उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022
उत्तर प्रदेश में जातीय समीकरण बैठा कर चुनाव जीतने वाले राजनीतिक दलों, का जातीय समीकरण युवा वर्ग के कारण गड़बड़ा ने लग गया है क्या?
उत्तर प्रदेश में जातीय समीकरण बिठाकर चुनाव जीतने वाले राजनीतिक दलों के सामने, उन जातियों के युवा संकट पैदा कर रहे हैं क्या? क्या जातिगत नेता अपनी अपनी जातियों के युवाओं के सामने लाचार से दिखने लगे हैं क्या? क्या युवाओं को अस्थाई समाधान नहीं चाहिए बल्कि स्थाई समाधान चाहिए? युवाओं को मुफ्त का राशन नहीं चाहिए जो स्थाई नहीं है कुछ समय के लिए है, युवा को स्थाई रोजगार चाहिए?
गत दिनों भाजपा के द्वारा आयोजित निषाद सम्मेलन के बाद, निषाद जाति के युवाओं की आरक्षण को लेकर नाराजगी कुछ ऐसे ही इशारे कर रही है कि युवाओं को अपने नेताओं की बात पर भरोसा नहीं रहा है, युवा आश्वासन नहीं अब समाधान चाहता है! उत्तर प्रदेश के चुनावी इतिहास को देखें तो प्रदेश में भाजपा, समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी जातिगत समीकरण बैठा कर सत्ता के गलियारों तक पहुंची है। प्रदेश में 2022 में फिर से विधानसभा के चुनाव हैं ऐसे में उत्तर प्रदेश की सत्ता भोग चुके और सत्ता भोग रहे दल एक बार फिर से जातीय समीकरण बैठाने में जुट गए हैं। मगर इस बार राजनैतिक दलों की राह आसान दिखाई नहीं दे रही है की जातीय समीकरण किसी एक दल के साथ मजबूती के साथ दिखाई दे! जो जातीय दल 2017 में सत्ताधारी भाजपा के साथ खड़े थे उनमें से कई दल समाजवादी पार्टी के साथ खड़े होते दिखाई दे रहा है। उत्तर प्रदेश की चार प्रमुख पार्टियां जिनकी पहचान राष्ट्रीय स्तर पर देखी जाती है भाजपा कांग्रेस समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी, यदि कांग्रेस को छोड़ दे तो, भाजपा बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी तीनों ने जातीय समीकरण की तिकड़म बैठा कर उत्तर प्रदेश की सत्ता पर राज किया है। खास बात यह है कि उत्तर प्रदेश में छोटे-छोटे अनेक राजनीतिक दल हैं, जो जातियों पर आधारित हैं भाजपा समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी इन छोटे-छोटे दलों से चुनावी गठबंधन करती रही है।
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इस बार छोटे-छोटे दलों की नजर भाजपा और समाजवादी पार्टी पर अधिक है। भाजपा उत्तर प्रदेश की सत्ता में है जबकि समाजवादी पार्टी 2022 में सत्ता प्राप्ति के लिए संघर्ष कर रही है और समाजवादी पार्टी सत्ता के संघर्ष में अभी तक सबसे आगे दिखाई दे रही है, शायद इसीलिए जो दल भाजपा के साथ सत्ता में भागीदारी कर रहे थे उनमें से कई दल समाजवादी पार्टी की तरफ देख रहे हैं।
छोटे-छोटे राजनीतिक दलों के नेताओं के सामने संकट अपने लोगों को एकजुट रखने का भी दिखाई देने लगा है, क्योंकि लोगों के सामने बेरोजगारी और महंगाई का संकट है, युवा स्थायी समाधान चाहता है, जिसकी मांग वह अपने नेताओं से कर रहा है ! शायद नेताओं के सामने यह एक बड़ा संकट खड़ा हो गया है कि वह किस पार्टी को समर्थन दे जो अपने युवाओं की समस्याओं का स्थायी समाधान कर सके?
देवेंद्र यादव कोटा स्थित वरिष्ठ पत्रकार हैं।