Thursday, December 26, 2024
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महिलाओं को अधिकार चाहिए सहानुभूति नहीं

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस की पूर्व संध्या पर जब हम स्त्री अधिकारों की बात करते हैं सबसे पहले एक प्रश्न पैदा होता है लगातार बढ़ते हुए लैंगिक असमानता का। यह दुनिया में स्त्रियों की स्थिति का सबसे दुखद पहलू है। इसके साथ ही कुपोषण , अशिक्षा , घरेलू हिंसा , बेरोजगारी, प्रथाओं की जकड़बंदी में स्त्रियों […]

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस की पूर्व संध्या पर जब हम स्त्री अधिकारों की बात करते हैं सबसे पहले एक प्रश्न पैदा होता है लगातार बढ़ते हुए लैंगिक असमानता का। यह दुनिया में स्त्रियों की स्थिति का सबसे दुखद पहलू है। इसके साथ ही कुपोषण , अशिक्षा , घरेलू हिंसा , बेरोजगारी, प्रथाओं की जकड़बंदी में स्त्रियों का शोषण, पैतृक संपत्ति में उनकी हिस्सेदारी जैसे सवाल खड़े होते हैं। जाति व्यवस्था और पितृसत्ता किस रूप में महिलाओं को नियंत्रित और शोषित करती है। इन तमाम बातों के मद्देनजर यह निष्कर्ष सामने आता है कि विकास के सारे दावों के बावजूद स्त्रियों की दुनिया में अभी भी कितना अभाव और अंधेरा है । अपने मानवाधिकार और लोकतंत्र को पाने के लिए उन्हें बहुत लंबी यात्रा करनी होगी। आइए आज की शाम हम इस मुद्दे पर बात करते हैं। हमारे साथ सहभागी हैं डॉ मुनीजा रफीक खान , डॉ कुसुम त्रिपाठी , प्रोफेसर लालसा यादव और संगीता कुशवाहा। संचालन कर रही हैं अपर्णा।
https://www.youtube.com/watch?v=5lkdnKbhUVU&t=365s
गाँव के लोग
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