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इलेक्टोरल बॉन्ड: मुश्किल में भाजपा, विपक्ष का चौतरफा हमला

कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने एक्स पर कहा कि “नरेंद्र मोदी की भ्रष्ट नीतियों का एक और सबूत आपके सामने है। भाजपा ने इलेक्टोरल बॉण्ड को रिश्वत और कमीशन लेने का माध्यम बना दिया था। आज इस बात पर मुहर लग गई है।“

सुप्रीम कोर्ट द्वारा इलेक्टोरल बॉन्ड पर रोक लगाये जाने को लेकर जहां भाजपा के चेहरे पर चिंता की लकीरें खिंच गई हैं वहीं विपक्षी दलों ने जमकर स्वागत किया है। शरद पवार वाले एनसीपी गुट ने कहा है कि किसी राजनीतिक दल को दिए जाने वाले हर चंदे में पारदर्शिता और जवाबदेही होनी चाहिए।

ये वही शरद पवार गुट है जिसे कुछ दिन पहले चुनाव आयोग से तगड़ा झटका मिला था और आयोग ने अजीत पवार को असली एनसीपी घोषित कर दिया था। जिसके बाद अब सुप्रीम कोर्ट की ओर से सत्ताधारी दल बीजेपी को तगड़ा झटका मिला है, जिसे शायद पवार गुट अपने जख्मों पर मरहम की तरह देख रहा है।

भाजपा को लाभ पहुंचाने के लिए शुरु की गई योजना

एनसीपी-पवार के प्रवक्ता क्लाइड क्रैस्टो ने दावा किया है कि गुमनाम दानदाताओं के जरिए सत्तारूढ़ भाजपा को लाभ पहुंचाने के लिए चुनावी बॉन्ड योजना की शुरूआत की गई थी और इसके लागू होने के बाद से भाजपा ही एकमात्र ऐसी पार्टी है जिसे इससे सबसे ज्यादा लाभ हुआ है।

कोर्ट ने क्या कहा?

सुप्रीम कोर्ट ने बृहस्पतिवार को इलेक्टोरल बॉन्ड योजना को रद्द करते हुए कहा कि यह संविधान के तहत सूचना के अधिकार और वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन करती है।

सीजेआई डी. वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने योजना को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर दो अलग-अलग लेकिन सर्वसम्मत फैसले सुनाए।

कोर्ट ने भारतीय स्टेट बैंक को छह साल पुरानी योजना के तहत दान देने वालों के नामों की जानकारी निर्वाचन आयोग को देने का निर्देश भी दिया है। कोर्ट ने कहा कि एसबीआई राजनीतिक दलों का ब्योरा दे, जिन्होंने 2019 से अब तक इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए चंदा हासिल किया है। एसबीआई राजनीतिक दल की ओर से कैश किए गए हर इलेक्टोरल बॉन्ड की डिटेल दे, कैश करने की तारीख का भी ब्योरा दे और सारी जानकारी 6 मार्च 2024 तक इलेक्शन कमीशन को दे। कोर्ट ने कहा की एसबीआई से मिलने वाली जानकारी को इलेक्शन कमीशन 13 मार्च तक अपनी ऑफिशियल वेबसाइट पर पब्लिश करे। ताकि जनता भी इनके बारे में जान सके।

अब इसके साथ ही भाजपा की कलई खुल सकती है क्योंकि बॉन्ड के जरिये दिए गए धन का आधे से अधिक या 57% पैसा भाजपा के पास गया है। चुनाव आयोग को दी गई घोषणा के अनुसार पार्टी को 2017-2022 के बीच बॉन्ड के जरिये 5,271.97 करोड़ रुपये मिले हैं। अगर इलेक्शन कमीशन चुनाव से पहले इसका खुलासा करती है तो ये पार्टी के लिए हानिकारक सिद्ध हो सकता है।

विपक्ष पर राजनीतिकरण करने का आरोप

वहीं पार्टी ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को तवज्जो नहीं देने की कोशिश करते हुए कहा कि शीर्ष अदालत के हर फैसले का सम्मान किया जाना चाहिए। पार्टी ने विपक्षी दलों पर इस मुद्दे का राजनीतिकरण करने का आरोप भी लगाया है।

भाजपा प्रवक्ता नलिन कोहली ने कहा कि विपक्ष इस मुद्दे का राजनीतिकरण कर रहा है क्योंकि उसके पास प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व और उनकी सरकार द्वारा किए गए सकारात्मक कार्यों से मुकाबले का कोई विकल्प नहीं है।

कोहली ने ऐसा दिखाने की कोशिश की पार्टी ने कोर्ट के अहम फैसले को ज्यादा गंभीरता से नहीं लिया है। हालांकि इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि पार्टी के अंदरखाने में इससे निपटने के उपाय ढूंढे जा रहे होंगे।

प्रवक्ता ने अपनी चिकनी चुपड़ी बातों से मामले पर पर्दा डालने की खूब कोशिश की। उन्होंने कहा कि भारत अब 10वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था से दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है और प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में यह तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की राह पर है।

इस बहाने उन्होंने इंडिया गठबंधन पर भी वार किया और कहा कि ‘‘ये राजनीतिक दल खुद ऐसी स्थिति में हैं कि जिस गठबंधन को वे बनाने की कोशिश कर रहे थे, वह लगभग खत्म हो रहा है या यह अपने पैरों पर खड़ा होने से पहले ही खत्म हो गया है। इसलिए इसका राजनीतिकरण करने का उनका कारण बहुत स्पष्ट है।’’

कोहली ने सफाई देते हुए कहा कि सरकार चुनावों में काले धन के इस्तेमाल के मुद्दे के हल के लिए इलेक्टोरल बॉन्ड योजना लाई थी।

भाजपा हर बार यही कहती है कि इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिये चुनावों में काले धन के इस्तेमाल पर रोक लगेगी लेकिन कैसे इसके बारे में पार्टी ने कभी कुछ नहीं बताया। इस बार भी पार्टी के प्रवक्ता ने चुनावों में काले धन के इस्तेमाल का शिगूफा छोड़ा और कहा कि ‘‘सबसे बड़ा परिप्रेक्ष्य यह है कि यह कई दशकों से चिंता का एक विषय रहा है कि काले धन या धन को चुनावी प्रक्रिया में आने से कैसे रोका जाए।’’

कांग्रेस ने किया वार

वहीं पवार के अलावा दूसरे विपक्षी दलों ने इलेक्टोरल बॉन्ड पर केंद्र की भाजपा सरकार पर हमला बोला।

कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने एक्स पर कहा कि “नरेंद्र मोदी की भ्रष्ट नीतियों का एक और सबूत आपके सामने है। भाजपा ने इलेक्टोरल बॉण्ड को रिश्वत और कमीशन लेने का माध्यम बना दिया था। आज इस बात पर मुहर लग गई है।“

कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने भी कटाक्ष करते हुए कहा कि कोर्ट ने मोदी सरकार की ‘काला धन सफेद करने की’ योजना को रद्द कर दिया है। उन्होंने एक्स पर एक पोस्ट करते हुए लिखा की “चुनावी बॉन्ड योजना की लॉन्चिंग के दिन कांग्रेस पार्टी ने इसे अपारदर्शी और अलोकतांत्रिक बताया था। इसके बाद कांग्रेस पार्टी ने अपने 2019 के घोषणापत्र में मोदी सरकार की संदिग्ध योजना को खत्म करने का वादा किया।

हम आज सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत करते हैं, जिसने मोदी सरकार की इस ‘काला धन रूपांतरण’ योजना को “असंवैधानिक” बताते हुए रद्द कर दिया है।

हमें याद है कि कैसे मोदी सरकार, पीएमओ और एफएम ने बीजेपी का खजाना भरने के लिए हर संस्थान आरबीआई, चुनाव आयोग, संसद और विपक्ष पर बुलडोजर चला दिया था। इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि इस योजना के तहत 95%फंडिंग बीजेपी को मिली।

हमें उम्मीद है कि मोदी सरकार भविष्य में ऐसे शरारती विचारों का सहारा लेना बंद कर देगी और सुप्रीम कोर्ट की बात सुनेगी, ताकि लोकतंत्र, पारदर्शिता और समान अवसर कायम रहे।“

पार्टी महासचिव जयराम रमेश ने एक्स पर पोस्ट किया, ‘‘उच्चतम न्यायालय ने मोदी सरकार की बहुप्रचारित चुनावी बॉन्ड योजना को संसद द्वारा पारित कानूनों के साथ-साथ भारत के संविधान दोनों का उल्लंघन माना है। लंबे समय से प्रतीक्षित फैसला बेहद स्वागत योग्य है और यह नोट पर वोट की शक्ति को मजबूत करेगा।’’

उन्होंने किसानों के ‘दिल्ली मार्च’ आंदोलन की पृष्ठभूमि में आरोप लगाया कि मोदी सरकार ‘चंदादाताओं’ को विशेषाधिकार देते हुए अन्नदाताओं पर हर तरह का अत्याचार कर रही है।

रमेश ने कहा, ‘‘हमें यह भी उम्मीद है कि उच्चतम न्यायालय इस बात पर ध्यान देगा कि चुनाव आयोग लगातार वोटर वेरिफिएबल पेपर ऑडिट ट्रेल (वीवीपीएटी) के मुद्दे पर राजनीतिक दलों से मिलने से भी इनकार कर रहा है। यदि मतदान प्रक्रिया में सब कुछ पारदर्शी है तो फिर इतनी जिद क्यों?”

उन्होंने आरोप लगाया कि आज उच्चतम न्यायालय ने साबित कर दिया है कि मोदी सरकार ‘सूट-बूट-झूठ-लूट की सरकार’ है।

कांग्रेस के मीडिया प्रभारी पवन खेड़ा ने संवाददाताओं से कहा, ‘‘कांग्रेस पार्टी कोर्ट के इस फैसले का स्वागत करती है और मांग करती है कि एसबीआई तमाम जानकारी सार्वजनिक पटल पर रखे, जिससे जनता को मालूम पड़े कि किसने कितना पैसा दिया।’’

उन्होंने कहा, ‘‘यह योजना मोदी सरकार ‘मनी बिल’ के तौर पर लाई थी, ताकि राज्यसभा में इसपर चर्चा न हो, यह सीधा पारित हो जाए। हमें डर है कि कहीं फिर से कोई अध्यादेश जारी न हो जाए और मोदी सरकार शीर्ष अदालत के इस फैसले से बच जाए। ’’

उन्होंने इसे एक घोटाला बताते हुए सवाल किया कि क्या इस ‘घोटाले’ की जांच के लिए प्रवर्तन निदेशालय को लगाया जाएगा?

खेड़ा ने आरोप लगाया, ‘‘चुनावी बॉन्ड योजना भ्रष्टाचार का मामला है, जिसमें सीधे-सीधे प्रधानमंत्री शामिल हैं। देश पर चुनावी बॉन्ड को थोपा गया, जबकि चुनाव आयोग, वित्त मंत्रालय और कानून मंत्रालय के अधिकारियों ने विरोध किया था। आज प्रधानमंत्री और उनका भ्रष्टाचार बेनकाब हो गया है।’’

उन्होंने दावा किया, ‘‘प्रधानमंत्री ने धन विधेयक लाकर इसे कानूनी जामा पहनाया था, ताकि विधायक खरीदे जा सकें, मित्रों को कोयले की खदान, हवाई अड्डे दिए जा सकें।’’

जेएमएम ने भी किया फैसले का स्वागत

झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) ने भी सुप्रीम कोर्ट के फैसले को ऐतिहासिक बताते हुए उसका स्वागत किया है। लेकिन इस बात को लेकर चिंता जताई कि केंद्र सरकार खुद को बचाने के लिए अध्यादेश जारी कर सकती है।

जेएमएम प्रवक्ता सुप्रियो भट्टाचार्य ने संवाददाताओं से कहा, ‘‘जब यह योजना लागू की गई थी तो हमने कहा था कि यह काले धन को सफेद बनाने की योजना है। आज का फैसला ऐतिहासिक है।’’

उन्होंने कहा, ‘‘हालांकि, हमें संदेह है कि भाजपा नीत केंद्र सरकार अध्यादेश लाकर आदेश की उपेक्षा कर सकती है।’’

उन्होंने कहा कि ‘‘13 मार्च एक और ऐतिहासिक दिन होगा।’’

आयोग की पहचान रही है पारदर्शिता

शीर्ष अदालत के फैसले पर निर्वाचन आयोग के सूत्रों ने बृहस्पतिवार को कहा कि पारदर्शिता आयोग की पहचान रही है।

पूर्व मुख्य निर्वाचन आयुक्त सुनील अरोड़ा ने भी यही विचार व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि व्यवस्था और अधिक पारदर्शी होनी चाहिए और आयोग का हमेशा यही रुख रहा है।

वहीं पूर्व मुख्य निर्वाचन आयुक्त एस. वाई. कुरैशी ने बृहस्पतिवार को कहा कि इलेक्टोरल बॉण्ड योजना को रद्द करने वाला सुप्रीम कोर्ट का फैसला ‘लोकतंत्र के लिए एक बड़ा वरदान’ है।

कुरैशी ने ‘पीटीआई-वीडियो’ से कहा, ‘‘इससे लोकतंत्र में लोगों का विश्वास बहाल होगा। यह सबसे बड़ी बात है जो हो सकती थी। यह पिछले पांच-सात वर्षों में सुप्रीम कोर्ट से हमें मिला सबसे ऐतिहासिक फैसला है। यह लोकतंत्र के लिए एक बड़ा वरदान है।’’

उन्होंने कहा, ‘‘हम सभी पिछले कई वर्षों से चिंतित थे। लोकतंत्र को चाहने वाला हर कोई इसका विरोध कर रहा था। मैंने खुद कई लेख लिखे, कई बार मीडिया से बात की। और हमने जो भी मुद्दा उठाया, फैसले में उसका निपटारा किया गया है।’’

पूर्व सीईसी ने इस महत्वपूर्ण फैसले के लिए शीर्ष अदालत की सराहना करते हुए ‘एक्स’ पर एक पोस्ट भी डाला और कहा कि, ‘‘सुप्रीम कोर्ट द्वारा इलेक्टोरल बॉण्ड को असंवैधानिक घोषित किया गया। सुप्रीम कोर्ट को शुभकामनाएं!’’

कुरैशी ने कहा कि यह सुनिश्चित करना ठीक है कि चंदा बैंकिंग प्रणाली के जरिये हो, लेकिन ‘हमारा तर्क यह था कि किसी राजनीतिक दल को दिए गए चंदे को गुप्त क्यों रखा जाना चाहिए?’

उन्होंने कहा, ‘‘चंदा देने वाला गोपनीयता चाहता है, लेकिन जनता पारदर्शिता चाहती है। अब दानकर्ता को गोपनीयता क्यों चाहिए? क्योंकि वे बदले में मिलने वाले लाभ, लाइसेंस, अनुबंध और यहां तक कि उस बैंक लोन को भी छिपाना चाहते हैं, जिसे मिलने के बाद वे विदेश भाग जाते हैं। क्या इसीलिए वे गोपनीयता चाहते थे?’’

उन्होंने कहा, ‘‘और सरकार दानदाताओं की गोपनीयता बनाये रखने की कोशिश कर रही थी। वही दानकर्ता, जो 70 वर्षों से चंदा दे रहे हैं। अचानक गोपनीयता की जरूरत (क्यों) पड़ने लगी, तो अब उसे ख़त्म कर दिया गया है। मुझे लगता है कि यह हमारे लोकतंत्र को एक बार फिर स्वस्थ बनाएगा।’’

उन्होंने कहा कि यह भारत के लोकतंत्र के लिए सबसे अच्छी बात हो सकती है।

कुरैशी ने कहा, ‘‘तथ्य यह है कि कोर्ट ने आदेश दिया है कि पिछले दो-तीन वर्षों में प्राप्त सभी चंदा वापस कर दिया जाएगा और उनका खुलासा राष्ट्र के सामने किया जाएगा। इससे हमें यह जानने में मदद मिलेगी कि क्या बदले में कुछ हुआ था, क्या वहां कोई दानदाता था, जिस पर संदिग्ध दबाव रहे हों। इस फैसले से बहुत सी चीजें सामने आएंगी। एक शब्द में, यह एक ‘ऐतिहासिक’ फैसला है।’’

यह पूछे जाने पर कि इसका आगामी आम चुनावों पर क्या प्रभाव पड़ेगा, उन्होंने कहा कि इसका ‘‘पर्याप्त रूप से प्रभाव पड़ेगा, लेकिन पूरी तरह नहीं।’’

उन्होंने कहा, ‘‘क्योंकि यदि राजनीतिक दलों को अतीत में वित्त पोषित किया गया है। उन्हें भविष्य में भी वित्त पोषित किया जाता रहेगा, लेकिन वित्त पोषण के इस अपारदर्शी तरीके को हटा दिया गया है और यह इसका सबसे अच्छा हिस्सा है।’’

उन्होंने कहा कि उन्होंने हमेशा पारदर्शिता की मांग की है।

उन्होंने कहा, ‘‘लोगों को राजनीतिक दलों को चंदा देने दीजिए। वे 70 साल से चंदा दे रहे हैं, कोई समस्या नहीं है। अगर आपने विपक्षी दलों को चंदा दिया तो भी कोई प्रतिशोध नहीं हुआ। किसी ने कोई प्रतिशोधात्मक कार्रवाई नहीं की है।’’

कुरैशी ने कहा, ‘‘कॉर्पोरेट एक ही चुनाव में लड़ने वाली सभी दलों को चंदा देते रहे हैं। जो प्रणाली 70 वर्षों से सही काम कर रही थी, उसमें एकमात्र चीज यह थी कि 60-70 प्रतिशत चंदा नकद में दिया जाता था, जो चिंता का विषय था।’’

इलेक्टोरल बॉन्ड क्या है?

इलेक्टोरल बॉन्ड एक रसीद होती है जिसके जरिये राजनीतिक पार्टियों को चंदा दिया जाता है। इसकी व्यवस्था पहली बार तत्कालीन वित्तमंत्री अरूण जेटली ने 2017-2018 के केंद्रीय बजट में की थी।

इलेक्टोरल बॉन्ड योजना- 2018 के अनुसार इसके तहत एक वचन पत्र जारी किया जाता है जिसमें धारक को राशि देने का वादा होता है। एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) के अनुसार इसमें बॉन्ड खरीदने वाले या पैसे का भुगतान करने वाले का नाम नहीं होता है। स्वामित्व की कोई जानकारी दर्ज नहीं की जाती है और इसमें धारक (यानी राजनीतिक दल) को ही इसका मालिक माना जाता है।

इस योजना के जरिये भारतीय नागरिक और घरेलू कंपनियां अपनी पसंद की पार्टियों को चंदा दे सकती हैं जो एक हजार से लेकर 10 हजार, एक लाख, 10 लाख और एक करोड़ रुपये के गुणांक में हो सकता है।

इन बॉन्ड को राजनीतिक पार्टियां 15 दिनों के भीतर भुना सकती हैं। व्यक्ति या तो स्वयं या किसी दूसरे व्यक्ति के साथ इन बॉन्ड को खरीद सकता है।

मौजूदा समय में व्यक्ति या कंपनियों के लिए बॉन्ड खरीदने की कोई सीमा नहीं है। अगर राजनीतिक दल 15 दिनों में बॉन्ड को नहीं भुनाते हैं तो पैसा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी राहत कोष में जमा हो जाती है।

एडीआर ने रेखांकित किया कि योजना के तहत राजनीतिक पार्टियों को चुनाव आयोग में सलाना चंदे का ब्यौरा जमा करने के दौरान बॉन्ड के जरिये चंदा देने वाले का नाम और पता देने की जरूरत नहीं होती है। एडीआर ने रेखांकित किया कि चुनावी बॉन्ड नागरिकों को कोई जानकारी नहीं देते लेकिन सरकार हमेशा भारतीय स्टेट बैंक से डेटा की मांग करके दानकर्ता की जानकारी ले सकती है।

किसको कितना चंदा मिला?

फाइनेंशियल ईयर 2017 से 2021 के बीच 9 हजार 188 करोड़ रुपए का चंदा मिला था। ये चंदा 7 राष्ट्रीय पार्टी और 24 क्षेत्रिय दलों को मिला था। इस पांचों सालों में सबसे ज्यादा भाजपा की तिजोरी भरी। भाजपा को 5 हजार 272 करोड़ रुपए और कांग्रेस को 972 करोड़ रुपए मिले थे।

इलेक्टोरल बॉन्ड की योजना खुद भाजपा लेकर आई थी और इस योजना से सबसे ज्यादा फायदा उसे ही हुआ। अब वही योजना उसके गले की हड्डी बनती नजर आ रही है और विरोधी दलों के हाथ बैठे बिठाए एक मुद्दा लग गया है जिसे भुनाते रहने से उनके कई जख्मों पर एकसाथ मरहम लगेगा।

(कुमुद प्रसाद की रिपोर्ट।)

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