आज मेरी जेहन में एक बात चल रही है। मैं यह सोच रहा हूं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तुलना सांड़ कहे जानेवाले पशु से करूं या नहीं करूं। वजह यह कि जैसे सांड़ लाल कपड़ा देखकर भड़क उठता है, वैसे ही भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी काले कपड़ों को देख भड़क रहे हैं।
दरअसल, लोकतांत्रिक शासक अब तानाशाहों को पीछे छोड़ते जा रहे हैं। वे विरोध की हर आवाज को दबा देना चाहते हैं। इसकी एक वजह यह कि वे विरोध से डरने लगे हैं और इस डर को दूर करने के लिए वे तमाम उपाय कर रहे हैं। मैं दिल्ली से सटे नोएडा में कल जेवर हवाईअड्डे के शिलान्यास कार्यक्रम का उल्लेख करना चाहता हूं। करीब दस हजार करोड़ की लागत से बनने वाले इस अंतरराष्ट्रीय हवाईअड्डे का शिलान्यास प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी करेंगे। इसके लिए नोएडा जिला प्रशासन द्वारा सुरक्षा और जनसभा के लिए पुख्ता इंतजाम किए गए हैं। इन इंतजामों में सबसे खास है एक आदेश जो कि पुलिस प्रशासन ने जारी किया है। इस आदेश के मुताबिक कल प्रधानमंत्री की सभा में व उनके मार्ग में कोई भी व्यक्ति काला कपड़ा नहीं पहने। यह आदेश लिखित रूप से जारी किया गया है और यह कहा गया है कि ऐसा नहीं करने पर दंडात्मक कार्रवाई की जाएगी।
मैं अक्टूबर, 2012 को याद कर रहा हूं। मतलब करीब एक दशक पहले की बात। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार उन दिनों अधिकार यात्रा कर रहे थे। इस यात्रा के दौरान खगड़िया और बेगूसराय में मुख्यमंत्री को आम जनता का विरोध सामना करना पड़ा था। लोगों ने काले कपड़े लहराकर उनका विरोध किया था। तब मुख्यमंत्री के आदेश पर उनकी सभाओं में शामिल होनेवालों को काले कपड़े पहनने से रोका गया। यहां तक कि लड़कियों से काले दुपट्टे तक उतरवा लिये जाते थे। इसे लेकर नीतीश कुमार की चौतरफा आलोचना हुई थी(हालांकि मुख्यमंत्री को अपने आदेश का लाभ नहीं मिला था) लोगों ने विरोध व्यक्त करने के लिए उन्हें चप्पल तक दिखाए और फेंके भी।
[bs-quote quote=”अंतरराष्ट्रीय हवाईअड्डे का शिलान्यास प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी करेंगे। इसके लिए नोएडा जिला प्रशासन द्वारा सुरक्षा और जनसभा के लिए पुख्ता इंतजाम किए गए हैं। इन इंतजामों में सबसे खास है एक आदेश जो कि पुलिस प्रशासन ने जारी किया है। इस आदेश के मुताबिक कल प्रधानमंत्री की सभा में व उनके मार्ग में कोई भी व्यक्ति काला कपड़ा नहीं पहने। यह आदेश लिखित रूप से जारी किया गया है और यह कहा गया है कि ऐसा नहीं करने पर दंडात्मक कार्रवाई की जाएगी।” style=”style-2″ align=”center” color=”” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]
खैर, मैं नरेंद्र मोदी के बारे में सोच रहा हूं। जो डर नीतीश कुमार को एक दशक पहले सता रहा था, उसी डर से नरेंद्र मोदी डर रहे हैं। यह कोई अनोखी बात नहीं है। यह तानााशाही ही है। हर तानाशाह डरता है।
तानाशाह हमेशा नहीं रहता। मैं तो यही मानता हूं। कुछ लोग घोर निराशावादी होते हैं। कुछ बीच-बीच वाले। मतलब न निराशावादी और न आशावादी। कुछ घोर आशावादी भी होते हैं। मैं अपने आपको इसी श्रेणी में रखता हूं। बाजदफा ऐसे अवसर आए जब लगा कि निराशा रूपी मलबे के नीचे मेरा दम निकल जाएगा। लेकिन अब ऐसा नहीं लगता। ऐसा इसलिए भी मुमकिन है कि जब निराशा मजबूरी बन जाय तो सिवाय आशावादी होने के आपके पास कोई विकल्प नहीं होता। यह ठीक ऐसा ही है जैसे कि कोई आपकी पीठ पर रोज कोड़े बरसाए तो आपको सहने की आदत हो जाती है। फिर आप हर बार कोड़े पड़ने के बाद इस आशा के साथ भर उठते हैं कि अगले 24 घंटे तक कोड़े नहीं सहने होंगे।
आप मेरी जगह भारतीय लोकतंत्र को रख सकते हैं। सकारात्मकता भारतीय लोकतंत्र का मूल चरित्र है। इसकी वजह भी है। भारत में जब लोकतंत्र स्थापित हुआ तब स्थितियां पूर्णत: विषम थीं। अंग्रेजों की साम्राज्यवादी नीतियों से भारत कराह रहा था। उसे विश्वास था कि जब सत्ता का हस्तांतरण होगा तो बदलाव होंगे। बदलाव हुए भी। अंग्रेजों ने सत्ता कांग्रेस को सौंप दी। कांग्रेस का चरित्र द्विजवादी था। लेकिन भारतीय लोकतंत्र को उम्मीदें थीं। इसी उम्मीद के प्रमाण बने डॉ. आंबेडकर जिन्होंने देश को एक खूबसूरत संविधान दिया। एक ऐसा संविधान जिसमें सभी के लिए सम्मान के साथ जीवन का अधिकार है। जब आप भारत का संविधान पढ़ेंगे तो आप निराशा के अंधकार से बाहर निकल सकते हैं।
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लेकिन यह भी सनद रहे कि भारत का संविधान एक परिकल्पना मात्र है जो हमारे तत्कालीन नेताओं ने सोचा है। एक खूबसूरत ख्वाब जिसे सच करने की जिम्मेदारी उन्होंने आने वाली पीढ़ियों पर सौंपी। हम स्वयं को इस का पीढ़ी मान सकते हैं जिसके जिम्मे भारतीय लोकतंत्र की जड़ों को सींचना है।
लेकिन जैसा मैंने कहा कि भारत का संविधान एक खूबसूरत ख्वाब है, इसे साकार करने की चुनौतियां हैं। फिर इसका संबंध प्रत्यक्ष तौर पर सत्ता से है तो राजनीति भी जरूरी है। और राजनीति का तो मतलब ही होता है वैसी नीतियां जिसके सहारे राज किया जा सके। ध्यान रखा जाना चाहिए कि भारतीय लोकतंत्र आक्रामक लोकतंत्र नहीं है। यह जबरदस्ती थोपा गया लोकतंत्र नहीं है। परंतु, अब इसे आक्रामक बनाया जाता रहा है। पहले यह काम कांग्रेस ने किया। इसकी शुरुआत तभी हो गयी थी जब देश में लोकतंत्र लागू हुआ। डॉ. राजेंद्र प्रसाद और पंडित जवाहरलाल नेहरु के बीच की रस्साकशी जगजाहिर है। बाद के दिनों में इसी देश में आपातकाल भी लागू हुआ। बड़े पैमाने पर दमनात्मक कर्रवाईयां हुईं। फिर वह दौर भी आया जब कांग्रेस बैकफुट पड़ गयी। अब देश में आरएसएस का राज है जिसका गठन 1925 में हुआ और इसके हिस्से दो पाप तभी दर्ज हो गए जब यह देश आजाद ही हुआ था। पहला था देश का बंटवारा और दूसरा गांधी की गोली मारकर हत्या। यह उन्मादी संगठन जो अपने कुकृत्यों की वजह से सरदार पटेल द्वारा आतंकी संगठन करार दिया गया था और प्रतिबंधित भी था, अपनी स्थापना के साथ ही देश में ब्राह्मणों का राज स्थापित करने के लिए हिंदू-मुस्लिम का राग अलापता रहा है।
आरएसएस आज भी वही कर रहा है। वह देश को तोड़ रहा है। कांग्रेस जो यह काम पहले कर रही थी, आज मूकदर्शक है। छद्म राष्ट्रवाद और मीडिया को अपना गुलाम बनाकर आरएसएस आज स्वयं को सर्वशक्तिमान मान रहा है तो इसमें उसके लिहाज से कोई बुराई नहीं है। कल यदि कांग्रेस भी हुकूमत में आती है तो उसका रवैया कुछ और होगा, बिल्कुल भी नहीं कहा जा सकता।
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बहरहाल, मौजूदा दौर में चहुंओर विस्तृत होते अंधकार के साम्राज्य के बावजूद भारतीय संविधान एकमात्र आशा की किरण है। इसके सिवाय दूसरा कोई विकल्प नहीं है। आज के दौर में सबसे बड़ी चुनौती लोकतंत्र को बचाए रखना है। भारतीय समाज का उच्च वर्ग लोकतंत्र को खारिज कर देना चाहता है। राष्ट्रपति से लेकर प्रधानमंत्री और फिर अन्य सभी संवैधानिक संस्थाओं को उसने कटघरे में खड़ा कर दिया है। लेकिन इससे भारत की जम्हूरियत खत्म नहीं होती और न कभी होगी। इसका सबसे बड़ा प्रमाण यह कि भारत का सबसे ताकतवर आदमी नरेंद्र मोदी काले कपड़ों से डरने को मजबूर है।
काले कपड़ों से एक बात याद आयी। एक भोजपुरी लोकगीत में काले रंग की महिमा का बखान किया गया है। गीत है–
जवन बात बा संवरका में
उ गोर का करी
जवन कर दिही अन्हार
उ इंजोर का करी।
नवल किशोर कुमार फारवर्ड प्रेस में संपादक हैं।
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