फासीवादी संगठन आरएसएस ने सरकारी कर्मचारियों को अपने संगठन की गतिविधियों में भाग लेने पर लगे प्रतिबंध से छूट दे दी है। जबकि कोई भी सरकारी कर्मचारी को किसी भी राजनैतिक संगठन से जुड़ने पर पूरी तरह से मनाही है ताकि वे संविधान के मूल्यों के प्रति प्रतिबद्ध रहें और अपने काम में राजनैतिक पक्षपात न करें। सवाल यह उठता है कि संघ का अगला एजेंडा क्या है, जिसमें वह सरकारी कर्मचारियों का उपयोग(दुरुपयोग) करेगा?
आज से 70 वर्ष पहले ऐसे वर्गों के लिए आरक्षण की व्यवस्था संविधान में लाई गई थी, जो सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक रूप से हाशिये पर जीवन जीने को मजबूर थे क्योंकि देश का सवर्ण तबका, खासकर ब्राह्मण, उन्हें आगे बढ़ने देना नहीं चाहते थे लेकिन संविधान के सामने विवश थे। हाशिये के इन समाजों ने शिक्षित हो आगे आना शुरू किया। यही बात भारतीय सवर्णों के लिए अपच हो गई। फिर भी भारतीय संविधान हाशिये के समाजों के अधिकारों की सुरक्षा करता रहा है। अब आरएसएस के दिमाग से संचालित भाजपानीत सरकार ने हाशिये के समाज के लोगों को फिर से हाशिये पर ढकेलने के लिए अलग षड्यंत्र कर रही है। देश का अपना संविधान होने के बावजूद आरएसएस यहाँ अपना एक अलग मनुवादी संविधान थोपने के प्रयास में है। प्रायः सभी चयन समितियों में अपने वर्चस्व का लाभ उठाकर शिक्षा और नौकरियों के मामले में उन्हें NFS कर हटाने के प्रयास में है। इलाहाबाद विश्वविद्यालय के ताजा मामले में जानिए कि कैसे आठ उम्मीदवारों को NFS कर दिया गया।
7 राज्यों में 13 सीटों पर हुए उपचुनाव में इंडिया गठबंधन ने 10 सीटों पर चुनाव जीत लिया। भाजपा को कुल 2 सीटों पर जीत हासिल हुई। इससे एक बात स्पष्ट हो गई कि जनता भी अब जायज़ मुद्दे पर ही चुनाव में प्रतिनिधि का चुनाव करेगी। जनता हिंदुतव और धर्म के मुद्दे से ऊब चुकी है। लोकसभा चुनाव में भी जनता की मंशा सामने आई थी और विधानसभा उपचुनाव के ये नतीजे भी संकेत कर रहे हैं कि राजनैतिक दल यदि ऐसे ही रहे तो उनका चुनाव जीतना मुश्किल होगा।
संविधान की धज्जियां उड़ाने वाली वर्तमान केंद्र सरकार ने 25 जून को संविधान हत्या दिवस मनाने की घोषणा की है। इनका कहना है कि 1975 में 25 जून को आपातकाल का लगाया जाना संविधान की हत्या करना ही था। यह आपातकाल एक बार लगा था लेकिन वर्ष 2014 से जब से भाजपा सरकार सत्ता में है, तब से पूरे देश में अघोषित आपातकाल लगा हुआ है और देश के संविधान के विरुद्ध ही सभी निर्णय लिए जा रहे हैं। सवाल यह है कि ऐसे में संविधान हत्या दिवस की घोषणा करना क्या उचित है?
वर्ष 2014 में बीजेपी के आ जाने के बाद संघ और मजबूती से अपनी रणनीतियों को लागू करने की तेजी दिखा रही है। एक तरफ संविधान बदलकर हिन्दू राष्ट्र बनाने की जल्दी है, वहीं दूसरी तरफ देश की शिक्षा व कानून में बदलाव कर उसे अपने कब्जे में करने की रणनीति तैयार की जा रही है।
केंद्र की मोदी सरकार के पिछले दो कार्यकाल संसद में विपक्ष के नेता के बिना ही चला और बीजेपी सरकार ने खूब मनमानी की। लेकिन अठारहवीं लोकसभा के चुनाव के बाद इस बार संसद में विपक्ष के नेता की बागडोर राहुल गांधी के जिम्मे है, और वे इस ज़िम्मेदारी को अच्छी तरह निभा रहे हैं। इसे उन्होंने संसद के पहले सत्र में ही दिखा दिया। इस बार सत्ता पक्ष को संसद में उन सवालों से दो-चार होना ही पड़ेगा, जिनसे वह बचता आया था।
आरएसएस के एक शीर्ष पदाधिकारी इंद्रेश कुमार ने भी कहा कि अहंकार के कारण भाजपा की सीटों में गिरावट आई है। आरएसएस ने तुरंत इस बयान से पल्ला झाड़ लिया और इंद्रेश कुमार ने इसे वापस लेते हुए प्रमाणित किया कि केवल मोदी के नेतृत्व में ही भारत प्रगति कर सकता है। कई टिप्पणीकारों ने डॉ. भागवत के बयान को आरएसएस और भाजपा के बीच दरार के संकेत के रूप में लिया है।
पिछले दस वर्षों के दो कार्यकाल में मोदी ने ध्रुवीकरण को करने के लिए साम-दंड-भेद सभी तरीके अपनाए, वह सामने है। मुसलमानों के खिलाफ सांप्रदायिक ज़हर से भरे हुए भाषण, उनके पहनावे, खान-पान, बुर्का-हिजाब, गाय की तस्करी को लेकर हुई मॉब लिंचिंग, लव जेहाद, सीएए/एनआरसी जैसे अनेक मामले सामने आए। तीसरे कार्यकाल में मुसलमानों की सामाजिक, राजनैतिक और आर्थिक स्थिति में कितना और कैसा बदलाव होगा? समय के साथ सामने आएगा।
लोकसभा चुनाव 2024 में 400 के पार का नारा देने वाली भाजपा बहुमत भी नहीं ला सकी। इसके विपरीत कांग्रेस ने भारत जोड़ो न्याय यात्रा कर जनता से सीधे जुड़ते हुए सामाजिक न्याय व समान भागीदारी पर सवाल खड़ा किया। कांग्रेस के घोषणा पत्र में वे सभी बिन्दु शामिल किए गए, जो पिछ्ले दस वर्षों में जनता की जरूरत थे। सवाल यह उठता है कि आने वाले दिनों में कांग्रेस किस तरह अपना वर्चस्व हासिल कर पाएगी।
भाजपा की राजनीति ने सिर्फ लोगों के अन्दर चिंगारियां भरने का काम किया है। इसलिए हमें ऐसी राजनीति से परहेज करना चाहिए और समता मूलक समाज की स्थापना में अपना योगदान देना चाहिए। गांधी की यात्राएं कांग्रेस को गांव-गांव तक पहुंचा देने और वहां संगठन खड़ा कर देने में बदल गईं। एक जनवादी आंदोनल के लिए इस तरह की यात्राएं बहुत ही जरूरी हैं। जब ऐसी यात्राएं बंद होती हैं तो जनसंगठन और पार्टियाँ लोगों को विनाश की ओर ले जाती हैं ।
लोकसभा 2024 के चुनाव हो चुके और परिणाम भी सामने आ चुके हैं। लेकिन किसी भी एक दल को बहुमत हासिल नहीं हुआ है। 400 पार का दावा करने वाली भाजपा को इस बार जनता ने सबक सिखा ही दिया, उसने मात्र 240 सीटों पर भाजपा ने जीत दर्ज की। वाराणसी संसदीय सीट से नरेंद्र मोदी के जीत का अंतर कम हुआ है। भाजपा की कम सीट आने पर भक्त दुखी जरूर हैं लेकिन यह कहकर मन को तसल्ली दे रहे हैं कि मोदी एक बार फिर प्रधानमंत्री बन रहे हैं। लेकिन सहयोगी दल समर्थन देने के लिए जिस तरह से मंत्री पदों की मांग कर रहे हैं, आने वाले दिनों में क्या स्थिति बनेगी, देखना होगा।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी हिन्दू राष्ट्रवादी हैं और हिन्दू राष्ट्र के निर्माण के घोषित लक्ष्य वाले आरएसएस के प्रशिक्षित प्रचारक हैं। सांप्रदायिक राष्ट्रवाद को नस्ल या धर्म का लबादा ओढ़े तानाशाही बहुत पसंद आती है। धार्मिक राष्ट्रवादी समूह अपने सर्वोच्च नेता की छवि एक महामानव की बनाने में कोई कसर बाकी नहीं रखते। ऐसे में वे अवतारी पुरुष कैसे हुए?
देश में आम जनता द्वारा चुनाव से पहले आने वाली बातचीत से ऐसा लग रहा था कि चुनावी नतीजों में भारी फेरबदल हो सकता है लेकिन गोदी मीडिया ने लोकसभा चुनाव के सात चरणों के चुनाव खत्म होते ही एक्ज़िट पोल से यह बता दिया कि भाजपा पूर्ण बहुमत से या कहें भारी बहुमत से सत्ता में आ रही है। इस तरह जब चुनाव की प्रक्रिया को प्रभावित करने, उसे पक्ष में लाने और जीत में बदल देने का प्रबंधन व्यवस्था काम करने लगे और यह सीधे बाजार और शासन पर नियंत्रण का हिस्सा बन जाए, तब वहां सिर्फ वोट देने वाला ही नहीं, पूरी प्रक्रिया ही प्रभावित होने लगती है।
चौथे चरण का वोट खत्म होते-होते राहुल गांधी एक आंधी में तब्दील हो गए। भीषण गर्मी की उपेक्षा कर इंडिया की सभाओं में जो भीड़ उमड़ी, वह अभूतपूर्व है। कई लोगों को संदेह है कि यह भीड़ शायद वोट में तब्दील न हो। लेकिन भीड़ के अन्दर जो जुनून देखा जा रहा है वह इंडिया गठबंधन की कामयाबी की पटकथा को व्यक्त कर रहा है।
वर्ष 2014 से केंद्र में आरएसएस पोषित भाजपा शासन कर रही है। अब वर्ष 2024 में तीसरी बार सरकार बनाने के लिए मशक्कत कर रही है। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड़ड़ा ने साफ़तौर पर यह कहा कि लोग अपने मन इस भ्रम को मिटा दें कि इस चुनाव में आरएसएस भाजपा को किसी तरह से कोई सपोर्ट नहीं कर रहा है।
भाजपा मुसलमानों को आरक्षण का हकमार बताए जा रही है, उसके पीछे का सबसे बड़ा कारण यह है कि वह आरक्षण के असल हकमार वर्ग से राष्ट्र का ध्यान भटकाए रखना चाहती है। चूँकि वह चुनाव में मुसलमानों के खिलाफ नफरत फैलाकर ही कामयाबी हासिल करती रही जिसे वह आगे भी जारी रखना चाहती है।
सदियों से गुलामी और पिछड़ेपन की शिकार रही दलित और पिछड़ी जातियों को आंबेडकरी आरक्षण से कुछ लाभ हुआ लेकिन मोदी ने आते ही आरक्षण पर कैची चलाना शुरू कर दिया। ऐसे में कुछ लोग मोदी को अवतारी पुरुष कहने लगे जिस पर बड़ा प्रश्न खड़ा होता है।
विगत वर्षों के दौरान उत्तर प्रदेश में पत्रकारों के उत्पीड़न और जानलेवा हमलों के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। योगी आदित्यनाथ की सरकार के पहले कार्यकाल में राज्य में पत्रकारों के उत्पीड़न के 138 मामले दर्ज़ किए गए। दूसरे कार्यकाल में भी इसमें कमी नहीं आई है। विगत दिनों एक रैली की कवरेज के लिए गए पत्रकार पर भाजपा कार्यकर्ताओं ने जानलेवा हमला किया और जौनपुर में सरे-बाज़ार एक पत्रकार को गोली मार दी गई।
जब भी भाजपा के समक्ष संकट आता है तो वह सांप्रदायिकता की पनाह में चली जाती है। चूंकि कोई भी चुनाव आसान नहीं होता, इसलिए भाजपा मण्डल के उत्तरकाल के हर चुनाव में राम नाम जपने और मुस्लिम विद्वेष के प्रसार के लिए बाध्य रही।