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ग्राउंड रिपोर्ट

वाराणसी : डॉ ओमशंकर के आमरण अनशन के कारण विभागाध्यक्ष पद से हटाया गया

सर सुंदरलाल अस्पताल के हृदय रोग विभाग के विभागाध्यक्ष को प्रशासन ने उनके पद से हटा दिया। जबकि उनके कार्यकाल का 2 माह शेष रह गया था। डॉ ओमशंकर अस्पताल के चिकित्सा अधिकारी डॉ के के गुप्ता द्वारा किए गए भ्रष्टाचार के कारण उन्हें पद से हटाने और हृदय रोग विभाग में बिस्तरों के संख्या (जो उपलब्ध है) मरीजों के लिए खोलने के लिए आमरण अनशन कर रहे हैं।

बीएचयू के सर सुन्दर लाल चिकित्सालय में हृदय रोग विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो.डॉ ओमशंकर को उनके पद से हटा दिया गया है। डॉ ओमशंकर को वर्ष 2021 में तीन वर्ष के लिए विभागाध्यक्ष बनाया गया था। इस वर्ष 31 जुलाई को उनका कार्यकाल पूरा हो  रहा था लेकिन संस्थान ने अनशन के दौरान अपना दायित्व पूरा नहीं करने का आरोप लगाते हुए कुलपति सुधीर जैन ने पद से हटाकर प्रो विकास अग्रवाल को विभागाध्यक्ष बनाते हुए ज़िम्मेदारी सौंपी।

शुक्रवार, 24 मार्च को चीफ प्रोक्टर एड्मिनिसट्रेशन ने अधिसूचना जारी की। प्रो. डॉ. ओमशंकर आमरण अनशन पर पिछले 11 मई से बैठे हैं। आज अनशन का 15वां दिन है।

बीएचयू के सर सुन्दर लाल चिकित्सालय (बीएचयू) में प्रो डॉ ओमशंकर की मांग है कि भ्रष्टाचारी चिकित्सा अधीक्षक डॉ केके गुप्ता को पद से हटाने के लिए और हृदय रोग विभाग के मरीजों के लिए पूर्ण रूप से चौथा तल और आधा पाँचवाँ तल को खोला जाए। उनका कहना है कि हृदय रोग विभाग के लिए आवंटित बेड को ओको सर्जरी (सर्जिकल ओंकोलॉजी, कैंसर के सर्जिकल उपचार केंद्र) विभाग को दे देने के खिलाफ है। इसके लिए बनारस में पहले से ही महामना कैंसर संस्थान और रेलवे स्थित कैंसर संस्थान मौजूद हैं। यह अनशन उनके अपने चैम्बर में ही चल रहा है।

उनके आमरण अनशन को लेकर बीएचयू और अस्पताल प्रशासन दबाव में हैं। इस वजह से उन्हें पद से हटाने का आदेश दिया ताकि उन पर दबाव बने और वे पीछे हट जाएँ। जबकि डॉ ओमशंकर से फोन पर बात होने पर उन्होंने बताया कि जब तक मेरी मांग पूरी नहीं होती तब तक अनशन चलेगा।

उन्होंने बात करते हुए कहा कि इसके पहले 8 मार्च को डायरेक्टर ने एक आदेश जारी किया था कि जिसकी मांग वे कर रहे थे, जिसे 9 मार्च से लागू कर दिया जाना था लेकिन उस आदेश पर आज तक कुलपति ने अमल नहीं किया। लेकिन कल इन्हें विभागाध्यक्ष पद से हटाने का पत्र डायरेक्टर साहब के जारी करते ही कुलपति महोदय ने तुरंत ही उस पर अमल कर दिया। इससे एक बात स्पष्ट हो जाती है कि जो व्यक्ति(चिकित्सा अधीक्षक डॉ के के गुप्ता) भ्रष्टाचार में लिप्त है, जिनका कार्यकाल खत्म हो जाने के बाद भी संरक्षण मिल रहा है और भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ने वाले को सजा दी जा रही है।

dr omshankar
डॉ ओमशंकर को विभागाधायक्ष पद से हटाने का आदेश पत्र

इस सबंध में आईएमएस बीएचयू के डायरेक्टर एसएन  संखवार ने कहा कि एनएमसी की गाइडलाइन के नौसार बाद का आबंटन हुआ है। बनाई गई कमेटी की जांच से यह बात सामने आ जाएगी लेकिन प्रो डॉ ओमशंकर का कहना है कि भ्रष्टाचारी को संरक्षण देने के लिए यह कमेटी बनाई गई है। इसके पहले गठित समिति की बात जब एनएमसी नहीं मानी  तो क्या अभी गठित समिति की बात मानेंगे?

अनशन स्थल पर ही चल रही है ओपीडी 

चिकित्सा विज्ञान संस्थान  कार्रवाई करने के मौका देख रहा था और यही वजह है कि उन पर दायित्व निर्वहन न करने का आरोप लगाते हुए विभागाध्यक्ष पद से हटा दिया जबकि प्रो डॉ ओमशंकर 15 दिनों से आमरण अनशन पर रहते हुए भी अनशन स्थल पर ही 24 घंटे उपलब्ध हैं और ओपीडी खोल मरीजों को देख रहे हैं, उन्हें दवा और सलाह दे रहे हैं। 11 मई के बाद उनके निदेशन में 60 से ज्यादा एंजियोप्लास्टी हो चुकी है और इन 15 दिनों लगभग 1500-1600 मरीज़ देख चुके हैं। उनके समर्थन मे आए लोगों में से कुछ से बात हुई, जिन्होंने कहा –

मारुति मानव – प्रशासन और वाइस चांसलर किसी भी तरह दबाव बनाकर डरा रहे हैं जबकि डॉक्टर साहब यहाँ भी अपना काम कर रहे हैं, मरीजों को देख रहे हैं। 24 घंटे उपलब्ध हैं। अस्पताल का प्रशासन यह बात जान रहा है। इस बीच इनके निर्देशन में उनकी लड़ाई जनता और मरीजों के हित के लिए है

डॉ कृष्णकांत – अस्पताल के प्रशासन ने उन्हें हटाने का कारण उनका काम पर उपलब्ध न होना बता रहे हैं जबकि डॉ ओमशंकर 24 घंटे अपने विभाग में उपलब्ध हैं। जब जिसे जैसी सुविधा है मरीज दिन-रात की परवाह किए बिना दिखाने आ रहा है। भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ने वाले को सजा दी जा रही है।

एक आदेश 8 मार्च को जारी हुआ था उस पर अभी तक क्यों अमल नही हुआ यदि वह अमल हो गया होता तो यह स्थिति नहीं आती। डॉ ओमशंकर को आमरण अनशन करना पद रहा है। 15 दिन हो गए हैं

इस बीच विश्वविद्यालय ने बिस्तरों की समीक्षा के लिए एक समिति बनाई है। जिसके लिए दिल्ली एम्स के पूर्व निदेशक प्रो रमेश सी डेका की अध्यक्षता में अलग-अलग विभागों में जांच की जाएगी।

जनता के स्वास्थ्य को लेकर यह उनकी पहली लड़ाई नहीं है 

इसके पहले भी डॉ ओमशंकर ने वर्ष 2019 वाराणसी में एम्स और स्वास्थ्य को मौलिक अधिकार में शामिल करने को लेकर भी आमरण अनशन किया था

आज दस साल बीत गए लेकिन काशीवासियों को न तो एम्स मिला और न ही देशवासियों को स्वास्थ्य के मौलिक अधिकार। मोदी सरकार के विकास की परिभाषा ‘ट्रिलियन इकोनॉमी’ और कुछ गिने चुने पूंजीपतियों के विकास तक हीं सीमित दिखती है, जबकि इसे इस देश के सभी नागरिकों के प्रति व्यक्ति सालाना में बढ़ोतरी द्वारा नापा जाना चाहिए।

सरकार को अपने असंतुलित विकास के संकुचित पूंजीवादी विकास मॉडल को त्यागकर, शिक्षा और स्वास्थ्य के मौलिक अधिकार वाले सर्वांगीण विकास के मॉडल को अपनाना चाहिए। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना का मूल मकसद शिक्षा द्वारा गरीबी मिटाने को मिटाना था। सरकार के विकास मॉडल में दो और बड़ी खामियां देखने को मिली- पहला है देश, संस्थान और अधिकारियों में बेतहाशा बढ़ता भ्रष्टाचार और दूसरा है देश, संस्थान और अधिकारियों में बढ़ता प्रशासनिक अराजकता जिससे यह लोकतंत्र रोज कमजोर होता जा रहा है।

इसका सबसे बड़ा उदाहरण प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के  संसदीय क्षेत्र स्थित काशी हिंदू विश्वविद्यालय में देखने को मिल रहा है, जहां कुलपति तानाशाही रवैया अपनाए हुए हैं। वे किसी भी अधिकारी, छात्र और कर्मचारियों से नहीं मिलते हैं। कुलपति का तीन वर्षों का कार्यकाल लगभग समाप्ति पर है लेकिन विश्वविद्यालय चलाने के लिए सबसे जरूरी समिति ‘एक्जीक्यूटिव काउंसिल’ तक का गठन नहीं कर पाए हैं।

अपने अबतक के कार्यकाल के दौरान कुलपति जी लगातार महामना के आदर्शों को मिटाने और विश्व विद्यालय के एनआईवी को कमजोर करने में लगे हैं। वे रोज पंडित मदन मोहन मालवीय जी के लगाए गए कीमती पेड़ों को कटवाकर बेच रहे हैं। सर सुंदर अस्पताल में मरीजों को कम खर्च पर मिलनेवाली जांच केंद्र को अधीक्षक डॉ के के गुप्ता संग मिलकर एक निजी कंपनी प्वाइंट-ऑफ-केयर परीक्षण( POCT )के हाथों बेच दिया है जिसमें टेंडरिंग नॉर्म्स की धज्जियां उड़ाई गई। इस कंपनी द्वारा न सिर्फ गुणवत्ता पूर्ण जांचे नहीं की जा रही है बल्कि उसके लिए आम जनता को निजी जांच केंद्रों के समकक्ष पैसे देने पड़ रहे हैं।

सरकार द्वारा अस्पताल में मरीजों की सुविधाएं बढ़ाने के लिए जो धन मुहैया करवाए गया, कुलपति और चिकित्सा अधीक्षक द्वारा अपने व्यक्तिगत लाभ के लिए पत्थरों के ऊपर ग्रेनाइट लगाने के लिए किया गया।

पूरे बीएचयू अस्पताल में भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारियों का आज बोल बाला है। कुलपति जी के संरक्षण में चिकित्सा अधीक्षक डॉ के के गुप्ता संस्थान प्रमुख द्वारा हृदय रोग विभाग को सुपर स्पेशियलिटी भवन में आवंटित बेड नहीं दे रहे हैं। जिससे पिछले दो सालों में 35000 से ज्यादा मरीजों को बिस्तर खाली रहते हुए बेड नहीं मिला। ऐसे में हजारों ऐसे लोगों की जानें चली गई जिनकी जानें बचाई जा सकती थी।

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