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कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देर से मिला लेकिन घोषणा से देश में खुशी का माहौल

जननायक कर्पूरी ठाकुर की जयंती समारोह की पूर्व संध्या पर, 23 जनवरी को राष्ट्रपति भवन से भारत रत्न देने की घोषणा हुई। इसके बाद उनके चाहने वालों भारतीयों के हृदय में खुशी की लहर दौड़ गई। यह उम्मीद सबको वर्षों से थी और इस बार उनके जन्म शताब्दी वर्ष में पूरा हुआ। यह देश के […]

जननायक कर्पूरी ठाकुर की जयंती समारोह की पूर्व संध्या पर, 23 जनवरी को राष्ट्रपति भवन से भारत रत्न देने की घोषणा हुई। इसके बाद उनके चाहने वालों भारतीयों के हृदय में खुशी की लहर दौड़ गई। यह उम्मीद सबको वर्षों से थी और इस बार उनके जन्म शताब्दी वर्ष में पूरा हुआ। यह देश के लिए गौरव का महत्वपूर्ण क्षण है।

वर्तमान राजनीतिक परिस्थितियों में कर्पूरी ठाकुर का नाम लेकर हर पार्टी राजनीति करना चाहती है और चुनावी एजेंडों में कर्पूरी ठाकुर मॉडल की बात करती है, किंतु सत्ता में आने के बाद सबके तौर-तरीके बदल जाते हैं और वे एक खास एजेंडे पर ही सिमट कर रह जाती हैं। कर्पूरी ठाकुर की विचारधारा को आगे बढ़ने का कार्य काफी हद तक बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव किया। वर्तमान में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार एवं तेजस्वी की जोड़ी इस परंपरा को आगे बढ़ाने के लिए काम कर रही हैं।

सही मायने में आजाद भारत में कर्पूरी ठाकुर भारत के संविधान का अनुसरण करने वाले सबसे पहले नेता रहे हैं। वे 1978 में मुंगेरीलाल कमीशन के आधार पर ओबीसी आरक्षण लागू करने वाले बिहार के पहले मुख्यमंत्री थे, जिसमें अति पिछड़े वर्ग को 12%, पिछड़े वर्ग को 8%, गरीब सवर्णों को तीन प्रतिशत एवं महिलाओं को तीन प्रतिशत, कुल मिलाकर 26% आरक्षण देने का कार्य किया था। बिहार के वर्तमान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इस कार्य को और आगे बढ़ाया है। उन्होंने अपने राज्य में 75% आरक्षण देने का प्रस्ताव पारित करके लागू कराया और युवाओं को बड़ी संख्या में रोजगार देने का कार्य कर रहे हैं। कर्पूरी ठाकुर भी ऐसे ही कार्य किया करते थे, उन्होंने एक बार एक कैंप लगाकर नौ हजार इंजीनियर एवं डॉक्टर को एक साथ सरकारी नौकरी में शामिल किया था। उस समय इस कार्य को आश्चर्य माना गया था। बिहार में पहली बार शराबबंदी कर्पूरी ठाकुर ने ही लागू की थी।

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कर्पूरी ठाकुर और बिहार की राजनीति

कर्पूरी ठाकुर 1952 से लेकर 1988 तक एक भी विधानसभा चुनाव नहीं हारे। वे एक बार बिहार राज्य के उप-मुख्यमंत्री और दो बार मुख्यमंत्री रहे। जहां आज की भारतीय मीडिया अकूत संपत्ति वाले नेताओं को ईमानदार साबित करने के लिए दिन-रात एजेंडा चलाती है, वहीं कर्पूरी ठाकुर वास्तव में ईमानदार थे। उन्होंने अपने परिवार के लिए निजी तौर कोई विशेष सुविधा देने का कार्य नहीं किया। उनकी ईमानदारी और सामाजिक सरोकार इतने बड़े थे कि कभी अपने या अपने परिवार की आर्थिक मजबूती के बारे में नहीं सोचा। अपनी पीढ़ियों के लिए अपने गाँव पितौझिया (वर्तमान कर्पूरी ग्राम) या पटना में एक मकान तक नहीं बनवा सके। इन्होंने कभी एक इंच जमीन नहीं जोड़ी, न ही परिवार के लिए कोई बैंक बैलेंस जमा किया। उनकी ईमानदारी की तुलना वर्तमान राजनीति में किसी नेता से करना गलत होगा। वे सोशलिस्ट पार्टी से बिहार के पहले गैर कांग्रेसी मुख्यमंत्री बने थे। आश्चर्य की बात है कि एक मुख्यमंत्री रहते हुए भी वे रिक्शे पर चलते थे।

उनके निधन के बाद हेमंत बहुगुणा जब उनके घर पहुंचे और उनके झोपड़ीनुमा पैतृक घर देखकर रो पड़े थे। यदि कर्पूरी ठाकुर चाहते तो वर्तमान नेताओं की तरह अपने लिए एक आलीशान भवन बनवा लेते और करोड़ों की संपत्ति जमा कर सकते थे लेकिन वे देश के गरीब जनता की स्थिति को देखते और समझते थे इसलिए उनके जैसा ही रहना चाहते थे। उन्होंने अपने परिवार और रिश्तेदारों के लिए भी नौकरी की किसी सिफारिश को स्वीकार नहीं किया। न ही सरकारी पैसे से व्यक्तिगत कार्य के लिए कोई बड़ा आयोजन कराया। उन्होंने अपनी बेटी की शादी में भी किसी राजनीतिक दल या नेता को निमंत्रण नहीं दिया था।

वे जब पहले मुख्यमंत्री बने तो अपने बेटे रामनाथ को खत लिखा। इस ख़त में क्या था, इसके बारे में रामनाथ कहते हैं, ‘पत्र में तीन ही बातें लिखी होती थीं- तुम इससे प्रभावित नहीं होना। कोई लोभ-लालच देगा, तो उस लोभ में मत आना। मेरी बदनामी होगी।’

एक किस्सा उसी दौर का है कि उनके मुख्यमंत्री रहते, उनके गांव के कुछ दबंग सामंतों ने उनके पिता को अपमानित किया और मारा-पीटा। ख़बर फैली तो जिलाधिकारी गांव में कार्रवाई करने पहुंच गए, लेकिन कर्पूरी ठाकुर ने जिलाधिकारी को कार्रवाई करने से रोक दिया। उनका कहना था कि दबे-पिछड़ों को अपमान तो गांव-गांव में हो रहा है। हर किसी का बेटा मुख्यमंत्री नहीं होता इसलिए मेरे पिता भी कोई विशेष व्यक्ति नहीं हैं।’

प्रोफेसर रामजी महथा ‘जालवी’, कर्पूरी ठाकुर से संबंधित अनेक संस्मरण बताते हैं। उनके अनुसार, ‘कर्पूरी ठाकुर अपने मुख्यमंत्री काल में और उसके उपरांत भी साहित्य सेवाओं, कलाकारों को इज्जत और प्रतिष्ठा दिलाते रहे हैं। अनेक रुग्ण साहित्यकारों एवं कलाकारों को, जो मृत्यु शैय्या पर पड़े जीवन के अंतिम सांस गिन रहे थे, की आर्थिक सहायता कर उन्हें जीवनदान दिया था।

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उन्होंने एक जगह उन्होंने लिखा है कि ‘मुझे स्मरण है, जब अशोक मेहता मुजफ्फरपुर से लोकसभा का चुनाव लड़ रहे थे तो आप झपहाँ में रहकर उनके लिए चुनाव प्रचार कर रहे थे। आप ही के परिश्रम के फलस्वरुप अशोक मेहता भारी बहुमत से विजयी होकर लोकसभा की सदस्यता हासिल की, मगर उन दिनों कर्पूरीजी की सादगी देखकर सभी हैरत में पड़ जाते थे। वह दिन-रात एक करके मेहताजी के लिए चुनाव प्रचार करते थे और अर्धरात्रि व्यतीत होने पर ठोंगे में भरे सत्तू पीकर या कभी-कभी झपहाँ बाजार की दुकान से रोटी और गुड़ खाकर वहीं एक मस्जिद में ‘आर्यावर्त’ दैनिक का बिछावन बनाकर जमीन पर ही सो जाते थे।

ताजपुर एवं अन्य चुनावी क्षेत्रों में चुनाव प्रचार के क्रम में मैंने अपनी आंखों से उन्हें जाड़े में अंगीठी के सामने जमीन पर बैठकर जनता से चुनाव प्रचार संबंधी बातें करते देखा है। उन्हीं दिनों रात में गरीब जनता के घर बनी मकई की रोटी खाकर, टूटी जर्जर झोपड़ी में खजूर की चटाई बिछाकर रात में सोते हुए भी देखा है।’

कर्पूरी ठाकुर सत्ता में रहे हों या विपक्ष में, वे गरीब-गुरबों, पिछड़े, दलितों, किसानों एवं मजदूरों के पक्ष में हमेशा आवाज उठाते रहे और यथोचित उनकी मदद करते रहे। उन्हें एक अच्छे वक्ता के रूप में भी याद किया जाता है। वे विधानसभा या उसके बाहर बहुत ही सादगी से अपनी बात रखते थे। विधानसभा में उनके सवाल बहुत तीखे होते थे, जिसका उत्तर देने में सरकार को अत्यंत कठिनाई महसूस होती थी।

एक शिक्षा मंत्री के रूप में उन्होंने डॉक्टर राम मनोहर लोहिया द्वारा अंग्रेजी हटाओ के नारे को आधार बनाकर मैट्रिक में अंग्रेजी में पास होने की अनिवार्यता को खत्म करके शिक्षा के क्षेत्र में क्रांतिकारी कार्य किया। इसके पहले गरीब-वंचित तबके से आने वाले विद्यार्थी अंग्रेजी में अनुत्तीर्ण हो जाया करते थे और उनके आगे की पढ़ाई रुक जाती थी। कर्पूरी ठाकुर ने एक झटके में अंग्रेजी में पास होने के अनिवार्यता वाले नियम का समाप्त कर दिया जिससे छात्रों के आगे बढ़ने का रास्ता साफ हो गया। उन्होंने मुख्यमंत्री बनने के बाद मैट्रिक तक की शिक्षा को निःशुल्क कर दिया।

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वह हिंदी भाषा के प्रबल समर्थक थे। मुख्यमंत्री के रूप में कर्पूरी ठाकुर ने सरकारी कामकाज में हिंदी भाषा का आधिकारिक प्रयोग करने की दृष्टि से राज्य स्तर पर ‘हिंदी प्रगति समिति’ का गठन किया था, जिसका एकमात्र उद्देश्य था सरकारी कार्यों तथा प्रतिष्ठानों में हिंदी भाषा के प्रयोग को बढ़ावा देना और इस बात की जांच पड़ताल करना कि सभी सरकारी कार्यालय में राजभाषा अधिनियम का सम्यक ढंग से अनुपालन हो रहा है या नहीं।

उन्हें बिहार के आम जनमानस की स्थिति परिस्थिति की पूरी जानकारी थी, इसलिए वे उनके पक्ष में हमेशा बोलते रहे। सन् 1961 में विपक्ष में रहते हुए भी दलितों में दलित कहे जाने वाले डोम जातियों के लिए विधानसभा से उनके लिए मकान और पेयजल का आंकड़ों सहित मांग की और सरकार से उनकी मदद करवाकर ही दम लिया। ऐसे ही 1987 में  बिहार में महानंदा नदी में बाढ़ एवं भारी वृष्टि से कई कच्चे घर व मकान धराशायी हो चुके थे। कर्पूरी ठाकुर ने विधानसभा में उन घरों की मरम्मत एवं पुनर्निर्माण के लिए बार-बार आवाज उठाई और शिविर में रहे लोगों को घर उपलब्ध करवाने का हर संभव प्रयास किया।

इसके अलावा वे एक महान स्वतंत्रता सेनानी थे। आजादी के पहले और आजादी के बाद कई बार जेल जा चुके हैं। 1942 में महात्मा गांधी द्वारा ‘अंग्रेजों भारत छोड़ो’ का आंदोलन प्रारंभ हो गया था। इस आंदोलन में विभिन्न विद्यालयों, महाविद्यालयों एवं विश्वविद्यालयों से तमाम छात्रों ने हिस्सा लिया। कर्पूरी ठाकुर भी इससे अछूते न रहे। उन्होंने पटना के कृष्णा टॉकीज हॉल में छात्रों के बीच एक जोरदार भाषण देते हुए कहा था कि, ‘हमारे देश की आबादी इतनी अधिक है कि केवल थूक देने मात्र से अंग्रेजी राज बह जाएगा।’

इस भाषण के कारण अंग्रेजी हुकूमत ने उन्हें पकड़ कर कोर्ट में पेश किया और एक दिन की जेल और 50 रुपये के जुर्माने की सजा सुनाई। तब से कर्पूरी ठाकुर ने पढ़ाई-लिखाई छोड़ कर देश के आंदोलनों में हिस्सा लेना आरंभ कर दिया था। जयप्रकाश नारायण और डॉ. राम मनोहर लोहिया उनके राजनीतिक गुरु थे। उनकी प्रेरणा से उन्होंने राजनीतिक क्षेत्र में अनेक ऐसे कार्य किए जिनके मिसाल हमेशा कायम रहेंगे। इतना ही नहीं वे साहित्य, संस्कृति कला, हर क्षेत्र में अपनी गहरी पाठ रखते थे और उसकी महत्व देते थे।

कर्पूरी ठाकुर वंचितों एवं पिछड़ों के नेता थे, इसलिए सामंतवादी ताकतें हमेशा उनके खिलाफ रहीं। वे लोग उनके लिए माँ-बहन की गालियां तक देते थे। इसकी परवाह किए बिना वे ईमानदारी और मेहनत से अपना काम करते रहे एवं देश के गरीबों के अनेक सपनों को साकार किया। उन्होंने समाज और राजनीति के लिए एक नई दृष्टि दी जो अनुकरणीय है। मुझे उम्मीद है कि देश की राजनीति में कर्पूरी ठाकुर का नाम अलग करके इतिहास नहीं लिखा जा सकता।

इस घोषणा के बाद सत्ता पक्ष एवं विपक्ष के नेताओं ने उन्हें खूब बधाइयां दी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ‘एक्स’ पर लिखा- ‘मुझे खुशी है कि भारत सरकार ने सामाजिक न्याय के प्रतीक, महान जननायक कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न से सम्मानित करने का फैसला किया है और वह भी ऐसे समय में जब हम उनकी जन्म शताब्दी मना रहे हैं।’

गृह मंत्री अमित शाह ने लिखा कि ‘बिहार की भूमि के वीर सपूत जननायक कर्पूरी ठाकुरजी ने देश की स्वतंत्रता से लेकर स्वतंत्रता के बाद तक, एक सर्वसमावेशी शासन-व्यवस्था बनाने के लिए लंबा संघर्ष किया। वे जीवनपर्यन्त पिछड़ों, दलितों, गरीबों और किसानों के अधिकारों की लड़ाई लड़ने के लिए समर्पित रहे। आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सरकार द्वारा कर्पूरी ठाकुरजी के जन्म शताब्दी वर्ष पर उन्हें भारत रत्न से सम्मानित करने का निर्णय उनके अथक संघर्षों को सच्ची श्रद्धांजलि है। इस निर्णय से युवा पीढ़ी कर्पूरी बाबू के विशाल योगदान को जान पाएगी।’

सपा मुखिया अखिलेश यादव ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ पर लिखा है, ‘जननायक कर्पूरी ठाकुरजी को मरणोपरांत घोषित ‘भारतरत्न’ दरअसल ‘सामाजिक न्याय’ के आंदोलन की जीत है, जो दर्शाती है कि सामाजिक न्याय व आरक्षण के परंपरागत विरोधियों को भी मन मारकर अब ‘पीडीए’ के 90% लोगों की एकजुटता के आगे झुकना पड़ रहा है। PDA की एकता फलीभूत हो रही है।’

समाजवादी पार्टी की कद्वावर नेता स्वामी प्रासद मौर्य ने ‘एक्स’ पर लिखा, ‘जननायक कर्पूरी ठाकुरजी को जन्म शताब्दी के अवसर पर मरणोंपरांत ‘भारतरत्न’ दिए जाने की घोषणा, सामाजिक न्याय की जीत है तथा कर्पूरी ठाकुरजी के विराट व्यक्तित्व के अनुरूप भी। साथ ही साथ यह सम्मान इस देश के गरीबों, आदिवासियों, दलितों, पिछडो व महिलाओ को सम्मान दिलाने, गैर बराबरी खत्म कर समता मूलक समाज बनाने, जाति-पाति, छुआछूत, ऊंच-नीच खत्म करने हेतु किए गए कर्पूरी ठाकुरजी के प्रयासों व संघर्षो की भी जीत है, जिसका हम स्वागत करते हैं।’

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने ‘एक्स’ पर लिखा है, ‘पूर्व मुख्यमंत्री और महान समाजवादी नेता स्व. कर्पूरी ठाकुरजी को देश का सर्वोच्च सम्मान ‘भारत रत्न’ दिया जाना हार्दिक प्रसन्नता का विषय है। केंद्र सरकार का यह अच्छा निर्णय है। स्व. कर्पूरी ठाकुरजी को उनकी 100वीं जयंती पर दिया जाने वाला यह सर्वोच्च सम्मान दलितों, वंचितों और उपेक्षित तबकों के बीच सकारात्मक भाव पैदा करेगा। हम हमेशा से ही स्व. कर्पूरी ठाकुरजी को ‘भारत रत्न’ देने की मांग करते रहे हैं। वर्षों की पुरानी मांग आज पूरी हुई है। इसके लिए माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदीजी को धन्यवाद।’

बिहार के उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने एक वीडियो के साथ ‘एक्स’ पर लिखा है कि ‘बिहार विधानसभा के शताब्दी वर्ष समारोह में हमने आदरणीय प्रधानमंत्रीजी के समक्ष जननायक कर्पूरी ठाकुरजी को भारत रत्न देकर देश के किसी भी प्रधानमंत्री के बिहार विधानसभा में प्रथम आगमन को और अधिक यादगार बनाने की माँग रखी थी।’

इस प्रकार अलग-अलग राजनीतिक दलों ने ‘एक्स’ करके उन्हें बधाइयां दी हैं। इससे पहले यह माँग अलग-अलग राजनीतिक दलों से कई बार उठाई जाती रही है, लेकिन छोटे दलों के नेताओं की माँग को हमेशा दरकिनार किया जाता रहा है।

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