वाराणसी। अक्सर देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ ही भाजपा के तमाम नेता गुजरात मॉडल की बात करते हैं। लेकिन गुजरात में बतौर मुख्यमंत्री लगभग 13 साल और देश के प्रधानमंत्री के मंत्री के तौर पर दस साल अर्थात 23 वर्षों में इन्होंने गुजरात को क्या दिया? इसका जवाब है इतने लम्बे अर्से के बाद इन्होंने गुजरात को पहला एम्स दिया, जिसकी लागत 1195 रूपए करोड़ है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लगातार 3 बार गुजरात के मुख्यमंत्री पद पर विराजमान रहे। ये पहली बार 7 अक्तूबर 2001 से 22 दिसंबर 2002 तक मुख्यमंत्री थे। बाद में मोदी 22 दिसंबर 2002 से 23 दिसंबर 2007 तक फिर 23 दिसंबर 2007 से 20 दिसंबर 2012 और 20 दिसंबर 2012 से 22 मई 2014 तक मुख्यमंत्री रहे।
विडंबना यह है कि इन तेरह वर्षों में बतौर मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गुजरात राज्य को एक एम्स जैसा संस्थान तक नहीं दिया। 2014 में प्रधानमंत्री बनने के बाद भी उन्हें गुजरात की याद नहीं आई। अब बतौर प्रधानमंत्री जब उनका कार्यकाल समाप्ति की ओर है तो गुजरात के लोगों की चिंता सताने लगी।
गुजरात का पहला एम्स राजकोट में बना। इसका नाम इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेस है। यह एक सरकारी कालेज है। 201 एकड़ जैसे विशाल क्षेत्र में बने इस एम्स में कुल 720 बिस्तर हैं। यहां पर 20 मेजर और 3 माइनर सहित कुल 23 आपरेशन थियेटर हैं। प्रतिदिन 4 सौ से 5 सौ मरीजों का इलाज भी शुरू हो चुका है।
गुजरात के इस पहले एम्स के बनने से निश्चित रूप से स्थानीय लोगों के साथ ही बाहर से आने वाले लोगों को भी फायदा मिलेगा। लेकिन सवाल यह है कि जिस गुजरात मॉडल की बात अक्सर प्रधानमंत्री मोदी करते रहते हैं उस गुजरात को एम्स जैसा अस्पताल मिलने में इतने वर्ष क्यों लग गए? स्वास्थ्य सेवा की एक बुनियादी संस्था के लिए इतना समय लगा तब आखिर वह कौन सा गुजरात मॉडेल है जिसका इतना ढिंढोरा पीटा जाता रहा है? इस बात से सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि मोदी के मुख्यमंत्रीत्व काल में गुजरात का कितना विकास हुआ।
गुजरात में जो भी विकास हुआ है, वह स्थानीय व्यापारियों की वजह से हुआ। गुजरात के बड़े-बड़े व्यापारियों और स्थानीय लोगों ने मिलकर स्थानीय गलियों, नालों यहां तक कि सड़कों का निर्माण करवाया।
मोदी सरकार के दावे और उसकी असलियत
जिस गुजरात के मॉडल को आगे करके नरेन्द्र मोदी ने केन्द्र की सत्ता को प्राप्त किया, उन नरेन्द्र मोदी ने देश का प्रधानमंत्री बनने के बाद से कितने लोगों को रोजगार दिया यह भी एक बड़ा सवाल है। प्रधानमंत्री बनने से पहले नरेन्द्र मोदी ने युवाओं को भरोसा दिलाया था कि केन्द्र में भाजपा की सरकार आयेगी तो एक करोड़ युवाओं को रोजगार देंगे। विदेश से काला धन वापस लेकर आयेंगे। युवाओं को रोजगार देने की बात तो दूर उन्होंने सरकारी संस्थानों का निजीकरण तक करना शुरू कर दिया, जहां पर इन युवाओं को नौकरी मिलती और उनका भविष्य बनता।
देश से गरीबी मिटाने की बात की, लेकिन मोदी के कार्यकाल में महंगाई आसमान छूने लगी। जो पेट्रोल कांग्रेस के शासन काल में 60-65 रूपए प्रति लीटर था, वह आज 97 रूपए से ऊपर चला गया है। जिस गैस सिलेंडर का दाम कांग्रेस के शासनकाल में 450 रूपए से कुछ ज्यादा था, वही सिलेंडर आज 950 रूपए से अधिक में बिक रहा है। जो सरसों का तेल 85-90 रूपए था, वह आज 150 रुपए से ऊपर चला गया है। ऐसे में एक आम आदमी जो रोज कुंआ खोदता है और पानी पीता है, उसके लिए तो अपना परिवार चलाना मुश्किल हो गया है।
प्रधानमंत्री ने जनता को गुमराह करके सत्ता प्राप्त की। उनके विकास के दावों की पोल खुलती जा रही है। आज देश का किसान एमएसपी की अपनी मांगों को लेकर 2022 से ही सड़कों पर उतरा हुआ है, लेकिन सरकार उनकी मांगों को नहीं मान रही है।
देश में विकास के नाम पर किसानों की जमींने ले ली जा रही हैं और किसान कुछ नही कर पा रहा है। देश के युवा रोजगार की मांग कर रहे हैं तो उनके ऊपर लाठियां बरसाई जा रही हैं। ग्लोबल हंगर इंडेक्स (ग्लोबल हंगर इंडेक्स 2023 के मुताबिक भारत 125 देशों में से 111वें स्थान पर है। यह भुखमरी के गंभीर स्तर का संकेत है। 2022 में भारत 121 देशों में से 107वें स्थान पर था।
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इसके बावजूद देश के प्रधानमंत्री कहते है कि देश तरक्की कर रहा है। चारों तरफ विकास हो रहा है। सरकार के खिलाफ बोलने वाले लोगों को विभिन्न प्रकार से परेशान किया जा रहा है। लोगों की आवाज को दबाने की कोशिश की जा रही हैं। देश का चौथा स्तम्भ मानी जाने वाली मीडिया सरकार के इशारे पर नाच रही है। इसके माध्यम से आम आदमी को आवाज को दबा दिया जा रहा है।
जो भी राजनीतिक दल का नेता इस सरकार के खिलाफ बोल रहा है उसके पीछे ईडी, सीबीआई जैसी संस्थाओं को लगाकर उसकी आवाज को दबाने की कोशिश की जा रही है।
देश में रोजगार के नाम पर नए कल कारखानों का निर्माण नहीं हो रहा है। आज रोजगार के लिए हर आदमी परेशान नजर आ रहा है। लोगों को मंदिर और मस्जिद के नाम पर बरगलाया जा रहा है। लोगों को रोजगार देने पर मंथन करने के बजाय सरकार का सारा फोकस वोट की राजनीति पर टिका हुआ है।
बहरहाल, जो भी हो एक बात तो तय है कि केन्द्र में नरेन्द्र मोदी की सरकार का सारा ध्यान विकास के बजाय सत्ता में बने रहने पर ही है। वे सत्ता प्राप्त करने के लिए झूठ बोलने में भी नहीं हिचकिचाते।