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‘चक दे इंडिया’ के जोश में खड़ा विपक्ष और संकट में पड़ा भगवा राष्ट्रवाद

भाजपा जिस तरह अब से पूर्व अपनी विपक्षी पार्टियों का मज़ाक उड़ाती रही है पर इस बार मज़ाक उड़ाने की सोच पर भी उसे अनचाहे अंकुश लगाना पड़ेगा। इंडिया पर हमला करना भाजपा के लिए कठिन काम होगा। संगठन के रूप में इंडिया भले ही भारत का प्रतीक नहीं हो पर उसका ध्वन्यात्मक भाव देश से ज्यादा देश की जनता का प्रतीक बनता दिख रहा है।

काठ की रानी पर कब्जा करके आज तक कोई राजा नहीं हुआ, यह बात कैरम बोर्ड के खेल में जरूर लागू होती है पर राजनीति के मैदान में काठ की रानी भी कई बार बादशाहत की उम्मीद पैदा कर देती है। मिशन-24 यानी लोकसभा चुनाव-2024 को लेकर मैदान में पंहुचने से पूर्व ही यह काठ की रानी विपक्ष के पाले में जाती दिख रही है। वजह बड़ी साफ है विपक्ष ने बड़ी आसानी से एनडीए के सामने महज एक शब्द का ऐसा किला खड़ा कर दिया है जिस पर एनडीए चाह के भी तोप नहीं दाग सकता है। यह शब्द है INDIA । देश के नाम के तौर पर जाने जाने वाला यह शब्द अचानक से विपक्ष की एकता का पर्याय बन गया है। पिछले एक दशक से भारत में राजनीति यथार्थ के मुद्दो पर कम और आभासी नैरेटिव के सहारे ज्यादा होती रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जो सत्ता पक्ष के चुनावी चेहरे भी हैं, इस तरह के आभासी नैरेटिव सेट करने में उनका मुक़ाबला करना अब तक विपक्ष के लिय आसान नहीं था, पर पहली बार विपक्ष नरेंद्र मोदी के आभासी नैरेटिव से आगे निकलता दिख रहा है।

अब तक जिस तरह का आभासी शब्द व्यामोह रचकर नरेंद्र मोदी विपक्ष का मज़ाक उड़ाते थे और अपने विकास का जादुई मिथ रचते थे उसमें समाज के बहुत ही विचारशील तबके को छोड़कर शेष आदमी बिना बहुत कुछ सोचे–समझे उनके प्रति लहालोट हो जाता था। नरेंद्र मोदी की सबसे बड़ी राजनीतिक ताकत यही है कि वह अपने समर्थक को विवेक के स्तर पर विचार करने की स्वतन्त्रता नहीं देते हैं। आक्रामक तरीके से अपनी बात, अपना मंसूबा आरोपित करते हैं और राष्ट्रवाद के रैपर में लपेटकर उछाल देते हैं। हमारा देश उछली और उछाली हुई चीजों को लपकने में हमेशा किसी और से आगे जाना चाहता है। नरेंद्र मोदी छोटी-सी-छोटी बात को माइक में फुसफुसा कर बताना चाहते हैं। यह प्रस्तुतीकरण की अनोखी शैली है, यह शैली उन बादलों की तरह ताकतवर है जिसके पर्दे में लड़ाकू विमान को राडार से छुपाया जा सकता है। फिलहाल, 2002 के बाद से नरेंद्र मोदी अपने इस प्रस्तुतीकरण में अपराजेय बने हुये हैं और 2014 से तो वह ‘एको अहं द्वतीयो नास्ति’ का भाव धारण कर चुके हैं। वर्ष 2023 में वह बार-बार विपक्षी पार्टियों के सामने कमजोर पड़ जा रहे हैं। हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस ने उनके हाथ से सत्ता छीन कर भाजपा को बड़ा झटका दिया था, इसके बाद कर्नाटक में उन्हें एक बार फिर से कांग्रेस के हाथों बड़ी हार का सामना करना पड़ा।

फिलहाल, अभी भाजपा और एनडीए के सामने विपक्ष ने सबसे बड़ा स्ट्रोक चल दिया है। विपक्ष ने अपने संयुक्त संगठन का नाम INDIA यानी ‘इंडियन नेशनल डेवलपमेंट इंक्लूसिव अलायंस’ रख दिया है। इस नाम ने भाजपा के आभासी राष्ट्रवाद के रंग को एक झटके में धूमिल करने का काम कर दिया है। राहुल गांधी ने जिस आत्मविश्वास के साथ INDIA को भारतीय जनता का परिचायक बताया है वह भाजपा के लिए किसी हादसे की तरह है। आखिर INDIA के खिलाफ कैसे लड़ा जा सकता है? भाजपा ने इसका तोड़ निकालने की कोशिश करते हुये यह जरूर कहा था कि इंडिया गुलामी का प्रतीक शब्द है, वह विपक्ष के इंडिया के सामने भारत को लेकर आगे बढ़ेगी। यह बात कुछ असर दिखा पाती उससे पहले ही कांग्रेस की राष्ट्रीय प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत ने भाजपा को आईना दिखाते हुये उन शब्दों का पिटारा पलट दिया, जिसमें अब तक नरेंद्र मोदी के गढ़े हुये ढेरों शब्द भरे पड़े थे। जब उन्होंने इंडिया शब्द का प्रयोग अपनी योजनाओं के पक्ष में किया था जैसे डिजिटल इंडिया, स्टार्ट अप इंडिया आदि। फिलहाल अब तो पूरा विपक्ष बस ‘चक दे इंडिया’ के जोश में आ चुका है।

विपक्ष की बेंगलुरू में चली दो दिन की बैठक में 2024 के लोकसभा चुनाव को लेकर विपक्ष जिस तरह बड़े दिल के साथ इकट्ठा होता दिखा है उसने एनडीए और उससे भी ज्यादा भाजपा को परेशान करना शुरू कर दिया है।

18 जुलाई की विपक्षी की बैंगलुरु बैठक के दिन ही एनडीए की बैठक करना भाजपा के इसी डर का परिचायक है। भाजपा जहां एक ओर ‘एक अकेला सब पर भारी’ का झूठा माहौल बनाए रखना चाहती है, वहीं दूसरी ओर एनडीए में 38 पार्टियों के साथ होने का दावा भी किया जाता है और विपक्ष की बैठक के दिन ही दिल्ली में अपने सहयोगियों को जैसे इस आशय से आमंत्रित कर लेती है कि यह बैठक ही शक्ति प्रदर्शन का सबसे बड़ा माध्यम हो। एक ओर भाजपा 38 के साथ गठबंधन का प्रयास भी कर रही है तो दूसरी ओर गठबंधन के साथियों को उनके होने का क्रेडिट भी नहीं देना चाहती हैं। फिलहाल एनडीए को 2014 के बाद पहली बार विपक्ष घेरता दिख रहा है। घेरने की कोशिशें पहले भी होती रही हैं पर जिस दूरदर्शिता और उदारता के साथ इस बार विपक्ष एक साथ खड़ा हो रहा है वह भाजपा और एनडीए के लिए बड़ी चुनौती बनेगा, इसमें कोई शक नहीं है। इस बार साथ खड़े होने वाले संगठन लगभग समान विचारधारा वाले संगठन हैं। फिलहाल चुनावी लड़ाई अभी दूर है, तब तक बहुत कुछ तय होगा पर अभी विपक्ष के इस साझे ने भाजपा के लिए एक बड़ी मुश्किल पैदा कर दी है।

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क्या INDIA को हरा पाएगी भाजपा

विपक्ष ने सत्ता के सामने एक ऐसा शब्द खड़ा कर दिया है जिसका भवितव्य बहुत बड़ा है, जिसे छदम राष्ट्रवाद के डंडे से गिराया नहीं जा सकता है। दरअसल विपक्ष के दल इस बार सत्ता के सरताज बनने के बजाय भाजपा को सत्ता से बेदखल करने पर ज्यादा फोकस कर रहे हैं। सोनिया गांधी और लालू प्रसाद यादव, ममता बनर्जी, नीतीश कुमार, शरद पवार जैसे वरिष्ठ नेता के साथ-साथ, अखिलेश यादव, राहुल गांधी, जयंत चौधरी और तेजस्वी यादव जैसे युवा नेता भी इस बार पूरी तरह से एनडीए को हटाने के लिए इकट्ठा हुये हैं। विपक्ष के इस गठबंधन को नया नाम दिया गया है INDIA । इंडिया मतलब ‘इंडियन नेशनल डेवलपमेंट इंक्लूसिव अलायंस’। इस शब्द पर हमला करना आसान नहीं है। यदि भाजपा इंडिया को हराने को बात करती है तो उसके राष्ट्रवाद का रंग पुनः भगवा में बदल जाएगा। भाजपा यह जानती है कि वह धार्मिक ध्रुवीकरण की कितनी भी कोशिश कर ले पर महज भगवा झण्डा को प्रतीक बना कर भारत की गंगा-जमुनी तहजीब को राजनीतिक सत्ता की जमीन में तब्दील नहीं किया जा सकता है। भाजपा जिस तरह अब से पूर्व अपनी विपक्षी पार्टियों का मज़ाक उड़ाती रही है पर इस बार मज़ाक उड़ाने की सोच पर भी उसे अनचाहे अंकुश लगाना पड़ेगा। इंडिया पर हमला करना भाजपा के लिए कठिन काम होगा। संगठन के रूप में इंडिया भले ही भारत का प्रतीक नहीं हो पर उसका ध्वन्यात्मक भाव देश से ज्यादा देश की जनता का प्रतीक बनता दिख रहा है। इस बार भाजपा के लिए फिलहाल इंडिया को हराना कठिन होगा। जिस 38 के समर्थन से एनडीए को खड़ा किया गया है उसमें महाराष्ट्र की शिवसेना (शिंदे गुट) और बिहार की लोक जनशक्ति पार्टी के अलावा अन्य पार्टियां बहुत ताकतवर स्थिति में नहीं हैं। कहा जाता है कि केंद्र सरकार का रास्ता उत्तर प्रदेश से होकर जाता है। उत्तर प्रदेश में भाजपा लोकसभा में ताकतवर पार्टी के तौर पर मौजूद है पर पिछली विधानसभा में भाजपा की 10 प्रतिशत वोट हिस्सेदारी का कम होना और समाजवादी पार्टी की 10 प्रतिशत वोट हिस्सेदारी का बढ़ना तथा इस बार अखिलेश यादव के साथ इंडिया का होना और समाजवादी पार्टी द्वारा पीडीए की बात करना, उत्तर प्रदेश में भाजपा के पहिये में घर्षण पैदा कर सकता है।

दक्षिण भारत में भाजपा अपनी सोच के अनुरूप नहीं बढ़ पा रही है जबकि पूर्वोत्तर में मणिपुर की हिंसा को कंट्रोल ना कर पाने की वजह से पूर्वोत्तर और पूर्व में भी भाजपा का जीत सूचकांक बढ़त बना सके इसकी उम्मीद देश तो क्या भाजपा को भी नहीं होने वाली है। मणिपुर में राज्य में भी भाजपा की ही सरकार होने से इस पूरी हिंसा के दाग भाजपा के दामन पर भी लग रहे हैं। लंबे समय से जल रहे मणिपुर पर प्रधानमंत्री का कुछ ना बोलना भी लोगों को चुभता रहा है। अब जबकि मणिपुर में दो आदिवासी स्त्रियॉं को निर्वस्त्र कर घुमाया गया है और इस खबर ने अंतर्राष्ट्रीय मीडिया में देश को शर्मसार कर दिया है तब पहली बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी  ने इस विषय पर बोला है। बिहार में तेजस्वी यादव बार-बार जातीय जनगणना की बात करके भाजपा के लिए दलित और पिछड़े वोट में सेंध लगाने के रास्ते को कठिन कर दिया है।

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2024 का चुनाव कौन जीतेगा कौन हारेगा इसका कयास अभी भले ही नहीं लगाया जा सके पर यह तो तय है कि यह चुनाव भारतीय राजनीति का आंदोलनकारी चुनाव होने जा रहा है। शेष तो वक्त बताएगा कि देश इंडिया के साथ होगा या फिर इंडिया के खिलाफ होगा।

राजनीति के शतरंज जैसे खेल को कैरम बोर्ड के खेल में बदलकर विपक्ष ने सत्ता के खिलाफ प्रतीकात्मक बढ़त तो हासिल कर ही ली है। साथ ही कैरम बोर्ड की लाल गिट यानि रानी को भी अपने कब्जे में कर लिया है पर यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा कि काठ की रानी विपक्ष को सत्ता की बादशाहत देगी या नहीं।

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