सैन्य सेवा प्रमुख बिपिन रावत समेत 13 लोगों की मौत कल तमिलनाडु में हेलीकॉप्टर हादसे में हो गई। इस हादसे के बाद कई तरह के सवाल उठ रहे हैं। इन सवालों में साजिश वगैरह की बात भी की जा रही है। लेकिन प्रथमदृष्टया मुझे लगता है कि इसमें साजिश वाली कोई बात नहीं है। वजह यह कि यह पहली बार नहीं है जब रूसी कंपनी द्वारा तैयार करीब सौ करोड़ रुपए के मूल्य वाला हेलीकॉप्टर दुर्घटनाग्रस्त हुआ है। अंतर यह है कि पहली बार इस तरह की दुर्घटना में कोई शीर्ष सैन्य अधिकारी मारा गया है।
मुझे लगता है कि यह चलन केवल भारत में ही नहीं, बल्कि पूरे विश्व में है कि आदमी के मरने के बाद लोग उसकी आलोचना नहीं की जाती है। भारत में तो यह चलन कुछ अधिक ही है। वह बिपिन रावत जो कि पुलवामा हमला और फिर बालाकोट (जिसे सर्जिकल स्ट्राइक कहा गया) आदि को लेकर कटघरे में नजर आ रहे थे, अचानक से महान देशभक्त हो गए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक ने उनकी देशभक्ति पर अपनी मुहर लगायी। राजनाथ सिंह तो कल दोपहर से ही यह बात बार-बार दुहरा रहे थे। हालांकि भारतीय सेना में राजपूतों का यह गठबंधन अपने आप में बड़ा सवाल है।
[bs-quote quote=”दरअसल, मामले कई हैं और मुझे लगता है कि भारतीय सेना के अंदर बहुत सारी ऐसी बातें हैं, जिनके ऊपर सवाल उठाए जाने चाहिए। खासकर चीन से लगी सीमाओं के संबंध में। वजह यह कि चीन द्वारा भारतीय भूमि का अतिक्रमण लगातार बढ़ता जा रहा है। भारतीय सेना को असफलता मिली है, इसकी पुष्टि अनेक बार हो चुकी है। इसके बावजूद भारतीय सेना कामयाबी के झंडे गाड़ रही है, इस तरह के दावे बहुत किए गए हैं।” style=”style-2″ align=”center” color=”” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]
खैर, बिपिन रावत के साथ उनकी पत्नी का निधन भी हुआ और 11 अन्य सैन्यकर्मी भी मारे गए। यह अत्यंत ही दुखद घटना है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि सवाल नहीं उठाए जाएं। यह सवाल तो उठना ही चाहिए कि वह हेलीकॉप्टर, जिसके क्रू मेंबर्स अत्यंत ही अनुभवी थे। वह हेलीकॉप्टर, जिसे हाल ही में अपग्रेड किया गया था, वह अचानक दुर्घटनाग्रस्त कैसे हुआ। वैसे भी कुन्नूर के जिस इलाके में यह हादसा हुआ, लो विजिबिलीटी को छोड़ दें तो और कोई समस्या थी, अबतक ऐसी कोई बात सामने नहीं आयी है। हालांकि यह मुमकिन है कि हेलीकॉप्टर के ब्लैक बॉक्स में कुछ बात सामने आए।
परंतु, यह कयासबाजी कि बिपिन रावत किसी साजिश के शिकार हुए हैं, आधारहीन प्रतीत नहीं होती है। दरअसल, चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ होने के बावजूद सेना के अंदर की राजनीति में रावत की हैसियत केवल और केवल नरेंद्र मोदी के प्यादे के रूप में रही। उनके ऊपर यह आरोप भी लगता रहा कि उन्होंने भारतीय सेना का राजनीतिकरण किया। या कहिए कि भारतीय सेना का इस्तेमाल राजनीति के लिए करने का अवसर नरेंद्र मोदी को बिपिन रावत ने ही दिया।
दरअसल, मामले कई हैं और मुझे लगता है कि भारतीय सेना के अंदर बहुत सारी ऐसी बातें हैं, जिनके ऊपर सवाल उठाए जाने चाहिए। खासकर चीन से लगी सीमाओं के संबंध में। वजह यह कि चीन द्वारा भारतीय भूमि का अतिक्रमण लगातार बढ़ता जा रहा है। भारतीय सेना को असफलता मिली है, इसकी पुष्टि अनेक बार हो चुकी है। इसके बावजूद भारतीय सेना कामयाबी के झंडे गाड़ रही है, इस तरह के दावे बहुत किए गए हैं।
लेकिन मुख्य सवाल यही है कि जंगल में मोर नाचा या नहीं नाचा, यह किसने देखा? भारतीय सेना को पत्रकारिता के लिहाज से प्रोटेक्टेड रखा गया है। इसके पहले जब वी के सिंह थल सेना अध्यथ थे, तब भी राजपूतों की करणी सेना जिस तरीके से उनके समर्थन में खड़ी थी और तत्कालीन हुकूमत से वी के सिंह नाराज चल रहे थे, उस समय भी भारतीय सेना को एकदम पवित्र करार दिया गया था। यहां तक कि जब थल सेना द्वारा दिल्ली कूच की तैयारी की खबर आयी तब भी भारतीय मीडिया ने (केवल एक अंग्रेजी अखबार को छोड़कर) उसकी पवित्रता को बरकरार रखा था।
बहरहाल, रक्षा सौदों को लेकर सवाल भी कम अहम सवाल नहीं हैं। बिपिन रावत के निधन से अब कुछ सवालों पर विराम लग गया है। लेकिन सवाल तो सवाल ही हैं। समय आने पर उठेंगे भी और जवाब भी मांगे जाएंगे।
नवल किशोर कुमार फॉरवर्ड प्रेस में संपादक हैं।
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