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कबीर और नागार्जुन का साहित्य प्रतिरोध करने की ताकत देता है : चौथीराम यादव

जन्मदिन पर पूरी शिद्दत के साथ याद किए गए कबीर और आधुनिक कबीर जनकवि नागार्जुन वाराणसी। गुरुवार को जनसंस्कृति मंच, दरभंगा तथा एल.सी .एस .कालेज के संयुक्त तत्वावधान में स्थानीय एल सी एस कालेज के सभागार में कबीर और आधुनिक कबीर जनकवि नागार्जुन का जयंती समारोह आयोजित किया गया। मौके पर “हमारा समय और कबीर […]

जन्मदिन पर पूरी शिद्दत के साथ याद किए गए कबीर और आधुनिक कबीर जनकवि नागार्जुन
वाराणसी। गुरुवार को जनसंस्कृति मंच, दरभंगा तथा एल.सी .एस .कालेज के संयुक्त तत्वावधान में स्थानीय एल सी एस कालेज के सभागार में कबीर और आधुनिक कबीर जनकवि नागार्जुन का जयंती समारोह आयोजित किया गया।
मौके पर “हमारा समय और कबीर एवं आधुनिक कबीर जनकवि नागार्जुन की साझी सांस्कृतिक विरासत” विषयक संगोष्ठी का उद्घाटन करते हुए  बी एच यू के अवकाशप्राप्त हिंदी विभागाध्यक्ष एवं लोकधर्मी चेतना के प्रखर मार्क्सवादी आलोचक प्रो. चौथीराम यादव ने कहा कि आज सत्ता प्रायोजित बर्बर नरसंहार के दौर में कबीर और आधुनिक कबीर जनकवि नागार्जुन का साहित्य हमें प्रतिरोध का संघर्ष तेज करने की ताकत देता है।
अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में हिंदी के प्राध्यापक एवं युवा आलोचक प्रो. कमला नन्द झा ने कहा कि कबीर और आधुनिक कबीर जनकवि नागार्जुन दोनों अपने-अपने समय में दमनकारी तथा तानाशाही सत्ता के खिलाफ जान को भी जोखिम में डालकर संघर्ष करने वाले जनयोद्धा साहित्यकार रहे हैं।
अम्बेडकर विश्वविद्यालय, दिल्ली में हिंदी के प्राध्यापक, मार्क्सवादी आलोचक एवं जनसंस्कृति मंच के राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य प्रो. गोपाल प्रधान ने कहा कि”जनकवि नागार्जुन के कवि का स्थाई भाव है प्रतिहिंसा। दमनकारी बर्बर सत्ता के हिंसात्मक रवैये से दो-दो हाथ करने के लिए नागार्जुन का साहित्य प्रतिहिंसात्मक आख्यान गढता है तथा कबीर भी अपने समय की सामंती सत्ता से सीधी मुठभेड़ करते हैं।
अवधेश प्रताप सिंह विश्वविद्यालय, रीवा के हिन्दी विभागाध्यक्ष, जाने-माने समकालीन कवि एवं आलोचक प्रो. दिनेश कुशवाह ने कहा कि कबीर और नागार्जुन दोनों ही अपने-अपने समय के दुर्धर्ष योद्धा एवं जनप्रतिबद्ध साहित्यकार हैं। जहां एक ओर कबीर अपने समय की सामंती व्यवस्था से सीधे टकराते रहे, फिर भी लगभग 500 वर्षों तक उन्हें किसी ने कवि के रूप में स्वीकार नहीं किया। वहीं नागार्जुन आधुनिक युग की तानाशाही एवं दमनकारी सत्ता की धज्जियां उड़ाकर रख देते हैं।”
कार्यक्रम के संचालनकर्त्ता डॉ. सुरेन्द्र प्रसाद सुमन ने कहा कि”कबीर और नागार्जुन दोनों ही आम-आवाम की वास्तविक मुक्ति के लिए मुकम्मल बदलाव चाहते थे। मध्यकाल में कबीर ने ही सर्वप्रथम सांस्कृतिक जनवाद का परचम लहराया और आधुनिक काल में नागार्जुन ने भारतीय क्रांति को पूरा करने के लिए जनांदोलनों के दौरान  कई बार जेल यात्राएं कीं।
धन्यवाद ज्ञापन करते हुए जनसंस्कृति मंच, दरभंगा के जिला सचिव डॉ. रामबाबू आर्य ने कहा कि आदि काल से ही यथास्थितिवादियों और क्रांतिकारीकारियों परस्पर दो साहित्यिक एवं सांस्कृतिक धाराएं रही हैं। कबीर और नागार्जुन दोनों ही क्रांतिकारी धारा के साहित्यकार हैं, जिनसे दमनकारी सत्ता से लड़ने की प्रेरणा मिलती है।
कार्यक्रम की शुरुआत जनगायक राजू राम राम द्वारा प्रस्तुत जनवादी गीतों से हुई। कार्यक्रम में ऑनलाइन उपस्थिति लगभग 125 और ऑफलाइन उपस्थिति 100थी, जिसमें स्थानीय लोगों में प्रो. मिथिलेश कुमार यादव, प्रो श्याम यादव, प्रो. शिवनारायण यादव, डॉ. रामपवित्र राय, डॉ. पवन कुमार, कामरेड रामनारायण पासवान उर्फ भोला जी, भाकपा माले जिला सचिव कामरेड बैद्यनाथ यादव, कामरेड अभिषेक कुमार, एपवा नेत्री शनिचरी देवी, गायित्री देवी, डॉ. संत़ोष कुमार यादव, डॉ. भारतेंदु कुमार, शिक्षक नेता रामबुझावन यादव, आइसा नेता मयंक कुमार, सुदीपि कुमार, विशाल मांझी तथा डॉ. ज्वाला चंद्र चौधरी आदि प्रमुख थे। अध्यक्षता एलसीएस कालेज के प्रधानाचार्य डॉ. शिवनारायण यादव ने की।
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