Saturday, December 20, 2025
Saturday, December 20, 2025




Basic Horizontal Scrolling



पूर्वांचल का चेहरा - पूर्वांचल की आवाज़

होमशिक्षा

शिक्षा

राजस्थान : वंचित समुदाय सरकारी योजनाओं की कमी के चलते शिक्षा पाने में नाकामयाब

राजस्थान में सरकारी स्कूलों की स्थिति का हाल कुछ ऐसा है कि स्कूलों में मास्टर की कमी सबसे बड़ी समस्या है। उदाहरण के लिए, राज्य में लगभग 1.17 लाख शिक्षण पदों पर अभी भी टीचरों की नियुक्ति नहीं हुई है। स्कूलों को उच्च माध्यमिक स्तर पर अपग्रेड किया गया है, लेकिन नए पदों पर टीचर की नियुक्ति नहीं होने के कारण कक्षाएँ नियमित रूप से नहीं चल पा रही हैं। UDISE ( Unified District Information System for Education) रिपोर्ट बताती है कि 7,688 स्कूलों में सिर्फ एक ही शिक्षक होते हैं, और 2,167 सरकारी स्कूल ऐसे हैं जहाँ एक भी छात्र नामांकित नहीं है।

छतीसगढ़ शिक्षा विभाग : सरकार की गति कुछ और भविष्य की दिशा कोई और

छत्तीसगढ़ में भाजपा शासन में 4077 विद्यालय बंद किए जा चुके हैं। सरकार शिक्षा के स्तर सुधारने और नई भर्ती करने की बजाए उसे बिगाड़ने का काम कर गाँव के बच्चों को पढ़ाई से वंचित करने की व्यवस्था बना रही है। सदैव से भाजपा की यही रणनीति रही है कि शिक्षा एक खास वर्ग ही हासिल कर पाए। भाजपाशासित प्रदेशों में शिक्षा और शिक्षा नीति में लगातार बदलाव कर तर्क सम्मत पाठ्यक्रमों को हटाकार धार्मिक विषयों को शामिल करने की होड़ लगी है।

देश के विश्वविद्यालयों में भर्ती प्रक्रिया प्रश्नों के घेरे में

असली जातिवाद देखना है तो विश्वविद्यालयों की वर्तमान स्थिति को देखा जा सकता है। जातिवाद  के सबसे क्रूर, घिनौने और घिनौने स्थान विश्वविद्यालय बन गए हैं। जहां गले तकभ्रष्टाचार खुले आम हो रहा है। विश्वविद्यालय के मुखिया से लेकर प्रोफेसरों की नियुक्ति अब आरएसएस और भाजपा के इशारे पर हो रही है।

शिक्षा : तमाम दिक्कतों के बावजूद शिक्षकों ने अपनी भूमिका को बेहतर निभाया है

एनुअल स्टेटस ऑफ एजुकेशन रिपोर्ट (ASER) द्वारा किए गए सर्वे के आधार पर यह सामने आया कि प्राथमिक और पूर्व प्राथमिक विद्यालय के बच्चों की बुनियादी साक्षरता और गणितीय कौशल के स्तर मे सुधार के लिए किए जा रहे प्रयास के परिणाम सही दिशा में आते हुए दिखाई दे रहे हैं। हालांकि यह लक्ष्य बहुत सकारात्मक नहीं है लेकिन सुधार होता दिख रहा है। ‘निपुण भारत मिशन’ जिसकी शुरुआत 5 जुलाई 2021 को हुई थी, तय लक्ष्य पाने में अभी बहुत पीछे है लेकिन जो भी हासिल है उसका श्रेय शिक्षकों को दिया जाना चाहिए।

उत्तराखंड : पढ़ाने के इतर कामों से मुक्त हों सरकारी अध्यापक ताकि बच्चे पढ़ पाएं

विद्यालय में बच्चों की पढ़ाई में रुचि पैदा हो इसके लिए अध्यापकों का पूरा ध्यान दिया जाना जरूरी है। लेकिन होता यह है कि सरकारी विद्यालयों में अध्यापकों को पढ़ाने के अलावा अन्य प्रशासनिक कामों की ज़िम्मेदारी सौंप दी जाती है और उसे करने का दबाव बनाया जाता है, जिसकी वजह से अध्यापक काम पूरा करने के लिए बच्चों को दिये जाने वाले समय से कटौती करता है। सरकार को अन्य प्रशासनिक कामों से पूरी तरह मुक्त रखना होगा ताकि बच्चे बच्चे सीखने की उम्र में रुचि के साथ सीख सकें।

शिक्षा की दिक्कत के अलावा भी ढेरों बुनियादी संरचनाओं की कमी से जूझ रहे हैं राजस्थान के गांव

अनेक बड़ी और अच्छी सरकारी योजनाओं से आज भी देश के कई गाँव वंचित हैं क्योंकि वहाँ तक कोई आधारभूत सुविधा नही पहुँच पा रही है, जिसके लिए राजस्थान में आयोजित हुए तीन दिवसीय 'राइजिंग राजस्थान ग्लोबल इंवेस्टमेंट समिट 2024' में 30 ट्रिलियन निवेश से संबंधित एमओयू पर हस्ताक्षर हुए। सवाल यह उठता है कि क्या इसके बाद क्या सुविधाएं गांवों तक पहुँच पायेंगी।

दिल्ली विश्वविद्यालय : नियुक्ति में NFS का खेल जारी है

देश की सत्ता पर बैठे मुखिया पिछड़े और आदिवासी समुदाय से आते हैं, वे सभी देश को चलाने में सक्षम और योग्य हैं क्योंकि सभी आरएसएस से जुड़े हुए हैं। ये सभी देश को चलाने की योग्यता रखते हैं, चाहे इनकी शैक्षणिक योग्यता जो भी हो लेकिन पिछड़े समाज का उच्च शिक्षा प्राप्त एक भी उम्मीदवार शैक्षणिक संस्थानों में नियुक्ति के योग्य नहीं पाया जाता। जबकि संविधान में पिछड़े समाज के लिए विशेष अवसर के तहत ही आरक्षण का प्रावधान किया गया है। लेकिन जब उस अवसर के तहत चयन की बारी आती है तब उसका NFS करके उस अवसर की ही हत्या कर दी जाती है। इससे एक बात सामने आती है कि यह संस्थान जाति और ब्राह्मणवाद का खुला खेल खेलता हुआ NFS का खेल खेलते हुए पिछड़ी जातियों के युवाओं के भविष्य को दांव पर लगा रहा है। संविधान में पिछड़े समाज के लिए विशेष अवसर के तहत ही आरक्षण का प्रावधान किया गया है। लेकिन जब उस अवसर के तहत चयन की बारी आती है, तब NFS कर उस अवसर की ही हत्या कर दी जाती है।

इलाहाबाद विवि : छात्रसंघ बहाली की मांग करते हुए दीक्षांत समारोह में योगी के आगमन का कर रहे हैं विरोध

वर्ष 2014 के बाद पूरे देश में सांप्रदायिक ताकतों के साथ भगवाकरण की राजनीति ने जोर पकड़ा है। देश के बड़े विवि से लेकर विद्यालयों तक में इसका असर देखने को मिल रहा है। इन संस्थानों में नियुक्ति से लेकर पाठ्यक्रम तक का खुल कर भगवाकरण किया जा रहा है। जो इस रंग में नहीं रंगे उन्हें देशद्रोही और अर्बन नक्सली कह जेल में डाल दिया गया। यही स्थिति पूरब का ऑक्सफोर्ड कहे जाने वाला इलाहाबाद केन्द्रीय विवि की है, जहां 27 नवंबर को होने वाले दीक्षांत समारोह में विवि की रेक्टर माननीया आनंदी बेन पटेल को आमंत्रित न कर सांप्रदायिक बयान देने वाले मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को आमंत्रित किया गया है। जिसका सभी छात्र दल विरोध कर रहे हैं।

मिड डे मील : सत्तर रुपये प्रतिदिन की मजदूरी में ‘सफाईकर्मी’ भी बन जाते हैं रसोइया

वर्ष 2019 में बस्ती की चंद्रावती देवी मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति पंकज भाटिया ने अनुच्छेद 23 के अंतर्गत एक फैसला सुनाया था जिसमें उन्होंने कहा था कि 'किसी भी पुरुष या महिला को न्यूनतम वेतन से कम देना मूल वेतन के अधिकारों का हनन है।' उस हिसाब से किसी भी कुशल मजदूर का प्रतिदिन का वेतन न्यूनतम 410 रुपये होना चाहिए।  किंतु वे 70 रुपये में ही अपना गुजरा-बसर करने के लिए मजबूर हैं।

प्राथमिक शिक्षा के ढांचे को बेहतर करने के लिए अध्यापक को दूसरे कागजी कामों से मुक्त करना होगा

सरकार अनेक योजनाओं के साथ डाटा एकत्रित करने की जिम्मेदारी अध्यापकों को सौंपती है। इस वजह से आये दिन सरकारी विद्यालय के अध्यापक सौंपे गए काम के लिए कागजी कार्यवाही में लगे रहते हैं, जिसका सीधा-सीधा असर पढने वाले बच्चों पर पड़ता है। वे विद्यालय तो आते हैं लेकिन पढ़ाई नहीं होती क्योंकि अध्यापक अपने काम में व्यस्त रहते हैं। सबसे ज्यादा नुकसान प्राथमिक कक्षा में पढ़ने वाले बच्चों का होता है और इस वजह से उनकी नींव कमजोर हो जाती है और पढाई के प्रति अरुचि होने से विद्यालय जाना बंद कर देते हैं। जबकि प्राथमिक कक्षाओं के अध्यापकों का पूरा ध्यान बच्चों पर होना चाहिए।

उत्तराखंड : लड़कियों को आत्मनिर्भर होने के लिए तकनीकी शिक्षा एक महत्त्वपूर्ण माध्यम है

एक समय था जब डिग्रीधारी को नौकरी मिल जाया करती थी लेकिन आज के समय में डिग्री मात्र से कहीं काम मिलना असंभव है, डिग्री के साथ कोई तकनीकी ज्ञान होना बहुत जरूरी है। आज हर कोई कंप्यूटर सीखकर आगे बढ़ सकता है, बेशक उसके सीखने की ललक कितनी हैबहुत। लड़कियां आत्मनिर्भर हो जाएं, इसके लिए यह अच्छा साधन है। 
Bollywood Lifestyle and Entertainment