Saturday, July 27, 2024
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भारत में पुलिस और उसके खेल (डायरी 10 अक्टूबर, 2021)

वक्त के साथ चीजें बदल जाती हैं। जख्म भर जाते हैं और आदमी आगे बढ़ जाता है। संभवत: आगे बढ़ना ही जीवन है। यह बेहद सामान्य सी बात है और मुझपर भी लागू होती है। लेकिन यह पहली बार हुआ कि 8 अक्टूबर की याद आज यानी 10 अक्टूबर को आ रही है। यह वक्त […]

वक्त के साथ चीजें बदल जाती हैं। जख्म भर जाते हैं और आदमी आगे बढ़ जाता है। संभवत: आगे बढ़ना ही जीवन है। यह बेहद सामान्य सी बात है और मुझपर भी लागू होती है। लेकिन यह पहली बार हुआ कि 8 अक्टूबर की याद आज यानी 10 अक्टूबर को आ रही है। यह वक्त का ही प्रभाव है या फिर जिम्मेदारियों का परिणाम कि जेहन में अतीत एकदम से हावी नहीं होता। दरअसल, 8 अक्टूबर, 2003 को मेरे जीवन में स्नेहल आयी थी। मेरी प्यारी सी बच्ची। करीब ढाई महीने का उसका जीवन मेरे लिए एक खूबसूरत याद है। पहले उसकी याद खूब पीड़ा देती थी। अफसोस होता था कि उसके जीवन की रक्षा नहीं कर सका था। इसके पीछे वजह यह रही कि मेरे परिजनों ने कम उम्र में मेरी शादी की और मैं अपरिपक्व उम्र में नालायक पिता था।

खैर, स्नेहल अब भी मेरे जीवन का सबसे खूबसूरत हिस्सा है। उसे देखने के लिए बस आंखें बंद करनी होती है। हालांकि आंखें खुलने के बाद कुछ बूंदें अवश्य रहती हैं उनमें, परंतु ऐसा करना अच्छा लगता है।

दरअसल, आगे बढ़ना ही जीवन है। मैं तो इसी बात में विश्वास रखता हूं। लेकिन सामाजिक व्यवस्था के लिए यह बात लागू नहीं होती। कई बार मेरे सामने ऐसे प्रमाण होते हैं, जिनसे मुझे लगता है कि सरकारी अमला जो कि इसी समाज का हिस्सा है, आज भी जड़ है। उसके अंदर सड़ांध बढ़ती ही जा रही है।

एक मामला है उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले के मेहनाजनगर थाने का। बीते शनिवार को इस थाने के इलाके के एक गांव में एक महिला ने जहर खाकर खुदकुशी कर ली। अपने जीवन का अपने ही हाथों अंत करने से करीब पांच घंटे पहले वह मेहनाजनगर थाने गई थी। वैसे वह इस थाने का चक्कर बीते सोमवार से ही लगा रही थी। जब वह थाने जाती तब उसका पति भी उसके साथ रहता था। दोनों थानेदार के सामने गिड़गिड़ाते और गुहार लगाते कि उनके ऊपर जो जुल्म हुआ है, उसके खिलाफ वे कार्रवाई करें। लेकिन थानेदार अपनी मूंछों पर ताव देता रहा।

दरअसल, बीते रविवार को गांव का एक दबंग उपरोक्त दलित परिवार के घर गया था। उसने दरवाजा खटखटाया और दरवाजा खोलने पर उसकी पत्नी को पकड़ लिया। पति ने विरोध किया तो उसके साथ मारपीट की गयी और उसके सामने ही उसके साथ सामूहिक बलात्कार किया गया। अपने साथ हुई इस घटना की सूचना पीड़ित परिवार ने मेहनाजनगर थाने को दी। लेकिन पुलिस ने प्राथमिकी दर्ज नहीं की। उसे यह कहकर टाला जाता रहा कि पुलिस पहले इस मामले में छानबीन करेगी कि वाकई में कोई घटना घटित हुई है या नहीं। दोनों पीड़ित रोज थाने का चक्कर लगाते और पुलिस अधिकारी उसे यही कहते कि अभी जांच चल रही है।

[bs-quote quote=”आशीष मिश्रा पर अज्ञात 15-20 लोगों के उपर गाड़ी चढ़ाने का आरोप है। सबसे दिलचस्प है इस प्राथमिकी में शामिल धाराएं। इनमें एक धारा है 147, 148 और 149। भारतीय दंड संहिता की इन धाराओं का संबंध दंगा भड़काने से है। दूसरी धारा है 279 जो कि लापरवाही से गाड़ी चलाने से संबंधित है। धारा 338 का संबंध किसी व्यक्ति को चोट पहुंचाने, जिससे उसकी जान को खतरा हो सकता है, से संबंधित है। प्राथमिकी में एक धारा 304-ए है, जिसका संबंध लापरवाही से मौत से है। इसके अलावा 302 जो कि हत्या के इरादे से हमला करने व 120-बी आपराधिक साजिश रचने से संबंधित है।” style=”style-2″ align=”center” color=”” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]

आखिरकार बीते शनिवार को दोनों थाने पहुंचे और वहां तैनात पुलिस अधिकारी से गुहार लगायी। लेकिन निराशा मिलने के बाद महिला ने घर जाकर विषाक्त पदार्थ खा लिया, जिससे उसकी मौत हो गई। मिली जानकारी के अनुसार महिला की मौत के बाद पुलिस ने एक्शन लिया है और उसके शव को अंत्यपरीक्षण के लिए भेजा है। साथ ही, पूछताछ के लिए उसके पति को हिरासत में रखा गया है।

पुलिसिया तंत्र किस तरह जड़ अवस्था में है, इसका एक और प्रमाण देने से पहले बचपन का एक अनुभव है। उन दिनों पुलिस का खौफ होता था। मेरे थाने का एसएचओ था अलाउद्दीन। अब नहीं जानता कि वह कहां है। जिंदा भी है या मर गया, इसकी जानकारी नहीं है। तब वह बेहद बदमाश माना जाता था। इतना बदमाश कि वह बेगुनाहों को भी थाने में बंद कर देता था। लेकिन आम आदमी के लिए तो थाना ही महत्वपूर्ण है। तो उन दिनों मेरे एक चाचा जो कि बेहद झगड़ालू थे, से झगड़ा हो गया। वे और उनके बेटे मिलकर मेरे पापा को गालियां दे रहे थे। पापा अकेले विरोध कर रहे थे। भैया और मैं दोनों बहुत छोटे थे। मेरी उम्र 13-14 साल की रही होगी। जबकि चाचा के बेटों की उम्र तभी 25 साल से उपर रही होगी। सभी की शादियां हो चुकी थी। तो वे हमलोगों से मजबूत स्थिति में थे। मेरे पापा कमजोर स्थिति में थे। लेकिन वे शांत नहीं थे। मुझे अपने पापा की सबसे खास बात यही अच्छी लगती है कि वे हिम्मत नहीं हारते हैं। लड़ते रहते हैं। आज भी वे लड़ ही रहे हैं।

तो हुआ यह कि मेरे चाचा के एक बेटे ने मेरे पापा पर लाठी से हमला करना चाहा। तबतक मैं अपने बगल में पड़ी एक मोटी लाठी उठा चुका था। इससे पहले कि मेरे चाचा का बेटा मेरे पापा के उपर प्रहार करता, अपने कमजाेर हाथों से ही सही, मैंने पूरी ताकत लगाकर उसके माथे पर प्रहार कर दिया। प्रहार जोरदार था और उसका सिर फूट गया। दरअसल, उसे यह उम्मीद ही नहीं थी कि मैं लड़ाई में कूद पडूंगा। वह पापा को अकेला समझ रहा था। सिर फूटने के बाद उसका चेहरा खून से रंग गया। पापा ने मुझे अपने पीछे किया और लाठी से सही सबको पीछे धकेला। तबतक गांव के लोग जुट गए थे। लड़ाई थम गई थी। लेकिन मेरे चाचा थाना के शौकीन आदमी थे। वे बात-बात में थाना चले जाते थे। पापा इससे वाकिफ थे। पापा ने इस बार पहल करने की सोची और मुझे साथ लेकर थाना चले गए। दरअसल, मेरे पापा निरक्षर थे, तो वे मुझे साथ इसलिए ले गए थे ताकि मैं दरखस्त लिख सकूं।

वहां हमें जानकारी मिली कि मेरे चाचा पहले ही हमारे खिलाफ शिकायत दर्ज करवा चुके हैं। उनके पास तब स्कूटर हुआ करता था और मेरे पापा के पास साइकिल।

खैर, हुआ यह कि पापा और मुझे रातभर थाने में बिठाकर रखा गया। थानेदार अलाउद्दीन ने पापा से करीब दो हजार रुपए वसूले और हमदोनों को सुबह दस बजे के बाद जाने दिया। बाद में जानकारी मिली कि चाचा ने भी उसे रिश्वत दी थी।

तो इस तरह से पुलिस काम करती है, यह जानकारी तभी मिल गयी थी, जब मैं बालिग नहीं था।

[bs-quote quote=”पुलिस ने इस पूरे मामले में आशीष मिश्रा को बचाने की पूरी तैयारी कर ली है। एक तरफ तो वह यह मान रही है कि उसने लापरवाही से गाड़ी चलायी और लोगों की मौत हो गई। ठीक वैसे ही जैसे एक फिल्म अभिनेता पर फुटपाथ पर सोये लोगों पर गाड़ी चढ़ाने का मामला सामने आया था। तकनीकी रूप से धारा 302 और धारा 279 एक-दूसरे को खारिज करते हैं।” style=”style-2″ align=”center” color=”” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]

अब वर्तमान की बात करते हैं। कल लखीमपुर खीरी नरसंहार के आरोपी आशीष मिश्रा जो कि केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय कुमार मिश्रा का बेटा है, को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। वह भी 12 घंटे की पूछताछ के बाद। उसकी गिरफ्तारी के बाद नवजोत सिंह सिद्धू ने अपना मौन धरना समाप्त कर दिया है। कुछ लोगों को उम्मीदें हैं कि अब इस मामले में पुलिस कार्रवाई करेगी। लेकिन मैं कुछ और ही देख रहा हूं।

दरअसल, मेरे सामने वह प्राथमिकी है जो तिकुनिया थाने में बहराइच जिला के निवासी जगजीत सिंह द्वारा बीते 4 अक्टूबर को दर्ज कराई गई। इस प्राथमिकी में आशीष मिश्रा पर अज्ञात 15-20 लोगों के उपर गाड़ी चढ़ाने का आरोप है। सबसे दिलचस्प है इस प्राथमिकी में शामिल धाराएं। इनमें एक धारा है 147, 148 और 149। भारतीय दंड संहिता की इन धाराओं का संबंध दंगा भड़काने से है। दूसरी धारा है 279 जो कि लापरवाही से गाड़ी चलाने से संबंधित है। धारा 338 का संबंध किसी व्यक्ति को चोट पहुंचाने, जिससे उसकी जान को खतरा हो सकता है, से संबंधित है। प्राथमिकी में एक धारा 304-ए है, जिसका संबंध लापरवाही से मौत से है। इसके अलावा 302 जो कि हत्या के इरादे से हमला करने व 120-बी आपराधिक साजिश रचने से संबंधित है।

कुल मिलाकर यह कि पुलिस ने इस पूरे मामले में आशीष मिश्रा को बचाने की पूरी तैयारी कर ली है। एक तरफ तो वह यह मान रही है कि उसने लापरवाही से गाड़ी चलायी और लोगों की मौत हो गई। ठीक वैसे ही जैसे एक फिल्म अभिनेता पर फुटपाथ पर सोये लोगों पर गाड़ी चढ़ाने का मामला सामने आया था। तकनीकी रूप से धारा 302 और धारा 279 एक-दूसरे को खारिज करते हैं।

बहरहाल, यह कोई पहला वाकया नहीं है। पुलिस प्राथमिकियों में इस तरह का खेल करते रहती है। यहां तो मामला केंद्रीय गृह राज्यमंत्री के बेटे से जुड़ा है। अब इतना कुछ तो पुलिस करेगी ही। फिर चाहे सुप्रीम कोर्ट अपनी नाक रगड़ता रहे।

 

नवल किशोर कुमार फारवर्ड प्रेस में संपादक हैं ।

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