यूपीएससी टॉपर शुभम कुमार कटिहार के रहने वाले हैं। उनके पिता बैंक मैनेजर तथा मां गृहिणी हैं। उनके माता-पिता को अपने मेधावी पुत्र की शिक्षा के लिए बड़े जतन और त्याग करने पड़े हैं। अपनी सुख सुविधाओं को तिलांजलि देकर अपने पुत्र की शिक्षा के लिए उन्होंने कोई कोर कसर बाकी नहीं रखा था। शुभम ने बताया कि उन्होंने दसवीं विद्या विहार रेजिडेंशियल स्कूल पूर्णिया से तथा 12वीं चिन्मया विद्यालय बोकारो से पास किया है। शुभम ने 2018 में आईआईटी मुंबई से सिविल इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की है।
परिणाम आज सबके सामने है। वंचित समाज के बच्चे आज ज्ञान-विज्ञान और अनुसंधान के हरेक क्षेत्र में अपने मेधा शक्ति का लोहा मनवा रहे हैं। हालांकि अभी भी इस वर्ग की एक बड़ी आबादी गुणवत्तापूर्ण शिक्षा से वंचित है। जिस दिन वंचित बहुजनों की विशाल आबादी को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा पाने की हसरत पूरी हो जाएगी, उस दिन बिहार के पिछड़ेपन का कलंक भी मिट जाएगा और बिहार सिर उठाकर प्रगति के रास्ते पर चल पड़ेगा।
केन्द्रीय सेवाओं में सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्ग के लिए 27% आरक्षण की घोषणा ने छात्रों के बीच जो उमंग और उत्साह की लहर पैदा की उसका सुखद परिणाम अब सामने आ रहा है। शुभम कुमार का टापर बनना पिछड़ों की उस जागृति का परिणाम है, जो मंडल दौर में प्रारंभ हुआ तथा अब परवान चढ़ रहा है। मंडल आरक्षण की घोषणा के बाद बड़ी संख्या में ओबीसी छात्र यूपीएससी सहित उच्च स्तरीय परीक्षाओं में शामिल होने लगे। मंडल आरक्षण लागू होने से पहले के दौर की उच्चस्तरीय परीक्षाओं में मध्यवर्ती जातियों के छात्र कम ही सफल हो पाते थे, जिसका कारण था आत्मविश्वास की कमी और भेदभाव का सांस्थानिक रूप। मंडल पूर्व दौर में मध्यवर्ती जातियों के छात्रों का सफल होना अपवाद माना जाता था। लेकिन मंडल आरक्षण लागू होने के बाद इस स्थिति में तेजी से बदलाव आया है। आरक्षण के संबल से भर्ती परीक्षाओं में जोखिम लेने वाले छात्रों की संख्या में न सिर्फ अभूतपूर्व वृद्धि हुई है बल्कि संतोषप्रद संख्या में सामान्य सूची में भी जगह बना रहे हैं। मंडल आयोग के चेयरमैन बिंदेश्वरी प्रसाद मंडल ने रिपोर्ट में ओबीसी को 27 फीसदी आरक्षण देने का सुझाव देते हुए लिखा था- ‘सामाजिक पिछड़ेपन को दूर करने की जंग को पिछड़ी जातियों के ज़हन में जीतना ज़रूरी है। भारत में सरकारी नौकरी पाना सम्मान की बात है। ओबीसी वर्ग की नौकरियों में भागीदारी बढ़ने से उन्हें यकीन होगा कि वे सरकार में भागीदार हैं। पिछड़ी जाति का व्यक्ति अगर कलेक्टर या पुलिस अधीक्षक बनता है, तो ज़ाहिर तौर पर उसके परिवार के अलावा किसी और को लाभ नहीं होगा, पर वह जिस समाज से आता है, उन लोगों में गर्व की भावना आएगी, उनका सिर ऊंचा होगा कि उन्हीं में से कोई व्यक्ति ‘सत्ता के गलियारों’ में है। ‘शुभम कुमार का टॉप करना पिछड़ों की प्रगति की दिशा में एक पड़ाव भर है। आगे हमें ऐसी सफलता की खबर सुनने की आदत डालनी होगी।

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, अभी बिहार में कक्षा 1 से 12 वीं कक्षा के लिए लगभग 78,000 स्कूल हैं, जिसमें कुल 2.5 करोड़ छात्र हैं। विभाग ने चार बिंदुओं की पहचान की है, जहां से बच्चे अक्सर ड्रॉप आउट करते हैं। ड्रॉप आउट के अधिकतर मामले कक्षा 5वीं व 8वीं के बाद मिले हैं। जब एक छात्र को क्रमशः प्राथमिक से माध्यमिक और माध्यमिक से उच्च माध्यमिक कक्षाओं में बदलना पड़ता है। वहीं कक्षा 10 और कक्षा 12 बोर्ड के बाद भी ये मामले देखने को मिलते हैं।
शिक्षा विभाग के प्रधान सचिव संजय कुमार ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया, ‘कक्षा 1 से 12 वीं कक्षा तक के छात्रों के नामांकन में गिरावट हमारे लिए चिंताजनक विषय है। राज्य सरकार के 2018-19 के लेटेस्ट आंकड़ों के अनुसार, हमने कक्षा 1 में 24,03,526 छात्रों का नामांकन किया था। लेकिन कक्षा 10 में यह संख्या गिरकर 15,37,628 हो गयी। करीब 9 लाख की यह गिरावट दर्ज की गयी है। वहीं कक्षा 12 वीं में यह 6,31,379 तक पहुंच गयी है। प्रधान सचिव ने कहा कि यह संख्या कक्षा 12 के बाद 4 लाख से भी कम छात्रों तक पहुंच गई।