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जम्मू के मंदिर में भगदड़ और पाखंड का लब्बोलुआब(डायरी, 3 जनवरी 2022)  

आज दो महान लोगों को याद करने का दिन है। एक क्रांति ज्योति सावित्रीबाई फुले और दूसरे मरांग गोमके जयपाल सिंह मुंडा। दोनों का योगदान अहम है। सावित्रीबाई फुले की बात करूं तो उन्हें मैं जड़ता तोड़नेवाला मानता हूं। शूद्र परिवार में जन्मीं सावित्रीबाई फुले ने अपने पति जोतीराव फुले के साथ मिलकर लड़कियों के […]

आज दो महान लोगों को याद करने का दिन है। एक क्रांति ज्योति सावित्रीबाई फुले और दूसरे मरांग गोमके जयपाल सिंह मुंडा। दोनों का योगदान अहम है। सावित्रीबाई फुले की बात करूं तो उन्हें मैं जड़ता तोड़नेवाला मानता हूं। शूद्र परिवार में जन्मीं सावित्रीबाई फुले ने अपने पति जोतीराव फुले के साथ मिलकर लड़कियों के लिए स्कूल खोला और पढ़ाया भी। वह अज्ञानता को सबसे बड़ा दुश्मन मानती थीं।
मैं आज यह सोच रहा हूं कि जिस अज्ञानता की बात सावित्रीबाई फुले करती थीं, वह अज्ञानता क्या केवल शिक्षा से दूर किया जा सकता है? मतलब यह कि मैं तो आज उच्च शिक्षा प्राप्त लोगों को भी पाखंड करते हुए देखता हूं। और पाखंड भी आला दर्जे का। सबसे कमाल की बात यह कि सरकारें भी पाखंड को बढ़ावा देती हैं। जबकि इस तरह के पाखंड में लोगों की जानें चली जाती हैं। लेकिन न तो लोग मानते हैं और ना ही सरकारें।
मैं जिस घटना काे उद्धरित करना चाहता हूं, वह बीते शनिवार को जम्मू के एक मंदिर में भगदड़ के कारण लोगों की हुई मौतें हैं। वहां के अधिकारियों ने इस घटना में 12 लोगों के मरने की बात कही है। साथ ही यह भी कहा गया है कि इतने ही लोग घायल भी हुए।

[bs-quote quote=”जम्मू वाले मामले में भी यही हुआ है। कल जब मामला सामने आया तो कहा जा रहा था कि मंदिर के बाहर पुलिस वाले घूस लेकर लोगों को किसी देवी का दर्शन करा रहे थे और इस कारण लोग आक्रोशित हुए और भगदड़ मची। अब वहां के डीजीपी दिलबाग सिंह कह रहे हैं कि घटना के लिए जिम्मेदार लोग ही थे। दो गुटों के बीच झड़प हुई और इसके कारण भगदड़ हुई। इस मामले में भी जांच का दिखावा किया जा रहा है।” style=”style-2″ align=”center” color=”” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]

 

मुझे ऐसी घटनाओं के संदर्भ में सरकारी आंकड़ों पर विश्वास नहीं होता। वजह यह कि दो घटनाएं मेरे सामने घटित हुई हैं और मैंने पाया है कि सरकारें एक-चौथाई सच ही सार्वजनिक करती हैं। मेरे गृह प्रदेश में घटित ये दो घटनाएं थीं– छठ पूजा के दौरान अदालत घाट पर हुआ हादसा और गांधी मैदान में रावण वध के दौरान मची भगदड़। दोनों घटनाओं में सौ से अधिक लोग मारे गए थे। गांधी मैदान वाली घटना के बाद मैं तो रिपोर्टिंग कर रहा था और पीएमसीएच में मौजूद था। लोगों की लाशों से पूरा शव गृह भरा पड़ा था।
खैर, राज्य की नीतीश कुमार सरकार ने किसी भी घटना की नैतिक जिम्मेदारी नहीं ली। अलबत्ता जांच करने का ढोंग जरूर किया गया और एक मामले में तो 1987 बैच के टॉपर आईएएस रहे आमिर सुबहानी भी जांचकर्ता थे, जो आज बिहार के मुख्य सचिव हैं, ने भी घटना के लिए लोगों को ही दोषी ठहरा दिया था।
तो हर बार यही होता है। जम्मू वाले मामले में भी यही हुआ है। कल जब मामला सामने आया तो कहा जा रहा था कि मंदिर के बाहर पुलिस वाले घूस लेकर लोगों को किसी देवी का दर्शन करा रहे थे और इस कारण लोग आक्रोशित हुए और भगदड़ मची। अब वहां के डीजीपी दिलबाग सिंह कह रहे हैं कि घटना के लिए जिम्मेदार लोग ही थे। दो गुटों के बीच झड़प हुई और इसके कारण भगदड़ हुई। इस मामले में भी जांच का दिखावा किया जा रहा है। पहले तो उपराज्यपाल मनोज सिन्हा के निर्देश पर एक उच्च स्तरीय कमेटी का गठन किया गया। फिर राज्य पुलिस भी एक जांच अलग से करेगी। कल इसकी जानकारी दिलबाग सिंह ने एक संवाददाता सम्मेलन में दी। जब उनसे पूछा गया कि यदि जांच में यह पाया गया कि कुछ लोगों के कारण भगदड़ मची तो क्या सरकार उनके खिलाफ मुकदमा दर्ज करेगी, तो सिंह ने सकारात्मक जवाब दिया।

[bs-quote quote=”तो यह है धर्म का कारोबार। अखबार भी समझता है कि यदि उसने सच लिखा कि पुलिस की अकर्मण्यता और घूसखोरी के कारण भगदड़ मची तो लोगों का पाखंड कमजोर होगा। अखबार के संपादक सरकार का ध्यान रख रहे हैं। ध्यान रखना कहना ही ठीक है। दलाली करना अतिरेक कहा जाएगा। रही बात सरकार की तो वह तो मंदिर की प्रतिष्ठा और लोगों के पाखंड को आस्था की संज्ञा देकर बढ़ाते रहना चाहती है। ” style=”style-2″ align=”center” color=”” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]

 

लेकिन मेरा अनुभव कहता है कि पुलिस कुछ नहीं करेगी। जांच रपट में सब कुछ ठीक मिलेगा। सारा ठीकरा लोगों के माथे पर फोड़ दिया जाएगा। फिर ऐसा नहीं है कि उस मंदिर में जानेवाले अंधविश्वासियों की संख्या में कोई कमी आएगी। आज ही जनसत्ता को देख रहा हूं तो जानकारी मिल रही है कि उस मंदिर में किसी देवी के दर्शन के लिए लोगों के जाने का सिलसिला फिर शुरू हो गया है। अखबार ने संपादकीय भी लिखा है जिसका लब्बोलुआब यह कि भगदड़ के पीछे कुछ लोगों की बदमाशी थी। प्रशासनिक चूक पर तो सवाल भी नहीं उठाया गया है।

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तो यह है धर्म का कारोबार। अखबार भी समझता है कि यदि उसने सच लिखा कि पुलिस की अकर्मण्यता और घूसखोरी के कारण भगदड़ मची तो लोगों का पाखंड कमजोर होगा। अखबार के संपादक सरकार का ध्यान रख रहे हैं। ध्यान रखना कहना ही ठीक है। दलाली करना अतिरेक कहा जाएगा। रही बात सरकार की तो वह तो मंदिर की प्रतिष्ठा और लोगों के पाखंड को आस्था की संज्ञा देकर बढ़ाते रहना चाहती है।
लेकिन काश कि लोग यह समझते कि यह केवल और केवल पाखंड है।
नवल किशोर कुमार फॉरवर्ड प्रेस में संपादक हैं।
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