खबरों से जुड़ी दुनिया ही अलग होती है। इसको ऐसे समझिए कि एक पत्रकार खबरों के बीच ही जीता है। खबरें भी एक जैसी नहीं होतीं। किस्म-किस्म की खबरें और हर खबर पर पत्रकार की नजर रहती है। मैं तो यह मानता हूं कि जिसके पास खबर नहीं, वह पत्रकार नहीं। अखबारों की दुनिया में तो आदमी को अपने पास खबरों का स्टॉक रखना होता है। हर दिन अखबार के दफ्तर में होनेवाली मीटिंग में यह पूछा जाता है कि आपके पास आज के लिए कितनी खबरें हैं। फिर यह पूछा जाता है कि आपकी खबरों में क्या है। संपादक हर खबर को तौलते हैं। तौलने का तरीका उनका है। जैसा संपादक वैसा उसका बटखारा। हालांकिअब मेरे साथ यह नहीं होता है तो मुझे एक सुकून सा रहता है।
तो कई बार ऐसा होता है कि खबरें बनानी होती हैं। मतलब यह कि आप सूत्रों के हवाले से कुछ भी खबर लिख सकते हैं। ऐसी खबरें भी, जिनका कोई अस्तित्व ही नहीं होता। लेकिन खबर तब खबर बन जाती है जब वह छप जाती है। फिर तो चाहे जैसी भी खबर हो, पाठक पढ़ ही लेता है।
मैं भी आज एक खबर के बारे में सोच रहा हूं। यह खबर जनसत्ता ने प्रकाशित किया है। इसका शीर्षक है– ‘प्रधानमंत्री की सुरक्षा में ‘मेबैक’ का जुड़ना नियमित बदलाव का हिस्सा।’
इस खबर के केंद्र में है एक सुपर लग्जरी गाड़ी जिसे मर्सीडीज नामक कंपनी ने बनाया है। सोशल मीडिया पर इससे जुड़ी बातें पहले से चल रही हैं। कोई कह रहा है कि यह कार 15 करोड़ की है तो कोई इसकी कीमत 12 करोड़ रुपए लगा रहा है। टाइम्स ऑफ इंडिया अपनी एक खबर में इसकी कीमत 12 करोड़ रुपए बता रहा है। इसके मुताबिक प्रधानमंत्री के नये वाहन को बनानेवाली कंपनी ने अपने इस मॉडल को पिछले साल बाजार में उतारा था और तब उसकी कीमत साढ़े दस करोड़ रुपए थी।
मैं तो अनुमान से कह रहा हूं कि प्रधानमंत्री के विशेष वाहन की कीमत कम से कम 22 करोड़ होगी। वजह यह कि इसमें सुरक्षा उपकरण लगाए गए होंगे। इसे मिसाइल रोधी बनाया गया होगा। बुलेटप्रुफ तो खैर होगी ही। अब इस बात की चर्चा का कोई मतलब नहीं है कि देश का प्रधानमंत्री कितने करोड़ की गाड़ी में चढ़ता है। भाई, वह देश का केवल प्रधानमंत्री थोड़े ना है। वह तो इस देश रूपी कंपनी का सीईओ है। उसे बेशकीमती सूट पहनने का हक है और बेशकीमती गाड़ियों पर चढ़ने का भी। लोग हैं कि खामख्वाह सवाल उठाते रहते हैं।
अब जनसत्ता ने अपनी उपरोक्त खबर में अधिकारियों के हवाले से लिखा है कि इसकी कीमत जितनी बतायी जा रही है, वह एक-तिहाई कम है। हालांकि जिन अधिकारियों से जनसत्ता के पत्रकार को जानकारी मिली, शायद उन्होंने कार की स्पष्ट कीमत के बारे में जानकारी नहीं दी। वर्ना यह तो खबर में शामिल किया जाना चाहिए था कि प्रधानमंत्री के नये वाहन की कीमत 4 करोड़ रुपए है या फिर 5 करोड़ रुपए।
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जनसत्ता वाले भी आजकल ऐसी खबरें छापते हैं, यह सोचकर हैरानी होती है। इसी खबर के अंत में एक जगह लिखा है कि सोनिया गांधी एक समय रेंज रोवर्स नामक वाहन का उपयोग अपने लिए करती थीं, जबकि उसे तत्कालीन प्रधानमंत्री के लिए खरीदी गयी थी। पत्रकार ने इस सूचना का स्रोत भी अधिकारियों को बताया है। लेकिन मजेदार यह कि वे किस मंत्रालय के अधिकारी थे।
चलिए आज कुछ अनुमान लगाते हैं कि वे किस मंत्रालय के अधिकारी होंगे। मुझे लगता है कि वे पीएमओ के अधिकारी होंगे। उन्हें प्रधानमंत्री ने कहा होगा कि जरा जनसत्ता के पत्रकार से बात करो और उसको बताओ कि कार की कीमत कितनी है और इसके खरीदने के पीछे सीएजी की टिप्पणी है। बेचारे अधिकारियों ने पत्रकार को सब सच-सच बता दिया और कह दिया हो कि इसे ‘सूत्र के हवाले’ से ही लिखना। साथ ही सोनिया गांधी वाली जानकारी भी उन्हीं लोगों ने दी होगी
तो बस तैयार हो गयी खबर।
दरअसल, यह हिंदी पत्रकारिता का दुर्भाग्य है कि अधिकांश हिंदी पत्रकार अपना होमवर्क नहीं करते हैं। मर्सीडीज मेबैक की भारत में जो रेंज है, वह कंपनी के आधिकारिक वेब पोर्टल पर पौने तीन करोड़ रुपए से शुरू होती है। इसकी अधिकतम कीमत 18 करोड़ रुपए है। खबर में असल जानकारी यह होनी चाहिए कि जो कार खरीदी गयी है, उसकी विशेषताएं क्या हैं।
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मैं तो अनुमान से कह रहा हूं कि प्रधानमंत्री के विशेष वाहन की कीमत कम से कम 22 करोड़ होगी। वजह यह कि इसमें सुरक्षा उपकरण लगाए गए होंगे। इसे मिसाइल रोधी बनाया गया होगा। बुलेटप्रुफ तो खैर होगी ही। अब इस बात की चर्चा का कोई मतलब नहीं है कि देश का प्रधानमंत्री कितने करोड़ की गाड़ी में चढ़ता है। भाई, वह देश का केवल प्रधानमंत्री थोड़े ना है। वह तो इस देश रूपी कंपनी का सीईओ है। उसे बेशकीमती सूट पहनने का हक है और बेशकीमती गाड़ियों पर चढ़ने का भी। लोग हैं कि खामख्वाह सवाल उठाते रहते हैं।
मैं तो बिहार के मुख्यमंत्री की बात करता हूं। बेचारे आज भी कई बार एंबेस्डर पर नजर आ जाते हैं। हालांकि उनके पास भी डेढ़ करोड़ की गाड़ी है। लेकिन इस पर चढ़कर वे विधानसभा नहीं जाते। अपनी सादगी का मुजायरा करते हैं।
राजनेताओं को अपनी सादगी का मुजायरा करनी ही चाहिए। फिर हकीकत चाहे कुछ भी हो। कल देर शाम मुल्क के बारे में सोच रहा था तो एक कविता जेहन में आयी। इसे भी आज की डायरी में जोड़ रहा हूं।
काम के बदले नाम बदलिए, रचिए इतिहास नया,
भारत मुर्दों का मुल्क है, इसमें भला आश्चर्य क्या।
इसमें भला आश्चर्य क्या कि रामलला है पालनहार,
राम का नाम जपते रहिए, हक-हुकूक की बात क्या।
हक-हुकूक की बात क्या, मांगिएगा तो मिलेगी जेल,
रामराज में अब छोड़िए होश-हवास की बात क्या।
होश हवास सब भूल जाइए, मूर्ख साधु करेंगे शासन,
सचिवालय में करेंगे हवन, आपके कुछ बोलने से क्या।
आपके बोलने से कुछ क्या जब शासक हैं उन्मादी,
माथा पीटिये, कपार फोड़िए, हुक्मरान को इससे क्या।
हुक्मरान को इससे क्या कि देश में है एक संविधान,
मनुविधान उनको है प्रिय, आपके चिल्लाने से क्या।
चिल्लाने से होगा क्या कि समझा करो बात नवल,
जनता धर्म में अंधी है, तुम्हारे सच लिखने से क्या
नवल किशोर कुमार फॉरवर्ड प्रेस में संपादक हैं।
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