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देशभक्ति की चाशनी में रची बॉलीवुड सिनेमा की महिला जासूस और राज़ी

धार्मिक आधार पर उपजे द्विराष्ट्र सिद्धांत के सनकीपन ने खूबसूरत मुल्क भारत के बाशिंदों को चंद सियासतदानों की इच्छापूर्ति के लिए दो हिस्सों मे बाँट दिया। विभाजन के दौरान लाखों इंसान बेमौत मारे गए, करोड़ों लोग अपने पुरखों के घर, ज़मीन और सामाजिक-सांस्कृतिक विरासत को छोड़कर अनजान जगहों पर जाने को मजबूर हुए। इतिहास, भूगोल […]

धार्मिक आधार पर उपजे द्विराष्ट्र सिद्धांत के सनकीपन ने खूबसूरत मुल्क भारत के बाशिंदों को चंद सियासतदानों की इच्छापूर्ति के लिए दो हिस्सों मे बाँट दिया। विभाजन के दौरान लाखों इंसान बेमौत मारे गए, करोड़ों लोग अपने पुरखों के घर, ज़मीन और सामाजिक-सांस्कृतिक विरासत को छोड़कर अनजान जगहों पर जाने को मजबूर हुए। इतिहास, भूगोल और आबादी के इतने बड़े पलायन का अभिशाप लेकर आने वाला यह दुनिया के इतिहास का अनोखा बंटवारा था, जिसका दंश आज तक हम झेल रहे हैं। नफ़रत और अविश्वास के जो बीज सन 1947 में बोए गए, उनकी फसल आज तक चली आ रही है। जब अविश्वास और दूरी होगी तो आईएसआई और अन्य गुप्तचर एजेंसियां एक दूसरे मुल्कों की नीतियों और कार्यों की जासूसी करती रहेंगी।

पाकिस्तान का जन्म भारत की आज़ादी के साथ हुआ, लेकिन वहाँ के हुक्मरानों का मुस्तकबिल बन चुका है कि उनका अंत बहुत बुरा होगा।  या तो वे जेल मे मरेंगे या बाहर किसी भीड़, जनसभा में मार दिए जाएंगे। जो थोड़े भाग्यशाली होंगे वे जनरल परवेज मुशर्रफ की तरह निर्वासन में मरेंगे। लब्बोलुआब यह है कि पाकिस्तान में आर्मी के इशारे पर नाचने वाला या खुद सेना का मुखिया ही निज़ाम बनेगा अन्यथा उसका तख्तापलट होना तय है। वर्तमान में (2023) पूर्व क्रिकेटर और प्रधानमंत्री इमरान खान को गिरफ्तार करने और रिहा होने का कार्यक्रम चल रहा है। इमरान खान पूर्वी पाकिस्तान/ बांग्लादेश के अलग होने के लिए अपने देश के पूर्व हुक्मरानों को दोषी ठहराते हैं। कभी वे भारत की तारीफ करते हैं तो कभी अमेरिका की निंदा। उनके प्रशंसकों की संख्या भी बड़ी है, जो अपने नेता के लिए सड़कों पर उतरकर प्रदर्शन और आगजनी करके सेना और पुलिस से मोर्चा ले लेते हैं। विदेश मंत्री के तौर पर बिलावल भुट्टो शंघाई सहयोग संगठन की बैठक में भाग लेने 4 मई, 2023 को भारत आते हैं, लेकिन पाकिस्तानी सेना परंपरागत ढंग से उसी समय कश्मीर के पुंछ और रजौरी सेक्टर में गोली-बारी करती है।

भारत-पाकिस्तान के द्विपक्षीय संबंधों को देखें तो वे कभी भी सामान्य नहीं रहे हैं। संबंधों में तनाव और अविश्वास के कारण गुप्तचर संस्थाओं की अहमियत रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण हो जाती है। बॉलीवुड ने दोनों देशों के बीच रणनीतिक मुद्दों को ध्यान में रखते हुए कई जासूसी फिल्में बनाई हैं। यद्यपि फिल्में मनोरंजन, समाजीकरण और सांस्कृतिक तत्वों के प्रसार का सबसे सरल परंतु अत्यंत प्रभावी माध्यम हैं। सिनेमा साहित्य की एक विधा है जो सामाजिक वास्तविकताओं का चित्रण करती है। एक कला माध्यम के रूप में इसमें कल्पना और नई व्याख्याओं का भी सहारा लिया जाता है। फिल्में प्रोपेगण्डा और छवि निर्माण में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं और एक साथ बहुत बड़े दर्शक वर्ग को प्रभावित कर धारणा निर्माण में मदद करती हैं। भारत-पाकिस्तान संबंधों पर बनीं फिल्मों को दर्शक पसंद भी बहुत करते हैं। इसी परिप्रेक्ष्य में हम सन 2018 में रिलीज हुई फिल्म राज़ी के बारे में आगे चर्चा करेंगे।

[bs-quote quote=”भारत देश में भी ऐसा ही हुआ है कि धर्म अब सामाजिक और सांस्कृतिक विश्वास व्यवस्था से आगे एक पहचान और राजनीतिक इस्तेमाल का विषय बन चुका है। सन 1992 में अयोध्या में विवादित ढांचे के ध्वंस और कश्मीर में आतंकवाद के उदय ने धार्मिक आधार पर पहचान और उसकी राजनीति को महत्वपूर्ण बना दिया। इन सारी घटनाओं पर बॉलीवुड के फ़िल्मकारों ने फिल्में भी बनाईं। बाम्बे और रोजा इस विषय पर जानने समझने के लिए बेहतरीन फिल्में हैं।” style=”style-2″ align=”center” color=”” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]

 बॉलीवुड में बनी जासूसी फिल्में

भारतीय सिनेमा में समय-समय पर कुछ अच्छी जासूसी फिल्में बनी हैं, उनमें से कुछ के नाम हैं –

सीआईडी (1956), फर्ज (1967), ज्वेल थीफ (1967), प्रेम पुजारी (1970), सुरक्षा (1979), जानी मेरा नाम (1970), द ग्रेट गैंबलर (1979), बादशाह (1999), 16 दिसंबर (2000), हीरो: लव स्टोरी ऑफ ए स्पाइ (2003), गैंगस्टर (2006), मुखबिर (2008),  कहानी (2012), एजेंट विनोद (2012), एक था टाइगर  (2012), विश्वरूप (2013) डीडे (2013),  मद्रास कैफे (2013), फैन्टम (2015), बेबी (2015), टाइगर जिंदा है (2017) राज़ी 2018, शेरशाह 2022 मिशन मजनू 2023।

महिला केंद्रित जासूसी फिल्में   

यहाँ इस श्रेणी में उन फिल्मों के नाम शामिल किए जा रहे हैं, जिनमें महिलाओं ने जासूस की भूमिका निभाई है।

खिलाड़ी (1968), ऑंखें (1968), डॉन (प्रियंका चोपड़ा 2006), गुंडे (प्रियंका चोपड़ा 2014), कहानी (विद्या बालन 2012), बॉबी जासूस (विद्या बालन 2014), एक था टाइगर (कैटरीना कैफ 2012), टाइगर जिंदा है (कैटरीना कैफ 2017), द हीरो: लव स्टोरी ऑफ अ स्पाइ (प्रीति जिंटा 2004), एजेंट विनोद  (करीना कपूर 2011), कुर्बान (करीना कपूर 2009), दस (ईशा देओल 2005), फोर्स 2 ( सोनाक्षी सिन्हा 2012), बेबी (तापसी पननू 2015), नाम शबाना  (तापसी पन्नू 2017), राज़ी (आलिया भट्ट 2018), मिसेज अन्डरकवर (राधिका आप्टे 2023)।

फिल्म खिलाड़ी और ऑंखें

खिलाड़ी (1968) फिल्म में फियरलेस नाडिया ने मैडम X1 नाम से एक बहादुर महिला जासूस की भूमिका की थी जो एक चीनी गैंग के अपहरण से भारतीय वैज्ञानिक को छुड़ाने का काम करती है। इसी तरह रामानन्द सागर निर्देशित ऑंखें (1968) फिल्म में माला सिन्हा, धर्मेन्द्र के साथ महिला जासूस की भूमिका में थीं, जो बेरुत में एक मिशन पर चीनी जासूसों से मुकाबला करते हैं। चेतन आनंद निर्देशित हिंदुस्तान की कसम (1973) में प्रिया राजवंश ने राजकुमार के साथ महिला जासूस की भूमिका की भूमिका की थे। वे पाकिस्तानी रडार सिस्टम को सन 1971 के भारत पाकिस्तान युद्ध के दौरान खोजने का काम करते हैं। राज़ी फिल्म की नायिका भी सन 1971 के भारत-पाक युद्ध के दौरान अपने देश के युद्धपोत को बचाने के लिए बेहद महत्वपूर्ण सूचनायें भारतीय सेना को भेजकर तथा अपने पति और परिवार का त्याग करके देशसेवा की मिसाल पेश करती है।

भारतपाकिस्तान के संबंध और फिल्म राज़ी

भारतीय इन्टेलिजन्स एजेंसी रॉ प्रमुख अमरजीत सिंह दौलत और पाकिस्तानी एजेंसी आईएसआई के प्रमुख असद दुर्रानी ने मिलकर एक किताब लिखी द स्पाइ क्रानिकल्स: रॉ, आईएसआई एण्ड द इलुजन ऑफ पीस जो 24 मई, 2018 को पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह और पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी द्वारा नई दिल्ली में रिलीज हुई। इस किताब और इसके विमोचन पर भारत में तीखी आलोचनायें हुईं। पाकिस्तानी नागरिकों ने भी अपने आईएसआई चीफ के इस कदम की आलोचना की। यह संयोग ही है कि इसी समय 11 मई, 2018 को एक महिला रॉ एजेंट के जीवन पर आधारित मेघना गुलजार निर्देशित फिल्म राज़ी सिनेमाघरों में प्रदर्शित हुई। यह फिल्म नेवी के रिटायर्ड लेफ्टिनेंट कमांडर हरिन्दर सिंह सिक्का के उपन्यास कालिंग सहमत (2008) के कथानक पर आधारित थी। इसी समय भारतीय नागरिक कुलभूषण जाधव के पाकिस्तानी जेल में बंद होने की सूचना मिली थी, जिन्हें जासूस कहकर पाकिस्तान ने निरुद्ध किया था।

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फिल्म कुर्बान में करीना कपूर

भारत की आज़ादी और भारत-पाकिस्तान बंटवारे के समय में जम्मू व कश्मीर राज्य की एक देशभक्त मुस्लिम परिवार के बलिदान की कहानी को राज़ी फिल्म के माध्यम से दिखाया गया है। यह एक सच्ची कहानी पर आधारित फिल्म है। राज़ी के पूर्वज अंग्रेजों के खिलाफ लड़े थे और उनके पिता हिदायत भी भारत के पक्ष में पाकिस्तान में अपने संबंधियों से जरूरी सूचनाएं जुटाकर भारतीय जासूसी एजेंसियों की मदद करते थे। इस तरह हम कह सकते हैं कि राज़ी एक कश्मीरी देशभक्त मुस्लिम महिला जासूस की कहानी का फिल्मी रूपांतरण है। आज के समय में यह फिल्म इसलिए भी बेहद महत्वपूर्ण हो जाती है, क्योंकि कुछ लोग बेवजह कुछ समुदायों की निष्ठा और देशभक्ति के सामने सवाल खड़े करते रहते हैं। देश की जनता के सामने तथ्यपरक इतिहास और घटनाएं सामने आनी चाहिए ताकि लोगों को किसी समुदाय विशेष के प्रति गलतफहमी न हो। कश्मीर लंबे समय तक आतंकवाद की जद में रहा है। वहाँ के नौजवानों के आदर्श एवं पोस्टर ब्वाय विद्रोही और आतंकी लड़के बन गए थे, ऐसे समय में राज़ी फिल्म उनके सामने यह चुनौती पेश करती है कि उन्हें राज़ी जैसा देशभक्त बनना है या आतंकी, क्योंकि फिल्म की नायिका का बेटा समर सैयद भी भारतीय सेना में शामिल होकर पीढ़ियों से चली आ रही देशभक्ति की परंपरा को आगे बढ़ाता है। भारत और पाकिस्तान पड़ोसी देश हैं, लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि दोनों के बीच जब भी हालात बेहतर करने की कोशिश होती है तो पाकिस्तानी सेना और आईएसआई इसको होने नहीं देते। दोनों देशों के बीच बॉर्डर लाइन को कोई नागरिक गलती से भी पार कर जाए तो उसके साथ जासूसों और आतंकियों की तरह बुरा व्यवहार किया जाता है। सरबजीत और कुलभूषण जाधव जैसे नाम इसी बात के उदाहरण हैं।

फिल्म हिंदुस्तान की कसम के एक दृश्य में प्रिया राजवंश

बंटवारे के बाद कुछ मुस्लिम परिवार पाकिस्तान चले गए, जबकि उनके रिश्तेदार इधर भी रहते हैं। उनके बीच शादी-ब्याह के रिश्ते अभी भी विद्यमान हैं। रीना रॉय और सानिया मिर्जा जैसे नामचीन लोगों के नाम छोड़ भी दें, जिन्होंने पाकिस्तानी पुरुषों से शादियाँ कीं, तो सामान्य तौर पर ऐसे रिश्ते दोनों देशों के नागरिकों के बीच हैं। भारत में होने वाली आतंकवादी घटनाओं के लिए आईएसआई के ऊपर आरोप लगते रहे हैं तो पाकिस्तान के हुक्मरान बलूचिस्तान प्रांत में होने वाले विद्रोहों के लिए रॉ को जिम्मेदार ठहराते रहते हैं। अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में जिन्ना के पोर्टेट लगे होने को लेकर भी 2 मई, 2018 को विवाद हुआ था। जिन्ना को इस देश के बंटवारे के लिए जिम्मेदार माना जाता है, इसलिए उनके नाम पर अक्सर विवाद सामने आते रहते हैं। पाकिस्तानी मूल के ब्रिटिश नागरिक और आतंकवादी अहमद उमर सईद शेख की गतिविधियों के ऊपर हंसल मेहता ने उमरेटा (2018) नाम से एक जीवनीपरक फिल्म बनाई थी। राज़ी और उमरेटा फिल्मों ने दर्शकों के सामने जो कंटेन्ट उपलब्ध कराया, उससे उनकी दोनों देशों के बीच सियासी संबंधों को समझने में मदद मिली। कश्मीरी नागरिक शाह फैजल ने 27 मई, 2018 को राज़ी फिल्म के बारे में टाइम्स ऑफ इंडिया (संडे टाइम्स) में एक लेख लिखा जिसका शीर्षक “What a spy thriller teaches us about patriotism and empathy”  था। वे लिखते हैं  “Raazi takes us through the full horror of a spy’s life and the scale of sacrifice required for the job. It is about an India-Pakistan narrative where everything is being said in two few words, where the slogans are missing and silences have been allowed to speak. Raazi takes a different road to patriotism and patriotic cinema, deftly negotiating a minefield of emotions rather than getting caught up in the blood-pool of violence and jingoism.” मतलब राजी भावनात्मक रूप से देशभक्ति के पक्ष को बिना किसी हिंसा और खून खराबे के हमारे सामने प्रस्तुत करती है।

सन 1971 के युद्ध में भारतीय सेना ने नेवी के युद्धपोत आइएनएस विराट को पाकिस्तानी हमले से बचाया था। फिल्म राज़ी का पहला दृश्य इसी युद्धपोत का है, जहां वरिष्ठ अफसर जनरल बक्शी सेना की एक टुकड़ी को संबोधित कर रहे हैं। यह फिल्म बांग्लादेश के आज़ाद होने के समय उत्पन्न हुई परिस्थितियों को प्रस्तुत करती है। उस समय राज़ी एक कालेज स्टूडेंट थी, जो अपने परिवार की देशभक्ति परंपरा पर गर्व करने वाली लड़की थी। उसके पिता मिस्टर हिदायत के कई दोस्त पाकिस्तान की सेना में उच्च पदों पर थे। इन संबंधों के माध्यम से वह भारतीय सेना को महत्वपूर्ण रणनीतिक सूचनाएं उपलब्ध कराने में मदद करते थे। जब हिदायत को कैंसर बीमारी होने का पता चलता है तो वे अपने परिवार की परंपरा के अनुसार देश सेवा करने के लिए अपनी बेटी राज़ी को पाकिस्तानी आर्मी में बिग्रेडियर के बेटे से शादी करने को राजी कर लेते हैं। शादी के पहले वह रॉ के अफसरों से अपने काम के लिए जरूरी स्किल सीखने की ट्रेनिंग लेती है। शादी के बाद पाकिस्तान जाकर वह अपने परिवार में खुद को अच्छे से स्थापित करके सबका भरोसा जीतने का काम करती है। वह अपने शौहर इकबाल से प्यार करती है और घर के अन्य सदस्यों को भी सम्मान देती है। साथ ही जरूरी सूचनाएं भी भारत में रॉ अफसरों को भेजती है। जब उसे पता चलता है कि पाकिस्तानी आर्मी बंगाल की खाड़ी में भेजे गए आइएनएस विराट युद्धपोत पर हमला करने की योजना बना रही है तो कई मुश्किलों का सामना करते हुए वह सारी जरूरी सूचनायें इकट्ठा करती है। फिल्म के क्लाइमैक्स पर हम देखते हैं कि राज़ी की पहचान जाहिर हो जाती है कि वह एक भारतीय जासूस है, लेकिन वह रॉ अफसर की मदद से भागने में कामयाब हो जाती है लेकिन इन सबके बीच उसका पति मारा जाता है, जिसे वह प्यार करती थी। पाकिस्तान से वापस भागते समय राज़ी गर्भवती थी। वह एक लड़के को जन्म देती है, जिसका नाम समर सैयद है। समर भी बड़ा होकर भारतीय सेना में शामिल हो जाता है। वह अपने कश्मीरी मुस्लिम परिवार की चौथी पीढ़ी का सदस्य है जो सेना में शामिल होकर भारत की सेवा कर रहा है।

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देशभक्ति गीत और प्रतीकात्मकता

गीत और संगीत भारतीय फिल्मों की आत्मा हैं। जिस भारतीय जनजीवन में जन्म से लेकर मृत्यु तक प्रत्येक घटना और अवसर के लिए अनेक भाषाओं में विविधतापूर्ण गीत-संगीत और नृत्य विद्यामान हैं, उसी तरह भारतीय सिनेमा में प्रत्येक अवसर और मानवीय भावनाओं को अभिव्यक्त करने वाले गीत हमारे महान गीतकारों ने रचे हैं। बॉलीवुड की देशभक्ति फिल्मों में अनेक जोशीले और भावनात्मक गीत शामिल किए गए हैं। राज़ी फिल्म की बात करे तो इसकी एक पंक्ति है जिसे ट्रेनिंग मे एक जासूस को सिखाया जाता है ‘वतन के आगे कुछ नहीं, खुद भी नहीं…’ और राज़ी एक देशभक्त जासूस की तरह पाकिस्तान में रहकर किस तरह भारत देश पर होने वाले हमलों की गोपनीय जानकारी जुटाकर रॉ को भेजती है और अपने देश को नुकसान से बचाती है वह अतुलनीय है। राज़ी एक आर्मी अफसर की पत्नी है, वह अपने इस स्टेटस का फायदा उठायाकर महत्वपूर्ण निर्णय लेने वाले पाकिस्तानी सेना के बड़े अफसरों के घरों में बच्चों को म्यूजिक सिखाने के बहाने पैठ सुनिश्चित करती है। स्कूल के वार्षिक प्रोग्राम में बच्चे स्टेज से सामूहिक गीत प्रस्तुत करते हैं, जिसका राजी के लिए अलग मतलब है, क्योंकि उसका देश भारत है और पाकिस्तानी नागरिकों के लिए अलग मतलब। दोनों इस गीत के माध्यम से अपने वतन से मुहब्बत को प्रदर्शित करते हैं, यह गीत कुछ इस तरह से है :

वतनमेरे वतन/ वतन आबाद रहे तू

मैं जहां रहूँ, जहां में याद रहे तू/ तू ही मेरी मंजिल है, पहचान तुझी से

पहुँचूँ मैं जहां भी मेरी बुनियाद रहे तू/ वतन

तुझपे कोई ग़म की आंच आने नहीं दूँ

कुर्बान मेरी जान तुझपे शाद रहे तू/ वतन

मेरे वतनमेरे वतन/ आबाद रहे तू…

फिल्म राज़ी के एक दृश्य में आलिया भट्ट

इस गीत के अंत मे प्रसिद्ध कवि इकबाल की लिखी पंक्तियाँ ‘लब पे आती है दुआ बनके तमन्ना मेरी…’ भी दुहराई जाती हैं। ‘सारे जहां से अच्छा हिंदोस्तान हमारा…’ गीत भी इकबाल ने लिखा था। ये दोनों गीत भारत में बेहद लोकप्रिय हैं और स्कूलों में एवं राष्ट्रीय पर्वों पर बड़े प्रेम से गाए जाते हैं। इन दोनों गीतों को सायास फिल्म में एक साथ शामिल किया गया है। अपना देश, अपनी मातृभूमि सबको प्यारी लगती है, सभी उसके लिए अपना स्वार्थ कुर्बान करने को तैयार रहते हैं। यह फिल्म और इसका गीत सन 1971 में पूर्वी और पश्चिमी पाकिस्तान के बंटवारे के समय होने वाले भारत-पाक युद्ध की पृष्ठभूमि में दिखाया गया है। इंदिरा गांधी उस समय देश की प्रधानमंत्री थीं, जिन्होंने बांग्लादेश के आजादी आंदोलन का खुलकर समर्थन किया था और सहमत उर्फ राज़ी ने भारतीय सेना को गोपनीय सूचनायें देकर बड़े नुकसान से बचाने का काम किया था। सहमत अपने देश के लिए खुद की ज़िंदगी, अपने पति, परिवार सब कुछ दांव पर लगा देती है। देश के लिए ऐसे महान बलिदान बहुत कम देखने को मिलते हैं, इसलिए यह फिल्म, इसकी निर्देशक मेघना गुलजार और उपन्यास लेखक हरिन्दर सिक्का प्रशंसा के पात्र हैं।

किसी देश की अवधारणा में ‘अन्य’ का निर्माण

समाज विज्ञानों की एक महत्वपूर्ण अवधारणा है ‘हम’ और ‘वे’ की सोच का निर्माण करना। समाजशास्त्री डब्लूजी समनर ने इन अवधारणाओं को इस अर्थ में दिया था कि किस तरह हम अपने से अलग समूहों की  शारीरिक-सांस्कृतिक भिन्नताओं के आधार पर पहचान करते हैं। उनके बारे में एक नकारात्मक छवि का निर्माण करते हैं और उसके अनुसार हमारा व्यवहार निर्धारित होता है। धर्म के आधार पर दूसरे समूहों की पहचान करना दुनिया भर में सर्वाधिक प्रचलित तरीका है। भारत तो जातीय और धार्मिक आधार पर अत्यंत विविधताओं से भरा हुआ देश है। हिन्दू यहाँ बहुसंख्यक तो मुस्लिम, जैन, सिख, ईसाई और पारसी अल्पसंख्यक हैं। इस्लाम एक बाहर से आया धर्म है और उसके अनुयायी मुसलमान ऐतिहासिक कारणों से अक्सर विवादों मे घिरते रहते हैं जो कि इस देश के सबसे बड़े अल्पसंख्यक समुदाय हैं। परंतु यह भी उतना ही सच है कि मुस्लिमों की ज्यादातर जनसंख्या मूल रूप से इसी देश के निवासी हैं और धर्म परिवर्तन करके वे मुसलमान बने हैं। एक समुदाय के पहचान निर्माण की प्रक्रिया के बारे में यूरोपिय संदर्भ में क्लिप लिखते हैं (Klip 2011:212) “Religion as belief has significantly declined in substance and scope from the European cultural consciousness and social belief systems, religion as ‘identity’ has significantly persisted in Europe”.

फिल्म टाइगर जिंदा है में कैटरीना कैफ

भारत देश में भी ऐसा ही हुआ है कि धर्म अब सामाजिक और सांस्कृतिक विश्वास व्यवस्था से आगे एक पहचान और राजनीतिक इस्तेमाल का विषय बन चुका है। सन 1992 में अयोध्या में विवादित ढांचे के ध्वंस और कश्मीर में आतंकवाद के उदय ने धार्मिक आधार पर पहचान और उसकी राजनीति को महत्वपूर्ण बना दिया। इन सारी घटनाओं पर बॉलीवुड के फ़िल्मकारों ने फिल्में भी बनाईं। बॉम्बे और रोज़ा इस विषय पर जानने समझने के लिए बेहतरीन फिल्में हैं। बॉलीवुड की ऐसी फिल्मों के बारे मे लिखते हुए पाकिस्तानी लेखक शहजाद अली और अन्य (2012) ने लिखा है, “In Bollywood movies controversial issues such as the religious conflict between Muslims and Hindus and the International conflict between India and Pakistan are also the subject of Bollywood movies. Indian movies portray Muslims and Pakistani as terrorists and negative minded people. Such stereotyped images in Indian cinema communicate strong political messages to its audiences and tends to exacerbate the existing conflicts”.

इसी तरह बॉलीवुड के फिल्मों में मुसलमानों के चित्रण पर लिखते हुए हिलाल अहमद कहते हैं कि, “The multi-layered story of Muslims’ imaginations of the Indian republic should go beyond stereotypical portrayals as anti-national separatists or as victims and second class citizen”.

इन दोनों विद्वानों का मानना है कि भारतीय सिनेमा में पाकिस्तान और मुसलमानों का नकारात्मक चित्रण हुआ है लेकिन मेघना गुलजार निर्देशित फिल्म राज़ी उनके इस कथन को नकारते हुए तस्वीर से दूसरे पहलू को सामने लाने की सार्थक कोशिश करती है जहां एक कश्मीरी मुस्लिम देशभक्त परिवार की चार पीढ़ियां देश सेवा और बलिदान का उदाहरण प्रस्तुत करती हैं।

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फिल्में जीवन की ही आईनादारी करती हैं

दक्षिण एशिया क्षेत्र में भारत और पाकिस्तान के संबंधों को समझना बहुत ही मुश्किल भरा है, यह अत्यंत पेंचीदा है। राज़ी फिल्म के रिलीज होने वाले साल में ही 30 मई, 2018 को दोनों देशों के सेना के बड़े अफसरों के बीच हॉटलाइन पर वार्ता कर शांतिपूर्ण द्विपक्षीय संबंधों के प्रति प्रतिबद्धता व्यक्त की थी- “The hotline conversation between the Director Generals of Military Operations of India and Pakistan and their agreement “to undertake sincere measures to improve the existing situation ensuring peace and avoidance of hardships to the citizens”, and to “fully implement the ceasefire understanding of 2003 in letter and spirit forthwith” is long awaited development. The wording of the near-identical statements issued by India and Pakistan is the most promising heard from the bilateral front in the last two years, especially the re-commitment to the 2003 ceasefire” (Indian Express 31 May, 2018). लेकिन तब से लेकर अब तक सच्चाई क्या है हम सभी जानते हैं।

राज़ी फिल्म की बात करें तो यह सच्ची घटनाओं पर आधारित है जो देश के लिए बलिदान हो जाने अनोखी मिसाल पेश करती है। राज़ी अपने बेटे के नाम में उसके पाकिस्तानी मूल के पिता का टाइटल सैयद लगाती है, क्योंकि उसे अपने पति और परिवार से प्यार था। यह बहुत स्वाभाविक है। अच्छे और प्यार करने वाले लोग दुनिया के हर हिस्से में रहते हैं। हमें नफरत की जगह प्यार करना सीखना होता है। अविश्वास और युद्ध हमारे दुश्मन हैं, न कि किसी देश के आम नागरिक। जब हम किसी पूर्वाग्रह या पहचान के कारण स्वजाति केंद्रित होकर दूसरों से घृणा करने लगते हैं, जिससे तनाव, अविश्वास हिंसा और युद्ध जन्म लेते हैं। राज़ी फिल्म यहीं हस्तक्षेप कर नयी दृष्टि से सोचने और धारणा बनाने को प्रेरित करती है। सन 1968 में फ़ियरलेस नाडिया और 1971 में हिंदुस्तान की कसम से लेकर राज़ी (2018) तथा मिसेज अन्डरकवर (2023) तक भारतीय सिनेमा मे महिला जासूसों ने एक लंबा वक्त तय किया है। राज़ी सच, साहित्य, सिनेमा और सीख जैसे कई आयाम अपने में समेटने के कारण इस श्रेणी की फिल्मों में अलग मुकाम रखती है।

संदर्भ  
Ali, Shahzad & Others (2012) Portrayal of Muslims Characters in the Indian Movies, in Pakistan Journal of History and Culture, Vol.33, No.1.
Ahmad, Hilal (2017) Indian or Muslim? Why This Binary Needs to be Done Away With, on www.the.quint.com.
Flaten, Lars Tore (2012) Hindu Nationalist Conceptions of History: Constructing a Hindu-Muslim Dichotomy, in South Asia: Journal of South Asian Studies, Routledge, London.
Klip, Alar (2011) Religion in the Construction of the Cultural ‘Self’ and ‘Other’,ENDC Proceedings, Vol.14,pp.197-222.
Scott, John & Mrshall, G. (2009) Oxford Dictionary of Sociology, OUP, New York.
Thussu, Daya Kishan, (2016) The soft Power of Popular Cinema-The Case of India, in Journal of Political Power, Routledge, London.

राकेश कबीर प्रसिद्ध कवि-कथाकार और सिनेमा के समाजशास्त्रीय अध्येता हैं।

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3 COMMENTS
  1. सिनेमा के माध्यम से वर्तमान को आईना दिखता सजग करता शानदार लेख👌🙏

  2. बेहरीन और धारदार। देश के ख़ातिर जीने वाले लोगों के लिए प्रेरक। उम्दा विश्लेषण🌻

  3. देशभक्ति को संदर्भित करता यह लेख। देशभक्ति को अपने देश के प्रति प्रेम और वफादारी के द्वारा परिभाषित किया जा सकता है यह किसी विशेष समुदाय को प्रदर्शित नहीं करता है ।यह उस देश में निवास करने वाले कोई भी नागरिक हो सकता है। कोई भी व्यक्ति अपने परिवेश का उत्पाद होता है जैसा उसका प्रवेश मिलता है वैसा वह बन जाता है जैसा कि यह स्पष्ट है कि कश्मीर लंबे समय तक आतंकवाद की जग में रहा है वहां के नौजवानों के आदर्श एवं पोस्टर बॉय विद्रोही और आतंकवाद आतंकी लड़के बन गए थे। इस लेख में बहुत अच्छे ढंग से जिक्र किया गया है।इस लेख में भावनाओं का भी पूरा ख्याल रखा गया है जैसा कि अच्छे और प्यार करने वाले लोग दुनिया के हर हिस्से में रहते हैं हमें नफरत की जगह प्यार करना सीखना होता है और विश्वास और युद्ध हमारे दुश्मन है ना की किसी देश का आम नागरिक।

    सिनेमा के माध्यम से देश के प्रति सकारात्मक एवं नकारात्मक पहलुओं को उद्धृत करता यह शानदार लेख।🌻🌻🌻🌻👌👌👌👌🙏🙏🙏

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