सुप्रसिद्ध आलोचक वीरेंद्र यादव समाज में होनेवाली घटनाओं-परिघटनाओं पर अपनी पैनी नज़र रखते हैं। वर्तमान भारत के संक्रमणकालीन और परिवर्तनकामी राजनीति के बदलते केन्द्रकों और सरोकारों के साथ ही उसमें जड़ जमाये जातिवाद को लेकर उन्होंने साहित्यिक कृतियों तथा बाहर को लगातार पढ़ा-देखा और जाँचा-परखा है। उनसे हुई बातचीत के इस दूसरे हिस्से में राजनीतिक नेंतृत्व पर ब्राह्मणवादी वर्चस्व और अस्मितावादी संकीर्णतावाद के खतरों की ओर स्पष्ट संकेत किया गया है।
वैचारिकी तिरोहित होती गई और प्रतिनिधित्व का सवाल प्रमुख बनता गया — वीरेंद्र यादव
सुप्रसिद्ध आलोचक वीरेंद्र यादव समाज में होनेवाली घटनाओं-परिघटनाओं पर अपनी पैनी नज़र रखते हैं। वर्तमान भारत के संक्रमणकालीन और परिवर्तनकामी राजनीति के बदलते केन्द्रकों और सरोकारों के साथ ही उसमें जड़ जमाये जातिवाद को लेकर उन्होंने साहित्यिक कृतियों तथा बाहर को लगातार पढ़ा-देखा और जाँचा-परखा है। उनसे हुई बातचीत के इस दूसरे हिस्से में राजनीतिक […]