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जनविद्रोह दिवस समारोह में मशाल मार्च से रौशन हुआ महुआ डाबर क्रांति स्थल

बहादुपुर ब्लॉक अंतर्गत ऐतिहासिक क्रांति की धरती महुआ डाबर में जन विद्रोह दिवस पर मशाल मार्च निकालकर आज़ादी की अलख जगाने वाले क्रांतिवीरों को नमन किया गया। अपने लड़ाका पुरखों की याद में आयोजित जन विद्रोह दिवस समारोह में आये लोगों में अलग ही जज़्बा देखने को मिला। भारतीय क्रांतिकारी आंदोलन के महानायकों का स्मरण […]

बहादुपुर ब्लॉक अंतर्गत ऐतिहासिक क्रांति की धरती महुआ डाबर में जन विद्रोह दिवस पर मशाल मार्च निकालकर आज़ादी की अलख जगाने वाले क्रांतिवीरों को नमन किया गया। अपने लड़ाका पुरखों की याद में आयोजित जन विद्रोह दिवस समारोह में आये लोगों में अलग ही जज़्बा देखने को मिला। भारतीय क्रांतिकारी आंदोलन के महानायकों का स्मरण किया गया। क्रांतियोद्धा रास बिहारी बोस की आत्मकथा का विमोचन हुआ। वहीं, आजादी आंदोलन को समेटे दुर्लभ दस्तावेजों की प्रदर्शनी लगाकर नौजवानों को आजादी के महत्व बताया गया। कबीर संगीत मंडली की सांस्कृतिक प्रस्तुति दिल को छू गई। वक्ताओं ने महुआ डाबर में गौरवशाली स्मारक बनाने की मांग की। समारोह में संविधान के प्रस्तावना का सामूहिक पाठ किया गया।

महुआ डाबर जन विद्रोह दिवस समारोह को संबोधित करते वक्ता

महुआ डाबर विद्रोह की दास्तान खुला सत्र को संबोधित करते हुए कमांडर-इन-चीफ गेंदालाल दीक्षित के पौत्र डॉ. मधुसूदन दीक्षित ने कहा कि महुआ डाबर में क्रांतिवीर पिरई खां की अगुवाई में उनके इंकलाबी साथियों ने अंग्रेजी सेना के लेफ्टिनेंट लिंडसे, लेफ्टिनेंट थॉमस, लेफ्टिनेंट इंग्लिश, लेफ्टिनेंट रिची, सार्जेन्ट एडवर्ड, लेफ्टिनेंट कॉकल जैस कुख्यात अफसरों की घेराबंदी करके मौत के घाट उतार दिया। अंग्रेजी सेना के छह अफसरों के मौत के बाद सार्जेन्ट बुशर घायल अवस्था में किसी तरह से अपनी जान बचाकर भाग निकला और अंग्रेजी हुकूमत के उच्च अधिकारियों को घटना की जानकारी दी। अपने छह सैन्‍य अफसरों की मौत से बौखलाई अंग्रेजी सेना ने 20 जून,1857 को बस्ती के तत्कालीन मजिस्ट्रेट पेपे विलियम्स ने घुड़सवार फौजियों की मदद से पांच हजार की आबादी वाले महुआ डाबर गांव को घेरकर जलाकर राख कर दिया। पूरे कस्बे को तहस नहस करने के बाद ‘गैरचिरागी’ घोषित कर दिया गया। महुआ डाबर गांव के अस्तित्व को मिटाने के लिए पेपे विलियम्स को ब्रिटिश सरकार ने सम्मानित भी किया था।

वरिष्ठ दस्तावेजी छायाकार सुनील दत्ता ने अफसोस जताते हुए कहा कि आजादी के इतने बरस बीत जाने के बाद भी साजिश के तहत महुआ डाबर क्रांति स्मारक नहीं बन सका। जबकि महुआ डाबर से वर्डपुर तक यहां के आजादी मतवालों के संघर्ष की शानदार विरासत है।

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क्रांतिकारी चिंतक अविनाश गुप्ता ने जोर देते हुए कहा कि अब बिना देर किये यहां गौरवशाली स्मारक बनाकर आजादी महानायकों को उचित सम्मान दिया जाना चाहिए।

कार्यक्रम में पेंटिंग प्रदर्शनी का भी आयोजन

समारोह की अध्यक्षता कर रहे महामंडलेश्वर महा शक्ति  पीठाधीश्वर डॉ. फूलचंद्र ब्रह्मचारी ने कहा कि महुआ डाबर का गौरवशाली विरासत को संजोने की बहुत जरूरत है। आजादी की लड़ाई का साझा संघर्ष हमारी धरोहर है।

समारोह के आयोजक शाह आलम राना ने कहा कि आज़ादी के भूले बिसरे नायकों को याद करना हमारा फ़र्ज़ है। यही एक तरीका है जिससे हम समझ सकते हैं आज़ादी के लिये कितने लोगों ने कुर्बानियां दीं, बल्कि इससे आज़ादी की कीमत भी पता चलती है।

महुआ डाबर जन विद्रोह दिवस कार्यक्रम में वक्ताओं को सुनते लोग

समारोह को गौरवशाली सैनिक संतराम मौर्य, प्रोफेसर रामदेव दीक्षित, क्रांतिकारी विचारक धीरेंद्र प्रताप, पूर्व ब्लाक प्रमुख राणा दिनेश प्रताप सिंह, सामाजिक कार्यकर्ता विजेंद्र अग्रहरि, गौहर अली, नूर मोहम्मद प्रधान आदि ने संबोधित ककिया। समारोह का संचालन शिक्षक वागीश मिश्रा ने किया. महुआ डाबर स्मृति समारोह के संयोजक आदिल खान ने आए हुए अतिथियों का आभार प्रकट किया। आयोजन समिति द्वारा स्मृति चिन्ह व शॉल देकर आए हुए सभी अतिथियों का स्वागत किया गया। इस अवसर पर अखंड मित्रा, मोहम्मद रमजान, सुरेन्द्र कुमार, फकीर मोहम्मद खान, अब्दुल वहीद, विशाल पांडेय, डॉ. जहांगीर आलम, शमीम खान, सुशील कुमार, फरहान आदि मौजूद रहे।

समारोह में प्रस्तुति देते युवा कलाकार

गाँव के लोग
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