अभाव और बदहाली में जीने वाले कोई पहले कलाकार नहीं हैं गोविंदराम झारा
एक बड़े कमरे को एकदम डार्करूम बनाया गया था। इतना अंधेरा कि लाइट बन्द करने के बाद, पास में खड़ा आदमी भी एक दूसरे को न देख सके। कुछ खास लोग कुर्सी पर बैठते और कुछ लोग खड़े रहते। मैं भी कुर्सी पर बैठ गया था। मरीज को जमीन पर बैठाकर कुछ पिलाया जाता, फिर दरवाजा और लाइट बंद कर दी जाती। अब मरीज को जोर से खांसने के लिए कहा जाता। उसके जोर से खांसते ही भूत उसके सामने चिल्लाते-दहाड़ते प्रकट हो जाता। अब सवाल जबाव शुरू। तुम कौन हो?, कहां पकड़े?, क्यों पकड़े?, क्या-क्या और किस रूप में तकलीफ दे रहे हो? भूत मरीज की जानकारी में एकदम सही सही बताता जाता।
क्या यादवों में वैज्ञानिक सोच पैदा करना पत्थर पर दूब उगाने जैसा है?
अब मेरा नम्बर आया, कुछ पिलाया गया और दूसरों की तरह जोर से खांसने को कहा गया। दो-तीन बार खांसा। भूत नहीं निकला। कहा गया आप के ऊपर किसी भी प्रकार का भूत-प्रेत नहीं है। चमत्कारी मियां जी के सलाहकार और हमारे दोस्त ने भी कहा कि आपकी औरत पर भूत प्रेत की साया हो सकता है। जब मैंने घर आकर पत्नी को सभी बातें बताई तो उसे भी विश्वास नहीं हो रहा था। जाने में आना-कानी कर रही थी।
खौलते दूध से नहाने के बीच सवाल कि पुष्पक विमान बना लिए तो शौचालय क्यों नहीं बना सके
आपके समान दर्द का हमदर्द साथी!
गूगल@ शूद्र शिवशंकर सिंह यादव
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बहुत ही बढ़िया लेख