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अराजकता फैलती नहीं, फैलाई जाती है… (डायरी 4 अक्टूबर, 2021)

कल उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी में एक नरसंहार को अंजाम दिया गया। जैसी खबरें मुझे प्राप्त हुई हैं, उनके हिसाब से चार किसान और चार आरएसएस समर्थक मारे गए हैं। किसानों का आरोप है कि केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय कुमार मिश्रा के बेटे आशीष के इशारे पर उनके एक वाहनचालक ने प्रदर्शन कर […]

कल उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी में एक नरसंहार को अंजाम दिया गया। जैसी खबरें मुझे प्राप्त हुई हैं, उनके हिसाब से चार किसान और चार आरएसएस समर्थक मारे गए हैं। किसानों का आरोप है कि केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय कुमार मिश्रा के बेटे आशीष के इशारे पर उनके एक वाहनचालक ने प्रदर्शन कर रहे किसानों के उपर गाड़ी चढ़ा दी। गाड़ी की चपेट में चार किसान आ गए। मृतक किसानों में बहराइच जिले के दलजीत सिंह, गुरविंदर सिंह, पलिया-खीरी के लवप्रीत सिंह और नछत्तर सिंह का नाम शामिल है।
इस घटना की आधिकारिक पुष्टि भी की जा चुकी है। खीरी के जिलाधिकारी अरविंद कुमार चौरसिया द्वारा जारी आधिकारिक बयान के मुताबिक किसान केंद्र सरकार के नये तीन कृषि कानूनों के विरोध में उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के दौरे का विरोध कर रहे थे। इस क्रम में तिकोनिया कोतवाली थाना के इलाके में तिकोनिया-बनवीरपुर मार्ग के मोड़ पर घटना को अंजाम दिया गया। इस संबंध में अपने बेटे का नाम आने पर केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय कुमार मिश्रा ने बयान दिया है। उनका कहना है कि इस घटना में उनका बेटा संलिप्त नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि सबसे पहले हमला किसानों की ओर से बोला गया। वे भाजपा कार्यकर्ताओं (आरएसएस समर्थक) की गाड़ी पर पत्थर फेंक रहे थे और लाठी आदि से प्रहार कर रहे थे। इस कारण गाड़ी पलट गई और चार लोग मर गए। वहीं बाद में किसानों ने दूसरी गाड़ी पर हमला बोला अैर उसमें आग लगा दिया, जिसके कारण तीन भाजपा कार्यकर्ताओं व एक ड्राइवर की मौत हो गई।

[bs-quote quote=”हरियाणा के मुख्यमंत्री खट्टर अपने दल के कार्यकर्ताओं को किसान आंदोलन के खिलाफ अराजक बनने के लिए आह्वान कर रहे हैं। वे तो यह कह रहे हैं कि अराजकता फैलाने के बाद यदि कोई मामला होगा तो उन्हें अधिक से अधिक तीन से छह महीने की जेल होगी। लेकिन जब वे जेल से बाहर निकलेंगे तो बड़ा नेता बन जाएंगे।” style=”style-2″ align=”center” color=”” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]

 

दरअसल, उपरोक्त निंदनीय खबर से मैं चौंका नहीं। और मुझे लगता है कि केवल मैं ही नहीं, देश के अनेकानेक लोग जो देश में बढ़ रही अराजकता को समझ पा रहे हैं, वे भी नहीं चौंके होंगे। मौजूदा शासक अपनी तख्त और ताज को स्थायी तौर पर सुरक्षित रखना चाहता है। वह जानता है कि यदि इस देश में इस तरह की अराजकता नहीं होगी तब इस देश पर राज करना मुश्किल है। आखिरकार लोगों को उलझाए रखने का कोई और तरीका शासक के पास है भी नहीं।
कल ही एक वीडियो वायरल हुआ। वीडियो में हरियाणा के मुख्यमंत्री खट्टर अपने दल के कार्यकर्ताओं को किसान आंदोलन के खिलाफ अराजक बनने के लिए आह्वान कर रहे हैं। वे तो यह कह रहे हैं कि अराजकता फैलाने के बाद यदि कोई मामला होगा तो उन्हें अधिक से अधिक तीन से छह महीने की जेल होगी। लेकिन जब वे जेल से बाहर निकलेंगे तो बड़ा नेता बन जाएंगे।

आन्दोलनरत किसान .

जाहिर तौर पर एक प्रांत का मुख्यमंत्री भांग खाकर तो ऐसी बातें नहीं कर सकता है। हालांकि यह मुमकिन है। लोग तो भांग-गांजा-शराब आदि के बाद भी ‘गैर-अराजक’ बने रहते हैं। इसी देश में और भी मुख्यमंत्रीगण हैं। हालांकि कुछेक ऐसे जरूर हैं जो थोड़ा-बहुत बहक जाते हैं। लेकिन इस तरह से वे अराजक नहीं होते हैं जैसे कि खट्टर अपने कार्यकर्ताओं को अराजकता फैलाने के लिए आह्वान कर रहे हैं।

[bs-quote quote=”दरअसल, अराजकता फैलती नहीं है, फैलाई जाती है। ठीक वैसे ही जैसे कोई गाड़ी खुद-ब-खुद लोगों को रौंदती नहीं है, बल्कि गाड़ी का चालक रौंदता है। मैं तो अब भी हैरान होता हूं कि इस देश के किसान इतने संवेदनशील हैं और अनुशासित हैं। वे पिछले साढ़े दस महीने से आंदोलनरत हैं। वे दिल्ली की सीमाओं पर डटे हैं। इस बीच उनके आंदोलन को खत्म करने के लिए सरकार की ओर से हर तरह का नुस्खा आजमा लिया जा चुका है।” style=”style-2″ align=”center” color=”” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]

 

चूंकि मेरी पत्रकारिता का लंबा हिस्सा बिहार से जुड़ा रहा है और मैं हूं भी बिहार का ही तो मेरे गृह प्रदेश में ऐसे कई मौके आए जब राज्य सरकार के तंत्र ने अराजकता को प्रश्रय दिया और घटनाएं घटित हुईं। लेकिन फिर भी मेरे गृह प्रदेश के सीएम की आंख का पानी सूखा नहीं है। उसने कभी भी अराजकता फैलाने का आह्वान नहीं किया है। यह इसके बावजूद कि रोजगार मांगने वाले नौजवानों पर, खाद-बीज की मांग करनेवाले किसानों पर और समुचित पारिश्रमिक की मांग करनेवाली आशा कार्यकर्ताओं पर उसने कहर ढाया है। इसमें विधानसभा के अंदर विपक्षी सदस्यों को पुलिस से पिटवाने का मामला भी जोड़ा जा सकता है।
दरअसल, अराजकता फैलती नहीं है, फैलाई जाती है। ठीक वैसे ही जैसे कोई गाड़ी खुद-ब-खुद लोगों को रौंदती नहीं है, बल्कि गाड़ी का चालक रौंदता है। मैं तो अब भी हैरान होता हूं कि इस देश के किसान इतने संवेदनशील हैं और अनुशासित हैं। वे पिछले साढ़े दस महीने से आंदोलनरत हैं। वे दिल्ली की सीमाओं पर डटे हैं। इस बीच उनके आंदोलन को खत्म करने के लिए सरकार की ओर से हर तरह का नुस्खा आजमा लिया जा चुका है। यहां तक कि लालकिले पर एक आरएसएस समर्थक द्वारा सिक्ख धर्म का धार्मिक झंडा लगा दिया गया। दिल्ली की सीमाओं पर नुकीले तार बिछा दिए गए। सड़कों पर कीलें ठोंकी गयीं। किसानों नेताओं को कानूनी कार्रवाई की धमकी तक दी गई।

[bs-quote quote=”फिलहाल केवल इतना ही कि राजनीति की परिभाषा क्या है? नंदा जी के मुताबिक, लेनिन ने कहा था– उत्पादन के संसाधनों पर अधिकारों के लिए वर्गों के बीच का संघर्ष ही राजनीति है।” style=”style-2″ align=”center” color=”” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]

 

खैर, इन सबके बावजूद किसान डटे हैं और अब आलम है कि शासक बौखला गए हैं। वे हर हाल में आंदोलन को कुचल देना चाहते हैं। ऐसा कहा जा सकता है। हालांकि लखीमपुर खीरी में हुए नरसंहार की सच्चाई क्या है, यह तो आधिकारिक जांच रिपोर्ट के सामने आने के बाद ही आएगी। लेकिन फिलहाल मैं किसान आंदोलन का विस्तार होते देख रहा हूं। अब यह मामला केवल पंजाब और हरियाणा तक सीमित नहीं है। उत्तर प्रदेश में भी तेजी से बढ़ता रहा है। अब चूंकि वहां कुछ महीने बाद ही चुनाव होनेवाले हैं, तो इस आंदोलन का असर पड़ेगा ही, यह सोचकर उत्तर प्रदेश में सत्तासीन आरएसएस की परेशानियां बढ़ गई हैं। ऐसे में देखना बेहतर होगा कि आरएसएस अपनी बौखलाहट में अगला कदम क्या उठाता है। लोगों को अराजक बनने का आह्वान तो उसका एक मुख्यमंत्री कर ही चुका है।
कल का दिन मेरे लिए बेहद खास रहा। मैं बिहार की राजधानी पटना केक्षेत्र से विधायक रहे एन के नंदा जी के साथ था। वे दिल्ली में मेरे छोटे से रहवास में थे। हमदोनों ने बिहार की राजनीति से लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर घट रही घटनाओं के बारे में लंबी बातचीत की। यदि समय मिला तो उनकी बातों को जरूर लिखूंगा। फिलहाल केवल इतना ही कि राजनीति की परिभाषा क्या है? नंदा जी के मुताबिक, लेनिन ने कहा था– उत्पादन के संसाधनों पर अधिकारों के लिए वर्गों के बीच का संघर्ष ही राजनीति है।
नंदा जी ने राजनीति की इस परिभाषा की व्याख्या भारतीय संदर्भ में करते हुए कहा कि जबतक फुले और आंबेडकरवादी विचारधारा इसमें शामिल नहीं की जाएगी तब तक वामपंथ सार्थक नहीं होगा।
मैं नंदा जी की बात से सहमत हूं। हालांकि इसमें कुछ और चीजों को शामिल किया जाना चाहिए। खैर, इस बारे में फिर कभी। अभी तो वह कविता जो कल शाम में आई–
यह सच है कि
वे बहुत तंदरुस्त होते हैं
जिनके गले में होता है पट्टा और
जंजीर किसी दूसरे के हाथ में
लेकिन मैं तुमसे कह रहा हूं
मेरे देश की संसद
क्योंकि वाकिफ हूं कि
तुम अपने गले का पट्टा नोंच सकती हो
और वह जो
तुम्हारा आका बनने की साजिश रच रहा है
उसे काला इतिहास बना सकती हो।

 

नवल किशोर कुमार फॉरवर्ड प्रेस में संपादक हैं ।

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