एंड अनफिनिश्ड टास्क ऑफ लैंडरिफॉर्म्स शीर्षक से यह रिपोर्ट आज तक सार्वजनिक विमर्श का हिस्सा नहीं बन पाई है, जिसने छत्तीसगढ़ और झारखण्ड के कुछ इलाकों में सरकारों और निजी कंपनियों (नाम समेत) की मिली भगत से हो रही ज़मीन की लूट से पैदा हो रहे गृहयुद्ध जैसे हालात की ओर इशारा किया था।
दोलन कई सरकारी षडयंत्रों का निशाना बनाया गया है। लखीमपुर खीरी में निर्दोष किसानों पर गाड़ी चढ़ा दिया गया जिसमें चार किसान शहीद हुये। लेकिन लगता है आंदोलन की आंच अब पूरे देश में फैल रही है। ये लोग जो चंपारण से पदयात्रा करके यहाँ तक आए हैं वे अपने हिस्से का संघर्ष उन तमाम लोगों के बीच ले जाना चाहते हैं जिनके भीतर किसानों के लिए संवेदना है।