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खेती पर बाज़ार की मार और सरकार की नीतियों से आक्रोश में हैं धानापुर (चंदौली) के किसान

चंदौली पूर्वांचल के सर्वाधिक पिछड़े जिलों में एक है लेकिन यहाँ धान की पैदावार समेत अनेक कृषि उत्पाद इतनी प्रचुरता में होते हैं कि वे देश के अन्य इलाकों तक भी जाते हैं। यहाँ धान की कई किस्में पैदा होती हैं जिनका एक बड़ा बाज़ार है। इसके बावजूद यहाँ के किसान बाज़ार की मनमानी और सरकारी नीतियों तथा स्थानीय विभागों से परेशान हैं। उनकी शिकायत है कि उन्हें अपनी फसल का उचित दाम नहीं मिल पाता। चंदौली के प्रमुख क्षेत्र धानापुर में सैकड़ों किसान गंगा कटान से पीड़ित हैं लेकिन जनप्रतिनिधियों ने उन्हें इस समस्या से उबारने में कोई सहयोग नहीं किया। अपनी व्यथा-कथा कहते किसान इन स्थितियों से बहुत आक्रोश में हैं।

गंगा कटान पीड़ितों की आवाज उठाने के लिए पाँच दिवसीय यात्रा पर निकले मनोज सिंह

चंदौली जिले में लगभग 73 गाँव गंगा के कटान से प्रभावित हैं। इन गांवों के बहुत से किसान कटान की वजह से अब पूरी तरह से खेतविहीन हो चुके हैं। उनके पूरे के पूरे खेत गंगा में समाहित हो गए हैं। इन किसानों को ना तो बदले में कहीं दूसरी जमीन मिली ना ही सरकार की ओर से कोई मुआवजे का प्रावधान हुआ।

चंदौली : दीनदयाल उपाध्याय की भव्य प्रतिमा और लालबहादुर शास्त्री की उपेक्षा

पूर्व प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री के नाम पर बने पार्क में दुर्व्यवस्था का बोलबाला है। लोकार्पण के एक-दो साल बाद ही गायब हो गया पुस्तकालय, गंदगी से भरे उसी कमरे में अब सोते हैं पुलिसकर्मी। 

हर स्तर पर दमन और भ्रष्टाचार से लड़ना पड़ता है

चंदौली जिले के नौगढ़ तहसील की कुछ गाँव की महिलाओं ने भ्रष्टाचार और अव्यवस्था के खिलाफ कैसे आवाज उठाईं और लड़ाई जीतीं, इस बात...

आप हमारी पीठ पर डंडा मारें और हम उंगली भी न उठायें

रादों की मजबूत प्यारी ने आँखों के सामने मरते बेटे को देखा। इस ह्रदयविदारक घटना ने उन्हें बुरी तरह तोड़ दिया। वे बिल्कुल हताश हो गईं। बहू अनीता और उसके तीन बच्चों की जिम्मेदारी प्यारी पर आ पड़ी। गाँव में रोजगार के नाम पर मजदूरी के सिवा कुछ भी नहीं थी। बस थोड़ी जमीन थी जिस पर खेती-किसानी करके साग-सब्जी लगाकर छ: लोगों के परिवार को संभाला।

कभी कालीन उद्योग की रीढ़ रहा एशिया का सबसे बड़ा भेड़ा फार्म आज धूल फाँक रहा है!

जिस समय भेड़ा फार्म की बिल्डिंग नहीं बनी थी तब उन्होंने उस समय बसौली गाँव में ही भेड़ों और चरवाहों के रहने के लिए जगह का इंतजाम किया था लेकिन बाद में उनका गाँव इस योजना से बाहर हो गया। स्थानीय लोगों को रोजगार भी नहीं मिला और फिलहाल इसकी तीन-चौथाई से अधिक ज़मीनें वन विभाग को जंगल लगाने के लिए दे दी गईं। अब विशाल वन प्रांतर दिखाई देता है जिसमें कहीं-कहीं महुए, पीपल और सागौन के पेड़ दिखते हैं और ज़्यादातर में पलाश की झाड़ियाँ हैं। लालतापुर की सीमा से कुछ बीघे दूर एक झंडा दिखता है जो किसी छोटे-मोटे मंदिर का है।

नौगढ़ : मुसहर समुदाय को नहीं पता वह आदिवासी है कि दलित लेकिन द्रौपदी मुर्मू को अपनी बिरादरी का मानता है

चंदौली जिले की नौगढ़ तहसील के नुनवट गाँव के मुसहर भी दूसरी जगहों के मुसहरों की ही तरह हैं। वे इस बात से खुश हैं कि उनके पास कई प्रकार के कार्ड हैं। लाल कार्ड यानी गरीबी रेखा के नीचे वाला राशन कार्ड, पीला कार्ड यानी आयुष्मान योजना का कार्ड, ई-श्रम कार्ड, जॉब कार्ड आदि। आयुष्मान कार्ड के पीछे लिखे नियम और शर्तों के अनुसार यह कार्ड सरकार द्वारा नामित अस्पतालों में मान्य होगा और इससे पाँच लाख तक के इलाज की सुविधा है। मनरेगा में उन्हें काम मिलता है लेकिन साल भर में कभी भी दो महीने से ज्यादा नहीं मिलता।

नौगढ़ : कहाँ है ऐसा गाँव जहाँ न स्कूल है न पीने को पानी

अगर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की मानें तो अगले हफ्ते आने वाले आज़ादी के अमृत महोत्सव तक भारत के हर आदमी को पक्का घर, घर में नल, नल में जल, शौचालय, बिजली, एलइडी बल्ब, बल्ब में रोशनी, सिलेंडर और सिलेंडर में गैस का जो सपना उन्होंने देखा था वह पूरा होनेवाला है। लेकिन उन्हीं के संसदीय क्षेत्र वाराणसी से सटे (बल्कि कुछ साल पहले उसी का हिस्सा रहे) जिला चंदौली के नौगढ़ तहसील के अनेक गाँवों में उनका यह सपना अभी झूठ और छलावा मात्र है।

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