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भीमा कोरेगांव : एक युद्ध जिसने दलित समुदाय का इतिहास बदल दिया

भीमा कोरेगाँव का युद्ध भारतीय इतिहास का एक जरूरी मोड़ था, जिसने न केवल राजनैतिक परिदृश्य को बदला, बल्कि सामाजिक परिवर्तन का एक जरूरी कारण बना। यह युद्ध आज भी दलित समुदाय के लिए गौरव और स्वाभिमान का प्रतीक है। वर्ष 2018 में भीमा कोरेगाओं के 200वीं  सालगिरह पर एकत्रित सामाजिक कार्यकर्ताओं और सामाजिक आंदोलन से जुड़े लोगों को  हिंदुवादी संगठनों द्वारा हिंसा फैलाकर उन्हें दोषी बनाते हुए गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया, जहां मानसिक और शारीरिक प्रताड़ना दी गई। इसी आरोप में गिरफ्तार स्टेन स्वामी की कस्टडी में मौत हो गई। अभी भी कुछ लोग जेल में है, कुछ जमानत पर हैं। आज 206वीं सालगिरह पर पढ़िए डॉ सुरेश खैरनार का यह लेख।

डॉ आंबेडकर के प्रति हिकारत के पीछे संघ-भाजपा की राजनीति क्या है

एक तरफ डॉ अंबेडकर ने जहां संविधान में समानता, बंधुत्व, स्वतंत्रता को शामिल किया, वहीं आरएसएस ने देश में हिंदुत्व को बढ़ावा देते हुए फासीवाद और ब्रह्मणवाद मार्का पर काम कर रहा है, जिसके बाद अम्बेडकरवादी विचारधारा पर लगातार हमला हो रहा है। 

सांसद प्रताप चंद्र सारंगी आरएसएस की विकृत परंपरा के वाहक हैँ

संसद के शीतकालीन अधिवेशन में गृहमंत्री अमित शाह द्वारा अंबेडकर पर की गई टिप्पणी के विरोध में प्रदर्शन के दौरान तथाकथित राहुल गांधी द्वारा दिए गए धक्के से घायल बालासोर के सांसद प्रताप चंद्र सारंगी का इतिहास पहले से ही धब्बेदार रहा है। वर्ष 1999 में फादर ग्राहम स्टेंस और उनके दो बच्चों को गाड़ी में जला देने का काम इनके विहिप के प्रदेश अध्यक्ष रहने के समय हुई थी। वैसे भी आरएसएस लगातार अल्पसंख्यकों पर हमले करने का काम आज का नहीं बल्कि 1925 के बाद से जारी है। गुजरात का गोधरा इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। वर्ष 2014 के बाद सत्ता में आने के बाद संविधान विरोधी कामों को बढ़ावा देने का काम कर हिन्दुत्ववादी संगठनों को मजबूत कर इसी तरह का काम करवाने की सुविधा मुहैया करा रही है।

क्या पूना पैक्ट में गाँधी को जबरन खलनायक बनाया गया है?

आज से 92 साल पहले 26 सितंबर, 1932 के दिन ऐतिहासिक पूना समझौते पर यरवदा जेल के अंदर हस्ताक्षर हुए थे। हमेशा की तरह, इस समय भी उस पैक्ट को लेकर कुछ लोग गलतबयानी करते थे। बाद में गलतबयानी भी तथ्य की तरह स्थापित हो गई। अस्सी के बाद के दशकों में तो यह प्रवृत्ति इतनी परवान चढ़ी कि गांधी इसके एकतरफा खलनायक बना दिये गए। फिर भी आज पूना पैक्ट की 92वीं सालगिरह पर कुछ बात करना जरूरी है।

मेरे गाँव ने वतनदारी प्रथा को कब्र में गाड़कर बराबरी का जीवन अपनाया

आशालता कांबले सुप्रसिद्ध मराठी लेखिका, कवियत्री, कहानीकार और सामाजिक कार्यकर्ता हैं। महात्मा फुले और अंबेडकरवादी साहित्य सृजन में उनका महत्वपूर्ण योगदान है। वह एक कुशल वक्ता हैं जिन्होंने मराठी सामाजिक, सांस्कृतिक आंदोलनों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। आशालता की अनेक पुस्तकें छप चुकी हैं। बहिनाबाई चौधरी, सावित्रीबाई फुले, रमाबाई, अहिल्याबाई होल्कर और कवि कुसुमाग्रज पर उनकी उल्लेखनीय किताबें हैं। अपनी माँ के जीवन पर उनकी एक किताब ‘आमची आई’ बहुत प्रसिद्ध हुई थी। इनके अलावा जनजागृति के लिए आशालता जी ने एक दर्जन से अधिक पुस्तिकाएँ लिखी हैं। पेशे से वह अध्यापिका रही हैं। अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर शुरू किए जा रहे कॉलम ‘मेरा गाँव’ में उन्होंने अपने गाँव कांदलगाँव के अनुभवों को प्रस्तुत किया है। इस आलेख में कोंकण इलाके में दलितों के जीवन और उस पर डॉ अंबेडकर के प्रभावों का बहुत सघन परिचय मिलता है।

मोदी सरकार की कारगुजारियों को देखकर कैसे उम्मीद हो कि भारत भेदभाव दूर करेगा

जिस देश में हजारों साल से जाति भेदभाव होता आ रहा है, जिसकी वजह से ही लोग आर्थिक विषमता झेल रहे हैं। ऐसे में...

बाबा साहेब की 22 प्रतिज्ञाओं पर मचा घमासान और शूद्र मिशन की सार्थकता 

बौद्ध धम्म की दीक्षा लेने वाले इन 22 प्रतिज्ञाओं की शपथ को लेकर देश में बवाल मचा हुआ है। इसके मुख्य दो कारण हो सकते हैं, पहला कि इस बार पूरे देश में सोशल मीडिया के द्वारा बहुत बड़े पैमाने पर इसका प्रचार-प्रसार हो गया और दूसरा कारण है कि समता, समानता, बंधुत्व और वैज्ञानिकता के धुर विरोधी मनुवादियों की मजबूत सरकार के नाक के नींचे हो गया। उनकी तीखी प्रतिक्रिया स्वाभाविक और लाज़िमी है।

कैसे पूरा हो फुले दम्पति का सपना!

आज देश की पहली महिला अध्यापिका व नारी मुक्ति आंदोलन की पहली महानायिका सावित्रीबाई फुले का जन्म दिन है।इसे लेकर विगत कई दिनों से...

 बाबा साहेब के मिशन को पूरा करने के लिए जरुरी है दलितों के नेतृत्व में एक नया स्वाधीनता संग्राम !

आज 6 दिसंबर है। 1956 में इसी दिन समय ठहर सा गया था, जब सदियों के दबे-कुचले अछूतों, सताए व दबाये गए लोगों तथा...

इतिहास लेखन के नजरिए से डॉ. आंबेडकर के महापरिनिर्वाण दिवस के मौके पर आरएसएस का बाबरी विध्वंस (डायरी 5 दिसंबर, 2021)  

इतिहास भी एक भौतिक वस्तु है। मैं तो यही मानता हूं। मतलब यह कि इतिहास का निर्माण खुद-ब-खुद नहीं होता। इतिहास बनाना पड़ता है।...

संविधान पर चल रहे विमर्श के निहितार्थ

संविधान दिवस पर आयोजित होने वाले कार्यक्रमों और संगोष्ठियों का एक उद्देश्य यह भी होता है कि संघ परिवार एवं उसके विचारकों की संविधान...

जाति तोड़ने के लिए जरूरी है सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक बराबरी (डायरी, 2 दिसंबर, 2021) 

विविधता और भेदभाव में एक बुनियादी फर्क है। जहां एक ओर विविधता का संबंध रहन-सहन, क्षेत्रीय परिस्थितियां एवं संस्कृति व परंपराओं से है, वहीं...

शिक्षा ही स्त्री मुक्ति का एकमात्र उपाय – सुगंधि फ्रांसिस (भाग -दो)

दूसरा हिस्सा   मेरा एक ही सपना था कि मेरे बच्चे मेरी तरह आधी अधूरी पढ़ाई न करे। मेरी बेटी पढ़ाई में तेज थी और उसने...

मूलचन्द सोनकर से बातचीत : जैसी घटनाएँ हो रही हैं वैसे में संगीत सुनकर लगता है जैसे कोई मुझे गालियां दे रहा हैं

कवि-आलोचक मूलचन्द सोनकर से बातचीत हमेशा न सिर्फ मजेदार होती थी बल्कि उसमें तुर्शी और तल्खी भी पर्याप्त होती थी। वह बहुत अच्छे अध्येता थे। बनारस ही नहीं देश के गिने-चुने अध्येताओं में उनका शुमार होना चाहिए। उनके लेखन में आए संदर्भों से बाहर भी उनकी एक दुनिया थी। उन्होंने समकालीन भारतीय साहित्य का व्यापक अवलोकन किया था इसीलिए वे तल्ख बोलते और लिखते थे। ठकुरसुहाती करना उनका स्वभाव न था। अपर्णा द्वारा लिया गया उनके जीवन का यह पहला और अंतिम साक्षात्कार है। प्रस्तुत है शेष अंश।

गांधी को खारिज किया जाना जरूरी है डायरी (2 अक्टूबर, 2021)  

मेरी बेटी अब बड़ी हो रही है। जैसे-जैसे वह बड़ी हो रही है, उसके सवाल भी बढ़ रहे हैं। आज ही उसने सुबह-सुबह फोन...

विज्ञापनों के बारे में कभी ऐसे भी सोचिए डायरी (29 सितंबर, 2021)

अखबारों का संबंध राजनीति से बहुत सीधा है। इसे स्थापित करने के लिए प्रमाणों की कोई कमी नहीं है। अखबारों में विज्ञापनों का प्रकाशन...

इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज साहब, मेरी भैंसों ने आपका क्या बिगाड़ा है? डायरी (2 सितंबर, 2021)

मैं तो आपके द्वारा कल दिए गए एक फैसले से संबंधित खबर का अवलोकन कर रहा हूं, जिसे दिल्ली से प्रकाशित जनसत्ता ने पहले पन्ने पर प्रकाशित किया है। शीर्षक है - गाय को राष्ट्रीय पशु घोषित किया जाए : हाईकोर्ट। शीर्षक को देखकर सबसे पहले तो यही लगा कि यह एक बयान है जिसे आरएसएस के किसी नेता ने जारी किया है। वजह यह कि इस तरह की मांग वे आए दिन करते रहते हैं। लेकिन यह मांग इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक जज ने की है, यह देखकर मैं चौंका।

दुनिया में बेनजीर अफगानिस्तान की ये पांच-छह महिलाएं डायरी (18 अगस्त, 2021)

 मैं बेहद रोमांचित हूं और एक हद तक खुश भी। मुझे ये अहसास बहुत कम ही मिलते हैं। कई बार तो लंबे समय तक...

मेरिट का मिथक : अपनी करनी से गांधी सिर्फ सवर्णों के राष्ट्रपिता हो सकते थे

तथाकथित मेरिटधारियों ने समाज में अपने झूठे वर्चस्व को बनाये रखने का उपक्रम आज से ही नहीं बल्कि प्राचीन समय से बनाया हुआ है. ब्राह्मणों ने इस वर्चस्व के लिए ग्रंथों, वेद-पुराण और अन्य धार्मिक ग्रंथों में खुद इसका उल्लेख कर   अपनी श्रेष्ठता को स्थापित कर हमेशा शूद्रों को उनके  अधिकारों से वंचित किया है. मूलचन्द सोनकर ने तथ्यामक रूप से अनेक उदाहरणों के माध्यम से उनके स्थापित झूठे मूल्यों की मजम्मत की है.. पढ़िए उनके विचार समाज की चिंता को दर्शाते हुए। प्रस्तुत आलेख  गाँव के लोग  2018 के अंक  प्रकाशित हुआ था। 

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