Friday, December 6, 2024
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इलाहाबाद विवि : छात्रसंघ बहाली की मांग करते हुए दीक्षांत समारोह में योगी के आगमन का कर रहे हैं विरोध

वर्ष 2014 के बाद पूरे देश में सांप्रदायिक ताकतों के साथ भगवाकरण की राजनीति ने जोर पकड़ा है। देश के बड़े विवि से लेकर विद्यालयों तक में इसका असर देखने को मिल रहा है। इन संस्थानों में नियुक्ति से लेकर पाठ्यक्रम तक का खुल कर भगवाकरण किया जा रहा है। जो इस रंग में नहीं रंगे उन्हें देशद्रोही और अर्बन नक्सली कह जेल में डाल दिया गया। यही स्थिति पूरब का ऑक्सफोर्ड कहे जाने वाला इलाहाबाद केन्द्रीय विवि की है, जहां 27 नवंबर को होने वाले दीक्षांत समारोह में विवि की रेक्टर माननीया आनंदी बेन पटेल को आमंत्रित न कर सांप्रदायिक बयान देने वाले मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को आमंत्रित किया गया है। जिसका सभी छात्र दल विरोध कर रहे हैं।

मिड डे मील : सत्तर रुपये प्रतिदिन की मजदूरी में ‘सफाईकर्मी’ भी बन जाते हैं रसोइया

वर्ष 2019 में बस्ती की चंद्रावती देवी मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति पंकज भाटिया ने अनुच्छेद 23 के अंतर्गत एक फैसला सुनाया था जिसमें उन्होंने कहा था कि 'किसी भी पुरुष या महिला को न्यूनतम वेतन से कम देना मूल वेतन के अधिकारों का हनन है।' उस हिसाब से किसी भी कुशल मजदूर का प्रतिदिन का वेतन न्यूनतम 410 रुपये होना चाहिए।  किंतु वे 70 रुपये में ही अपना गुजरा-बसर करने के लिए मजबूर हैं।

प्राथमिक शिक्षा के ढांचे को बेहतर करने के लिए अध्यापक को दूसरे कागजी कामों से मुक्त करना होगा

सरकार अनेक योजनाओं के साथ डाटा एकत्रित करने की जिम्मेदारी अध्यापकों को सौंपती है। इस वजह से आये दिन सरकारी विद्यालय के अध्यापक सौंपे गए काम के लिए कागजी कार्यवाही में लगे रहते हैं, जिसका सीधा-सीधा असर पढने वाले बच्चों पर पड़ता है। वे विद्यालय तो आते हैं लेकिन पढ़ाई नहीं होती क्योंकि अध्यापक अपने काम में व्यस्त रहते हैं। सबसे ज्यादा नुकसान प्राथमिक कक्षा में पढ़ने वाले बच्चों का होता है और इस वजह से उनकी नींव कमजोर हो जाती है और पढाई के प्रति अरुचि होने से विद्यालय जाना बंद कर देते हैं। जबकि प्राथमिक कक्षाओं के अध्यापकों का पूरा ध्यान बच्चों पर होना चाहिए।

उत्तराखंड : लड़कियों को आत्मनिर्भर होने के लिए तकनीकी शिक्षा एक महत्त्वपूर्ण माध्यम है

एक समय था जब डिग्रीधारी को नौकरी मिल जाया करती थी लेकिन आज के समय में डिग्री मात्र से कहीं काम मिलना असंभव है, डिग्री के साथ कोई तकनीकी ज्ञान होना बहुत जरूरी है। आज हर कोई कंप्यूटर सीखकर आगे बढ़ सकता है, बेशक उसके सीखने की ललक कितनी हैबहुत। लड़कियां आत्मनिर्भर हो जाएं, इसके लिए यह अच्छा साधन है। 

उत्तराखंड : पुल की कमी से छूट रही लड़कियों की शिक्षा

उत्तराखंड के लगतीबगड़िया गांव में लड़कियों की पढ़ाई पुल नहीं होने से बाधित हो रही है। उन्हें रोज नदी पार करके जाना पड़ता है। जिसकी वजह से बरसात के दिनों में लड़कियां दो–दो महीने स्कूल नहीं जा पाती है। विकास के सारे सरकारी दावे फर्जी साबित हो रहे हैं।

घाटशिला : BDSL महिला कॉलेज के शिक्षक-शिक्षकेत्तर कर्मचारियों की हड़ताल

घाटशिला अनुमंडल अंतर्गत बीडीएसएल महिला महाविद्यालय में चल रही शिक्षक और शिक्षकेतर कर्मचारियों की अनिश्चितकालीन हड़ताल व धरने को आज झामुमो के केंद्रीय सदस्य...

सावर्जनिक और निजी शिक्षा के भंवर में “शिक्षा अधिकार कानून”

शिक्षा का अधिकार अधिनियम भारत की संसद द्वारा पारित ऐसा कानून है जो 6 से 14 वर्ष के सभी बच्चों के शिक्षा की जिम्मेदारी...

बाँस के स्कूल और सपनों में लगती जंग

कोविड से पूरी दुनिया प्रभावित हुई है। धरती के हर हिस्से का इंसान गंभीर चुनौतियों का सामना कर रहा है। कोरोना से पैदा हुई...

स्कूली शिक्षा की बदहाली और प्राइवेट स्कूल

रिपोर्ट बताती है कि चमक-दमक दिखाकर मुनाफा कूटने का माध्यम भर हैं निजी स्कूल और विद्यार्थी औसत ज्ञान में भी पीछे हैं भारत में...