चुनाव का प्रचार एवं रैली कितनी आवश्यक है इसका अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की रैली के लिए किसानों की कच्ची फसल पर हार्वेस्टर चला दिया गया। अपने बयान में नरेन्द्र मोदी किसानों की बात जरूर करते हैं लेकिन किसानों के प्रति उनका कितना लगाव है इसका अंदाजा आप खुद लगा सकते हैं। जब किसान भाई, पत्र के माध्यम से अपनी बात पहुंचाते हैं तब भी उसका जवाब देने के लिए प्रधानमंत्री के पास समय नहीं होता, जब किसान द्वारा कृषि कानून बिल को वापस लेने के लिए धरना प्रदर्शन किया जाता है तब भी प्रधानमंत्री की तरफ से किसानों से कोई बात-चीत नहीं की जाती। हां यह बात अलग है कि कृषि मंत्री द्वारा किसान नेताओं को मिलने के लिए बुलाया जाता रहा है जिसका निष्कर्ष आज तक नहीं निकला।
भारत एक कृषि प्रधान देश है। कृषि, भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ है। भारत में लगभग 10 करोड़ परिवार कृषि पर निर्भर हैं। किसानों के पास उनका खेत और खेती ही जीवन यापन का एक मात्र साधन होता है। यदि किसानों को अपने खेत के माध्यम से सही मात्रा में उपज प्राप्त नहीं होती तो उनका जीवनयापन भी मुश्किल हो जाता है। लेकिन ये बातें नेताओं को कहां समझ में आती हैं। हां, ये अलग बात है कि अपने संबोधन एवं चुनावी रैली में अपने आपको वे किसान का बेटा ही कहते हैं। कहें भी क्याें न ? उनको पता है कि किसानों में इतनी ताकत है कि किसी भी सरकार का तख्ता पलट कर सकते हैं। लेकिन हमारे देश के भोले किसान चुनावी रणनीति को कहां समझ पाते हैं। साढे़ चार साल में भले ही सरकार ने उनके लिए काम न किया हो लेकिन अंतिम के मात्र छः महीनों में जो घोषणाएं होती हैं उन पर विश्वास करके फिर से पांच वर्षाें के लिए अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारने का कार्य कर लेते हैं।
वाराणसी की जनता के साथ-साथ देश भर के लोगों ने प्रधानमंत्री का भाषण सुना और कई समाचार चैनल उस पर चर्चा भी करेंगे, आखिर करें भी क्याें न? आखिर विज्ञापन की जिम्मेदारी उनके ऊपर जो है। चर्चा जरूर करें लेकिन इस बात को याद जरूर करें कि सन् 2017 में विधानसभा चुनाव के पहले हुए चुनावी घोषणा के बाद अब तक कितना कार्य हुआ है? बात उस किसान की भी करें जिनकी हरी एवं लहलहाती फसल पर हार्वेस्टर चला दिया गया। बात उसकी भी करें कि वाराणसी में अभी भी कितने लोग झोपड़ी में रहने को मजबूर हैं। बात उसकी भी करें कि इस चुनावी रैली में कितना खर्च आया? बात उसकी भी करें कि इस रैली के कारण यातायात कितना प्रभावित हुआ? लेकिन अफसोस इस पर कोई बात करने को तैयार नहीं है।
इस तरह जुटाई गई भीड़
प्रधानमंत्री की इस रैली में विभिन्न योजनाओं के लाभार्थियों को लाने के लिए उत्तर प्ररेश के 12 जिलों से लगभग 1000 बसें आईं। जिसका अनुमानित किराया एक करोड़ अठारह लाख बीस हजार रु. है। इसमें मात्र वाहन खर्च शामिल है। इसके अलावा भी न जाने कितना खर्च हुआ होगा। यदि इस खर्च पर नजर डाली जाय तो यह स्पष्ट है कि इतने रुपये में कितने ही परिवारों की किस्मत बदल सकती है। किसी लाभार्थी का प्रदेश के विभिन्न भाग से वाराणसी लाना कहां तक जायज है? लाभार्थी को बुलाने में लगने वाले खर्च से कई अन्य परिवारों को सरकार की इन योजनाओं को लाभ मिल सकता था।
इस चुनावी रैली में शासकीय शिक्षकों एवं अन्य शासकीय कर्मचारियों की भी ड्यूटी लगाई गई थी अधिकारियों द्वारा शिक्षकों एवं अन्य शासकीय कर्मचारियों को नोटिस भेजा गया था, जिसमें यह स्पष्ट रूप से लिखा था कि सभी का इस रैली में आना अनिवार्य है। शिक्षकों के रैली में जाने से शिक्षा व्यवस्था कितनी प्रभावित हुई इस बात का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि कई विद्यालयों में मात्र एक या दो शिक्षकों के सहारे सभी विद्यार्थियों की जिम्मेदारी थी। इसके पहले कोरोना के चलते शिक्षा व्यवस्था कितनी बहुत बुरी तरह से प्रभावित हुई इस बात से सभी लोग वाकिफ हैं।
साथ में इस बात पर भी गौर करना अनिवार्य है कि यह भारत के लोगों का रुपया है। भारत का व्यक्ति बिजली बिल, पानी बिल, पेट्रोल एवं डीजल खर्च, ट्रेन का किराया, टैक्स आदि न जाने कितने माध्यमों से भारत सरकार को रुपया देता है। यह पहली बार नहीं है, कई बार इस तरह का आंकड़ा हमारे सामने आया है कि चुनाव में किसी भी पार्टी द्वारा कितना खर्च किया जाता है। लेकिन यह सवाल पूछने वाला कोई नहीं है कि भारत के आम नागरिक का पैसा इस तरह क्यों खर्च किया जाता है। पेट्रोल एवं डीजल के दामों में रोज बढ़ोत्तरी हो रही है, गैस सिलेण्डर हजार पहुंचने वाला है। लेकिन इस पर कोई नियंत्रण करने वाला नहीं है और वहीं रोजगार की बात करें तो मात्र घोषणाओं में ही भारत के करोड़ों युवाओं को रोजगार मिलता है। घोषणाओं के अलावा नाम मात्र की भर्ती करके कोरम पूरा कर लिया जाता है।
वाराणसी में प्रदेश के विभिन्न भागों से लोगों को बुलाकर भीड़ जुटाई गई, वहीं जिले के ही कई सामाजिक कार्यकर्ताओं को नजरबंद कर दिया गया।
पूर्वांचल बहुजन मोर्चा के संयोजक डॉ.अनूप श्रमिक ने बात करते हुए बात करते हुए कहा कि, ‘बनारस सैकड़ो संघर्षों के साथियो को नज़रबंद करवाने के बाद मोदी बनारस मे घुसते हैं। गैरकानूनी तरह से सामाजिक राजनैतिक कार्यकर्ताओं को हाउस अरेस्ट करना, थाने/चौकी पर बिठा के रखना ये सत्ता द्वारा अभिव्यक्ति के आज़ादी पर हमला है। साथ ही साथ बनारस जनपद में लगातार धारा 144 लगा के रखना ये संविधान के साथ खिलवाड़ है। मोदी-योगी सत्ता यूपी सहित पूरे देश को कश्मीर जैसे हालात में ले जाना चाहती है, जहाँ आम नागरिकों का दमन सत्ता अपने मनमाने ढंग से कर सके।’
आखिर आम आदमी अपना जीवन यापन कैसे करे? क्या जनता सरकार को इसलिए चुनती है कि उसका शोषण हो? क्या चुनावी वादे मात्र जुमला हैं? सरकार का कर्तव्य यह है कि टैक्स के माध्यम से प्राप्त रुपयों को जनता के हित के लिए प्रयोग करे न कि चुनावी रैली के लिए।