भारतीय सियासत में महिलाओं के हिस्से अनुकंपा ही है। इंदिरा गांधी को अपने पिता की अनुकंपा से सियासत में जगह मिली। मीरा कुमार को भी यही लाभ अपने पिता जगजीवन राम के कारण प्राप्त हुआ। सोनिया गांधी भी अपवाद नहीं हैं। स्मृति ईरानी, उमा भारती जैसी कुछेक महिलाएं अवश्य राजनीति में सामने आयी हैं, जिन्हें अनुकंपा प्राप्त नहीं हुई है।
यह बात काबिले गौर है कि स्वीडन विश्व के उन शीर्ष देशों में शुमार है, जहां लैंगिक समानता सबसे अधिक है। वहां की 90 फीसदी से अधिक महिलाएं न केवल साक्षर हैं बल्कि उच्च शिक्षा हासिल कर चुकी हैं। वहां स्त्रियों के लिए सबसे अनुकूल वातावरण है। महिलाओं के खिलाफ अत्याचार के मामले में भी स्वीडन आदर्श देशों में से एक है।
उस दिन नीतीश मंत्रिमंडल का गठन हुआ था। रेणु कुशवाहा उद्योग मंत्री बनायी गयी थीं। मैं दैनिक आज में संवाददाता था। मेरे हिस्से यानी मेरी बीट में उद्योग विभाग शामिल था। इसलिए पदभार ग्रहण करने के उपरांत मुझे रेणु कुशवाहा का साक्षात्कार करना था। मैं उद्योग विभाग गया। वहां मेरे साथ बिहार चैंबर और कॉमर्स के तत्कालीन अध्यक्ष रहे केपीएस केसरी भी इंतजार कर रहे थे। करीब पांच मिनट के बाद हम रेणु कुशवाहा के कक्ष में गए और भौंचक्के रहे गए। वह अपने कार्यालय में लगे टेलीविजन पर सास-बहू धारावाहिक देख रही थीं। हालांकि हमें देखते ही उन्होंने टीवी का रिमोट दबा दिया।
मुझे लगता है कि इसके पीछे नवउदारवाद है। इस घातक पूंजीवादी व्यवस्था ने महिलाओं को गुलामी की ओर धकेल दिया है। महिलाएं बेहद कमजोर हैं और उन्हें तरह-तरह के बाजारू उत्पादों की आवश्यकता है। नवउदारवाद ने उन्हें ब्यूटी कांसस अधिक बना दिया है। उन्हें यह लगने लगा है कि उनकी पूछ तभी होगी जब उनके पास जीरो फिगर होगा या फिर उनके पास सुंदरता होगी। नवउदारवाद ने उन्हें गहनों और कपड़ों से लाद दिया है। इस व्यवस्था ने उनके ऊपर करवा चौथ जैसा त्यौहार लाद दिया है। यह एक तरह से उनकी बेड़ियों का वजन बढ़ाने के जैसा ही है।
मैं तो बिहार की बात कर रहा हूं। उस दिन नीतीश मंत्रिमंडल का गठन हुआ था। रेणु कुशवाहा उद्योग मंत्री बनायी गयी थीं। मैं दैनिक आज में संवाददाता था। मेरे हिस्से यानी मेरी बीट में उद्योग विभाग शामिल था। इसलिए पदभार ग्रहण करने के उपरांत मुझे रेणु कुशवाहा का साक्षात्कार करना था। मैं उद्योग विभाग गया। वहां मेरे साथ बिहार चैंबर और कॉमर्स के तत्कालीन अध्यक्ष रहे केपीएस केसरी भी इंतजार कर रहे थे। करीब पांच मिनट के बाद हम रेणु कुशवाहा के कक्ष में गए और भौंचक्के रहे गए। वह अपने कार्यालय में लगे टेलीविजन पर सास-बहू धारावाहिक देख रही थीं। हालांकि हमें देखते ही उन्होंने टीवी का रिमोट दबा दिया।
दरअसल, भारतीय सियासत में महिलाओं के हिस्से अनुकंपा ही है। इंदिरा गांधी को अपने पिता की अनुकंपा से सियासत में जगह मिली। मीरा कुमार को भी यही लाभ अपने पिता जगजीवन राम के कारण प्राप्त हुआ। सोनिया गांधी भी अपवाद नहीं हैं। स्मृति ईरानी, उमा भारती जैसी कुछेक महिलाएं अवश्य राजनीति में सामने आयी हैं, जिन्हें अनुकंपा प्राप्त नहीं हुई है।

बढ़िया। पठनीय और विचारणीय। बधाई।
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