एक तरफ़ सपा मुखिया अखिलेश यादव पीडीए (पिछड़ा, दलित अल्पसंख्यक) की अवधारणा के साथ सामाजिक न्याय की लड़ाई को आगे बढ़ा रहे हैं तो दूसरी तरफ़ सपा के सांस्कृतिक प्रकोष्ठ के अध्यक्ष और पूर्व एमएलसी काशीनाथ यादव अपने कुकर्मों से इसमें पलीता लगा रहे हैं। हाल ही में इसका उदाहरण देखने को मिला है। कुछ दिन पहले लिजेंड्री बिरहा गायक बाला राजभर का एक यूट्यूब पर एक साक्षात्कार प्रकाशित हुआ जिससे चिढ़कर काशीनाथ यादव ने बुजुर्ग बाला राजभर के गाँव संवरा (बलिया) जाकर उन्हें जातिसूचक गालियाँ दी और परिवार के लोगों को धमकियाँ दी। बताया जा रहा है कि वह अपने साथ बलिया के बिरहा गायक सुरेन्द्र यादव तथा उनके कुछ गुंडों को भी साथ लेकर गए थे। उनके इस कृत्य से बाला जी का परिवार सकते में और डरा हुआ है। उन्होंने काशीनाथ से अपनी जान को खतरा बताया है।
गौरतलब है कि पिछले दिनों यूट्यूब चैनल ramjiyadavarchive पर प्रकाशित एक साक्षात्कार में बुज़ुर्ग लिजेंडरी गायक बाला राजभर ने अपने शिष्य एमएलसी काशीनाथ यादव के व्यवहार को लेकर अपने अनुभव बताए। उन्होंने कहा कि ‘जब काशीनाथ से कोई गाने को तैयार नहीं था तब मैंने रामदेव से कहकर उसे गवाया ताकि बिना माँ-बाप का यह बच्चा स्थापित हो। लेकिन काशी ने बाद में मुझे ही बिरहा से काटना शुरू किया।’
बाला राजभर का साक्षात्कार
उन्होंने कहा कि ‘काशी ने मेरे साथ अहिरवाद किया। मैंने भी जाति देखी होती तो आज काशी को कोई नहीं जानता, लेकिन वह हमारे पड़ोस का बच्चा था तो मैंने उसके लिए वह सब किया जो कर सकता था।’ बालाजी ने गुस्से से कहा कि ‘काशीनाथ बहुत कृतघ्न और गद्दार आदमी है। उसने यश भारती सम्मान के लिए ले जाया गया मेरा फॉर्म फेंक दिया। और स्वयं वह पुरस्कार ले लिया।’
इस बात से काशीनाथ इतना चिढ़े कि अपने बलिया निवासी शिष्य सुरेन्द्र यादव को साथ लेकर बाला राजभर के घर गए और उन्हें जातिसूचक गालियाँ दी। उन दोनों ने बाला राजभर को बर्बाद करने, बुढ़ौती बिगाड़ने और परिवार वालों को परिणाम भुगतने की धमकी दी। इस बात से आहत और डरे हुये बाला राजभर के बेटे रमेश ने दिवंगत गायक पंडित परशुराम के पुत्र गायक अखिलेश को फोन कर चैनल से वीडियो हटाने की गुजारिश की। इस बात की पुष्टि के लिए मैंने बाला राजभर को फोन किया और मामले के बारे में जानना चाहा तब उन्होंने कहा कि यह सत्य घटना है। दोनों लोग अपने साथ कई और लोगों को लेकर आए थे और मुझे धमकाया और जातिसूचक गालियाँ दी।
बिरहा से जुड़ी अनेक हस्तियों ने इस घटना की घोर निंदा की है और कहा कि किसी की अभिव्यक्ति का गला घोंटना उसके संवैधानिक अधिकारों का हनन है और इसके लिए उसके घर जाकर धमकी देना आपराधिक कृत्य है। सुप्रसिद्ध कवि और गायक मंगल यादव ने कहा कि ‘सारी दुनिया जानती है कि बाला मास्टर ने काशीनाथ एमएलसी को आगे बढ़ाने में बहुत बड़ी भूमिका निभाई है। जब उनकी कोई हैसियत नहीं थी तब उन्होंने रामदेव से कहकर उन्हें गवाने और मंच पर स्थापित करने का काम किया। काशीनाथ ने बिरहा के दम पर राजनीतिक सीढ़ियाँ चढ़ी और बेहिसाब धन-दौलत जुटाई। लेकिन उन्होंने समाज तो छोड़िए अपने गुरु बाला और भोला मास्टर के लिए भी कुछ नहीं किया। अगर बाला मास्टर अपने क्षोभ और गुस्से को प्रकट कर रहे हैं तो यह उनका अधिकार है क्योंकि उन्होंने काशीनाथ के लिए बहुत कुछ किया लेकिन काशीनाथ का यह कत्तई अधिकार नहीं है कि वे बालाजी के घर जाकर उन्हें गालियाँ दें और धमकाएँ। उन्हें अपने इस कृत्य के लिए अविलंब सार्वजनिक माफी मांगनी चाहिए।’
बाला राजभर के साक्षात्कार का पहला भाग
पत्तू अखाड़े के बड़े गायक सूबेदार यादव ने बालाजी को धमकाने और गाली देने के लिए काशीनाथ और सुरेन्द्र की भर्त्सना की और कहा कि ‘बालाजी बहुत बड़े गायक रहे हैं। उनका एक पूरा दौर था। उन्होंने काशीनाथ के लिए जितना किया उतना कोई नहीं करता लेकिन बाला को उन्होंने वह सम्मान नहीं दिया जिसके वह हकदार थे। अगर किसी का जी जलेगा तो वह अपना गुबार निकालेगा ही लेकिन बात का जवाब बात होती है, धमकी नहीं। इन दोनों ने आपराधिक कृत्य किया है और मैं बालाजी के साथ खड़ा हूँ।’
बिरहा मर्मज्ञ हैदराबाद निवासी डॉ सुभाष यादव ने भी इसकी निंदा करते हुये कहा कि ‘बिरहा का इतिहास एक तरफ महान सांस्कृतिक विरासत का इतिहास है तो दूसरी ओर धोखेबाजियों और षडयंत्रों की एक लंबी शृंखला भी है। षडयंत्रों के कारण ही किसी ने महान कवि चंद्रिका को पारा खिला दिया और उनकी जान चली गई। षड्यंत्र करके किसी के कार्यक्रमों को रुकवाना और उसे परिदृश्य से बाहर करना आम बात है। अमूमन जेनुइन बिरहा गायक इसके शिकार होते रहते हैं। बालाजी ने इंटरव्यू में कोई गलत बात नहीं की है। अगर काशीनाथ यादव ने अपने गुरु से कपट किया है तो गुरु ने वही बात कह दी, लेकिन सच्चाई कड़वी होती है। काशीनाथ को सच स्वीकारना चाहिए और मानना चाहिए कि उनसे चूक हुई है। उन्हें बालाजी से माफी मांगनी चाहिए।’
बिरहा के प्रति समर्पित कार्यकर्ता दिल्ली निवासी बेचू यादव ने कहा कि ‘काशीनाथ एक वरिष्ठ गायक और ज़िम्मेदार राजनेता हैं। वह समाजवादी पार्टी के सांस्कृतिक प्रकोष्ठ के अध्यक्ष हैं जिसके नाते अखिलेश जी की पीडीए की राजनीति को आगे बढ़ाने का दायित्व काशीनाथ जी के कंधों पर है लेकिन बाला जी को गाली देकर उन्होंने पीडीए का बहुत बड़ा नुकसान किया है। राजभर समाज पीडीए का बहुत मजबूत हिस्सा है। काशीनाथ के व्यवहार से पीडीए की सामाजिक एकता को बहुत बड़ा नुकसान पहुंचा है। अब यह अखिलेश यादव को समझना और निर्णय लेना कि पीडीए केवल एक नारा है या सचमुच उसमें सभी जातियों का सम्मान है।’
प्रसिद्ध लोककवि और बिरहा के इतिहासकार रामचरण वियोगी ने इस पर प्रतिक्रिया देते हुये कहा है कि ‘काशीनाथ यादव पूर्व एमएलसी बहुत ही अवसरवादी व्यक्ति हैं। काशीनाथ यादव जी के गुरु आदरणीय बाला मास्टर अपने जमाने में जय जखाड गुरु जद्दू अखाड़े के बहुत बड़े गायक रहे हैं। हम सबके आदर्श भी हैं। बिरहा सम्राट रामदेव यादव जी के परम जोड़ीदार भी हैं। इन्होंने अपने शिष्य काशीनाथ यादव को अपने जमाने में रामदेव जी से आग्रह करके आगे बढ़ाने का काम किया। उन्हीं के पेट पर लात मारकर काशीनाथ यादव आगे बढ़े, जबकि रामदेव जी ने बाला मास्टर से कहा भी कि आप अपने पैर पर कुल्हाड़ी मार रहे हैं, लेकिन उदार चित्त होने के कारण, रामदेव जी ने उस बात पर ध्यान नहीं दिया। अन्ततः वही हुआ। बाला मास्टर इतने बड़े गायक होकर भी मार्केट से कट गए। जबकि रामदेव यादव जी के रहमो-करम से काशीनाथ यादव चर्चित गायक बन गए। दुख इस बात का है, काशीनाथ यादव न अपने गुरु के हुए न रामदेव जी तथा उनके परिवार के हुए। दो-तीन बार एमएलसी भी बने। चाहे होते तो एहसानों के कर्जों को उतार दिए होते, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। केवल अपनी अरबों की सम्पत्ति बनाने बढ़ाने में लिप्त रहे,बल्कि जहां बाला मास्टर को सम्मान मिलना था, उसे भी भ्रमित करके हासिल कर लिए। धिक्कार है ऐसे तथाकथित शिष्य को। विरहा के ही द्वारा एमएलसी पद तक पहुंच कर मलाई काटे, मगर उन दिनों बिरहा के लोगों को कोई तवज्जो नहीं देते थे। आज जब पार्टी सत्ता से बाहर है तो फिर उसी बिरहा समाज में घूमकर बिरहा गा रहे हैं और पैसा लूट रहे हैं। कहते हैं कि मैं बिरहा बचाने के लिए आया हूं, जबकि ऐसा कहीं कुछ नहीं है। केवल अपनी झोली भर रहे हैं।’
बलिया निवासी प्रसिद्ध अधिवक्ता और लेखक-कवि अवध बिहारी मितवा ने कहा कि ‘हालांकि मुझे इसकी जानकारी नहीं है लेकिन यदि ऐसा हुआ है तो दुर्भाग्यपूर्ण है और ऐसा नहीं होना चाहिए। जैसा कि बाला जी के इंटरव्यू में बताया गया है। वह उनके मन का उद्गार है। लोकसंगीत के घराने उस्ताद और शागिर्द परंपरा को आगे बढ़ाते रहे हैं। लेकिन कोई शागिर्द अगर गुरु के सम्मान को ठेस पहुंचाता है तो यह अपराध है। बालाजी वयोवृद्ध कलाकार हैं। उनके सम्मान के लिए मैं हमेशा उनके साथ हूँ।’
इसके अतिरिक्त कवि गंगासागर राय, विनोद कुमार यादव, सतीश कुमार यादव और अखिलेश यादव ने भी बालाजी के साथ काशीनाथ यादव की बदतमीजी और दुर्व्यवहार की आलोचना की है। इनके अतिरिक्त बिरहा जगत से जुड़े अनेक लोगों ने बाला राजभर के प्रति अपनी भावना व्यक्त की और एमएलसी काशीनाथ यादव के खिलाफ अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम 1989 के तहत मुकदमा दर्ज़ किए जाने और उन्हें अविलंब जेल भेजे जाने की मांग की। वाराणसी के सामाजिक कार्यकर्ता मनीष शर्मा ने कहा है कि ‘काशीनाथ यादव के व्यवहार से अखिलेश यादव के पीडीए सिद्धान्त की फांक नज़र आती है जब पीडीए का धनबल से मजबूत आदमी पीडीए के ही एक कमजोर परिवार पर हमला करता है। इससे पता चलता है कि अभी तक पीडीए सिर्फ एक नारा है। धरातल पर कहीं नहीं है।’
गाँव के लोग और ramjiyadavarchive ने बालाजी के सम्मान में काशीनाथ और सुरेन्द्र के खिलाफ एक हस्ताक्षर अभियान शुरू किया है। बाद में इसे समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव को भेजा जाएगा।
कौन हैं बाला राजभर
बाला राजभर एक प्रसिद्ध और लिजेंड बिरहा गायक हैं जिन्होंने सत्तर के दशक में अपनी गायकी का जलवा बिखेरना शुरू किया और जल्दी देश के विभिन्न हिस्सों में उनकी गायकी की धूम मच गई। उन्होंने लंबे समय तक बिरहा जगत पर राज किया। वीररस के महान कलाकार रामदेव के साथ उनकी जोड़ी बहुत प्रसिद्ध हुई । यह जोड़ी तब बनी जब बनारस की बिरहा कमेटी ने रामदेव के साथ गाने से हर बिरहिया को प्रतिबंधित कर दिया था।
बाला ने कठिन संघर्ष से अपनी राह बनाई। उनका जन्म सन 1928 में बलिया जिले के चिलकहर ब्लॉक के संवरा गाँव में हुआ था। जब वह बहुत छोटे थे तभी उनके पिता डोमन प्रसाद राजभर को एक पागल कुत्ते ने काट लिया था और जहर फैलने से उनकी मौत हो गई। तब उनकी माँ नगिया देवी ने अकेले दम पर परिवार का भरण-पोषण किया। बाला का बचपन गाय चराते हुये बीता।
बाला का परिवार अत्यंत गरीबी में गुजर-बसर कर रहा था। इनके ही गांव के दोनों आंखों के सूर अनंत चौहान बलिया से कलकत्ता जानेवाली गाड़ी में भीख मांगने का काम करते थे। एक बार वह बाला को अपने साथ आसनसोल-कलकत्ता लेकर चले गए। वहां बाला के मामा वंश बहादुर प्रसाद स्टील फैक्ट्री में काम करते थे और बिरहा भी गाते थे। दोनों वहीं महीने भर रहे। अपने मामा से एक विरहा लेकर बाला ने वहीं पहला बिरहा याद किया और धीरे-धीरे गाने लगे।
आसनसोल में जब पहली बार बाला ने गाया तो बहुत लोगों ने उनकी सराहना की। इनकी आवाज लोगों के दिल-दिमाग में बस गई। उन्हें लोगों का प्यार मिला और उनका हौसला बढ़ता गया। उनके मामा जी उनकी नौकरी लगवा रहे थे, लेकिन उनका मन फैक्टरी तथा कोयलरी में नहीं लगा। वह पूरी तरह बिरहा गाना चाहते थे। वह गाँव लौट आए और बिरहा के जुनून में जीने लगे। हालांकि उनकी माँ इसके खिलाफ थीं क्योंकि उनके पिता भी बिरहा के शौकीन थे और घर-गृहस्थी से हमेशा निस्पृह रहे। बाला जी बताते हैं कि माँ के डर से मैं छिपकर बिरहा सुनने और गाने जाता था।
कलकत्ता में उनकी मुलाकात जद्दू अखाड़े के मशहूर गायक देऊ राम से हुई । बाला ने देऊ राम को अपना गुरु और आदर्श मानकर बिरहा सीखना और गाना शुरू किया। शुरुआत में उन्होंने फकीरी रूप बनाकर बिरहा गया और धीरे-धीरे बड़े कलाकार बन गए। उनका पहला बिरहा दंगल गुरु बिहारी अखाड़े के मशहूर गायक राजाराम से बालीगंज में हुआ जिससे बाला को बहुत प्रसिद्धि मिली।
बाला राजभर का एक दुर्लभ बिरहा
बाद में राजाराम के गुरु कालीचरन तथा गुड्डू से भी मुक़ाबला हुआ। इसके बाद कलकत्ता से लेकर बनारस तक बाला का नाम गूंजने लगा। कहीं न कहीं प्रतिदिन कार्यक्रम रहता था। बनारस के मशहूर गायक पद्मश्री हीरालाल यादव, पारसनाथ यादव, बुल्लू यादव, रामदेव यादव, शिवमूरत यादव, रामधारी यादव, बिरजू यादव, बंगाल चैम्पियन राम अवध यादव, दया बदरी जौनपुर, इलाहाबाद के रामअधार, राम कैलाश यादव, पंधारी यादव, नगेसर प्रसाद, बलिया के द्वारिका, राम सेवक, सहदेव यादव, मऊ के बेचन राजभर के अलावा बिरहा के सभी नामी-गिरामी कलाकारों के साथ उनका बिरहा दंगल हुआ और उनका बुलन्दी पर गूंजने लगा।
जद्दू अखाड़े में बाला जी के बहुत नामी-गिरामी शिष्य हुए। इनमें पंडित परशुराम यादव, काशीनाथ यादव पूर्व एमएलसी, सुरेन्द्र यादव, ओमप्रकाश यादव, राम ध्यान यादव , विनोद सिंह यादव, राम केवल यादव, केशव मास्टर, राज विजय यादव, आत्मा प्रधान, रमेश प्रसाद, सुरेश मास्टर और रामकृपाल यादव प्रमुख हैं।
बिरहा दंगलों में दुहराव से बचने और सुननेवालों की रुचियों को देखते बाला जी ने अपने बिरहे की रिकॉर्डिंग नहीं कराई। बेचू यादव के सौजन्य से यूट्यूब पर मौजूद एक बिरहा माँ की ममता है। इसमें जवानी के दिनों की बाला की आवाज और अद्भुत अंदाज सुना जा सकता है। फिलहाल बाला राजभर बिरहा जगत के सबसे वरिष्ठ गायक हैं।
राजभरों की नाराजगी पीडीए की राजनीति को धराशायी कर सकती है
आमतौर पर माना जाता है कि राजभर जाति अपनी राजनीतिक रुझान के कारण भाजपा के नजदीक है और ओमप्रकाश राजभर के इशारों पर चलती है लेकिन कुछ राजनीतिक विश्लेषक और चिंतक इससे असहमति ज़ाहिर करते हैं। झारखंड में अध्यापक और हिन्दी साहित्य के जाने-माने आलोचक डॉ सुनील यादव कहते हैं कि ‘राजभर जाति परिश्रमी और बहादुर जाति है और हमेशा सामाजिक न्याय के साथ खड़ी होती रही है। जातिवादी नेताओं के बहकावे में मुट्ठी भर लोग हमेशा होते हैं लेकिन विधानसभा और लोकसभा चुनावों में राजभर समाज ने हमेशा बहुजन और सामाजिक न्याय की राजनीति को महत्व दिया है। अखिलेश यादव के पीडीए का अत्यंत महत्वपूर्ण और मजबूत स्तम्भ राजभर समाज है।’
बेचू यादव कहते हैं कि ‘काशीनाथ के व्यवहार से आहत बाला जी अगर राजभर समाज में जाते हैं और कहते हैं कि अखिलेश यादव का पीडीए का नारा झूठा है तो हर कोई सहज ही विश्वास करेगा। समाजवादी पार्टी के सांस्कृतिक प्रकोष्ठ का एक जिम्मेदार व्यक्ति अगर सत्तानबे साल के महान और बुजुर्ग गायक का अपमान करेगा तो यह केवल राजभर समाज ही नहीं हम सबको भी बुरा लगेगा और हम इसके खिलाफ खड़े होंगे। हालांकि बाला जी बहुत उदार और क्षमाशील व्यक्ति हैं लेकिन दूसरे लोगों से यह उम्मीद नहीं की जा सकती।’
ऐसे समय में जब व्यापक बहुजन समाज को पीडीए के तहत एकत्र होने की जरूरत है तब काशीनाथ यादव का यह व्यवहार बहुत ही निंदनीय है। किसी भी रूप में बिरहा में बाला राजभर का योगदान बहुत बड़ा है। स्वयं काशीनाथ यादव के विकास में उनका बुनियादी योगदान है। ऐसे में उनसे अपने गुरु के साथ बदतमीजी की उम्मीद कोई भी नहीं करता।
देखना यह है कि काशीनाथ यादव और सुरेन्द्र यादव कब बाला जी से सार्वजनिक माफी मांगते हैं या अखिलेश यादव पीडीए को नुकसान पहुंचाने के लिए काशीनाथ यादव को क्या दंड देते हैं?