उस सपने के पीछे मेरे मन में एक सवाल था। यह सवाल भारत-पाकिस्तान विभाजन से जुड़ा है। मुसलमान जब पाकिस्तान गए तो वहां अपने संग भारत का जातिवाद भी ले गए। वहां अशराफ मुसलमान और पसमांदा मुसलमानों के सवाल हैं। पसमांदा मुसलमानों को वहां मोहाजिर भी कह दिया जाता है। दरअसल, ये वे मुसलमान हैं जो दलित और पिछड़ी जातियों के थे और पाकिस्तान बनने के बाद वहां चले गए थे। वहां के अशराफ मुसलमान इन्हें आज भी पसंद नहीं करते। ऐसी ही एक रिपोर्ट करीब ढाई साल पहले पढ़ी थी मैंने। लेखक थे असगर जुनैद। वह इस्लामाबाद में एक विश्वविद्यालय में समाजशास्त्र के अध्येता हैं। अभी जब अफगानिस्तान अमेरिका के प्रत्यक्ष हस्तक्षेप से मुक्त हो गया है तो मैं तालिबान लड़ाकों के बारे में सोच रहा हूं जिनमें से अधिकांश ग्रामीण युवा हैं। उन्हें इंसान बनाने के बजाय तालिबान ने लड़ाका बनाया है।
आज की तारीख भी एक ऐतिहासिक तारीख है। आज के ही दिन 1911 में पेरियार ललई सिंह यादव का जन्म हुआ था। इन्होंने पेरियार की किताब अ ट्रू रीडिंग ऑफ रामायण का हिंदी अनुवाद सच्ची रामायण प्रकाशित किया था। इस किताब को उत्तर प्रदेश सरकार ने प्रतिबंधित कर दिया था। इसके खिलाफ पेरियार ललई सिंह यादव ने उत्तर प्रदेश सरकार के इस आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी। हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार के आदेश को निरस्त कर दिया। बाद में उत्तर प्रदेश सरकार हाईकोर्ट के इस आदेश के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट गई और वहां भी उसे मुंह की खानी पड़ी।

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