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नस्लीय नफरत के सहारे सांप्रदायिक हिंसा का रूप ले रहा है मणिपुर

उच्च न्यायालय द्वारा मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति (एसटी) के रूप में मान्यता दिए जाने के बाद से मणिपुर में भड़की जबरदस्त हिंसा में अब तक कम से कम एक सौ लोग मारे जा चुके हैं और एक लाख से ज्यादा अपने घर-बार छोड़कर भागने पर मजबूर हो गए हैं। इस हिंसा के कारण आम […]

उच्च न्यायालय द्वारा मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति (एसटी) के रूप में मान्यता दिए जाने के बाद से मणिपुर में भड़की जबरदस्त हिंसा में अब तक कम से कम एक सौ लोग मारे जा चुके हैं और एक लाख से ज्यादा अपने घर-बार छोड़कर भागने पर मजबूर हो गए हैं। इस हिंसा के कारण आम लोग बहुत तकलीफें भोग रहे हैं और महिलाओं, बच्चों व विस्थापितों की हालत दयनीय है। इस स्थिति से निपटने में सरकार की विफलता के कारण देश बहुत शर्मसार हुआ है।

यह हिंसा 3 मई से शुरू हुई थी (या भड़काई गई थी) और आज करीब दो महीने बाद भी जारी है। कुकी और अन्य मुख्यतः ईसाई आदिवासी समूहों और उनकी संपत्ति को निशाना बनाया जा रहा है। हिंसक भीड़ चर्चों को चुन-चुनकर नष्ट कर रही है। अब तक करीब 300 चर्च नफरत की आग में खाक हो चुके हैं। इस बात का जवाब सरकार को देना ही होगा कि क्या यह हिंसा ईसाई-विरोधी है?

इस हिंसा के शुरू होने के बाद से प्रधानमंत्री ने इस मुद्दे पर अपना मुंह खोलने की जहमत नहीं उठाई है। जिस समय मणिपुर जल रहा था, उस समय प्रधानमंत्री कर्नाटक में अपनी पार्टी के प्रचार में दिन-रात एक किए हुए थे। वे अब तक चुप हैं। इस मामले में उनसे चर्चा करने के इच्छुक एक सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल से मिलने का उन्हें समय नहीं मिला। वे मणिपुर को जलता छोड़कर अमरीका उड़ गए। क्या उनकी चुप्पी रणनीतिक है? आख़िरकार इस हिंसा का शिकार हो रही कुकी और अन्य पहाड़ी जनजातियां ईसाई धर्म की अनुयायी हैं, जिसे संघ परिवार ‘विदेशी’ मानता है? मोदी अनेक बार उत्तर-पूर्व की यात्रा कर चुके हैं, परंतु जिस समय हिंसा की आग को शांत करने के लिए उनकी जरूरत है तब वह वहां से मीलों दूर हैं।

गृहमंत्री अमित शाह ने कर्नाटक में ताबड़तोड़ प्रचार करने के बाद काफी वक्त दिल्ली में बिताया और फिर वे मणिपुर पहुंचे। उन्होंने वहां खूब बैठकें की, परंतु नतीजा सिफर रहा। मणिपुर में अब भी हिंसा जारी है।

मणिपुर में भाजपा का शासन है और दिल्ली में भी सरकार भाजपा की ही है। अर्थात मणिपुर में ‘डबल इंजन’ सरकार है, जिसके बारे में कहा जाता है कि वह विकास की गंगा बहा देती है। यहाँ यह याद दिलाना भी प्रासंगिक होगा कि भाजपा का एक लंबे समय से दावा रहा है कि उसके राज में साम्प्रदायिक हिंसा नहीं होती।

उत्तर प्रदेश के पूर्व पुलिस महानिदेशक डॉ. विभूति नारायण राय ने अपनी लब्धप्रतिष्ठित कृति काम्बेटिंग कम्युनल कनफ्क्टि्स में लिखा है कि अगर राजनैतिक नेतृत्व की इच्छा हो तो किसी किस्म की भी हिंसा को 48 घंटे के भीतर नियंत्रण में लाया जा सकता है और मणिपुर में तो दो माह से हिंसा जारी है। ऐसा प्रचार किया जा रहा है कि मणिपुर में कुकी और अन्य पहाड़ी कबीलाई समूहों का कृषि भूमि के अधिकांश हिस्से पर कब्जा है और मैतेई लोगों को जमीन में उचित हिस्सेदारी नहीं मिल रही है। वर्तमान कानूनों के अनुसार आदिवासियों की जमीन गैर-आदिवासी न तो खरीद सकते हैं और ना ही उस पर कब्जा कर सकते हैं। मणिपुर की कुल आबादी में मैतेई का प्रतिशत 53 और कुकी का 18 है। शेष आबादी में अन्य पहाड़ी जनजातियां आदि शामिल हैं। पहाड़ी जनजातियों का दानवीकरण किया जा रहा है। उन्हें अफीम उत्पादक, घुसपैठिया और विदेशी धर्म का अनुयायी बताया जा रहा है। मुख्यमंत्री बीरेन सिंह ने हिंसा के पीछे राजद्रोहियों का हाथ होने की बात कही है। द टेलिग्राफ अखबार ने इंटेलिजेंस ब्यूरो के पूर्व संयुक्त निदेशक सुशांत सिंह के हवाले से लिखा है कि मुख्यमंत्री का यह आरोप अनावश्यक और निराधार है, और इससे ऐसा लगता है कि मुख्यमंत्री सभी कुकी लोगों को आतंकी बताकर बदनाम करना चाहते हैं।

दरअसल, नफ़रत इसी तरह की सोच से उपजती है। नफ़रत पैदा करके ही अल्पसंख्यक समुदायों के खिलाफ हिंसा भड़काई जाती है। मणिपुर हाईकोर्ट बार एसोसिएशन ने भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चन्द्रचूड़ को बताया है कि ‘मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा मिलने के खिलाफ आन्दोलन तो हिंसा का केवल बहाना था।’

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पत्रकारों, लेखकों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, महिला अधिकार कार्यकर्ताओं आदि सहीत करीब 550 नागरिकों ने एक बयान जारी कर हिंसा पर अपनी चिंता व्यक्त की है। साथ ही प्रदेश में शांति की अपील करते हुए कहा है कि हिंसा पीड़ितों को न्याय मिलना चाहिए और उनका पुनर्वास होना चाहिए। बयान में कहा गया है, ‘मणिपुर आज जल रहा और इसके लिए काफी हद तक केंद्र और राज्य में भाजपा की सरकारों की विघटनकारी राजनीति ज़िम्मेदार है। और भी लोग मारे जाएँ, उसके पहले इस गृहयुद्ध को समाप्त करवाने की ज़िम्मेदारी भी उनकी ही है।’ बयान में बिना किसी लागलपेट के कहा गया है कि ‘सरकार राजनैतिक लाभ के लिए दोनों समुदायों को आश्वासन दे रही है कि वह उनके साथ है, जबकि असल में दोनों समुदायों के बीच लम्बे समय से चले आ रहे तनाव को और गहरा कर रही है और उसने वर्तमान संकट से निपटने के लिए संवाद के आयोजन की अब तक कोई पहल नहीं की है।’

वक्तव्य में कहा गया है कि ‘इस समय, कुकी समुदाय के खिलाफ सबसे वीभत्स हिंसा मैतेई समुदाय के हथियारबंद बहुसंख्यकवादी समूह जैसे अरम्बई तेंग्गोल और मैतेई लीपुन कर रहे हैं। इसके साथ ही कत्लेआम करने के आव्हान किया जा रहे हैं, नफ़रत फैलाने वाले भाषण दिए जा रहे हैं और अपने को श्रेष्ठ साबित करने के प्रयास हो रहे है। इन ख़बरों की सच्चाई का भी पता लगाया जाना चाहिए कि उन्मत्त भीड़ महिलाओं पर हमला करते समय ‘रेप हर, टार्चर हर’ के नारे लगा रहे है।’

आरएसएस के मुखपत्र आर्गेनाइजर ने 16 मई के अपने अंक के सम्पादकीय में अचंभित करने वाली बातें कहीं है। उसने कहा है कि मणिपुर में खूनखराबा चर्च के समर्थन से हो रहा है। इस आरोप को चर्च ने आधारहीन बताया है। मणिपुर के कैथोलिक चर्च के मुखिया आर्चबिशप डोमिनिक लुमोन ने कहा कि ‘चर्च न तो हिंसा करवाता है और ना ही उसका समर्थन करता है।’ यह बे-सिर-पैर का दावा सांप्रदायिक राजनीति की पुरानी रणनीति का हिस्सा है। जाहिर कि वे इस तथ्य से लोगों का ध्यान हटाना चाहते हैं कि मणिपुर में 300 से अधिक चर्चों में या दो आग लगाई जा चुकी है, या उन्हें नुकसान पहुँचाया जा चुका है।

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अगर चर्च को इस टकराव के खलनायक के रूप में प्रस्तुत किया जा सके तो अरम्बई तेंग्गोल और मैतेई लीपुन जैसे मैतेई समूहों द्वारा की जा रही योजनाबद्ध और बड़ी सफाई से अंजाम दी रही हिंसा पर पर्दा डालने में भगवा-प्रेमी मीडिया को मदद मिलेगी। यह कहना है पत्रकार अन्तो अक्करा का। वे बताते हैं, ‘मणिपुर में वही हो रहा है कि कंधमाल में 2008 में हुआ था। जिन गाँवों में चर्चों को नष्ट कर दिया गया है उनके पास्टरों से शपथ-पत्र भरवाए जा रहे हैं कि अब वे वहां नहीं लौंटेगे।’

उत्तर-पूर्व में पहले भी हिंसा होती रही है, परन्तु वर्तमान हिंसा का स्वरुप निश्चित रूप से सांप्रदायिक है। इसकी गहन जांच की ज़रुरत है। और इस समय तो हम सभी यही प्रार्थना करनी चाहिए कि क्षेत्र में शांति स्थापित हो।

(अंग्रेजी से रूपांतरण अमरीश हरदेनिया)

 

 

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