उर्मिला मझवार मिट्टी के घर को बाहर से लीपने और संवारने का काम कर रही थी, क्योंकि उसके पति का चौथा था। चार दिन पहले उदयपुर में उसके पति को हाथियों के एक दल ने मार डाला। जिसकी खबर उसे दो दिन बाद मिली और लाश की हालत ऐसी थी कि उसे कपड़ों के द्वारा पहचाना गया। हाथियों ने फुटबॉल की तरह उनके पति को पटककर और फेंक-फेंक कर मार डाला। यह स्थिति छत्तीसगढ़ के कई इलाकों में देखने को मिल रही है। जहां हाथी और मानव संघर्ष लगातार बढ़ते जा रहे हैं। जिसका मुख्य कारण खनिज संसाधनों पर कब्जा करने के लिए जंगल कटाई का होना है।
हसदेव को बचाने की मुहिम
हसदेव अरण्य के जंगल को बचाने के लिए देश में लगातार #SaveHasdeo के नाम से सोशल मीडिया पर ट्रेंड चलाने से लेकर मानव श्रृंखला बनाकर विरोध किया जा रहा है। इस बीच, छत्तीसगढ़ के सरगुजा जिले की उदयपुर ब्लॉक के हरिहरपुर में दो साल से लगातार आंदोलन चल रहा है, जिसमें आदिवासी और अन्य लोग हिस्सा ले रहे हैं।
स्थानीय लोगों की मुख्य लड़ाई इस बात की है कि अगर जंगल कट जाता है तो इससे सिर्फ मनुष्य ही प्रभावित नहीं होंगे बल्कि जंगलों में रहने वाले जीव-जंतुओं और जानवरों पर भी इसका बुरा असर पड़ेगा। हाल ही में दिसंबर में जंगल कटाई के दौरान दुर्लभ प्रजाति के एक सफेद और काले भालू के दो बच्चे लावारिस हालत में मिले थे।
इसी तरह 170,000 हेक्टेयर में फैले इस जंगल में स्थानीय लोगों को अनुसार सियार, बंदर, भालू, जंगली सांड़, शेर, हाथी और अन्य जानवरों के साथ-साथ कई प्रजातियों के पक्षी और छोटे-छोटे जंतु व पेड़-पौधे पाए जाते हैं, जो पारिस्थितिकी तंत्र के संतुलन के लिए बहुत जरूरी हैं, जिन्हें बचाना ही होगा।
हाथी विशाल और शक्तिशाली जानवर है, इस वजह से जंगल कटने के साथ ही मानव-हाथी संघर्ष बढ़ता जा रहा है। लेकिन बाकी जानवर और जंतु मनुष्यों के साथ संघर्ष की स्थिति में नहीं हैं, वे भटकते हुए शहरों की तरफ आ रहे हैं।
राह चलते लोग भी सुरक्षित नहीं
अंबिकापुर का उदयपुर का ब्लॉक फिलहाल मानव-हाथी संघर्ष का एपीसेंटर बना हुआ है। जहां लगातार गांव वाले हाथियों से बचने की जद्दोजहद में अपनी जिदंगी जी रहे हैं। पिछले दिनों जिस वक्त जंगल को बचाने के लिए हसदेव बचाओ संघर्ष समिति की तरफ से साल के पहले रविवार को आंदोलन किया गया, उसी दिन शाम को कल्याणपुर में हाथियों ने जमकर उत्पात मचाया।
हाथियों के इस उत्पात का सामना लोगों ने किया और आसपास रहने वाले कई परिवारों ने अपनी आँखों से देखा। स्थिति ऐसी है कि राह चलते लोग भी सुरक्षित नहीं हैं।
उर्मिला के पति करिया मंझवार के साथ भी ऐसा ही हुआ। साल की शुरुआत में ही पति की मृत्यु से उस पर एक बार फिर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा, क्योंकि यह उनका दूसरा पति था। पहले पति जो कि करिया मंझवार के बड़े भाई थे, का बीमारी के कारण देहांत हो गया था। अब दूसरा हाथी की भेंट चढ़ गया। वह उदयपुर ब्लॉक ऑफिस से मात्र पांच किलोमीटर दूर डोकेरनारा गांव में रहते थे।
जनवरी की सर्द हवा के बीच उर्मिला भावुक मन से हाथियों के ताडंव और पति की मृत्यु के बारे में बताती हैं कि ‘कुछ दिन पहले मेरे ममिया ससुर का देहांत हो गया था। उनके दसकर्म के लिए वह रिश्तेदार के घर पात्रिका देने जा रहे थे। शाम के चार बजे पैदल घर से निकले थे। उनके पास फोन भी नहीं था। इसलिए हमें उस घटना की कोई जानकारी नहीं मिली। परिवार वाले तो यही सोच रहे थे कि वह संदेशा देने गए हैं, हमें क्या पता था उनका ऐसा संदेशा आ जाएगा।’
पति की मृत्यु की जानकारी मीडिया से मिली
उर्मिला के अनुसार, उन्हें पति की मृत्यु की जानकारी अखबार के द्वारा मिली। उन्होंने बताया कि घटना के दूसरे दिन अखबार में हाथी द्वारा एक व्यक्ति को मारने की खबर प्रकाशित हुई थी, जिसमें पुलिस द्वारा शव की पहचान करने की अपील की गई थी।
यह खबर लोगों के फोन पर आने लगी। तभी गांव के शख्स ने फोन पर इन्हें देखा और मुझे जानकारी दी। मैं इस खबर को देखने के बाद पुलिस के पास गई तो पति की पहचान कपड़ों द्वारा की। हाथियों में उनके सिर को कुचल दिया था। पेट की आंतें बाहर आ गई थीं। एक हाथ भी उखड़कर अलग हो गया था।
पुलिस की उर्मिला से जो बात हुई, उसके बारे में उसने बताया कि शाम के वक्त शहर से बाहर आगे की तरफ निकले थे। उसी दौरान अंधेरा होते ही पति हाथी के दल की चपेट में आ गए। यह हाथी खेत की तरफ से आए थे।
ऐसी घटना पिछले कुछ समय से अंबिकापुर, कोरबा, बलरामपुर से आगे बढ़ते हुए दक्षिण के जिलों में भी शुरु हो गई है। जंगल की लगातार होती कटाई के बीच हाथी अब दक्षिण छत्तीसगढ़ की तरफ भी बढ़ रहे हैं। पिछले साल महासमुंद में ऐसे ही मछली पकड़ रहे 60 साल के एक बुर्जुग को हाथी ने रौंदकर मार डाला।
उर्मिला के पति के साथ भी ऐसा ही हुआ। हाथियों ने उसे पूरी तरह रौंद दिया था। सिर तरह कुचल दिया था। अति पिछड़ी जाति से ताल्लुक़ रखने वाला करिया मंझवार की मृत्यु के बाद उनके परिवार में पत्नी के अलावा पांच बच्चे रहे गए हैं, जिसमें तीन बेटे और दो बेटियां हैं। दो बेटे अभी नाबलिग हैं।
जीविका के लिए उर्मिला और बच्चे मजदूरी करते हैं। इसके अलावा दो गाय और खेती के लिए छोटी सी जमीन है, जिससे उनका जीवनयापन हो रहा है। वन विभाग की तरफ से मृत्यु के बाद 25 हजार का मुआवजा दिया गया। बाकी के पांच लाख, 75 हजार रुपये जरूरी दस्तावेजों को प्रस्तुत करने के बाद दिए जाएँगे।
लगातार खनन बढ़ते संघर्ष का कारण
उत्तरी छत्तीसगढ़ में मानव-हाथी संघर्ष पिछले एक दशक में लगातार बढ़ा है। जिसमें अंबिकापुर, जशपुर, रायगढ़, कोरबा, सूरजपुर, बलरामपुर जिले में खतरा बना हुआ है। इसी क्षेत्र में फैले कोयले के खनन के लिए हसदेव अरण्य जंगल को काटा जा रहा है। जहां हाथियों का घर है और इनकी संख्या लगातार बढ़ रही है।
वन विभाग की जानकारी के अनुसार, साल 2002 में राज्य में केवल 32 हाथी थे। 2007 में यह बढ़कर 122 और 2017 में 247 तक पहुंच गई। इतना ही नहीं साल 2022 पूरे छत्तीसगढ़ में 350-400 तक हाथी स्थाई रुप से रह रहे थे। 16 हाथी का दल अलग-अलग जगह विचरण कर रहा है। जिसके रास्ते में आने वाले सभी लोग इसके शिकार हो रहे हैं। छत्तीसगढ़ में 36 वनमंडल हैं, जिसमें से 22 वनमंडल हाथी प्रभावित हैं।
मानव-हाथी संघर्ष के मामलों में लगातार बढ़ोत्तरी
सरकारी आंकड़ों के अनुसार, राज्य बनने के बाद साल 2000-01 में हाथी के हमले से एक व्यक्ति की मौत हो गई थी। बाद में यह आंकड़ा साल दर साल बढ़ता गया। साल 2006-07 में 23, 2015-16 में 53 और साल 2022-23 में यह 74 तक पहुंच गया।
वहीं, दूसरी ओर हाथियों के ऊपर भी हमला बढ़ा। छत्तीसगढ़ के गठन के बाद साल 2001-02 में पहली बार रायगढ़ के बलभद्र में एक हाथी को लोगों ने मार दिया। इसमें भी साल दर साल आंकड़ों का सिलसिला बढ़ने लगा। साल 2005-06 में हाथी को मारने के दो मामले दर्ज किए गए। साल 2010-11 में 13, 2016-17 में 16 और 2022-23 में यह आंकड़ा 19 हाथियों की मौत तक पहुंच गया। इसमें कई हाथियों की मौत हाई वोल्टेज करंट की चपेट में आने से हुई।
हाथी एक घुमंतू जीव है। जो घूमता है और अपने बाड़े में वापस आता है। जंगल की लगातार होती कटाई हाथियों के विस्थापन और मानव के संघर्ष का बड़ा कारण है। अंबिकापुर से बिलासपुर जाते वक्त रास्ते में पेड़ों पर हाथी प्रभावित क्षेत्र लिखकर टांगा गया है, ताकि लोग सतर्क रहें।
हाथियों के घरों पर मनुष्यों के कब्जे से रहवास की समस्या
हाथी और मानव संघर्ष के बारे में सामाजिक कार्यकर्ता और हसदेव बचाओ संघर्ष समिति के कन्वेनर आलोक शुक्ला का कहना है कि भारतीय वन जीव संस्थान ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि हसदेव का जंगल हाथियों के पुराने रहवास का इलाका और आने-जाने का कॉरिडोर है। अगर यहां से जंगल काटा जाता है, तो हाथी यहां से बाहर निकलेंगे। जिसके कारण मानव-हाथी संघर्ष इतना बढ़ जाएगा कि फिर उसे संभाला नहीं जा सकता।
आगे वह बताते हैं कि जिस दिन 90 हेक्टेयर में फैले जंगलों के पेड़ों को काटा गया, उसी दिन जंगल से 33 हाथियों के दल ने निकलकर अंबिकापुर में पहुंच लोगों के घरों को तोड़ने के साथ-साथ फसल को तहस-नहस कर दिया।
स्थिति यह है कि आज हाथी बस्तर तक बढ़ चुके हैं। जिसका नतीजा यह हुआ कि पिछले पांच सालों में 205 से ज्यादा मनुष्य और 55 हाथी मारे जा चुके हैं। आगे यह संघर्ष और भी बढ़ेगा।
छत्तीसगढ़ में लगातार हो रहे कोयला खनन के मामले में सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद हसदेव अरण्य में अध्ययन किया गया। साल 2021 में भारत सरकार की वाइल्ड लाइफ इंस्टिस्यूट ऑफ इंडिया की रिपोर्ट बताती है कि छत्तीसगढ़ में हाथियों की संख्या अपेक्षाकृत कम है। पूरे देश का जंगली हाथियों का सिर्फ एक प्रतिशत ही छत्तीसगढ़ में है, फिर भी यहाँ मानव-हाथी संघर्ष उच्चस्तर पर है। जहां हर साल 60 से अधिकर लोगों की जानें जाती हैं। केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के अनुसार, साल 2018-19 और 2022-23 में सिर्फ छत्तीसगढ़ में 337 लोगों ने संघर्ष में अपनी जान गंवाई है।
छत्तीसगढ़, झारखंड, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा के क्षेत्र में लगातार मानव हाथी का संघर्ष बढ़ रहा है। यह चारों राज्य एक दूसरे से जुड़े हुए हैं, जहां हाथी विचरण करते हैं। एक राज्य से दूसरे राज्य की सीमा में प्रवेश कर जाते हैं। इन चारों राज्य में खनिज संपद्दा का अपार भंडार है।
जंगल समाप्ति के कारण हाथियों का खाना भी खत्म हो रहा है
लगातार बढ़ते इस संघर्ष पर पर्यावरणविद डॉ. दयाशंकर श्रीवास्तव का कहना है कि हम सिर्फ मौत के आंकड़ों की बात करते हैं। जबकि कारण यह है कि किसी का भी घर तोड़ा जाएगा तो वह उस पर प्रतिक्रिया देगा। यही स्थिति हाथियों के साथ है। उनके घरों को लगातार काटकर बर्बाद किया जा रहा है। उनके खाने को छीनकर समाप्त किया जा रहा है।
वह कहते हैं कि हाथी जंगल का कंद मूल खाता है। जंगल में ऐसे-ऐसे पेड़-पौधे हैं, जिनकी हमें जानकारी भी नहीं है, जो हाथियों का खाना भी होते हैं। एक दिन की खुराक 700 से 1400 किलो है, जो अब हाथियों को उपलब्ध नहीं हो पा रही है। इसलिए उसकी तलाश में हाथी बाहर निकल रहे हैं और फसलों को खाकर उन्हें नुकसान पहुंचा रहे हैं। जबकि यह फसल उनका खाना नहीं हैं।
पर्यावरणविद कहते हैं कि जैसे हर इंसान अपने घर की तरफ वापस आता हैं, वैसे ही हाथी भी घूमने के बाद अपने घर वापस आते हैं और जिस रास्ते से जाते हैं उसी से वापस आते हैं। लेकिन वापसी पर उन्हें अपने घर उजड़े हुए दिखाई देते हैं। इसलिए वह प्रतिक्रिया स्वरूप हिंसक हो रहे हैं और इसका खामियाजा मनुष्यों के साथ हाथियों को भी उठाना पड़ रहा है।
हसदेव के जंगलों की कटाई पर राजनीति
हसदेव अरण्य के परसा ईस्ट केते बासेन परियोजना के तहत कोयला निकाला जा रहा है, जिसके लिए ढाई लाख पेड़ काटे जाने हैं। पिछले साल दिसंबर में 90 हेक्टेयर जंगल में 50 हजार पेड़ काटे गए, जिसका स्थानीय लोगों के साथ पूरे देश में लगातार विरोध हो रहा है। बीजेपी ही नहीं, बल्कि छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार के दौरान भी साल 2022 में 43 हेक्टेयर जंगल के पेड़ काटे गए थे।
छत्तीसगढ़ में जंगल की कटाई को लेकर राजनीति भी लगातार होती रही है। कांग्रेस नेता और सांसद राहुल गांधी हसदेव अरण्य में हो रही जंगल कटाई के लिए अडानी और मोदी सरकार को घेरते हैं। जबकि छत्तीसगढ़ में कांग्रेस सरकार के दौरान ही जंगल को काटा गया।
दिसंबर में कटे पेड़ों पर राजनीति भी जमकर हुई, जिसमें भाजपा और कांग्रेस आमने-सामने आ गई है।
पेड़ कटाई पर जब छत्तीसगढ़ के नवर्निवचित सीएम विष्णुदेव साय से पूछा गया तो उन्होंने कहा कि पेड़ कटने की मंजूरी कांग्रेस सरकार के दौरान दी गई थी, इसमें हमारा कोई योगदान नहीं है।
वहीं, दूसरी ओर, पांच साल के बाद ही सत्ता खो चुकी कांग्रेस ने अब अपना रुख हसदेव अरण्य को बचाने की तरफ किया है।
छत्तीसगढ़ कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज साल के पहले रविवार को हरिहरपुर में हसदेव बचाओ आंदोलन में शामिल होने आए थे। जहां उन्होंने अपनी सरकार की गलती मानते हुए कहा कि ‘पांच साल हमारी सरकार रही, लेकिन हमने फर्जी ग्रामसभा की जांच नहीं कराई। यह हमारी गलती है।‘
संविधान की पांचवी अनुसूची के अनुसार, ग्रामसभा सबसे बड़ी ताकत है, लेकिन यहां तो परसा और केते एक्सटेंशन के लिए फर्जी ग्रामसभा के आधार पर अनुमति दी गई। ग्रामीण इसकी जांच की मांग कर रहे हैं। हम इस मांग का समर्थन करते हैं और आदिवासी सीएम से आदिवासी लोगों की हितों की रक्षा की मांग करते हैं।
हमने मानव हाथी संघर्ष के लिए उदयपुर ब्लॉक के रेंजर गजेंद्र दोहरे से बात की तो उन्होंने आश्वासन देकर फोन रख दिया। वहीं, सरगुजा के डीएफओ तेजस शेखर से सम्पर्क नहीं हो पाया।
पूनम मसीह स्वतंत्र पत्रकार हैं।
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