Tuesday, June 17, 2025
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गाँव के लोग

संस्कृति और सामाजिक न्याय

प्रत्येक समाज अपनी संस्कृति से पहचाना जाता है। उसका प्रमुख कार्य समाज में एकता की अनुभूति जगाना पैदा करना है. इसके लिए जरूरी है...

जेलों में यातना की अंतहीन कहानियाँ

भारतीय जेलें पुलिस महकमे की भागीदारी के बिना अधूरी ही मानी जायेंगी। यह तथ्य किसी से छिपा नही है कि आज भी पुलिस-प्रशासन का जेण्डर दृष्टिकोण सामन्ती और पिछड़ा है। यहां तक कि महिला पुलिस अधिकारी और कर्मचारी भी उन्हीं महिला विरोधी मानदण्डों और गालियों का प्रयोग बेधड़क करती हैं जो कि पुरुषों द्वारा किये जाते हैं। यहां पर सवर्ण पितृसत्तात्मक मानसिकता का इतना अधिक प्रभाव होता है कि पुलिसकर्मी महिला मामलों को संवेदनशील तरीके हल करने में सक्षम नहीं होते हैं। अधिकांश तो महिला को अपराधी सिद्ध कर देने भर की ड्यूटी तक ही सीमित रहते हैं। कई बार यह देखा गया है कि महिला पुलिसकर्मी पुरुषवादी दृष्टिकोण से महिला अपराधियों के साथ ज्यादा अमानवीय और अभद्र व्यवहार करती हैं।

हमारा जंगल 

एक बार की बात है, एक खूबसूरत जंगल था। उस जंगल में बहुत से छोटे से बड़े जानवर बड़े प्यार से रहते थे। एक...

हम हिन्दू नहीं, आदिवासी हैं…डायरी (8 अगस्त, 2021)  

धरती और अंतरिक्ष में अंतर है। वैज्ञानिक स्तर पर तो अंतर यही है कि धरती पर गुरुत्वाकर्षण शक्ति का मान अलग होता है और...

जाति जनगणना का प्रश्न

जाति गणना का प्रश्न समाजिक सन्दर्भों के अध्ययन, और सामाजिक उन्नयन के लिए नीतियों के निर्धारण, दोनों के लिए बहुत जरूरी है। जो लोग...

आधुनिक भारत में वर्ग संघर्ष के आगाज का दिन है सात अगस्त!

आज 7 अगस्त है। एकाधिक कारणों से इतिहास का खास दिन! यह लेख शुरू करने के पहले मैंने इस दिन का महत्व जानने के...

वरिष्ठ अधिवक्ता के ऊपर हुए प्राणघातक हमले के खिलाफ अधिवक्ताओं ने धरना कर जिलाधिकारी माध्यम से मुख्यमंत्री को दिया ज्ञापन 

वरिष्ठ अधिवक्ता कृष्ण चंद्र यादव  के खिलाफ हुए जानलेवा  हमले के बाद जिला प्रशासन व पुलिस द्वारा अपराधियों के संरक्षण के खिलाफ अधिवक्ताओं ने...

हिरोशिमा दिवस पर सारनाथ में बुद्ध प्रतिमा के समक्ष संकल्प के साथ हुआ समापन 

पूर्वांचल के 10 जिलों में लगभग 650 किलोमीटर मार्ग पर किया गया व्यापक जन संवाद  एक देश समान शिक्षा अभियान एवं आशा ट्रस्ट के संयुक्त...

हमारा लक्ष्य – (लघु नाटक)

( आज 6 अगस्त है, आज से 76 वर्ष पहले दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान अमेरिका ने जापान पर परमाणु बम गिराया. कभी न भुलाए...

प्रभाष जोशी ब्राह्मण थे, इसलिए बकवास भी खूब लिखते थे डायरी (6 अगस्त, 2021)

“तिलक, तराजू और तलवार, इनको मारो जूते चार” का नारा कांशीराम ने दिया था। उन्होंने यह नारा क्यों दिया था, यह मुझे तब समझ...

राजस्थान की पूंछ का आख़िरी गाँव

मेरा गाँव मेरे लिए दुनिया की सबसे सुंदर जगह है, जहां मेरा बचपन बीता था। गाँव और बचपन की स्मृतियाँ मुझे रोमांचित कर देती...

दलितों को ‘हरिजन’ कहकर दिव्यता में उलझानेवाले उनके सिर उठाते ही दमन करते हैं

दूसरा और अंतिम हिस्सा ज़िंदगी की गहराई किताबों से नहीं अनुभव की आँखों से नापी जाती है। जो आँखें जूते के अंदर घुसे आदमी...

आरक्षण ओबीसी का अधिकार है, भीख नहीं डायरी (5 अगस्त, 2021) 

ओबीसी यानी अन्य पिछड़ा वर्ग। इन दिनों यह वर्ग राजनीति और खबरों के केंद्र में है। नरेंद्र मोदी सरकार इन दिनों ताबड़तोड़ फैसले कर...

स्त्रियों की नज़र में प्रेमचंद और उनकी रचनाएँ क्या हैं

पहला हिस्सा प्रेमचंद की जयंती के मौके पर पूरे देश में लोग उन्हें याद करते हैं। प्रेमचंद के प्रशंसकों और आलोचकों का विस्तृत संसार...

बारात का रोमांच और किसलय जी के साथ बसंता जी के घर की ओर

पहला हिस्सा विगत वर्षों की भांति इस साल भी मैं नवंबर 2017 में लगभग 3 सप्ताह के लिए छुट्टी लेकर गाँव हो आया था।...

खतरे में है देश की संप्रभुता  डायरी (28 जुलाई, 2021) 

समय बहुत मूल्यवान होता है। इसकी कीमत का कोई आकलन नहीं हो सकता। ऐसा मेरा मानना है। वहीं मैं यह भी मानता हूं कि...

गाँव देस आज 16 जुलाई

 किसान आंदोलन को लेकर भाजपा नेताओं का रवैया लगातार आपत्तिजनक रहा है। उन्होंने किसान आंदोलन को लेकर लगातार गलतबयानी की है और यथासंभव किसानों...

उच्च शिक्षा क्यों नहीं प्राप्त कर पाते गरीब बच्चे

मैं पिछले तीन वर्ष से बेसिक शिक्षा विभाग में गरीब और असहाय बच्चों को शिक्षा दे रहा हूँ। मैं उन्हें गरीब और असहाय इसलिए...

कोरोनाकाल और युवाओं के भविष्य पर अनिश्चितता की तलवार

इन तमाम समस्याओं को खत्म करने के लिए बहुत जरूरी है कि हम अपनी सोच में परिवर्तन लाएँ, यदि बचपन से ही बच्चों को यह सिखाया और दिखाया जाता कि घर के काम करना सिर्फ महिलाओं और लड़कियों का नहीं हैं बल्कि लड़के भी खाना बना सकते हैं उनकी रोटी भी गोल और मुलायम हो सकती है, बाहर कमाना सिर्फ लड़कों का ही काम नहीं हैं महिलाएं भी बाहर जा कर काम कर सकती हैं।

दिलीप कुमार की यादों के संदर्भ बहुत व्यापक हैं !

दिलीप कुमार हिंदुस्तानी सिनेमा का सबसे बड़ा नाम हैं जिसे देख कर हम बड़े हुए । सिनेमा के रुपहले परदे पर जो नायकों का...

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