आंकड़ों की कारीगरी और नरेंद्र मोदी का झूठ (डायरी 23 अक्टूबर, 2021)
देश में राजनीति करने के तरीके बदल गए हैं। आजकल तो लोग सोशल मीडिया पर अपने संदेशों आदि के जरिए राजनीति करने लगे हैं। यह एकदम नया फार्मूला है। किसी बड़े नेता को फॉलो करना, उसके संदेश को अपने वॉल पर शेयर करना और फिर अपने संदेश में उस नेता की शान में कसीदे पढ़ना। […]
देश में राजनीति करने के तरीके बदल गए हैं। आजकल तो लोग सोशल मीडिया पर अपने संदेशों आदि के जरिए राजनीति करने लगे हैं। यह एकदम नया फार्मूला है। किसी बड़े नेता को फॉलो करना, उसके संदेश को अपने वॉल पर शेयर करना और फिर अपने संदेश में उस नेता की शान में कसीदे पढ़ना। फेसबुक पर मेरे कई परिचित इसी तरह के राजनेता हैं और इनमें महिलाएं भी हैं। ये रजनीतिक महिलाएं तो एकदम अलग हैं। अपनी आकर्षक तस्वीरें हर राजनीतिक संदेश के साथ शेयर करना नहीं भूलतीं। पितृसत्तावादी भारतीय समाज ऐसी महिलाओं को दलगत राजनीति के परे जाकर पसंद करता है। यह भी खासा दिलचस्प है। इस फार्मूले का दूसरा हिस्सा भी है। इसके तहत लोग पोस्टर लगवाते हैं और देखते ही देखते राजनीतिक कार्यकर्ता से राजनेता बन जाते हैं। यह बदल रहे भारत की तस्वीर है। राजनीतिक कार्यकर्ता के अलावा समर्थकों की भी भारी भीड़ है। समर्थकों में आधे से अधिक को भक्त कहा जा सकता है। ये भक्त आजकल हर जगह मिल जाते हैं। कल एक भक्त मुझसे भी टकरा गए।
दरअसल, मैं सिंधु बार्डर से लौट रहा था। दिल्ली के जहांगीरपुरी मेट्रो से राजीव चौक पहुंचा। वहां वैशाली की ओर जानेवाली मेट्रो पर सवार हुआ। लक्ष्मीनगर मेट्रो स्टेशन इसी रूट में पड़ता है। राजीव चौक से आगे बाराखंभा मेट्रो स्टेशन पर एक अधेड़ आदमी तेजी से आया और मेरे बगल वाली सीट पर बैठ गया। बैठने से पहले उसने कहा– हटो। लेकिन मैं क्यों हटने वाला था। दरअसल, मेरे बायीं ओर एक महिला बैठी थीं और दायीं सीट खाली थी। मुझे हटने के लिए कहने के पीछे उनका मतलब था कि महिला के बगल में वह बैठें। मैंने कोई रिस्पांस नहीं दिया। अधेड़ चुपचाप दायीं सीट पर बैठ गए।
मेट्रो में मेरे हाथ में राजीव धवन की किताब रिजर्व्ड थी। अधेड़ समझ गए कि मैं कोई पालिटिकल आदमी हूं। तो उन्होंने कहा कि एक अरब वैक्सीन के मामले में आपका क्या कहना है। मैं चुप रहा। मेरी चुप्पी उन्हें खल गयी। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। वे तो जैसे यह तय कर चुके थे कि मुझसे पॉलिटिकल बहस करें। लेकिन मैं था कि किताब पढ़ने में लगा था। मैं उन्हें कोई तवज्जो नहीं दे रहा था। फिर वे कहने लगे कि इस बार भी उत्तर प्रदेश में भाजपा की सरकार बनेगी। नरेंद्र मोदी ने उत्तर प्रदेश को ईज ऑफ डूइंग बिजनेस के मामले में दूसरे स्थान पर ला दिया है। वे मुझसे मेरा विचार जानना चाहते थे। मैंने अपना मुंह खोलते हुए कहा कि मैं नहीं जानता।
[bs-quote quote=”इस आंकड़े की सच्चाई है कि केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ही कह रहा है कि केवल 39 करोड़ लोगों का दोनों डोज पूरा हो सका है। प्रधानमंत्री जिसे सफलता कर रहे हैं, वह दरअसल अपनी विफलता को छिपाने की कोशिश है। सबसे महत्वपूर्ण तो यह कि 45 वर्ष से अधिक आयु के लोगों के दोनों डोज मिलने के आंकड़ा केवल 26 फीसदी है। मतलब यह कि 74 फीसदी अधेड़ व वृद्ध अभी भी खतरे में हैं। साथ ही, यह भी कि बच्चों को बचाने के लिए टीकाकरण की शुरुआत ही नहीं हुई है।” style=”style-2″ align=”center” color=”” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]
इस पर वे भड़क गए और कहने लगे कि आप पार्लियामेंट में आरक्षण को लेकर हुई बहस की किताब पढ़ रहे हैं और ईज ऑफ डूइंग बिजनेस का मतलब नहीं समझते। मैंने फिर कहा कि मैं नहीं जानता और ना ही जानने की कोई इच्छा है। लेकिन वे कहां मानने वाले थे। वे मुझे बताने लगे कि ईज ऑफ डूइंग बिजनेस का मतलब है व्यापार करने का माहौल और उत्तर प्रदेश में नरेंद्र मोदी की सरकार ने क्रांति कर दी है। लॉ एंड आर्डर इतना अच्छा हो गया है कि देश-विदेश के लोग अब यूपी में बिजनेस करना चाहते हैं।
खैर, यह तो अच्छा हुआ कि मुझे लक्ष्मीनगर मेट्रो पर उतरना था। आगे जाना होता तो भक्त महोदय का भाषण सुनना ही पड़ता। मेट्रो के कोच से बाहर निकला तो सामने एक विज्ञापन था। उसमें भी उत्तर प्रदेश की इस उपलब्धि में बारे में उल्लेख था। इस उल्लेख के साथ नरेंद्र मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की हंसती हुई तस्वीरें थीं। मुझे लगा कि ये दोनों मुझ पर ही हंस रहे हों और कह रहे हों कि देखा मेरे झूठ का कमाल, अब आम आदमी भी हमारे झूठ को सच मानने लगा है।
दरअसल, विज्ञापनों का कारोबार भी दिलचस्प है। उत्तर प्रदेश के ऐसे विज्ञापन आपको उन मेट्रो में ही मिलेंगे जो उत्तर प्रदेश के इलाकों में जाती हैं। मसलन नोएडा और वैशाली के रूट में। पूर्वी दिल्ली के इन इलाकों में यूपी और बिहार के लोग बड़ी संख्या में मजदूरी करते हैं। तो एक मकसद यह भी हो कि यहां रह रहे लोगों को विज्ञापनों से प्रभावित किया जाय।
[bs-quote quote=”संज्ञेय मामलों में सबसे ऊपर रहने वाला उत्तर प्रदेश ईज ऑफ डूइंग बिजनेस के मामले में भी शीर्ष पर कैसे हो सकता है? गूगल किया तो रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया द्वारा 2019 में जारी रपट मिली। इसमें पहले नंबर पर आंध्र प्रदेश है तो दूसरे नंबर पर उत्तर प्रदेश और तीसरे नंबर पर तेलंगाना। मेरा अपना गृह प्रदेश जहां कथित तौर पर डबल इंजन की सरकार है, वह छठे स्थान पर है। सबसे अंतिम यानी 29वें स्थान पर पूर्वोत्तर भारत के राज्य शामिल हैं। हालांकि इनमें असम नहीं है।” style=”style-2″ align=”center” color=”” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]
अपने रहवास पर पहुंचने के बाद भी ईज ऑफ डूइंग बिजनेस ने मेरा पीछा नहीं छोड़ा। मुझे लगा कि यह बात तो बिल्कुल उलटी है। संज्ञेय मामलों में सबसे ऊपर रहने वाला उत्तर प्रदेश ईज ऑफ डूइंग बिजनेस के मामले में भी शीर्ष पर कैसे हो सकता है? गूगल किया तो रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया द्वारा 2019 में जारी रपट मिली। इसमें पहले नंबर पर आंध्र प्रदेश है तो दूसरे नंबर पर उत्तर प्रदेश और तीसरे नंबर पर तेलंगाना। मेरा अपना गृह प्रदेश जहां कथित तौर पर डबल इंजन की सरकार है, वह छठे स्थान पर है। सबसे अंतिम यानी 29वें स्थान पर पूर्वोत्तर भारत के राज्य शामिल हैं। हालांकि इनमें असम नहीं है।
तो यह तो साफ है कि ईज ऑफ डूइंग बिजनेस का डंका जो पीटा जा रहा है, वह रपट ही 2019 में जारी की गयी। जबकि इस रपट में जो इंडिकेटर्स इस्तेमाल किए गए हैं, वे 2015-17 के हैं। मतलब यह कि ईज ऑफ डूइंग बिजनेस के मामले में यदि उत्तर प्रदेश आज दूसरे स्थान पर बताया जा रहा है तो इसके पीछे अखिलेश यादव सरकार की उपलब्धियां हैं। इसमें योगी आदित्यनाथ सरकार की कोई भूमिका नहीं है। बेहतर तो यह हो कि भारतीय रिजर्व बैंक नई रपट जारी करे।
बहरहाल, आम आदमी के पास शायद ही इतना वक्त हो कि वह ईज ऑफ डूइंग बिजनेस जैसे तकनीकी शब्द के पीछे अपना दिमाग लगाए और नरेंद्र मोदी की झूठ को समझे। अब बीते दो दिनों से जितने भी माध्यम हो सकते हैं, के जरिए लोगों को यह बताया जा रहा है कि देश में एक अरब टीके लगाए जा चुके हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तो कल यह भी कहा कि जो लोग ताली, थाली और दीप जलाने आदि के आह्वानों का मजाक उड़ाते थे, उनको जवाब मिल गया है। देश ने अभूतपूर्व एकता का परिचय दिया और एक अरब टीकों का लक्ष्य पाया है।
अब इस आंकड़े की सच्चाई है कि केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ही कह रहा है कि केवल 39 करोड़ लोगों का दोनों डोज पूरा हो सका है। प्रधानमंत्री जिसे सफलता कर रहे हैं, वह दरअसल अपनी विफलता को छिपाने की कोशिश है। सबसे महत्वपूर्ण तो यह कि 45 वर्ष से अधिक आयु के लोगों के दोनों डोज मिलने के आंकड़ा केवल 26 फीसदी है। मतलब यह कि 74 फीसदी अधेड़ व वृद्ध अभी भी खतरे में हैं। साथ ही, यह भी कि बच्चों को बचाने के लिए टीकाकरण की शुरुआत ही नहीं हुई है। ऐसे में कैसी सफलता।
बहरहाल, कल भारत यायावर के निधन की सूचना मिली। यह सूचना दुखद थी। यायावर को फणीश्वरनाथ रेणु के साहित्य का विशेषज्ञ माना जाता है। उनके कारण ही रेणु की अनेक रचनाएं, जिनमें उनके रिपोर्ताज आदि शामिल हैं, सामने आ सके। यह रेणु का जन्मशताब्दी वर्ष है। कहां मैं यह उम्मीद कर रहा था कि भारत यायावर इस जन्मशताब्दी वर्ष को यादगार बनाएंगे। अभी दो महीने पहले ही उनसे इस संबंध में बातचीत भी हुई थी। वे उत्साहित भी थे।
पत्रकारिता में जनसरोकारों और सामाजिक न्याय के विज़न के साथ काम कर रही वेबसाइट। इसकी ग्राउंड रिपोर्टिंग और कहानियाँ देश की सच्ची तस्वीर दिखाती हैं। प्रतिदिन पढ़ें देश की हलचलों के बारे में । वेबसाइट को सब्सक्राइब और फॉरवर्ड करें।