जो गुजरात दंगे के अपराधियों को नहीं जानते, वे इसे नहीं पढ़ें (डायरी, 26 जून, 2022) 

नवल किशोर कुमार

1 352
हर दिन मैं इस देश के करोड़ों लोगों में से एक ही होता हूं। अलग तरीके से दिन की शुरुआत कभी-कभार ही होती है और संख्या में इतनी कि उंगलियों पर गिनी जा सकती हैं। एक समय था जब हर दिन बेहद खास होता था और हर दिन का प्रारंभ एकदम अलहदा। वर्तमान बिल्कुल जुदा है। खैर, आज भी मैंने अपने कमरे की खिड़कियां और दरवाजे को खोल दिया है। सूरज भी अब थोड़ी देर में आसमान में चमकेगा। लेकिन उसके चमकने के पहले जो शीतलता है, मैं उसे अपने कमरे में भर लेना चाहता हूं। करोड़ों लोगों की तरह मैंने भी आज अपने दिन का प्रारंभ चाय के साथ किया है। मेरी चाय और कॉफी दोनों एक जैसी होती हैं। दोनों के साथ ब्लैक शब्द कॉमन है। अलबत्ता वह मग जिसमें मैं रोज चाय और कॉफी पीता हूं, वह अलहदा है। इसमें लेनिन की तस्वीर है और इसे मुझे तोहफे में दिया है डॉ. पूनम तुषामड़ ने। आप दिल्ली विश्वविद्यालय में अस्थायी प्रोफेसर हैं। अस्थायी प्रोफेसर के सवाल पर कभी और लिखूंगा। फिलहाल तो यह कि मैं एकदम सामान्य आदमी हूं और चाय की चुस्कियों के साथ ई-पेपर के पन्ने पलट रहा हूं।
मैं यह सोच रहा हूं कि सुप्रीम कोर्ट के तीन महान विद्वान जज न्यायमूर्ति एएम खानविलकर, न्यायमूर्ति दिनेश महेश्वरी और न्यायमूर्ति सीटी रविकुमार आज अपने दिन की शुरुआत कैसे कर रहे होंगे। मैं केवल कल्पना कर सकता हूं। उनके पास सर्वोत्तम क्वालिटी की चाय या फिर कॉफी होगी। मग सोने का तो बिल्कुल नहीं होगा। वजह यह कि सोने के मग में चाय या कॉफी नहीं पी जा सकती। उनके पास अभी आज के अखबार के पन्ने होंगे और वे भी पढ़ रहे होंगे कि तीस्ता सीतलवाड़, जो कि गुजरात दंगे के मामले में एक याचिकाकर्ता रही हैं, जिनकी याचिका परसों ही उपरोक्त तीन न्यायमूर्तियों ने खारिज कर दिया। वे यह भी पढ़ रहे होंगे कि गुजरात के पूर्व डीजीपी आरबी श्रीकुमार को गिरफ्तार कर लिया गया है।

दिल्ली से प्रकाशित जनसत्ता ने शीर्षक भी बड़ा दमदार लगाया है– आरोप लगाने वालों को मोदी से माफी मांगनी चाहिए : शाह। अपने इस बयान में शाह ने कहा है– हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 18-19 साल की लड़ाई में एक शब्द बोले बगैर सभी दुखों को भगवान शंकर के विषपान की तरह गले में उतारकर, हर वेदना को सहन करते रहे।

तीनों न्यायमूर्ति यह भी जरूर पढ़ रहे होंगे कि इन दोनों को गुजरात पुलिस ने इस कारण से गिरफ्तार किया है कि इनके ऊपर निर्दोषों (प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित अन्य 63 या 64) को झूठे मुकदमे में फंसाने का मामला गुजरात पुलिस की अपराध शाखा ने दर्ज किया है।
मेरी ही तरह तीनों महान जज केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह का बयान भी पढ़ ही रहे होंगे। दिल्ली से प्रकाशित जनसत्ता ने शीर्षक भी बड़ा दमदार लगाया है– आरोप लगाने वालों को मोदी से माफी मांगनी चाहिए : शाह। अपने इस बयान में शाह ने कहा है– हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 18-19 साल की लड़ाई में एक शब्द बोले बगैर सभी दुखों को भगवान शंकर के विषपान की तरह गले में उतारकर, हर वेदना को सहन करते रहे।
निश्चित तौर पर न्यायमूर्ति एएम खानविलकर, न्यायमूर्ति दिनेश महेश्वरी और न्यायमूर्ति सीटी रविकुमार भी यह सब पढ़ रहे होंगे। उनके परसों के फैसले का जकिया जाफरी, जो कि अपने पति के हत्यारों को सजा दिलाना चाहती हैं, उनके ऊपर क्या बीत रही होगी, इससे भी ये तीनों अपरिचित नहीं ही होंगे। लेकिन क्या करिए, प्रोफेशन ही कुछ ऐसा है इन तीनों का। तीनों जज हैं और सुप्रीम कोर्ट के महान विद्वान जज हैं।

जजों का काम अलग होता है। उन्हें फैसला सुनाना होता है। उसके पहले तथ्यों का अध्ययन करना पड़ता है। दलीलें सुननी होती हैं। सच और झूठ के अंबार से सबसे आवश्यक 'सच' को बाहर निकालना पड़ता है। यह काम इतना आसान नहीं होता है।

मैं तो अपने प्रोफेशन की बात करता हूं। मैं तो पत्रकार आदमी हूं और फिलहाल संपादन की जिम्मेदारी संभाल रहा हूं। फील्ड रिपोर्टिंग से बहुत दूर हो चुका हूं। हालांकि अब भी जब कभी यह करने का मौका मिलता है, दिल से बहुत अधिक खुशी मिलती है। यह खुशी इसलिए होती है क्योंकि फील्ड रिपोर्टिंग के दौरान मेरी मुलाकात आम लोगों से होती है। वे अपनी पीड़ा व्यक्त करते हैं। वे चाहते हैं कि उनकी बातें शेष जगत के लोग भी जानें और मुझे वह एक माध्यम मानते हैं, जो कि मैं हूं। मेरा पेशा ही यही है। समाज से विषयों को लेना, तथ्य संग्रह करना और फिर उन्हें पठनीय बनाकर लोगों के बीच ले जाना।
तो हर किसी का पेशा अलग है। जजों का काम अलग होता है। उन्हें फैसला सुनाना होता है। उसके पहले तथ्यों का अध्ययन करना पड़ता है। दलीलें सुननी होती हैं। सच और झूठ के अंबार से सबसे आवश्यक ‘सच’ को बाहर निकालना पड़ता है। यह काम इतना आसान नहीं होता है।
तो मैं तो यही मानता हूं कि जज होना कोई आसान बात नहीं है। कितना प्रेशर रहता होगा, मैं तो इसकी केवल कल्पना कर सकता हूं। न्यायमूर्ति एएम खानविलकर, न्यायमूर्ति दिनेश महेश्वरी और न्यायमूर्ति सीटी रविकुमार आदि को तो यह सब रोज-ब-रोज झेलना पड़ता होगा।
खैर, कल मेरी प्रेमिका ने अनाेखा शब्द दिया। शब्द था– खिलौना। जब यह शब्द मेरे पास आया, मैं अपने एक प्रोफेशनल काम में व्यस्त था। जैसे ही काम से फुरसत मिली, इस शब्द ने जेहन में हल्ला मचाना शुरू कर दिया। फिर नेहरू प्लेस में नासिर मियां की चाय की दुकान पर चाय पीने के दौरान मेरे मन ने कहा–
छुटपन के खिलौने,
अब भी नहीं बिसरते।
गोया सबने पा ली हो अमरता
और मैं हूं कि
उपमाएं तलाश रहा
रोज बदलती इस दुनिया के वास्ते
और पहाड़ों के लिए
जो कायम हैं सदियों से।
बाजदफा जब नदियां करती हैं सवाल
मैं अपनी कागज की नाव
उनके हवाले कर देता हूं।
हां, छुटपन के खिलौने,
अब भी नहीं बिसरते।

नवल किशोर कुमार फ़ॉरवर्ड प्रेस में संपादक हैं।

ताकि जकिया जाफरी को मिले ‘न्याय’ (डायरी, 25 जून, 2022)

1 Comment
  1. […] जो गुजरात दंगे के अपराधियों को नहीं जा… […]

Leave A Reply

Your email address will not be published.