भाजपा ने 25 जून को हर वर्ष संविधान हत्या दिवस मनाने की घोषणा की। यह बहुत ही हास्यास्पद निर्णय है क्योंकि संविधान को मिटाने की मंशा रखने वाले पिछले दस सालों से लगातार संविधानविरोधी काम करते हुए संविधान की हत्या किसी न किसी रूप में की है।
डॉ. बाबा साहब आंबेडकर द्वारा भारतीय संविधान तैयार होने के बाद संविधान सभा में 26 नवंबर 1949 के दिन पहली घोषणा की, ठीक उसके दूसरे ही दिन भाजपा की मातृसंस्था राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के द्वितीय संघ प्रमुख माधव सदाशिव गोलवलकर ने संविधान सभा द्वारा मान्यता प्राप्त संविधान की जगह मनुस्मृति को लागू करने की मांग की। उन्होंने कहा कि ‘हमारे संविधान को पश्चिमी देशों के संविधानों की नकलकर तैयार किया गया है। जिसमें एक भी शब्द भी ऐसा नहीं है जो हमारे देश के राष्ट्रीय उद्देश्य को स्पष्ट करता हो।’
आगे उन्होंने कहा कि ऋषि मनु द्वारा हजारों वर्ष पुराना लिक्रूगस जो स्पार्टा तथा सोलन पर्शिया के भी पहले से लिखा हुआ संविधान ‘मनुस्मृति’ है, जो हमारे संविधान पंडितों की नजर में कुछ भी नहीं है।
यह प्रतिक्रिया उनके संगठन के मुखपत्र ऑर्गनाइजर के संपादकीय में संविधान की घोषणा के बाद 30 नवंबर, 1949 को प्रकाशित हुआ था। बार-बार उनका आग्रह था कि मनुस्मृति को संविधान के जगह लागू किया जाए। उसी संगठन की राजनीतिक इकाई भाजपा द्वारा प्रतिवर्ष 25 जून को संविधान हत्या दिवस मनाने की घोषणा करना एक पाखंड के सिवा और कुछ भी नहीं है। भाजपा का मातृ संगठन आरएसएस ने 75 वर्ष पहले, 30 नवंबर 1949 को लिखित रूप से संविधान की हत्या कर चुके हैं।
सवाल यह उठता है कि संविधान हत्या दिवस मनाने की घोषणा करने वाले दल ने वर्ष 2014 में सत्ता में आने के बाद भारत के संविधान के अनुसार कौन सा काम किया है? बल्कि हर काम संविधान विरोधी ही किया है।
एक-एक कर सभी संवैधानिक संस्थाओं को खत्म किया और नए तरीके से उसका गठन किया। अपने लोगों को उसकी बागडोर सौंप चाबी अपने हाथ में रखी। सत्ता में आने के तुरंत बाद योजना आयोग को संसद में कोई निर्णय लिए बिना बर्खास्त कार दिया। नोटबंदी जैसा तुगलकी निर्णय संविधान से बाहर जाकर किया। जीएसटी जैसा गब्बरसिंह टैक्स कौन से संविधान के अनुसार लागू किया है?
सैकड़ों वर्षो की कोशिश से मजदूरों के लिए बनाए गए सभी कानूनों को बदल कर, उसे मालिकों की सुविधा के अनुसार बनाने का निर्णय किस संविधान के अनुसार किया? राज्यसभा में अल्पमत में रहते हुए कार्पोरेट जगत के फायदे के लिए, किसानों के विरोध की अनदेखी करते हुए तीन कृषि कानूनों के प्रस्ताव को ध्वनिमत से पारित करा लेना क्या संविधान के प्रति आपकी प्रतिबद्धता पर सवाल खड़ा नहीं करती।
इसी तरह देश में बैंकों का बैंक रिजर्व बैंक के गवर्नर की अनदेखी करते हुए, नोटबंदी की घोषणा की। रिजर्व बैंक के रिजर्व फंड को निकाल कर सेंट्रल विस्टा से लेकर प्रधानमंत्री के लिए विश्व का सबसे महंगा हवाई जहाज खरीदा गया (जब देश बहुत बड़े आर्थिक संकट की स्थिति में था)।
तथाकथित विकास के नाम पर संपूर्ण देश की सड़कों को खोदकर, आठ लेन बनाने से लेकर बुलेट-ट्रेन चलाने जैसे बेतहाशा खर्चीले प्रोजेक्ट किस संविधान के अनुसार जारी है? जबकि देश की सबसे बड़ी और सस्ती परिवहन सेवा रेलवे की सामान्य रेलों को या तो बंद कर दिया गया या फिर सुचारु रूप से नहीं चलाया जा रहा है।
कोरोना के समय, अचानक लॉकडाऊन घोषित कर सभी परिवहन साधनों के साथ कारखाने, उद्योग और व्यवसाय को बंद कर दिया गया, जिसके बाद लाखों प्रवासी मजदूर देश के एक कोने से दूसरे कोने तक चिलचिलाती धूप में सिर पर अपना सामान ढोकर पैदल वापस आने को मजबूर हुए। बहुत से मजदूर, बच्चे भूख और धूप और की वजह से रास्ते में दम तोड़ दिए। यह किस संविधान की रक्षा के लिए लिया गया निर्णय था?
देश की जांच एजेंसियों का दुरुपयोग विपक्ष के नेताओं के ऊपर कार्रवाई करने के लिए इस्तेमाल किया गया। उन्हें जेल में डाल दिया गया लेकिन वही दागदार नेता जब बीजेपी में शामिल हुए तो उनके खिलाफ लगाए गए आरोपों की जांच रोक दी गई है। कुछ की फ़ाइलें बंद कर दी गईं और कुछ को तो क्लीनचिट दे दी गई। सवाल है क्यों? प्रफुल्ल पटेल से लेकर अशोक चव्हाण, छगन भुजबळ, अजित पवार, एकनाथ शिंदे, आसाम के वर्तमान मुख्यमंत्री हिमन्ता बिस्व सर्मा तथा अन्य कई लोग आपके दल में शामिल हो किन संवैधानिक कर्तव्यों का पालन किया कि उन पर लगे आरोप खत्म हो गए?
गैरभाजपा सरकारों के मुख्यमंत्रियों को जेल भेजना भी भारतीय संविधान की रक्षा के लिए की गई कार्यवाही मानी जाए? आये दिन आपके द्वारा बनाए गए राज्यपाल गैरभाजपा सरकारों के कामकाज में दखलंदाजी करते हुए, उनके द्वारा लिए गए अनेक निर्णयों को रोक देना भी क्या संविधान की रक्षा के लिए किया गया काम है?
नौकरी तथा उच्च शिक्षा में प्रवेश परीक्षाओं को, केंद्र के कब्जे में कर आए दिन होने वाले घोटाले और पेपरलीक भी क्या हमारे संविधान की रक्षा के लिए चल रहे कांड हैं?
खुद के दल का खजाना भरने के लिए तथाकथित चुनावी बॉंड तथा प्रधानमंत्री राहत कोष को अपने ही कब्जे में रखते हुए, इस फंड को सूचना के अधिकार तथा किसी भी तरह की जांच एजेंसी के हस्तक्षेप के बाहर रखना, किस संविधान की धारा के तहत है?
वैसे ही चुनाव आयुक्त की नियुक्ति की प्रक्रिया को बदलने का निर्णय लेते हुए देश के सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को नियुक्ति कमेटी से निकाल बाहर करने का निर्णय भी संविधान से बाहर लिया गया निर्णय था।
साथ ही उस बदले हुए चुनाव आयोग की निगरानी में हुए चुनाव में प्रधानमंत्री जिसने संविधान के अनुसार 140 करोड़ आबादी के हर नागरिक के जानमाल तथा सम्मान की रक्षा की शपथ ग्रहण की थी, ने अपने चुनाव प्रचार के भाषणों में लगातार विशिष्ट समुदाय के खिलाफ नफरत फैलाने का काम किया। लेकिन बीजेपी की गोद में बैठा चुनाव आयोग इन हरकतों पर बोलने की हिम्मत नहीं कर सका।
पिछले दस वर्षों में सैकड़ों पत्रकारों और सामाजिक कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया। ये सभी वर्षों जेल में रहे। इधर एक वर्ष से अदालत ने अनेक लोगों को बाइज्जत बरी किया। इसका क्या अर्थ निकाला जाए?
पिछले संसद के सत्र में आनन-फानन में 140 सांसदों को बर्खास्त कर संसद से बाहर करने के बाद तथाकथित भारतीय दंड संहिता के कानूनों को बदलकर पास कर दिया गया, यह तीन कानून 1 जुलाई से लागू हो चुके हैं।
2014 के भी पहले अटलबिहारी वाजपेयी के प्रधानमंत्री काल में संविधान समीक्षा के लिए एक कमेटी बनाई गई, जिसमें भारतीय संविधान की जगह मनुस्मृति लाने की आरएससएस ने पूरी कोशिश की थी। भारतीय संविधान को बदलने की कोशिश 1949 से ही जारी है लेकिन संविधान में बने कानून इतने मजबूत हैं कि इसे बदलना इनके लिए नामुमकिन होगा।
जब से आएसएस का गठन हुआ है तब से लेकर आज तक इन्होंने भारतीय संविधान से बाहर जाकर ही निर्णय लिए और इधर पिछले दस वर्षों से इन्होंने संविधान विरोधी काम ही किया। लेकिन 1975 में 25 जून को आपातकाल के दिन को याद करते हुए संविधान हत्या दिवस मनाने की घोषणा की है।
बीजेपी, संविधान हत्या दिवस जैसे दिन मनाने की घोषणा करने का पाखंड करते हुए अपनी कुंठा निकाल रही है।