इस वर्ष बैमौसम बारिश, तेज तूफान और ओलावृष्टि से संतरा उत्पादन करने वाले किसानों को भी भारी नुकसान उठाना पड़ा है। देश के सबसे बड़े संतरा उत्पादक राज्य मध्य प्रदेश में बारिश और ओलावृष्टि से अस्सी फीसदी संतरे की फसल बर्बाद हो चुकी है। मध्य प्रदेश के जिला पांढुर्णा में बारिश और तूफानी हवाओं ने संतरा उत्पादक किसानों की परेशानियों को बढ़ा दिया है। संतरे की फसल पूरी तरह तैयार थी लेकिन सही भाव नहीं मिलने के कारण किसान फसल बाजार लेकर नहीं जा पाए।
संतरे का भाव बढ़ने का समय आया ही था कि 17-18 मार्च की दोपहर में हुई तीव्र बारिश और हवाओं ने सारा खेल बिगाड़ दिया। खेतों में खड़ी संतरे की फसल खराब हो गई। कई जगह पर किसानों की फसल पूरी तरह नष्ट हो गई।
पांढुर्णा जिले में ग्राम तिगांव के किसान मनोहर ने पहली बार संतरे की फसल लगाई थी। उनकी सारी उम्मीदें इसी संतरे की फसल पर टिकी थीं। संतरे की फसल खराब होने के बाद अब उनके बच्चों की पढ़ाई कैसे पूरी होगी? वे अपना कर्जा कैसे चुकाएंगे ? ऐसे कई सवाल उनके दिमाग में चल रहे हैं।
संतरा किसान मनोहर कहते हैं, ‘बारिश से फसल खराब होने के बाद जब मुझे इन सवालों के जवाब नहीं मिले तो मेरे मन में कुएं में कूदने का विचार आया। मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि मैं क्या करूँ ? इसलिए मैं कुएं में कूद गया। मुझे कुएं से मेरे कुछ साथियों ने बाहर निकाला।’
किसान मनोहर बताते हैं, ‘मेरे सामने अपनी जान देने के अलावा दूसरा कोई रास्ता नहीं था, मैं अपना कर्ज कैसे भरूंगा मुझे ये नहीं पता है। मुझे कर्जे को लेकर नोटिस पर नोटिस आते हैं। मेरे सामने अपने दोनों बच्चों की पढ़ाई और घर चलाने की जिम्मेदारी है।’
किसानों को फसल का नहीं मिला दाम
संतरांचल कहे जाने वाले पांढुर्णा क्षेत्र के किसानों को तेज हवा के साथ हुई बारिश ने चिंता में डाल दिया है। किसानों के सामने दो तरह की चिंताए हैं। पहली, फसल पैदा करने के लिए जो साहूकार या बैंक से कर्ज लिया गया है वो कैसे चुकाएंगे? दूसरी, जो संतरा तेज हवा के कारण गिर पड़ा है उसे कैसे बेच पाएंगे?
तिगांव के किसान बताते हैं, ‘पहले संतरे का ठीक भाव न मिलने के कारण अब तक बेचा नहीं गया और जब भाव खुले तो मौसम की मार की वजह से फसल 80 प्रतिशत खराब हो गई। पेड़ों से संतरे नीचे गिर गए हैं, जिस कारण अब भाव मिलना मुश्किल है। इस वर्ष संतरे का बहुत कम भाव मिला।’
वे बताते है, ‘संतरे की फसल की देखभाल ठीक उसी तरह होती है जिस तरह मां अपने बेटे का पालन पोषण करती है, इसमें किसान का बहुत खर्चा होता है। ऐसे में मौसम की मार से किसान दयनीय स्थिति में आ जाता है और कर्ज में डूब जाता है।’
कृषि कल्याण तथा कृषि विकास विभाग मध्य प्रदेश के अनुसार संतरे की फसल को तैयार होने में लगभग 6 साल लग जाते हैं। जिसके बाद किसान संतरे की फसल को व्यापारियों को बेचते हैं।
लाखों की फसल हजारों में बिकी
आंकड़ों की मानें तो मध्य प्रदेश संतरा उत्पादन करने वाला सबसे बड़ा राज्य है। किसान कल्याण तथा कृषि विकास विभाग मध्य प्रदेश के अनुसार मध्य प्रदेश में संतरे की बागवानी मुख्यतः छिंदवाडा, बैतूल, होशंगाबाद, शाजापुर, उज्जैन, भोपाल, नीमच, रतलाम तथा मंसौर जिले में की जाती है।
मध्य प्रदेश में संतरे की बागवानी 43,000 हेक्टेयर क्षेत्र में होती है, जिसमें से लगभग 23,000 हेक्टेयर संतरे की खेती मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा जिले में होती है। पूर्व में पांढुर्णा, छिंदवाड़ा जिले की तहसील हुआ करती थी, जो अब मध्य प्रदेश का नया जिला है। इसके बावजूद यहां का संतरा किसान आत्महत्या करने को मजबूर है।
किसान मनोहर के पास लगभग 3 एकड़ खेत है, जिसमें लगभग 300 संतरे के पेड़ हैं। किसान मनोहर बताते हैं कि बारिश से पहले जब संतरे की फसल अच्छी थी और पेड़ों पर संतरे थे तब व्यापारियों ने 4-5 लाख रूपये फसल का भाव मांगा था। जोकि बहुत कम था।
ये भाव कम होने के कारण फसल नही बेंची। अच्छे भाव के उम्मीद में संतरे की फसल को पेड़ों पर ही रखना मनोहर को भारी पड़ गया। बेमौसम बारिश और तेज हवाओ के चलते फसल पूरी तरह बर्बाद हो गई और इस वर्ष संतरे की फसल केवल 35000 रू में बेची है। मनोहर बताते है कि वे लगातार कर्ज में डूबते जा रहे हैं, उनका कर्जा इस संतरे की फसल के खराब होने के बाद फिर से बढ़ गया है।
किसान नेता हरनाम सिंह सेंगर का कहना है कि 80 प्रतिशत किसानों को नुकसान होने के बाद भी हमें सरकार से कोई उम्मीद नहीं है कि वो किसानो के लिए कुछ करेंगे। अगर सरकार कुछ नहीं करती है तो हम सब किसान मिलकर बड़ा आंदोलन करेंगे। किसान कर्ज में इतना डूब चुका है कि अब उसका इससे बाहर आना मुश्किल है।
किसान मोहन बताते है कि उनके बच्चे बाहर पढ़ रहे है, लेकिन हमारी स्थिति ऐसी हो गई है कि हमारे पास उन्हें पढ़ाने के लिए पैसे नहीं है। हम लगातार काम कर रहे हैं लेकिन हम अपनी बदहाली को सुधार नहीं पा रहे हैं, जब तक हमारा कर्जा माफ नहीं होगा तब तक हम ऐसी ही दयनीय स्थिति में रहेंगे। सरकार को किसानों का कर्जा माफ करना चाहिए। फसल का उचित मुआवजा नहीं मिलने पर हम सब किसान मिलकर चुनाव का बहिष्कार भी कर सकते है।
वहीं एनसीआरबी की 2022 की रिपोर्ट के अनुसार देश में लगभग 11,290 किसानों ने आत्महत्या की, अकेले मध्यप्रदेश में 641 किसानों ने आत्महत्या की है। जिसका मतलब है कि किसान अत्यंत दयनीय हालत में हैं। किसान बताते हैं कि प्रशासन द्वारा तेज बारिश और तूफान के कारण बर्बाद हुई फसल का सर्वे कर लिया गया है लेकिन अब तक मुआवजे को लेकर कोई कार्रवाई आगे नहीं बढ़ी है।
किसान साहेबराव टोन्पे किसानों की समस्या बताते हुए कहते हैं, ‘किसान ताउम्र खेती करता है लेकिन उसके बाद भी उसकी परिस्थिति दयनीय ही है। किसान भूखा भी रहेगा लेकिन फिर भी उसका इरादा खेती करना ही है। सरकार को ऐसे किसान जो 60 वर्ष के हो चुके हैं उन्हें कम से कम 10,000 रूपये पेंशन देना चाहिए।
संतरे की फसल साल में दो बार आती है। इस वर्ष हुई बेमौसम बारिश व तेज हवाओं ने तोड़ के लिए तैयार फसल के साथ ही अगली फसल को भी नुकसान पहुंचाया है। अगले सीजन में आने वाली फसल के फूल भी टूट कर गिर गये। जिसका मतलब है कि अगली फलस में भी पैदावार कम होगी।
एनएचबी की रिपोर्ट के अनुसार साल 2021-2022 में भारत के बागवानों ने करीब 6265 मीट्रिक टन संतरे का उत्पादन किया है। एपिडा एग्री एक्सचेंज के मुताबिक संतरा उत्पादन मामले में मध्यप्रदेश पहले नंबर पर है। यहां साल 2021-2022 में करीब 2060.55 टन संतरे का उत्पादन हुआ है, जो देश के कुल संतरा उत्पादन का 32.8 प्रतिशत है।
जिन किसानों की फसल खराब हुई है उनमें मोहन चटकवार, मनीष डोंगरे, धनराज बेलखडे, साहेबराम टोन्पे, मोहन राउत, बंटी बोंदरे, विनोद जुमडे, धनराज बेलखडे, राजेश वानखेड़े शामिल हैं।
किसानों की चिंता और उनका बढ़ता कर्ज इस बात की ओर संकेत करता है कि देश में अन्नदाता सबसे ज्यादा परेशान और चिंतित है। जहां एक तरफ छिंदवाडा और पांढुर्णा संतरे का उत्पादन करने में सबसे आगे हैं लेकिन उत्पादनकर्ता किसानों की हालत अत्यंत दयनीय है। एक तरफ सरकार के किसानों की आय दोगुनी करने के दावे हैं लेकिन जमीनी सच्चाई यह है कि खेती में लगातार घाटे और कर्ज के बोझ से दबा किसान आत्महत्या जैसे घातक कदम उठाने को मजबूर है।