Thursday, April 25, 2024
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नहीं रहे हिन्दी के मूर्धन्य कवि-गद्यकार और संपादक भारत यायावर

झारखण्ड के हजारीबाग में रहने वाले 66 वर्षीय सुप्रसिद्ध हिन्दी साहित्यकार, संपादक और वरिष्ठ कवि भारत यायावर का शुक्रवार को निधन हो गया है। भारत यायावर अपनी साहित्य और कविता के साथ-साथ बेबाक और निर्भीक लेखनी के लिये भी जाने जाते थे। उनकी मृत्यु से साहित्य जगत में शोक की लहर दौड़ पड़ी है। उनकी […]

झारखण्ड के हजारीबाग में रहने वाले 66 वर्षीय सुप्रसिद्ध हिन्दी साहित्यकार, संपादक और वरिष्ठ कवि भारत यायावर का शुक्रवार को निधन हो गया है। भारत यायावर अपनी साहित्य और कविता के साथ-साथ बेबाक और निर्भीक लेखनी के लिये भी जाने जाते थे। उनकी मृत्यु से साहित्य जगत में शोक की लहर दौड़ पड़ी है। उनकी तबीयत पिछले कुछ दिनों से ठीक नहीं थी।

भारत यायावर का हिंदी के दिग्गज लेखक ‘फणीश्वर नाथ रेणु’ पर उनका शोध चर्चित शोध रहा है। उन्होंने फणीश्वरनाथ रेणु की खोई हुई और 8 पुस्तकों का संपादन किया है। नागार्जुन पुरस्कार  से सम्मानित यायावर के कविता संग्रह झेलते हुए और मैं यहाँ हूँ’अत्यधिक चर्चित रहे हैं।

यायावर का जन्म 29 नवंबर, 1954 को हुआ था। वे विनोबा भावे विश्वविद्यालय में हिंदी के प्राध्यापक थे। उनके कई कविता हैं- इनके एक ही परिवेश (1979), झेलते हुए (1980) मैं यहां हूं (1983), बेचैनी (1990) एवं हाल-बेहाल (2004) आदि संग्रह शामिल हैं। उनको सर्वाधिक ख्याति फणीश्वरनाथ रेणु रचनावली के संपादक के रूप में मिली। यायावर ने महावीर प्रसाद द्विवेदी रचनावली का संपादन भी किया है।

वे एक बेहतर इंसान और मित्र-प्रवणता के लिए जाने जाते थे। उनके निधन से हिन्दी साहित्य में एक रिक्ति पैदा हो गई है। उनके प्रति अनेक साहित्यकारों-कवियों ने श्रद्धांजलि अर्पित की है। फेसबुक से ली गई कुछ लेखकों की स्मृतियों को हम साझा कर रहे हैं।

जाने माने कवि चन्द्रेश्वर लिखते हैं कि, मेरे बहुत ही प्रिय, अग्रज समान, हिन्दी कवि, जीवनीकार, संपादक, आलोचक व विनोबा भावे विश्वविद्यालय, हज़ारीबाग, झारखंड में रहनेवाले, हाल ही में, बमुश्किल कोई 22 दिन पहले अवकाश प्राप्त करने वाले प्रोफेसर भारत यायावर नहीं रहे। इधर उनसे मेरा निरंतर मोबाइल एवं सोशल मीडिया के ज़रिए संपर्क-संवाद बना हुआ था। उनसे मेरी पहली मुलाक़ात जून 1992 में जलेस के बिहार राज्य सम्मेलन में हज़ारीबाग में हुई थी। तारीख़ भूल रहा हूँ। उस सम्मेलन में ‘हंस‘ के संपादक प्रख्यात कथाकार-विमर्शकार राजेन्द्र यादव, जनवादी कहानीकार-उपन्यासकार इसराइल, समकालीन चर्चित कथाकार संजीव, प्रख्यात आलोचक डॉ.चंद्रभूषण तिवारीडॉ.नंदकिशोर नंदन आदि शामिल हुए थे। उसी सम्मेलन में  आरा के सुपरिचित जनवादी कहानीकार डॉ.नीरज सिंह को जलेस का प्रांतीय सचिव चुना गया था और डॉ.चंद्रभूषण तिवारी कुल एक दशक तक बिहार के सचिव पद पर सक्रिय रहकर उसके दायित्व से अलग हुए थे। वे प्रथम व संस्थापक सचिव थे। उन दिनों मैं बेरोज़गार था और नवंबर,1991 में ‘भारत में जन नाट्य आंदोलन’ पर पी.एच.डी. कर वल्लभ विद्यानगर से अपने गाँव लौटा था। इस सम्मेलन के कुछ दिन पहले ही 15 मई,1992 को मुझे दूसरे पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई थी। जो हो, मेरे शोधनिर्देशक थे प्रसिद्ध आलोचक डॉ.शिवकुमार मिश्र

बहरहाल, इधर मैंने भारत यायावर जी को जून, 2021में रश्मि प्रकाशन से प्रकाशित अपना तीसरा कविता संग्रह ‘डुमराँव नज़र आएगा‘ भेजा था तो उन्होंने तत्काल मोबाइल पर बधाई दी थी और कहा था कि इस पर आगे विस्तार से लिखूँगा। एक फ़ेसबुक पर छोटी टिप्पणी भी लिखी थी।

वे बहुत ही ज़िंदादिल व विनोदी स्वभाव के इंसान थे। वे रेणु की जीवनी लिख रहे थे। वे नामवर सिंह की जीवनी पर भी काम कर चुके थे। वे महावीर प्रसाद ग्रंथावली संपादित कर चुके थे। वे लेखन के मोर्चे पर सतत सक्रिय थे। वे अंतिम सांस तक लेखन से जुड़े रहे। कल जब उन्होंने अपने अस्वस्थ होने की ख़बर फ़ेसबुक पर दी तो मैंने उनके स्वस्थ होने के लिये शुभकामनाएँ दी थी। मैंने यह तो कदापि नहीं सोचा था कि वे इतना शीघ्र हमारे बीच से अनुपस्थित हो जायेंगे। अभी उन्होंने उमाशंकर सिंह परमार की एक हाल ही की पोस्ट पर जो मेरे संग्रह पर थी, तीख़ा कटाक्ष किया था। वे हमेशा व्यंग्य व हँसी-मज़ाक की फूलझड़ी छोड़ते रहते थे। वे अपने विरोधियों की परवाह न करते हुए सतत लिखने-पढ़ने से मतलब रखते थे। वे लेखक संगठनों की गंदी राजनीति से ऊबे हुए थे।उनका मानना था कि जो लिखता है वही लेखक होता है। देर-सबेर उसका मूल्यांकन होना ही है। सिर्फ़ लेखक संगठन की सदस्यता ग्रहण करने से कुछ नहीं होता है ।

[bs-quote quote=”जाने माने कवि चन्द्रेश्वर श्रद्धाजंलि में लिखते हैं कि, मेरे बहुत ही प्रिय, अग्रज समान, हिन्दी कवि, जीवनीकार, संपादक, आलोचक व विनोबा भावे विश्वविद्यालय, हज़ारीबाग, झारखंड में हिन्दी के हाल ही में, बमुश्किल कोई 22 दिन पहले अवकाश प्राप्त करने वाले प्रोफेसर भारत यायावर नहीं रहे। इधर उनसे मेरा निरंतर मोबाइल एवं सोशल मीडिया के ज़रिए संपर्क-संवाद बना हुआ था। उनसे मेरी पहली मुलाक़ात जून 1992 में जलेस के बिहार राज्य सम्मेलन में हज़ारीबाग में हुई थी।” style=”style-2″ align=”center” color=”” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]

 

कहीं न कहीं वे अपनी उपेक्षा से अंदर से बेचैन थे। वे अपने जीते-जी जिस सम्मान या हक़ से जुड़े सुख को हासिल करना चाहते थे, वह अभी नहीं नहीं मिल सका था। जो हो, भारत यायावर का इस उम्र में असमय जाना हिन्दी संसार में एक शून्य पैदा कर गया है। उनको मेरी विनम्र श्रद्धांजलि। उनके शोकसंतप्त परिवार को इस विषम दुःख को सहने की शक्ति मिले। नीचे उनकी एक टिप्पणी उनके फ़ेसबुक वॉल से दे रहा हूँ जिसमें उन्होंने सुख पर विचार क्या है |

सुख क्या है?

भारत यायावर (23–12–2019)

हर मनुष्य का अपना अलग सुख होता है।

सुख वह अनुभूति है जो तन-मन को अच्छी लगे।

सुख वह है जो हमारे अनुकूल हो।

कामना की पूर्ति होने से जो आनन्द मिले, वह सुख है।

कष्टों से छुटकारा मिलना भी सुख है।

बेचैनी से छटपटाते हुए आदमी को जब चैन मिले तो सुख है।

उपयुक्त साधन का मिल जाना भी सुख है।

भूखे को भरपेट भोजन मिलना उसके लिए सुख है।

किसी प्रिय से अचानक भेंट हो जाना भी सुख है।

अलभ्य, अकल्पित का मिलना भी सुख है।

लेकिन विचारों की दुनिया में भटकने वाले लोगों का सुख क्या है?

एक बार हजारी प्रसाद द्विवेदी से नामवर सिंह ने पूछा ।

द्विवेदी जी ने जवाब दिया, अपने को समझा जाना सबसे बड़ा सुख है।

हर विचारक की यह पीड़ा होती है कि उसे ठीक से समझा नहीं गया।

रचनाकार की पीड़ा होती है कि उसका ठीक से मूल्यांकन नहीं किया गया।

अब कोई हो कि उन्हें समझ पाए और मूल्यांकन कर पाए, तभी तो उनको सुख मिलेगा।

ज़्यादातर लेखकों को तो छपकर ही सुख मिल जाता है।

भवानी प्रसाद मिश्र ने नए लेखकों को उत्साहित करते हुए कहा है :

      ” लिखे जाओ!

       पत्र-पत्रिकाओं में दिखे जाओ!

       इतना ही काफी है

       बस है!

        छपना ही आधुनिक रस है!”

जाने माने आलोचक और साहित्यकार चौथी राम यादव लिखा, मैं भारत यायावर के आकस्मिक निधन की खबर से हतप्रभ रह गया। उनसे मेरी आखिरी मुलाकात पूर्णिया विश्वविद्यालय के एक सेमिनार में हुई थी। आखिरी जोहार साथी! हार्दिक पुष्पांजलि!!

जाने माने कवि-कहानीकार स्वप्निल श्रीवास्तव ने श्रद्धाजंलि देते हुए लिखा, कल जब भारत के अस्वस्थ होने की सूचना मिली तो फोन किया था, उधर से आवाज नही आयी, फिर सन्देश दिया। मुझे रातभर नींद नही आयी, फिर उसने सन्देश दिया कि वह बेहतर महसूस कर रहा है तो मैं आश्वस्त हो गया। फिर आज ग्यारह बजे उसका फोन आया, उसने दो तीन मिनट तक बात की तो लगा कि तबियत में सुधार है। यह भी बताया कि अभी दवा चलेगी और ठीक हो जाएगा। उसका अंतिम वाक्य था – जीवन का क्या ठिकाना।

भारत से मेरी दोस्ती की उम्र चालीस साल से ज्यादा थी। हम लोग सप्ताह में दो दिन बात तो कर ही लेते थे। वह हमारे सर्वश्रेष्ठ दोस्तों में एक था। उसका प्यार और जिंदादिली मेरी ताकत थी। जिंदगी में जब भी कोई कठिनाई आयी, उसने मेरा साथ दिया। अब मैं कितना अकेला हो गया हूँ, यह तो मैं जानता हूँ। अच्छे दोस्त मुश्किल से मिलते हैं। लेकिन वह मुझसे हाथ छुड़ा कर चला गया, जैसे मैं अनाथ हो गया हूँ। मैं किस दिल से उसे अलविदा कहूं।

कहानीकार दिलीप दर्श लिखते हैं कि, दिसंबर 2018 में भी उनका स्वास्थ्य बिगड़ा था। वैसे तो वे कहते थे – ‘मैं तो शरीर से टूटा – फूटा जर्जर आदमी हूँ, न दाँत ठीक है न आँत लेकिन मस्तिष्क अभी भी दुरुस्त है।’ फिर भी उनसे हुई कुछ बातें मुझे हिला गईं थीं। वे बार बार मृत्यु की बात कर रहे थे और मैं भावावेगवश उस दिन की कल्पना में डूब गया जब वे नहीं रहेंगे। हम कभी मिले नहीं थे, रोज सिर्फ फोन पर बात होती थी। पर वे मुझे इतना प्यार करते थे। मेरे लेखन को लेकर वे बड़े गंभीर हो जाते थे और मेरी बहुत चिंता करते थे। लगभग रोज दफ्तर से निकलते वक्त उनसे बात होती थी। दिसंबर 18 में ही कविता लिखी थी जो आज ‘महाप्रस्थान के पीछे‘ में संकलित है। अभी वह कविता पढ़ रहा हूँ और सोच रहा हूँ अब किसे सुनाऊँ ।

जब तुम नहीं रहोगे ( भारत यायावर के प्रति)

कभी-कभी

सोचता हूं

जब तुम नहीं रहोगे

कहाँ रहूंगा मैं

शायद तब बेमतलब ही बहूंगा मैं

समय की धार में

और तुम खड़े -खोये उस पार में

प्रस्थान पीढ़ी के साथ कहीं फिर व्यस्त हो जाओगे

मिल जाएंगे तुम्हें वहाँ तुम्हारे हजारों बिछड़े हुए

और भूल जाओगे शायद मुझे

छोड़कर अकेला

मेरे भरोसे इतना बड़ा मेला

जहाँ सभी पूछेंगे

“ कहां गया वो तुम्हारा …?”

कुछ तो बताना पडेगा मुझे

पर झूठ तो बोलना सिखाया नहीं तूने

जीते – जी दिखाया नहीं तूने

झूठ की कमाई का भी कोई रास्ता

जैसा रहा वास्ता

तुम्हारा सादगी से

रहा लगाव मनुष्यता की बेचारगी से

मुश्किल होगा मुझसे

यह सब निभाना

जब नहीं रहोगे तुम

हो जाएंगे सामने से गुम

मेरे रास्ते

दूर किसी मील के पत्थर पर

बस लिखा पाऊंगा तुम्हारा नाम

लेकिन वहाँ नहीं होगा लिखा

तेरा पता

तो लोग कहेंगे

“ छाती फाड़कर तू दिखा “

पर कैसे पाऊंगा बता

तबतक तुम हो चुके होगे

मेरी सांस का हिस्सा

जिसका एहसास उसे महसूसने में होगा।

मेरी यह कविता पढ़कर वे भी भावावेग में बह गए थे और इसमें उठाए सवालों के उत्तर भी उन्होंने कविता में दी थी वो भी आधी रात के पोस्ट में। उनकी इस कविता में एक उम्मीद है, लौटने का भरोसा है और कालजयी साहस है। इस कविता के बमुश्किल तीन साल बाद तक ही इस दुनिया में रह पाए परन्तु उनकी यह कविता सदैव यहाँ रहेगी।

पत्रकार संजय कृष्ण लिखते हैं कि, भारत यायावर आखिर चले गए। दो-तीन सप्ताह पहले ही बात हुई थी। रेणु के एक संस्मरण के सिलसिले में। बोले-थोड़ी तबीयत ठीक नहीं है। ठीक होता हूं तो भेजता हूं। यह भी बताया कि पहले से बेहतर हैं। रेणु की जीवनी जब सेतु से आई थी, तब भी बात हुई थी। एक खबर बनानी थी। सामग्री भी उन्होंने कुछ भेजी थी, लेकिन आज-कल, आज-कल के चक्कर में टलता रहा और अब यह मनहूस खबर आ गई। महावीर प्रसाद द्विवेदी और रेणु पर उनका काम सदैव याद किया जाता रहेगा। रेणु पर तो उनका काम जारी ही था। रेणु की न जाने कितनी छवियां उनके भीतर मौजूद थी। जब भी लिखते, हर बार कुछ अलग अंदाज में रेणु हाजिर होते। उनकी रचनाओं का संपादन, समग्र का संपादन, प्रतिनिधि रचनाएं, कहानियां, रिपोर्ताज से लेकर अब उनकी जीवनी आई थी। इसका पहला खंड ही आया था। दूसरा आने वाला था। पता नहीं, दूसरा खंड पूरा हुआ है या नहीं…। एक और काम उनका याद आता है। वह है राधाकृष्ण पर। उनका एक उपन्यास भी उन्होंने प्रकाशित कराया था। एक प्रतिनिधि रचनाओं का चयन भी और साहित्य अकादमी से भी राधाकृष्ण पर एक किताब उनके संपादन में आई थी। भारत जी एक अलग किस्म के रचनाकार थे। वह लगातार यात्रा भी करते रहे। अपने नाम-स्वभाव के अनुसार। देश भर की लाइब्रेरियों की खाक भी छानी। यह बिना जुनून के संभव नहीं था। यह सब करते हुए बार-बार वे अस्वस्थ भी होते रहे। फिर ठीक हो जाते, लेकिन इस बार जिंदगी दगा दे गई। अबकी वे अनंत यात्रा पर निकल गए, जहां से वापसी संभव नहीं। नमन, हिंदी के इस सेवी को। हजार बागों वाले शहर के इस सपूत को।

[bs-quote quote=”मेरी यह कविता पढ़कर वे भी भावावेग में बह गए थे और इसमें उठाए सवालों के उत्तर भी उन्होंने कविता में दी थी वो भी आधी रात के पोस्ट में। उनकी इस कविता में एक उम्मीद है, लौटने का भरोसा है और कालजयी साहस है। इस कविता के बमुश्किल तीन साल बाद तक ही इस दुनिया में रह पाए परन्तु उनकी यह कविता सदैव यहाँ रहेगी।” style=”style-2″ align=”center” color=”” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]

 

उमाशंकर सिंह परमार ने लिखा ‘साहित्य में रेणु को जिन्दा रखने वाले ,महावीर प्रसाद द्विवेदी , नामवर सिंह और रेणु की जीवनी लेखक अस्सी के दशक के दिग्गज कवि परम मित्र बड़े भाई भारत यायावर नही रहे। उनके के पुत्र ने सूचना दी कि वह नहीं रहे अभी कल भारत भाई साब ने बताया कि तबियत पहले से बेहतर है और आज अचानक ? मुझे विश्वास नहीं हो रहा कि वह नही रहे हलाँकि बीमार थे ही इधर दो माह से बिस्तर पर ही लेखन कर रहे थे। कुछ दिन पूर्व कृति ओर के मंच से मैने जब यूट्यूब व जूम पर उनका लाइव कविता पाठ कराया था तब वह जुडे और पूरे समय तक बैठे रहे। दो तीन हफ्ते पहले मुझे लेकर तुकबन्दी लिखी थी और दो दिन पहले अपने सभी मित्रों को कविता के माध्यम से याद किया था। विनोदी और हँसोढ़ थे नागार्जुन के शिष्य हैं खुद पर भी बेरहमी से तंज कर सकते हैं मुझे अभी भी विश्वास नही हो रहा कि भाई साब नही हैं । अभी मैने उनके सभी नम्बरों पर फोन किया सारे नम्बर स्विच आफ आ रहे हैं। शम्भु बादल जी उनके रिश्तेदार हैं उनको भी फोन किया नम्बर उठा नही। अभी शम्भु बादल जी ने इस दुखद सूचना की घटना बताई। प्रतिदिन बातें , फोन में घन्टों तक बहस, सब याद आता है ,आत्मीयता, हास परिहास एवं जिन्दादिली से भरपूर बडे भाई आपका इस तरह अचानक चले जाना दुखी कर गया। मैं दुखी हूँ हतप्रभ हूँ। आपको प्रणाम आपको सलाम। 

शोधार्थी मनकामना शुक्ल ‘पथिक’ लिखते हैं  कि अभी-अभी दुःखद खबर मिली है! कि प्रसिद्ध साहित्यकार भारत यायवर जी इस दुनिया में नहीं रहे ! क्या यह सच है ? कल अचानक उनका स्वास्थ्य बिगड़ा जरूर था, पर हालत में काफी सुधार था। और आज सुबह वे अपने स्वस्थ होने की सूचना भी दिये थे! मुझसे अबकी दिल्ली पुस्तक मेले में मिलने की बात भी कहे थे। वे मेरे लिखने-पढ़ने पर मुझे प्रेरित करते रहते थे। मैं किसी के भी पोस्ट पर महत्त्वपूर्ण कमेंट्स करता था तो दूसरे के वॉल पर भी जाकर भारत यायावर जी लाइक करते थे। आप फणीश्वरनाथ रेणु , नामवर सिंह व महावीर प्रसाद द्विवेदी की जीवनी पर काफी बेहतर कार्य किये हैं। और निरन्तर साहित्य दुनिया में सक्रिय भी थे। अभी कुछ दिन पहले ही मुझसे अपनी पुस्तकों पर भी ध्यान देने को इशारा किये, मैं उनसे वादा भी किया था। वे अच्छे लेखक थे। अभी-अभी उनके निधन की दुःखद सूचना मिली है! यकीन ही नहीं हो रहा। बेहद दुखद।

गाँव के लोग
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