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बनारस में एक नई शुरुआत है ‘बिरहा में कबीर’
रामजनम -
पिछले दिनों विद्या आश्रम सारनाथ में एक नई शुरुआत हुई - बिरहा में कबीर। लोक विद्या जनांदोलन, गांव के लोग, अगोरा प्रकाशन और रामजी यादव आर्काइव द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम में एकमात्र कलाकार बिरहा गायक सतीशचन्द्र यादव थे। मूल रूप से रसड़ा, बलिया के निवासी सतीश अब स्थायी रूप से बनारस में रहते हैं और यहाँ तुलसी निकेतन में शिक्षक हैं। वह नब्बे के दशक में बिरहा में सक्रिय हुये और जल्दी ही अपनी मजबूत पहचान बना ली। विगत वर्षों में उन्होंने सैकड़ों कार्यक्रमों में शिरकत किया। महात्मा बुद्ध की भूमि सारनाथ स्थित विद्या आश्रम में आयोजित ‘बिरहा में कबीर’ कार्यक्रम को देख-सुनकर यही लगा कि यह विधा अपनी सामाजिक भूमिका को एक नया अंदाज़ और आयाम देने जा रही है।
मालवा के प्रीतम मालवीय और साथियों का कबीर गायन
कबीर का निर्गुण गायन जीवन के दर्शन का पर्याय है. लोकरंग में मालवा के शाजापुर जिले के मोहन बड़ोदिया से आये प्रीतम मालवीय और...
कबीर को समग्रता में समझने की ज़रुरत है
संत कबीर अकादमी मगहर के सौजन्य से चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय, मेरठ में दिनांक 23 अगस्त को आयोजित राष्ट्रीय सगोष्ठी कबीर का चिंतन और...
रेवड़ियों का मतलब मैं तो यही समझता हूं और आप? (डायरी, 17 जुलाई, 2022)
कबीर को पढ़ना अच्छा लगता है। कई बार सोचा कि ऐसा क्या है कबीर के पदों में कि मैं हर बार उसमें डूबता चला...
शिद्दत से याद किए गए कबीर और नागार्जुन
मंगलवार को कबीर एवं नागार्जुन जयंती के अवसर पर प्राक परीक्षा प्रशिक्षण केंद्र, दरभंगा पर जनसंस्कृति मंच दरभंगा के तत्वावधान में पूरी शिद्दत से...
अभिशाप नहीं हैं स्त्रियों में समानता के हक पर दावा करना,डायरी (20 अप्रैल, 2022)
यकीन नहीं आता है कि अतीत का साहित्य इतना असरदार होता था कि समाज उसका अनुसरण करने लगता था। आज भी कई बार ऐसा...
मत करिए कबीर-रैदास की तुलना मार्क्स से (डायरी 17 फरवरी, 2022)
सवर्ण लेखकों और दलित-बहुजन लेखकों में फर्क करना मुश्किल काम नहीं है। सवर्ण लेखकों की खासियत यह होती है कि उनके लेखन के केंद्र...
कबीर से सावित्रीबाई फुले वाया कुमार गन्धर्व
उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले के किसान परिवार में जन्मे शास्त्रीय गायक डॉ परमानन्द यादव की एक महत्वपूर्ण जीवन और संघर्षयात्रा रही है. बीएचयू...
कफनचोर (डायरी 6 नवंबर, 2021)
साहित्य को लेकर एक सवाल मेरी जेहन में हमेशा बना रहता है। सवाल यही कि उस साहित्य को क्या कहा जाय, जिसके पात्र और...
कबीर से लेकर प्रेमचंद तक, सभी ने चुनौतियों का सामना किया
पथ जमशेदपुर के रंगकर्मी और निर्देशक निज़ाम का पिछले दिनों ऑल इंडिया थिएटर एसोसिएशन के वार्षिक सम्मेलन मे शामिल होने के लिए वाराणसी आना...
इस उपन्यास का कल्पनालोक समझने के लिए अपने दौर की समझ जरूरी है
लेख का दूसरा और अंतिम हिस्सा
बहुत सारे आलोचक जार्ज ऑरवेल के उपन्यास 1984 में अतीत का वर्णन देखते हैं। बीसवीं शताब्दी के पहले...
‘स्वर्णिम युग’ और ‘महानायक’ तलाशती जातियां
बचपन में कहानियों में पढ़ा था कि कबीर के मरने पर हिन्दू और मुसलमानों के बीच उनके धर्म को लेकर झगड़ा हो गया और...
सियासत के खूबसूरत नजारे डायरी (7 अगस्त, 2021)
साइंस का अध्ययन मनुष्य को आडंबरों से दूर करता है। दरअसल, मनुष्य मनुष्य ही इस कारण है क्योंकि उसके अंदर वैज्ञानिकता होती है। यदि...
राजस्थान की पूंछ का आख़िरी गाँव
मेरा गाँव मेरे लिए दुनिया की सबसे सुंदर जगह है, जहां मेरा बचपन बीता था। गाँव और बचपन की स्मृतियाँ मुझे रोमांचित कर देती...
वेद और लोक का द्वंद्व: तुलसी बनाम कबीर
अपनी आलोचनात्मक पुस्तक ‘कबीर के आलोचक’ के द्वारा डॉ. धर्मवीर ने हिंदी आलोचना की एक नयी ज़मीन तोड़ी थी। अपनी इस पुस्तक में उन्होंने...

