
भारतीय मीडिया भारतीय हुकूमत की विफलता के बजाय विश्व स्वास्थ्य संगठन को ही कटघरे में खड़ा कर रही है। मसलन, आजतक नामक न्यूज चैनल ने एक विशेष खबर का प्रसारण किया, जिसका शीर्षक रहा– 'क्या चीन के दबाव में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भारत में कोरोना से मौत के आंकड़े ज्यादा बता दिए?' अमर उजाला जैसा अखबार भी इस मामले में रत्ती भर भी पीछे नहीं है। उसने तो एक खबर ही छप दी– 'डब्ल्यूएचओ के दावों पर सवाल, भारत के आंकड़े हैं पुख्ता, विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इस मॉडल से की गुणा-भाग।'

रतीय मीडिया पर द्विजों का कब्जा है और यह वर्ग अपने वर्गीय हितों को सुरक्षित रखने के तमाम प्रयास करता ही रहा है। लेकिन अब वह दौर नहीं है। अब खबरें द्विजों की बपौती नहीं हैं कि वे अपनी मनमर्जी कर सकें। खबरें तो लोगों तक पहुंचेंगी ही। इस देश के बहुसंख्यकों ने इसके उपाय खोज लिए हैं अैर निश्चित तौर पर इसमें सोशल मीडिया की अहम भूमिका है।

नवल किशोर कुमार फ़ॉरवर्ड प्रेस में संपादक हैं।
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