मुझे सपनों को दर्ज करने की आदत रही है। वैसे तो रात में अनेक सपने आते हैं (कभी कभी नहीं भी आते हैं)। अधिकांश सपनों की उम्र केवल तभी तक होती है जबतक कि वे मेरे जेहन में रहते हैं और मेरी आंखें बंद रहती हैं। आंखें खुलने के बाद भी जेहन में जिंदा रहने वाले ख्वाब कम ही होते हैं। मैं जिंदा ख्वाबों को ही कलमबद्ध करता हूं और फिर उनपर मनन करता हूं। ऐसा कबसे है, तारीख याद नहीं है। पटना में घर की डायरी में शायद इसकी कोई निश्चित तिथि हो।
खैर, ख्वाब हमेशा एक जैसे नहीं होते और मैं तो अपने अनुभवों के आधार पर कह सकता हूं कि ख्वाब आपके नियंत्रण में नहीं होते। आप चाहकर भी अपने मन के ख्वाब नहीं देख सकते। ख्वाब तो वही आते हैं जो आपके अंर्तमन में चल रहा होता है और आपको उसकी खबर नहीं होती। ऐसा बिलकुल नहीं होता कि आप जबरदस्ती ख्वाबों को आने का आदेश दें।
आज भाेर करीब चार बजे मैं उठ गया। इसके पहले मैंने एक सपना देखा था। सपना बेहद अजीब नहीं था। बस इतना ही कि मैं जहां था वह पाकिस्तान का हिस्सा था। पुरानी दिल्ली की गलियों जैसी गलियां थीं। सपने में उस जगह का नाम क्या था, यह नहीं दिखा, लेकिन मुझे लगता है कि वह लाहौर की गलियां रही होंगी। नक्काशीदार मकान थे और लोगों के मिलने-जुलने का सलीका बिल्कुल वैसा ही जैसा कि मिर्जा गालिब की गलियों में लोग मिला करते हैं या फिर मेरे पटना शहर के फुलवारी शरीफ के इलाके में।
सपने में मैं एक घर का मेहमान था। मेजबान का नाम क्या था और उसने अपने घर में मेहमान क्यों बनाया था, यह सपने में समझ में नहीं आया था। मैं तो उन दीवारों को देख रहा था जिसपर पाकिस्तानी हुक्मरान के निशान बने थे। गलियों से निकलने के बाद चौड़ी सड़कें थीं। हम पैदल ही चल रहे थे। सरसो के खेत थे सड़क के दोनो ओर। वहां एक गली की आखिरी छोर पर एक मंदिर जैसा कुछ दिखा। अपने मेजबान से पूछा तो उसने कहा कि यह बौद्ध मंदिर है लेकिन अब यहां बुद्ध नहीं हैं।
बुद्ध का क्या हुआ? क्या आपके लोगों ने उस मूर्ति को हटा दिया वहां से?
मेरे मेजबान का जवाब था कि कुछ भी नहीं हटाया गया है। दरअसल, यहां जो पुजारी है उसने ही हमें यह बताया है कि यह शंकर की मूर्ति है।
[bs-quote quote=”उस सपने के पीछे मेरे मन में एक सवाल था। यह सवाल भारत-पाकिस्तान विभाजन से जुड़ा है। मुसलमान जब पाकिस्तान गए तो वहां अपने संग भारत का जातिवाद भी ले गए। वहां अशराफ मुसलमान और पसमांदा मुसलमानों के सवाल हैं। पसमांदा मुसलमानों को वहां मोहाजिर भी कह दिया जाता है। दरअसल, ये वे मुसलमान हैं जो दलित और पिछड़ी जातियों के थे और पाकिस्तान बनने के बाद वहां चले गए थे। वहां के अशराफ मुसलमान इन्हें आज भी पसंद नहीं करते। ऐसी ही एक रिपोर्ट करीब ढाई साल पहले पढ़ी थी मैंने। लेखक थे असगर जुनैद। वह इस्लामाबाद में एक विश्वविद्यालय में समाजशास्त्र के अध्येता हैं। अभी जब अफगानिस्तान अमेरिका के प्रत्यक्ष हस्तक्षेप से मुक्त हो गया है तो मैं तालिबान लड़ाकों के बारे में सोच रहा हूं जिनमें से अधिकांश ग्रामीण युवा हैं। उन्हें इंसान बनाने के बजाय तालिबान ने लड़ाका बनाया है।” style=”style-2″ align=”center” color=”” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]
इससे पहले कि बात कुछ और हो पाती, नींद खुल गयी। लेकिन यह सपना था बेहद दिलचस्प।
परंतु, यह सपना आया ही क्यों? इसकी वजह क्या रही होगी ? मुझे लगता है कि मेरे जेहन में अफगानिस्तातान और अमेरिका के रहने के कारण यह सपना आया। अफगानिस्तान को अमेरिकी सेना ने खाली कर दिया है और अब वहां तालिबानियों का पूर्ण रूप से कब्जा है। वहां सरकार के गठन की प्रक्रिया तेज हो गयी है। हालांकि अभी भी तस्वीर बहुत साफ नहीं है। कल ही दोहा में भारतीय राजदूत ने तालिबान के शीर्ष अधिकारियों से मुलाकात की। हालांकि इसके बारे में जो जानकारी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता द्वारा दी गयी है, उसमें अफगानिस्तान में फंसे भारतीयों की सुरक्षित वापसी का मुद्दा अहम मुद्दा रहा।
लेकिन कायदे से तो मुझे अफगनिस्तान में होना चाहिए था। वजह यह कि सोने के पहले मैं अफगानिस्तान और अमेरिका के बारे में सोच रहा था। लेकिन सपने में पाकिस्तान क्यों आया? क्या वह एक बेवजह वाला सपना था?
शायद नहीं। उस सपने के पीछे मेरे मन में एक सवाल था। यह सवाल भारत-पाकिस्तान विभाजन से जुड़ा है। मुसलमान जब पाकिस्तान गए तो वहां अपने संग भारत का जातिवाद भी ले गए। वहां अशराफ मुसलमान और पसमांदा मुसलमानों के सवाल हैं। पसमांदा मुसलमानों को वहां मोहाजिर भी कह दिया जाता है। दरअसल, ये वे मुसलमान हैं जो दलित और पिछड़ी जातियों के थे और पाकिस्तान बनने के बाद वहां चले गए थे। वहां के अशराफ मुसलमान इन्हें आज भी पसंद नहीं करते। ऐसी ही एक रिपोर्ट करीब ढाई साल पहले पढ़ी थी मैंने। लेखक थे असगर जुनैद। वह इस्लामाबाद में एक विश्वविद्यालय में समाजशास्त्र के अध्येता हैं। अभी जब अफगानिस्तान अमेरिका के प्रत्यक्ष हस्तक्षेप से मुक्त हो गया है तो मैं तालिबान लड़ाकों के बारे में सोच रहा हूं जिनमें से अधिकांश ग्रामीण युवा हैं। उन्हें इंसान बनाने के बजाय तालिबान ने लड़ाका बनाया है। मेरी चिंता में वहां के आमजन हैं जिनके ऊपर अब धार्मिक कट्टरता के लिए कुख्यात तालिबानी राज करेंगे। ऐसी ही चिंता मुझे 25 मई, 2014 को हुई थी। इसके एक दिन बाद 26 मई, 2014 को नरेंद्र मोदी ने भारत के प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ग्रहण किया था।
[bs-quote quote=”आज की तारीख भी एक ऐतिहासिक तारीख है। आज के ही दिन 1911 में पेरियार ललई सिंह यादव का जन्म हुआ था। इन्होंने पेरियार की किताब अ ट्रू रीडिंग ऑफ रामायण का हिंदी अनुवाद सच्ची रामायण प्रकाशित किया था। इस किताब को उत्तर प्रदेश सरकार ने प्रतिबंधित कर दिया था। इसके खिलाफ पेरियार ललई सिंह यादव ने उत्तर प्रदेश सरकार के इस आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी। हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार के आदेश को निरस्त कर दिया। बाद में उत्तर प्रदेश सरकार हाईकोर्ट के इस आदेश के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट गई और वहां भी उसे मुंह की खानी पड़ी।” style=”style-2″ align=”center” color=”” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]
जाहिर तौर पर मेरी चिंता गैरवाजिब नहीं थी। देश में कट्टरता और द्विजों का वर्चस्ववाद का विस्तार हदतक हुआ है, इसका अनुमान इसी मात्र से लगाया जा सकता है कि आए दिन अल्पसंख्यकों, दलितों और पिछड़ों के ऊपर हमले हो रहे हैं। धर्म को राजनीति के लिए बिना किसी शर्म के उपयोग किया जा रहा है।
खैर, न तो रात हमेशा रहती है और न ही दिन। सब बदलते रहते हैं। तारीखें बदलती रहती हैं। आज की तारीख भी एक ऐतिहासिक तारीख है। आज के ही दिन 1911 में पेरियार ललई सिंह यादव का जन्म हुआ था। इन्होंने पेरियार की किताब अ ट्रू रीडिंग ऑफ रामायण का हिंदी अनुवाद सच्ची रामायण प्रकाशित किया था। इस किताब को उत्तर प्रदेश सरकार ने प्रतिबंधित कर दिया था। इसके खिलाफ पेरियार ललई सिंह यादव ने उत्तर प्रदेश सरकार के इस आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी। हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार के आदेश को निरस्त कर दिया। बाद में उत्तर प्रदेश सरकार हाईकोर्ट के इस आदेश के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट गई और वहां भी उसे मुंह की खानी पड़ी। सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई की तीन जजों की पीठ ने की, जिसकी अध्यक्षता न्यायमूर्ति वी.आर. कृष्ण अय्यर ने की और इसके दो अन्य जज थे, पी .एन. भगवती और सैय्यद मुर्तज़ा फ़ज़ल अली।
याचिकाकर्ता उत्तर प्रदेश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि सीआरपीसी की धारा 99-ए के तहत
रामायण – अ ट्रू रीडिंग पुस्तक की अंग्रेज़ी और इसके हिंदी अनुवाद
‘सच्ची रामायण’ को ज़ब्त करने का आदेश जारी किया गया है। इसके लेखक तमिलनाडु के पेरियार ई.वी.रामासामी हैं। यह पुस्तक भारतीय नागरिकों के एक वर्ग, हिंदुओं की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाती है।
राज्य सरकार के वक़ील ने इसके पहले इलाहाबाद हाईकोर्ट में कहा था कि राज्य सरकार की याचिका में कोई ख़ामी नहीं है और यह पुस्तक राज्य के विशाल हिंदू जनसंख्या की पवित्र भावनाओं पर प्रहार करती है और इस पुस्तक के लेखक ने बहुत ही स्षप्ट भाषा में महान अवतार श्री राम और सीता एवं जनक जैसे दैवी चरित्रों पर कलंक मढ़ा है जिसका हिंदू लोग आदर करते हैं और उनकी पूजा करते हैं।
खैर, सुप्रीम कोर्ट ने अपने फ़ैसले पर पहुँचने से पूर्व कहा कि उसे इस मामले को मूलपाठ की दृष्टि से और दूसरा वृहत दृष्टिकोण से देखना होगा और इस आधार पर वह इस निष्कर्ष पर पहुँचा है कि हाईकोर्ट ने सरकार के आदेश को निरस्त कर कोई ग़लती नहीं की है और और यह अपील ख़ारिज कर दिए जाने लायक़ है। कोर्ट ने कहा कि धारा 99ए के तहत अधिकार का प्रयोग क़ानून की प्रक्रिया के तहत ही हो सकता है। कोर्ट ने कहा कि जब धारा यह कह रही है कि आपको अपने निर्णय का आधार बताना होगा तो आप यह नहीं कह सकते कि इसकी ज़रूरत नहीं है और यह इसमें अंतर्निहित है। जब आप किसी चीज़ को लेकर चुप हैं तो इसका मतलब आप कुछ भी नहीं बता रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा जब बोलना क़ानूनी कर्तव्य है, चुप रहना एक घातक दोष है…।”
बहरहाल, मैं आज सोच रहा हूं कि बिहार में रणवीर सेना द्वारा किए गए नरसंहारों के मामले वर्ष 2012 से सुप्रीम कोर्ट में लंबित हैं। उन मामलों में सुप्रीम कोर्ट चुप क्यों है? क्या यह सुप्रीम कोर्ट का घातक दोष नहीं है?
नवल किशोर कुमार फारवर्ड प्रेस में संपादक हैं।
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