कल से एक शब्द दिमाग में धमाचौकड़ी मचा रहा है। यह शब्द है– नैतिकता। इसकी परिभाषा क्या हो सकती है? मुझे लगता है कि यह शब्द ‘नीति’ शब्द से बना है। इस लिहाज से देखा जाय तो किसी खास नीति के प्रति प्रतिबद्धता ही नैतिकता है। लेकिन यह परिभाषा भी ठीक नहीं है। वजह यह कि कोई भी नीति निरपेक्ष नहीं होती है। यदि हम शासक के लिहाज से इस शब्द का आकलन करें तो इसका आयाम बहुत विस्तारित हो जाता है। लेकिन सवाल यह है कि क्या एक शासक का नैतिकवान होना जरूरी है? कितने ऐसे शासक रहे हैं जो नैतिकवान रहे हों या फिर उनकी नैतिकता का उद्धरण दिया जा सकता है?
ये सारे सवाल मेरी जेहन में सुप्रीम कोर्ट द्वारा पेगासस मामले में कल दिए गए न्यायादेश के बाद से गूंज रहे हैं। कल सुप्रीम कोर्ट के मुख्य की संयुक्त पीठ ने सुप्रीम कोर्ट के ही पूर्व न्यायाधीश आर. रविंद्रन की अध्यक्षता में एक निगरानी समिति का गठन किया है। इस निगरानी समिति के अलावा तीन सदस्यीय विशेषज्ञ समिति का गठन भी किया गया है। न्यायादेश देने से पहले सुप्रीम कोर्ट की उपरोक्त पीठ ने जो कहा है, वह बेहद महत्वपूर्ण है। पीठ ने कहा है कि हर बार राष्ट्रीय सुरक्षा की दुहाई नहीं दी जा सकती है।
[bs-quote quote=”राहुल गांधी कहना था कि पेगासस के जरिए कई मुख्यमंत्रियों, जजों और मुख्य चुनाव आयुक्त तक के फोन की जासूसी करायी गयी। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि कनार्टक में कुमारास्वामी सरकार को गिराने के लिए भी इस सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल किया गया।” style=”style-2″ align=”center” color=”” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]
मेरे हिसाब से यही वह वाक्य है जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार की नैतिकता पर सवाल खड़ा करता है। इसके पहले भारत सरकार की ओर से सालिसिटर जनरल तुषार मेहता ने पीठ को बताया था कि पेगासस मामले में खुलासा करने के लिए सरकार को बाध्य नहीं किया जा सकता है। उनकी दलील थी कि इससे राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा हो सकता है। मेहता के इसी कथन पर पीठ ने कहा कि हर बार इसकी दुहाई देकर न्याय को रोका नहीं जा सकता है। राष्ट्रीय सुरक्षा का हौवा बनाकर अदालत को डराया नहीं ज सकता।
कल सुप्रीम कोर्ट के न्यायादेश के सामने आने के बाद राहुल गांधी ने संवाददाता सम्मेलन किया। उन्होंने एक बड़ा सवाल खड़ा किया। उनका राहुल गांधी कहना था कि पेगासस के जरिए कई मुख्यमंत्रियों, जजों और मुख्य चुनाव आयुक्त तक के फोन की जासूसी करायी गयी। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि कनार्टक में कुमारास्वामी सरकार को गिराने के लिए भी इस सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल किया गया।
मुझे एक घटना याद आ रही है। उन दिनों मैं चौथी कक्षा का छात्र था। वार्षिक परीक्षा हो गई थी। मुझे इस बात का इत्मीनान था कि मैं अपनी कक्षा में सबसे अव्वल तो आऊंगा ही, सबसे बेहतर छात्र होने का सम्मान का हकदार भी होऊंगा। मेरे इस विश्वास की वजह यह थी कि मैं खूब मन लगाकर पढ़ता था। पहली कक्षा से ही अपनी कक्षा में नंबर वन रहता था। मुझसे मेरे शिक्षक खुश रहते थे। खासकर मेरे हेडमास्टर अरविंद प्रसाद मालाकार, जो कि अंग्रेजी के शिक्षक भी थे।
परीक्षा के परिणाम दिसंबर में आए, जो कि मेरी अपेक्षा के अनुरूप ही थे। फिर तो यह विश्वास पक्का हो गया कि मुझे ही सर्वश्रेष्ठ छात्र का सम्मान मिलेगा। हेड सर सम्मानों की घोषणा 26 जनवरी को होने वाले आयोजन के दिन ही करते थे। वह भी एकदम सम्मान देने के समय ही। अन्य शिक्षकों को भी इसकी जानकारी रहती होगी।
तो हुआ यह कि 26 जनवरी को सम्मान दिये गये। मुझे दो सम्मान मिला। एक तो अपनी कक्षा में अव्वल आने के लिए और दूसरा सम्मान स्कूल के स्तर पर अंग्रेजी व सामान्य ज्ञान के प्रतियोगिता में अव्वल आने के लिए। लेकिन मुझे सर्वश्रेष्ठ छात्र का सम्मान नहीं मिला। यह सम्मान मेरे ही कक्षा के एक सहपाठी को दिया गया। कक्षा के राजिस्टर में उसका स्थान चौथा था।
[bs-quote quote=”एक शासक को नैतिकवान जरूर रहना चाहिए। नरेंद्र मोदी को नैतिकता का उदाहरण पेश करना चाहिए और जिस सच की तलाश के लिए सुप्रीम कोर्ट ने समितियों का गठन किया है, उसे वे स्वयं सामने रख दें। मुझे लगता है कि यदि वे ऐसा करें तो निश्चित तौर पर उनकी इमेज (चाहे जैसी भी हो) को कोई नुकसान नहीं होगा। और यदि वे ऐसा नहीं करते हैं तो उन्हें अपने पद से इस्तीफा दे देना चाहिए ताकि सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित समितियां बेहिचक अपना काम कर सकें।” style=”style-2″ align=”center” color=”” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]
उन दिनों इतनी समझ नहीं थी कि कुछ विचार करता। अहंकार मेरे अंदर आ ही चुका था। मैंने भी यह मान लिया था कि मेरी गरीबी की वजह से यह सम्मान मुझे नहीं मिला। चूंकि जिसे सम्मान दिया गया था, उसके पिता ठेकेदार थे। अच्छा कमाते थे। इसलिए मेरे उस सहपाठी के कपड़े अच्छे होते थे। जूते भी वह रोज पॉलिश करता था। उसके हाथ में एक घड़ी भी थी।
मैं इस बात से खुश था कि मैं अपनी कक्षा में अव्वल हूं। करीब चार महीने के बाद एक बार मैंने हेड सर से पूछ ही लिया कि मुझे सर्वश्रेष्ठ का सम्मान क्यों नहीं दिया गया। हेड सर मुझे मानते थे। उन्होंने कारण बता दिया और जो कारण उन्होंने बताया, वह अलहदा था। यह मेरे व्यक्तिगत आचरण से जुड़ा था। दरअसल, एक बार स्कूल के कुएं से पानी निकालते समय मैंने थोड़ी मस्ती की थी। बालटी को खूब जोर से कुएं में फेंका था। यह करते हुए हेड सर ने मुझे देख लिया था। उन्होंने कहा कि पढ़ाई-लिखाई अपनी जगह है। जबतक हम अपने निजी जीवन में नैतिकता का पालन नहीं करेंगे, हम सर्वश्रेष्ठ नहीं हो सकते।
खैर, अगले ही दिन मैंने हेड सर से कहा कि मेरे उस सहपाठी को क्लास का मॉनिटर बना दें। सर ने मेरे अनुरोध को स्वीकार किया।
हालांकि मैं यह मानता हूं कि निजी जीवन में मैंने नैतिकता का हमेशा पालन नहीं किया। बहुत सारे काम हुए होंगे, जो मुझे नहीं करने चाहिए थे। आगे भी अनेक काम ऐसे होंगे, जो मुझे नहीं करना चाहिए, जानने के बावजूद करूंगा। मैं अपने आपको नैतिकवान नहीं मानता। हालांकि कोशिश जरूर करता हूं कि मेरे आचारण से किसी को तकलीफ ना हो। लेकिन मैं भी तो आदमी हूं और वह भी बेहद सामान्य आदमी, जिसके पास परिवार है। परिवार वाले व्यक्ति की जिम्मेदारियां भी बहुत होती हैं।
लेकिन एक शासक को नैतिकवान जरूर रहना चाहिए। नरेंद्र मोदी को नैतिकता का उदाहरण पेश करना चाहिए और जिस सच की तलाश के लिए सुप्रीम कोर्ट ने समितियों का गठन किया है, उसे वे स्वयं सामने रख दें। मुझे लगता है कि यदि वे ऐसा करें तो निश्चित तौर पर उनकी इमेज (चाहे जैसी भी हो) को कोई नुकसान नहीं होगा। और यदि वे ऐसा नहीं करते हैं तो उन्हें अपने पद से इस्तीफा दे देना चाहिए ताकि सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित समितियां बेहिचक अपना काम कर सकें।
दरअसल, मैं सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित समितियों के काम के बारे में सोच रहा हूं। सुप्रीम कोर्ट ने जो उन्हें टास्क दिया है, उसे करने के लिए उन्हें सरकारी तंत्र की आवश्यकता होगी ही। या यह मुमकिन है कि समितियां अपने स्तर से इसे करने का प्रयास करें। लेकिन इजराइली कंपनी से पेगासस खरीदकर उसका इस्तेमाल भारत सरकार ने किया या नहीं किया, इसकी जानकारी तो दो के पास ही है। या तो भारत सरकार या फिर इजराइली कंपनी।
बहरहाल, नैतिकता बहुत बड़ी चीज है। नरेंद्र मोदी के लिए। उनसे ऐसी अपेक्षा भी नहीं है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट के साहस को सलाम। उसने नरेंद्र मोदी को कटघरे में खड़ा कर ही दिया है।
नवल किशोर कुमार फॉरवर्ड प्रेस में संपादक हैं ।
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