दरअसल, घर केवल एक संरचना नहीं होता कि उसमें दीवारें हों, छत हो, खिड़की और दरवाजे हों। घर पनाहगार होता है जो उसमें रहनेवालाें को यह आश्वस्त करता है कि वह सुरक्षित है। लेकिन यह जिम्मेदारी परिवार की होती है कि वह इसे सुनिश्चित करे।
मुझे लगता है कि महिलाओं की राह में यह सब अवरोधक हैं, जो पुरुष प्रधान समाज ने लगा रखे हैं। पुरुष प्रधान समाज हर समय प्रयास करता रहता है कि वह महिलाओं को यह बताता रहे कि वह बेहद कमजोर हैं और पुरुष जो चाहे वह कर सकता है।
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नवल किशोर कुमार फ़ॉरवर्ड प्रेस में संपादक हैं।
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