पहला भाग
ग्लोबल लैंड फोरम दुनिया भर में भूमि अधिकारों, प्राकृतिक संसाधनों और जलवायु परिवर्तन के प्रश्नों पर काम कर रहा है। सामाजिक आंदोलन करने वाली संस्थाएं, स्वयंसेवी संगठन, अंतर्राष्ट्रीय संस्थाएं और विश्वविद्यालय के शोध संस्थानों के सामूहिक प्रयास से ग्लोबल लैंड फोरम का आयोजन डेड सी, जोर्डन मे आयोजित किया गया था। मुझे भी इसमें भाग लेने और एक पूरे सत्र की अध्यक्षता करने का मौका मिला। इस कार्यक्रम में जोर्डन सरकार भी शामिल थी। इस कार्यक्रम में पूरी दुनिया के 150 से अधिक देशों के लगभग 1000 प्रतिनिधि शामिल हुए। मैं वहाँ 20 मई को पहुंचा और एक सप्ताह की यात्रा के बाद 27 मई को दिल्ली लौट आया।
यदि दिल्ली से अम्मान की सीधी फ्लाइट मिले तो 5 घंटे से कम समय में ही वहाँ पहुँचा जा सकता है लेकिन इनडायरेक्ट फ्लाइट में आपको लंबा समय लग सकता है। ग्लोबल लैंड फोरम के आधिकारिक तौर पर आरंभ होने से पहले ही मुझे ग्रेटर अम्मान म्यूनिसपल कॉर्पोरेशन के कुछ कार्यों को देखने का मौका मिला।
दिल्ली से जोर्डन के लिए प्रस्थान करते समय मेरे दिमाग मे पश्चिम एशिया की एक छवि थी। मुझे लगा वहाँ बहुत गर्मी होगी, क्योंकि मैं रेगिस्तान में जा रहा हूँ। हमें यही बताया गया था कि शाम के समय में थोड़ी ठंड होगी। मैं उसी हिसाब से दिल्ली से निकला। सुबह 4 बजे इतिहाद एयर फ्लाइट से आबूधाबी के लिए निकला। हवाई जहाज से आबूधाबी के बाद आपको रेगिस्तान ही दिखेगा। आबूधाबी में दो घंटे के ब्रेक के बाद दोपहर के 12 बजे अम्मान पहुँच गया। हवाई जहाज को अम्मान एयरपोर्ट में उतरने में काफी समय लगा। हवाएं काफी तेज बह रही थीं, इसलिए जहाज उतरने में देरी हुई।अम्मान एयरपोर्ट पर वीजा क्लियर करने की सारी ऑपचारिकताएं पूरी करने के बाद, मुझे बताया गया कि आपको अम्मान के प्रोटेक्टेड फॉरेस्ट के कैम्प एरिया में रहना है। उतरने के बाद यहाँ क्वीन आलिया इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर विभिन्न देशों के लोग दिखाई दिए। बहुत से चिर-परिचित चेहरे भी थे। थोड़ी देर बाद हम एयरपोर्ट से घामदान कैम्प की ओर निकल पड़े। घामदान कैम्प एयरपोर्ट से लगभग आधे घंटे में पहुंचा जा सकता था। हालांकि बाहर गर्मी बहुत थी लेकिन उसके बाद भी जगह-जगह, कुछ कुछ पेड़ दिखाई दे रहे थे। इससे यह लगा कि अम्मान शहर को हरा-भरा करने के कुछ प्रयास किए गए हैं। कैम्प में पहुँचने पर हमारा स्वागत अम्मान म्युनिसपेलिटी की लीना अटल ने किया। यह कैम्प अम्मान नैशनल पार्क में स्थित है और यहाँ पर लोग पिकनिक के ही लिए आते हैं और टेंटों में रह भी सकते हैं मुझे भी एक टेंट आबंटित किया गया, जिसमें कुल मिलकर चार बेड थे। हालांकि बाद में मुझे बताया गया कि आप अकेले ही रहेंगे। कैम्प होने के कारण टॉयलेट-बाथरूम की सुविधा बाहर थी। अंदर कैम्प में जाने पर मुझे धीरे-धीरे ठंड महसूस होने लगी। पूरा घामदान कैम्प चीड़ के पेड़ों से भरा पड़ा था। कैम्प का माहौल एकदम शांत था। कोई भीड़भाड़ नहीं, केवल कैम्प में रहने वाले ही कुछ लोग थे। मैंने वहाँ की कुछ फोटो लीं और फिर थोड़ी देर आराम किया।
[bs-quote quote=”बातचीत में यूक्रेन का प्रश्न सबकी आँखों में था और किसी ने भी अमेरिका या यूरोप से सहानुभूति नहीं दिखाई। मेरे साथ युगांडा और पूर्वी तिमूर के कुछ साथी बैठे थे। मैं युगांडा गया हूँ और वहाँ के साथी अपने देश में अमेरिकी कंपनियों के दवाब से चिंतित हैं। हमने बहुत बातचीत की, चर्चाएं कीं और और खूब हँसे भी। मैं पूर्वी तिमूर के बारे में अधिक जानकारी प्राप्त करने की कोशिश करता हूँ। आपको बता दें कि पूर्वी तिमूर 20 मई 2002 को ‘आजाद’ होने से पहले इंडोनेशिया का हिस्सा था लेकिन समझ नहीं आया कि इंडोनेशिया ने इतनी आसानी से कैसे उसे आजाद हो जाने दिया। कोई भी शक्तिशाली राष्ट्र अपने यहाँ ‘आजादी’ के आंदोलन को इतनी आसानी सफल होने नहीं देता, जबकि उस क्षेत्र की आबादी 10 लाख से भी कम हो।” style=”style-2″ align=”center” color=”#1e73be” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]
शाम के पाँच बजे मुझे कहा गया कि यहाँ चाय-कॉफी का इंतजाम है। अपने टेंट से 100 मीटर आगे चाय और खान-पान की व्यवस्था थी। मेरे सामने एक ग्रुप पहले से ही बातचीत में मशगूल था। थोड़ी देर बाद मैं अपना परिचय देता हूँ और बातचीत में शामिल हो जाता हूँ।
बातचीत में यूक्रेन का प्रश्न सबकी आँखों में था और किसी ने भी अमेरिका या यूरोप से सहानुभूति नहीं दिखाई। मेरे साथ युगांडा और पूर्वी तिमूर के कुछ साथी बैठे थे। मैं युगांडा गया हूँ और वहाँ के साथी अपने देश में अमेरिकी कंपनियों के दवाब से चिंतित हैं। हमने बहुत बातचीत की, चर्चाएं कीं और और खूब हँसे भी। मैं पूर्वी तिमूर के बारे में अधिक जानकारी प्राप्त करने की कोशिश करता हूँ। आपको बता दें कि पूर्वी तिमूर 20 मई 2002 को ‘आजाद’ होने से पहले इंडोनेशिया का हिस्सा था लेकिन समझ नहीं आया कि इंडोनेशिया ने इतनी आसानी से कैसे उसे आजाद हो जाने दिया। कोई भी शक्तिशाली राष्ट्र अपने यहाँ ‘आजादी’ के आंदोलन को इतनी आसानी सफल होने नहीं देता, जबकि उस क्षेत्र की आबादी 10 लाख से भी कम हो। आज भी पूर्वी तिमूर की आबादी मात्र 13 लाख है।
हमारे मित्र कहते हैं — हमें आजाद देश कहा जाता है जबकि हमारी ‘राष्ट्रीय भाषा’ पुर्तगाली है क्योंकि ये पुर्तगाल के अधीन था। देश का अपना कोई राष्ट्रीय बैंक नहीं है। सब कुछ वाशिंगटन से संचालित होता है। अपनी मुद्रा नहीं है। सभी लेनदेन डॉलर में होते हैं। अमेरिका की बड़ी बड़ी कंपनियां तिमूर में हैं। उसके अलावा यहाँ की जो छोटी-सी सेना है, वह भी अमेरिकी निगरानी में है। ऐसी स्थिति में इंडोनेशिया क्या करता। बातें करते-करते मेरे मित्र कहते हैं कि –10 लाख की हमारी आबादी में 60% से अधिक नाबालिग है। यानि वोटर्स शायद 4 से 5 लाख होंगे।
इससे पहले के वह कुछ कहता, मैं बोल पड़ा – क्या मैं पूर्वी तिमूर के भविष्य के प्रधानमंत्री से बात कर रहा हूँ ? यह बात सुनकर सभी जोर से हँस पड़े।
[bs-quote quote=”जोर्डन मध्य पूर्व का एक बेहद महत्वपूर्ण देश है और इसने अनेक देशों के शरणार्थियों को अपने यहाँ जगह दी है। इजरायल, सीरिया, लेबनॉन और फिलिस्तीन जैसे पड़ोसियों के चलते जोर्डन में शरणार्थियों की संख्या लगातार बढ़ी है और यहाँ की सरकार और लोगों ने उन्हें मुक्त भाव से शरण दी है। वैसे फिलिस्तीनी लोगों के लिए तो यह उनका दूसरा घर ही है। ग्रेटर अम्मान ग्रीन कैम्पैन केवल पर्यावरण से सम्बंधित कार्यक्रम ही नहीं करता है अपितु सीरिया के शरणार्थियों को स्थानीय बाजार तैयार के लिए एक अवसर भी प्रदान करता है।” style=”style-2″ align=”center” color=”#1e73be” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]
गाम ( ग्रेटर अम्मान म्यूनिसपैलिटी) की क्रांति
मेरे अलावा इंग्लैंड, दक्षिणी अफ्रीका, सोमालिया, फ़्रांस, त्रिनिदाद और टोबेगो, पूर्वी तिमूर, फिलीपींस, युगांडा आदि देशों के अठारह साथी थे। स्थानीय स्तर पर इस टीम का नेतृत्व लीना अटल और सुहा शिशानी कर रहे थे ताकि आसानी से हमें कॉर्पोरेशन द्वारा संचालित स्थानों को दिखाया जा सके। सुबह 10 बजे हम सभी ग्रेटर अम्मान म्यूनिसपलिटी के हेडक्वार्टर पहुंचे, जहाँ हमें ब्रीफ करने के लिए वहां के अधिकारी मौजूद थे। सभी लोगों ने ग्रीन अम्मान कैम्पैन के विषय पर बातचीत की और सवाल-जवाब हुए। जोर्डन मध्य पूर्व का एक बेहद महत्वपूर्ण देश है और इसने अनेक देशों के शरणार्थियों को अपने यहाँ जगह दी है। इजरायल, सीरिया, लेबनॉन और फिलिस्तीन जैसे पड़ोसियों के चलते जोर्डन में शरणार्थियों की संख्या लगातार बढ़ी है और यहाँ की सरकार और लोगों ने उन्हें मुक्त भाव से शरण दी है। वैसे फिलिस्तीनी लोगों के लिए तो यह उनका दूसरा घर ही है। ग्रेटर अम्मान ग्रीन कैम्पैन केवल पर्यावरण से सम्बंधित कार्यक्रम ही नहीं करता है अपितु सीरिया के शरणार्थियों को स्थानीय बाजार तैयार के लिए एक अवसर भी प्रदान करता है। हमें बताया गया कि गाम में युवाओं की एक संसद है और एक संसद बच्चों की भी है और वे लोग अपने प्रश्नों पर गंभीरता से चर्चा करते हैं।
उसके बाद लीना और सुहा हमें अम्मान में शरणार्थियों के एक इलाके में ले जाते हैं, जहां सीरिया से आए शरणार्थी रहते हैं । कॉर्पोरेशन ने युवा शरणार्थियों के लिए एक विशेष योजना चलाई है, जिसके तहत जिन इलाकों में वे रहते हैं यदि वहाँ पर कोई खाली जगह है तो उसके हरितकरण कर पार्कों में बदल दिया जाए। इन पार्कों के निर्माण और वहाँ दीवालों पर सेरेमिक के पत्थरों पर विशेष डिजाइन बनाने की ट्रैनिंग महिलाओं को दी गई है। इनमें से बहुत सी युवतियां अभी यूनिवर्सिटी में पढ़ रही हैं। इन सभी लोगों को गाम ने ‘कैश फॉर वर्क’ कार्यक्रम के तहत रखा है। मैंने उन महिलाओं से बात की, जिनके इलाके में यह पार्क बन रहा है और उन युवतियों से भी जो ‘कैश फॉर वर्क’ कार्यक्रम के तहत इसका निर्माण कर रही हैं। गाम का हॉर्टिकल्चर डिपार्ट्मन्ट इनकी मदद करता है। उस खाली जगह पर बहुत पेड़ लग चुके हैं। लोगों के बैठने के लिए सीमेंटेड टेबल और बेंच बनाई गई है और उनके ऊपर बेहतरीन कलाकारी करने के लिए लड़कियों को ट्रैनिंग दी जा रही है। मुझे यह बात बहुत पसंद आई कि किस तरह से जोर्डन ने इन लोगों को अपनाया है और उनकी स्किल विकसित कर उन्हें मार्केट में स्वतंत्र रूप से काम करने के लिए तैयार कर रहा है। शरणार्थियों के लिए जोर्डन की नीति खुले दिल की है जिसकी जितनी सराहना की जाए उतना कम है।
मुझे बताया गया कि जोर्डन में लगभग 50 से अधिक देशों के शरणार्थी हैं। दुनिया में लेबनान के बाद जोर्डन दूसरा देश है जहां हर तीसरा व्यक्ति शरणार्थी है। आज जोर्डन में लगभग 37 लाख शरणार्थी है जबकि देश की जनसंख्या 1 करोड़ 40 लाख के लगभग है, जबकि राजधानी अम्मान की राजधानी 44 लाख के लगभग है। मुझे बताया गया कि फिलिस्तीन से 24 लाख शरणार्थी हैं, जबकि सीरिया से 6,64,086, इराक से 66771, यमन से 13,919, सूडान से 6027, सोमालिया से 719 और अन्य देशों से 1466 शरणार्थी आज भी जोर्डन में रह रहे हैं और जोर्डन सरकार उन्हें स्वास्थ्य, शिक्षा और रोजगार मुहैया करवाने के प्रयास करती रहती है। जोर्डन में शरणार्थियों को लेकर कोई तनाव भी नहीं होता और उसने अपने विभिन्न कार्यक्रमों के जरिए शरणार्थियों की मदद की है। शरणार्थियों के संदर्भ में जॉर्डन दुनिया में सबसे अच्छे देशों में से एक कहा जा सकता है। भारत सहित दुनिया के अन्य देशों को इस संदर्भ में जोर्डन से सीखने की जरूरत है।
[bs-quote quote=”जोर्डन में लगभग 50 से अधिक देशों के शरणार्थी हैं। दुनिया में लेबनान के बाद जोर्डन दूसरा देश है जहां हर तीसरा व्यक्ति शरणार्थी है। आज जोर्डन में लगभग 37 लाख शरणार्थी है जबकि देश की जनसंख्या 1 करोड़ 40 लाख के लगभग है, जबकि राजधानी अम्मान की राजधानी 44 लाख के लगभग है।” style=”style-2″ align=”center” color=”#1e73be” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]
रेगिस्तान में हरियाली का जादुई संसार
एक बात जो ग्रेटर अम्मान म्यूनिसपलिटी ने बहुत शिद्दत से आकर्षित किया, वह है शहर का हरितिकरण। उन्होंने शहर भर के लोगों के व्यक्तिगत प्लांट्स को अपनी नर्सरियों में दोबारा तैयार किया है। मतलब पूरे शहर के लोगों के व्यक्तिगत कलेक्शंस से थोड़ा-थोड़ा लेकर उनकी वेराइटी को दोबारा से नर्सरी में तैयार कर पूरे शहर के पार्कों में लगवा दिया। दिल्ली में मेरा घर ग़ाज़ीपुर लैंड फिल से करीब 5 किलोमीटर की दूरी पर है लेकिन जब भी हम उधर से गुजरते तो खूब बदबू और चील-कव्वे उड़ते दिखाई देते हैं। अम्मान शहर का पूरा कूड़ा कचरा जिन भी इलाकों में जाता है, वहां आज नए जंगल बन चुके हैं। सबसे खास बात यह कि कूड़े-कचरे से बायो गैस बनाकर शहर को बिजली और गैस दी जा रही है। ग्रेटर अम्मान म्यूनिसपलिटी शहर के 143 बागों और 11 पार्कों की देख-रेख करती है। अब नए पार्क भी लोगों की सहायता से बन रहे हैं और इसमें यहाँ मौजूद शरणार्थियों की मदद भी ली जा रही है और उनके इलाकों में भी पार्क बनाए जा रहे हैं।
हम लोगों ने ग्रेटर अम्मान म्यूनिसपलिटी की बहुत सी नर्सरियों को देखा कि कैसे वहाँ प्लांट तैयार किए जाते हैं। जो जंगल हमें दिखाई दिए, उनमें देवदार की बहुतायत थी लेकिन नर्सरी में नीम भी दिखाई दिए और फूलों की विभिन्न किस्में। अम्मान शहर में अलग-अलग स्थानों पर जो पार्क बनाए जा रहे हैं, उनमें इन नर्सरियों से पौधे भेजे जाते हैं। वहाँ विभिन्न प्रकार के प्रयोग देखकर दिल को तसल्ली हुई कि कैसे जिस जगह पर पेड़ नहीं होते लोग उसे हराभरा बनाने के प्रयास में लगे हैं। और हम दिल्ली जैसी ऐतिहासिक राजधानी में विकास के नाम पर 300 से 500 साल पुराने पेड़ काटने में थोड़ा-सा भी दर्द महसूस नहीं करते। भारत के लोगों को इस संदर्भ में गंभीरता से सोचना होगा क्योंकि प्रकृति ने हमें भरपूर दिया है लेकिन हम यदि प्रकृति की इस सौगात को बचाकर नहीं रखेंगे तो यहाँ रेगिस्तान बनने में देर नहीं होगी और केवल सीमेंट के जंगल दिखाई देंगे।
अम्मान की ऐतिहासिकता
अम्मान शहर के दो हिस्से है। पूर्वी अम्मान और पश्चिमी अम्मान। पूर्वी अम्मान, दरअसल, शहर का पुराना इलाका है जहां पर ऐतिहासिक इमारतें हैं और पहाड़ियों पर सिंगल फॅमिली घर हैं। यह थोड़ा भीड़-भाड़ वाला इलाका है जैसे भारत में भी हैं। पश्चिमी अम्मान का इलाके में चौड़ी सड़कें हैं, एम्बसी, सुपरमार्केट, माल, फाइव स्टार होटेल्स और रेस्टोरेंट हैं, लेकिन हकीकत यह है कि मज़ा आपको पुराने शहर में ही आएगा। नई दिल्ली कितनी भी आधुनिक सुविधाओं से लैस हो लेकिन खाने-पीने और घूमने का मज़ा चाँदनी चौक, जामा मस्जिद या पुरानी दिल्ली में ही है। यही हकीकत हर उस शहर की है, जिसे राजा- महराजाओ के लिए नया शहर बसाया जाता था।
अम्मान शहर का सबसे ऐतिहासिक स्थान सीटेडल है जो जोर्डन की सबसे ऐतिहासिक स्मारक है। यह एक पहाड़ी पर स्थित है जहां से अम्मान शहर का विहंगम दृश्य दिखाई देता है। यह एक प्रकार का किला है जिसमें बहुत सी सभ्यताओं की कहानियां छिपी हुई हैं। ऐसा कहा जाता है कि इस किले को यह रूप कांस्य युग में दिया गया जो 1800 ईसा पूर्व का समय है। 1200 ईसा पूर्व में यह अम्मान राज्य की राजधानी बना। फिर यह अनेक साम्राज्यों की राजधानी बना रहा। सीटेडल को आज भी दुनिया की सबसे पुरानी मानव बसाहट कहा जा सकता है। आज भी यहाँ रोमन, बेजेंटाइन और उमयाद साम्राज्यों के निशान दिखाई देते है। जोर्डन के पुरातत्व विभाग ने इसे 1951 से संरक्षित करना शुरू किया। आज भी यहाँ बड़ी संख्या में सैलानी आते हैं और इन पुरातात्विक महत्व के स्मारकों को देखते है और खूब फोटो खींचते हैं।
जोर्डन दुनिया के सबसे ज्यादा ऐतिहासिक देशों में से एक है और इसलिए पुरातात्विक महत्व की महान विरासत को देखने के लिए दुनिया भर के लोग यहा आते हैं। जोर्डन का सबसे महत्वपूर्ण पुरातात्विक स्थल पेट्रा है जिसे दुनिया के सात आश्चर्यों में गिना जाता है। उसके अलावा डेड सी या मृत सागर भी ऐसी जगह है जिसे देखने दुनिया भर से पर्यटक यहाँ आते है।
तवाहीन अल हवा का लजीज़ भोजन
अपनी फील्ड विज़िट खत्म कर हम अम्मान के प्रसिद्ध तवाहीन अल हवा नाम के एक रेस्टोरेंट में खाने के लिए पहुंचे जो अपने पारंपरिक व्यंजनों और सजावट के लिए जाना जाता है। एक स्थानीय महिला बाजरे की रोटी बना रही थी। मैं उसके पास गया और उसके कलात्मक तरीके से रोटी बनाने को देख रहा था और वह उतनी ही तन्मयता और कलात्मकता के साथ रोटी बना रही थी जैसे हमारे घर-गांवों में हमारी माँ-बहन बनाती हैं। मैंने उसे सलाम वालेकुम कहा तो वह बहुत खुश हुईं और फिर बातें करते हुए रेस्टोरेंट में प्रवेश करने से पहले उसने मुझे वह रोटी दे दी। मेरी मित्र लीना ने इस मौके पर कुछ फोटो लिए और मेरी बातचीत कराई। मुझे बहुत अच्छा लगा और मैंने अपने साथ गए सभी साथियों को उस रोटी का एक-एक टुकड़ा खाने को दिया। रोटी वाकई बहुत स्वादिष्ट थी।
रेस्टोरेंट में खाने में हमें इतना सलाद मिला था कि हमें समझ नहीं आया कि ये स्टार्टर है या मेन कोर्स। पता चला कि यह जोर्डन का प्रसिद्ध रेस्टोरेंट है। हमने अरेबिक सलाद, फ़तूश सलाद, कोल्ड टर्किश सलाद, ग्रीक सलाद और कुछ ग्रिल्ड मीट खाया। ये सब पीतल की एक बहुत बड़ी थाली में परोसा गया था। हम सबको ब्रेड, सलाद, अचार और चटनी इतनी पसंद आई कि हम भूल गए कि इसके बाद कुछ और भी आना है। यहाँ की ताजा रोटी और अलग-अलग किस्म की परोसी गई चटनी का हमने बहुत लुत्फ लिया। थोड़ी देर बाद जब वेटर ने आकर कहा कि मेन कोर्स में क्या चाहिए तो हम सभी खूब हँसे। हमने कहा, अरे भाई, पहले बता देते कि अभी और भी खाना है तो थोड़ा पेट खाली रखते। खैर, मेन कोर्स में हम लोगों को कबाब, शोकाफ, शियास टवूक मिला जो बेहद स्वादिष्ट था। क्योंकि लगभग सभी ने भरपेट खाया मैंने वेटर से कहा कि बचे हुए खाने को पैक कर दिया जाए ताकि किसी को दिया जा सके या शाम को हम सब लोग खा सकें। सभी को मेरा आइडिया पसंद आया, हालांकि शाम को किसी को याद भी नहीं रहा कि दिन का कुछ खाना लाए थे क्योंकि रात में एक सांस्कृतिक कार्यक्रम था जिसमें जोर्डन के पारंपरिक संगीत की झलकी थी।
जब मशकबीन की धुन पर सब जमकर नाचे
मुझे एक चीज देखकर बहुत खुशी हुई, वह है मशकबीन याने बैगपाइपर। मैं पहाड़ से हूँ और हमारे यहाँ भी पारंपरिक वाद्य में मशकबीन बजाई जाती है, जिसे बैगपाइपर के नाम से जाना जाता है। हालांकि एक बात पर मैंने गौर किया कि सांस्कृतिक टीम में सारे पुरुष सदस्य थे। उनके द्वारा किए जाने वाले नृत्य से यह मालूम चल रहा था कि वे अपनी महान परम्पराओं या बहादुरी का कोई गीत गा रहे थे। हम सब लोग भी बैगपाइपर की धुन पर नाचे। बाद में डेड सी में हमने लोकल नृत्य देखा। रात्रि के खाने के बाद सब लोग इकट्ठे हुए, तब फिर जोर्डन के सांस्कृतिक मंत्रालय की टीम ने एक प्रस्तुति दी और इसमें महिलाएं भी शामिल थीं।
जोर्डन में महिलाएं कार्यस्थल और महत्वपूर्ण पदों पर मिल जाएंगी। लीना, सुहानी और अन्य महिलाएं लगातार हमारे कार्यक्रमों को स्वतंत्र रूप से संभाल रही थीं। उन्होंने हमें किसी भी किस्म की कोई परेशानी नहीं होने दी और बेहद परिपक्वता एवं उत्साह के साथ हम लोगों को पूरे शहर के महत्वपूर्ण स्थान दिखाए।
विद्या भूषण रावत जाने-माने लेखक और सामाजिक कार्यकर्ता हैं।
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