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सुप्रीम कोर्ट के आदेश की धज्जियां उड़ा रहे निजी स्कूल, शिक्षा के नाम पर हो रही है मनमानी

पुंछ (जम्मू)। हाल के समय में समाज में एक धारणा तेज़ी से प्रचलित हुई है कि सरकारी स्कूलों के बजाय निजी स्कूलों में शिक्षा का स्तर थोड़ा ऊंचा होता है। इसी कारण माता-पिता अपने बच्चों को निजी स्कूल में पढ़ाना बेहतर समझते हैं। हालांकि, आज के समय में सरकारी स्कूलों में भी गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के […]

पुंछ (जम्मू)। हाल के समय में समाज में एक धारणा तेज़ी से प्रचलित हुई है कि सरकारी स्कूलों के बजाय निजी स्कूलों में शिक्षा का स्तर थोड़ा ऊंचा होता है। इसी कारण माता-पिता अपने बच्चों को निजी स्कूल में पढ़ाना बेहतर समझते हैं। हालांकि, आज के समय में सरकारी स्कूलों में भी गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के साथ-साथ बेहतर सुविधाएं भी दी जा रही हैं, लेकिन निजी स्कूलों के प्रति अभिभावकों का रुझान कम नहीं हुआ है। माता-पिता के इसी आकर्षण का फायदा अब निजी स्कूल उठाने लगे हैं और  मनमानी करने से भी पीछे नहीं हट रहे हैं।  किताबें और यूनिफॉर्म स्कूल से ही खरीदने के लिए वह अभिभावकों को बाध्य करते हैं। इतना ही नहीं, यह सारी चीज़ें वह बाज़ार से अधिक कीमत पर बेचते हैं। यह मामला केवल महानगरों तक सीमित नहीं है, बल्कि जम्मू-कश्मीर जैसे केंद्रशासित प्रदेश के कई ज़िलों में संचालित निजी स्कूलों में ऐसे मामले सामने आ रहे हैं। जहां अभिभावकों पर निजी स्कूलों द्वारा अनावश्यक दबाव डाले जाने की शिकायत मिलती है।

इस संबंध में जम्मू-कश्मीर पैरेंट्स एसोसिएशन के सदस्य अमित कपूर आरोप लगाते हैं कि ‘फीस और अन्य विषयों में निजी स्कूल सुप्रीम कोर्ट के आदेश की धज्जियां उड़ा रहे हैं। कोर्ट ने एक ऑर्डर के तहत ‘जम्मू कश्मीर कमेटी फॉर फिक्सेशन ऑफ फीस’ कमेटी का गठन किया था, जिसे जम्मू-कश्मीर के सभी निजी स्कूलों की फीस तय करने का अधिकार दिया गया था। इसके लिए कमेटी सभी निजी स्कूलों की फाइल देखती है। जिसमें स्कूल की मान्यता, उसके खर्चे, इलेक्ट्रिसिटी बिल, टीचर्स की सैलरी इत्यादि देखकर उसी आधार पर फीस तय करती है।

[bs-quote quote=”निजी स्कूल न केवल माता-पिता बल्कि बच्चों के साथ भी ज़्यादती कर रहे हैं। चैनल के अनुसार, कक्षा 6 के बच्चों को अलग-अलग विषयों के नाम पर कुल 26 किताबें पढ़ाई जा रही हैं। जबकि NCERT के अनुसार, इस क्लास के बच्चों को केवल 4 विषयों से जुड़ी किताबें स्कूल लाने की ज़रूरत है।” style=”style-2″ align=”center” color=”” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]

लेकिन अफ़सोस के साथ कहना पड़ रहा है कि आज भी जम्मू-कश्मीर के आधे से अधिक निजी स्कूल बिना कमेटी की इजाज़त के मनमर्जी  फीस तय कर रहे हैं, साथ ही अभिभावकों का कई अन्य स्तर  पर भी शोषण जारी है। अमित कपूर कहते हैं कि यह निजी स्कूल न केवल यूनिफॉर्म और किताबें अपनी तय दुकान से खरीदने पर ज़ोर देते हैं, बल्कि तीन-तीन महीने की एडवांस फीस भी वसूल करते हैं। जबकि सुप्रीम कोर्ट का आदेश है कि किताबें और यूनिफॉर्म स्कूल वाले नहीं बेच सकते हैं और न ही वह किसी ख़ास दुकान से खरीदने का दबाव डाल सकते हैं। परन्तु सुप्रीम कोर्ट के सभी आदेशों की अवहेलना की जा रही है और अभिभावकों का शोषण जारी है। ऐसे में इन निजी स्कूलों पर सख्ती से कार्रवाई किए जाने की ज़रूरत है, क्योंकि इन्होंने शिक्षा के नाम पर व्यवसाय चला रखा है।

जम्मू के पुंछ स्थित एक निजी विद्यालय में पढ़ने वाले छात्र के अभिभावक नाम नहीं बताने की शर्त पर बताते हैं कि उन्हें स्कूल द्वारा बताई गई दुकानों से ही किताबें खरीदने को कहा गया। जहां उन्हें किताबों का पूरा सेट खरीदने पर मजबूर होना पड़ा, क्योंकि दुकानदार किसी एक विषय की किताब देने को तैयार नहीं था। वह बताते हैं कि एक बुक सेट की कीमत लगभग 6000 से 7000 है और मेरे दो बच्चे हैं। इस तरह मुझे इन किताबों के लिए 12000 से 14000 हजार रुपये ख़र्च करने पड़े। हद तो तब हो गई, जब उन्होंने किताबों के साथ कॉपियां भी वहीं से खरीदने को कहा। नोटबुक भी उसी दुकान से खरीदने का कारण यह था कि उस पर स्कूल का लोगो (Logo) लगा हुआ है, जबकि फीस फिक्सेशन कमेटी की गाइडलाइंस के अनुसार, कोई भी स्कूल अपनी एडवर्टाइजमेंट नहीं कर सकता है, क्योंकि स्कूल का काम ‘नो प्रॉफिट नो लॉस’ पर है। स्कूल का काम एजुकेशन देना है ना कि प्रॉफिट कमाना।

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जम्मू के एक न्यूज़ चैनल ने हाल ही में अपनी रिपोर्टिंग में इस बात का खुलासा किया है कि निजी स्कूल न केवल माता-पिता बल्कि बच्चों के साथ भी ज़्यादती कर रहे हैं। चैनल के अनुसार, कक्षा 6 के बच्चों को अलग-अलग विषयों के नाम पर कुल 26 किताबें पढ़ाई जा रही हैं। जबकि NCERT के अनुसार, इस क्लास के बच्चों को केवल 4 विषयों से जुड़ी किताबें स्कूल लाने की ज़रूरत है। इसका अर्थ यह हुआ कि NCERT के नियमों का उल्लंघन कर बच्चों को 22 अतिरिक्त किताबें पढ़ने को मजबूर किया जाता है। यह एक ओर जहां बच्चों का शारीरिक और मानसिक शोषण है, वहीं अभिभावकों पर भी आर्थिक बोझ बढ़ाना है। इतनी ज्यादा तादात में किताबें केवल बिल को बढ़ाना है।

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वैसे तो सरकार यह कहती है कि बच्चों को केवल एनसीईआरटी द्वारा अनुमोदित किताबें ही पढ़ानी चाहिए, लेकिन कोई भी निजी स्कूल इसे फॉलो करता नज़र नहीं आ रहा है। अगर बात एनसीईआरटी बुक्स की जाए तो यह मात्र 500 रुपये से अधिक की नहीं आती है। परंतु, निजी स्कूल द्वारा इसे ऊंची कीमत पर बेचा जा रहा है, जिससे माता-पिता को बहुत परेशानी हो रही है। हालांकि, माता-पिता की इन्हीं परेशानियों को देखते हुए जम्मू-प्रशासन ने भी कदम उठाना शुरू किया है। जम्मू के डिप्टी कमिश्नर कार्यालय की ओर से एक आर्डर निकाला गया है, जिसमें यह स्पष्ट किया गया है कि जो भी स्कूल अभिभावकों से किसी विशेष शॉप से बुक या यूनिफार्म खरीदने को कहता है तो उस पर सख्त कार्रवाई की जाएगी। इसके अलावा प्राइवेट स्कूलों से संबंधित यदि किसी को भी कोई भी शिकायत दर्ज करानी है, तो उसे वह 0191-2571912 अथवा 2571616 पर कॉल करके अपनी शिकायत दर्ज करा सकता है।

हरीश कुमार, पुंछ (जम्मू) में युवा सामाजिक कार्यकर्ता हैं।

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