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खेती के नए स्वरूप को अपना रहे हैं पहाड़ों के किसान

उत्तराखण्ड राज्य पर्यटन के लिए विश्व में अपनी खास पहचान रखता है, जिसके चलते लाखों की संख्या में प्रतिवर्ष पर्यटक यहां आते हैं। जहां उनके खाने में मशरूम एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, जिसके चलते भीमताल को मशरूम उत्पादन का हब बनाने को लेकर जिला प्रशासन की योजना कामयाब हो रही है। वर्ष 2022-23 में नैनीताल जिले में 1292 मीट्रिक टन मशरूम का उत्पादन हुआ, जबकि पिछले वर्ष 942 मीट्रिक टन था।

वर्तमान समय में सभी क्षेत्रों में जलवायु परिवर्तन का असर किसी न किसी रूप में देखने को मिल रहा है। चाहे वह बढ़ता तापमान हो, उत्पादन की मात्रा में गिरावट की बात हो, जलस्तर में गिरावट हो या फिर ग्लेशियरों के पिघलने इत्यादि सभी जगह देखने को मिल रहे हैं। जलवायु में होने वाले बदलावों ने सबसे अधिक कृषक वर्ग को प्रभावित किया है। चाहे वह मैदानी क्षेत्र के हों या फिर पर्वतीय क्षेत्र के किसान। मैदानी क्षेत्र में फिर भी आजीविका के कई विकल्प मौजूद हैं। यदि कृषि में नुकसान हो रहा हो तो अन्य कार्य के माध्यम से आय की जा सकती है, लेकिन पर्वतीय क्षेत्रों में जलवायु परिवर्तन से होने वाले नुकसान का खामियाजा हर हाल में कृषकों को ही उठाना पड़ रहा है, क्योंकि पर्वतीय क्षेत्रों के किसानों के पास आय के दूसरे श्रोत नहीं हैं। वहीं, प्राकृतिक क़हर और जंगली जानवरों के नुकसान ने कृषकों को खेती से विमुक्त होने के लिए विवश कर दिया है। अब किसान या तो पलायन के लिए मजबूर हो गए हैं या फिर मामूली तनख्वाह पर कहीं काम कर रहे हैं।

लेकिन इन कठिनाइयों के बीच नितिन महतोलिया और मनोज बिष्ट जैसे कुछ युवा किसानों ने हार नहीं मानी। इन्होंने जलवायु परिवर्तन के विरुद्ध जाकर एक ऐसी खेती को अपनाया जो अब उनके उज्जवल भविष्य की आस के रूप में दिखाई देने लगा है। उनके द्वारा कम समय में अधिक उत्पादन व नकद खेती की ओर रूझान किया गया, जिसमें मशरूम, औषधीय पौधें व पॉलीहाउस प्रमुख है, जिनमें जंगली जानवरों व मौसम की मार का प्रभाव न के बराबर होता है। वहीं, यह परम्परागत खेती से होने वाली आय से भी पांच गुना अधिक आय सृजन करने में सक्षम भी हो रही है। नैनीताल स्थित धारी ब्लॉक के महतोलिया गांव के युवा किसान नितिन बताते हैं कि लगभग 40 वर्ष पूर्व उनके पिताजी इन्हीं खेतों से इतना अधिक उत्पादन कर लेते थे, जिसे बेचकर वह हजारों रुपया कमाया करते थे, परंतु जलवायु परिवर्तन के चलते वर्तमान स्थिति ऐसी हो गई है कि अब इसी खेत से परिवार के खाने लायक भी उत्पादन मुश्किल से हो रहा है।

कृषि कार्य में हो रही इन्हीं कठिनाइयों को देखते हुए नितिन ने अलग प्रकार का कार्य करने का मन बनाया और पॉलीहाउस के माध्यम से फूलों की खेती शुरू कर दी। उन्होंने गांव में आयोजित प्रशिक्षण कार्यशाला में पॉलीहाउस की जानकारी ली। घर वालों के विरोध के बावजूद उन्होंने इसके प्रशिक्षण के लिए रु.14000/- का भुगतान किया। प्रथम वर्ष में ही इस पॉलीहाउस से लागत और मेहनताना के उपरान्त उन्हें रु.20000/- का लाभ हुआ, जो खेत अनाज उगाने में असमर्थ हो गये थे, वहीं आज नितिन को प्रति सीजन एक लाख की आय दे रहे हैं। इन्होंने इस वर्ष उद्यान विभाग से 100 वर्ग मीटर का पॉलीहाउस भी किराया पर लिया है, जहां वह अपने फूलों की खेती को और अधिक विस्तार देना चाहते हैं। नितिन के पॉलीहाउस में उगाए गए फूल केवल उत्तराखंड में ही नहीं, बल्कि राजधानी दिल्ली तक बेचे जा रहे हैं। नितिन अब गांव के अन्य युवाओं को भी इस ओर प्रेरित कर उन्हें प्रशिक्षित कर रहे हैं, ताकि वह पलायन की जगह घर पर ही रहकर आय सृजित कर सकें।

मशरूम के साथ मनोज बिष्ट

पॉलीहाउस की खेती के संबंध में भीमताल ब्लॉक के सहायक उद्यान अधिकारी, आनंद सिंह बिष्ट का कहना है कि सरकार द्वारा ग्रामीण समुदाय के हित में विभिन्न योजनाएं चलाई जा रही हैं, जिसमें एक पॉलीहाउस खेती भी है। इसके अंतर्गत पाॅलीहाउसों के निर्माण पर 80 प्रतिशत की सब्सिडी दी जा रही है, जिससे यह सुविधा कम लागत पर उपलब्ध होने के साथ-साथ आजीविका संवर्धन में सहायक सिद्ध हो सकती है। वर्ष 2022-23 में नैनीताल जनपद में 23,000 वर्ग मीटर पर जिला एवं केन्द्र योजनान्तर्गत 163 लाभार्थियों को पॉलीहाउस से लाभान्वित किया गया, जिसमें उनके द्वारा सब्जी उत्पादन और फूलों की खेती की जा रही है। आनंद बिष्ट कहते हैं कि पॉलीहाउस में कोई भी उत्पाद जल्दी हो जाने का लाभ लाभार्थियों को मिलता है। साथ ही इसका बाजार मूल्य भी अच्छा प्राप्त होता है। जलवायु परिवर्तन के इस दौर में यह अधिक लाभ, आजीविका संवर्धन और पलायन को रोकने में महत्वपूर्ण कड़ी साबित हो रहा है।

नितिन की तरह ही अल्मोड़ा स्थित लमगड़ा के युवा किसान मनोज बिष्ट ने भी पारंपरिक खेती से अलग हटकर मशरूम की खेती करने का फैसला किया। इसके लिए उन्हें भी घर वालों के विरोध का सामना करना पड़ा। घर वालों को इस बात की शंका थी कि नई उपज होगी या नहीं? यदि हो भी गयी तो उसका बाजार में क्या मूल्य होगा? लेकिन मनोज ने उनकी बातों को नकारते हुए इस कार्य को सफल कर दिखाया। आज उनका मशरूम हल्द्वानी, नैनीताल व अल्मोड़ा में बिक रहा है। साथ ही उनके द्वारा ग्राम के 12 लोगों को रोजगार भी मिला है। वह बताते हैं कि 200 ग्राम मशरूम का बाजार मूल्य रु.60/- है। वह वर्ष भर में 2000 किग्रा से अधिक का मशरूम बाजार में बेच रहे हैं। उत्तराखण्ड राज्य पर्यटन के लिए विश्व में अपनी खास पहचान रखता है, जिसके चलते लाखों की संख्या में प्रतिवर्ष पर्यटक यहां आते हैं। जहां उनके खाने में मशरूम एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, जिसके चलते भीमताल को मशरूम उत्पादन का हब बनाने को लेकर जिला प्रशासन की योजना कामयाब हो रही है। वर्ष 2022-23 में नैनीताल जिले में 1292 मीट्रिक टन मशरूम का उत्पादन हुआ, जबकि पिछले वर्ष 942 मीट्रिक टन था।

नितिन का पॉलीहाउस

खाने में विशेषता उपलब्ध कराने के साथ-साथ बेरोजगारों को रोजगार उपलब्ध करवाने के लिए जिला प्रशासन के दिशा-निर्देशन में भीमताल विकासखंड के सोनगांव, भवाली व नथुवाखान क्लस्टर का गठन किया गया, जिसमें वर्ष 2022-23 में 131 लाभार्थियों को 156 बीजयुक्त मशरूम कम्पोस्ट उपलब्ध करवाये गये। वास्तव में, सरकारी योजनाएं लोगों के हितों में बनायी जाती हैं। इससे युवाओं को काफी लाभ भी मिलता है। पर परियोजना समाप्ति के पश्चात रख-रखाव से सम्बन्धित कोई विधि न होने के बाद अक्सर कई योजनाएं ग्रामीण क्षेत्रों में दम तोड़ देती हैं। ऐसे में सरकार और संबंधित विभाग को ऐसी योजना बनाने की ज़रूरत है, जिससे परियोजना समाप्ति के बाद भी योजनाएं निर्बाध गति से चलती रहे। इसके लिए स्वयं लाभांवितों को भी आगे आने की ज़रूरत है, ताकि इसका फायदा उनके साथ साथ अन्य बेरोज़गार युवाओं को भी मिले।

(साभार : चरखा फीचर)

 

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