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उत्तर प्रदेश : सवाल करनेवाले पत्रकारों पर सत्ता और सत्ता पोषित गुंडों के बढ़ते हमले

विगत वर्षों के दौरान उत्तर प्रदेश में पत्रकारों के उत्पीड़न और जानलेवा हमलों के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। योगी आदित्यनाथ की सरकार के पहले कार्यकाल में राज्य में पत्रकारों के उत्पीड़न के 138 मामले दर्ज़ किए गए। दूसरे कार्यकाल में भी इसमें कमी नहीं आई है। विगत दिनों एक रैली की कवरेज के लिए गए पत्रकार पर भाजपा कार्यकर्ताओं ने जानलेवा हमला किया और जौनपुर में सरे-बाज़ार एक पत्रकार को गोली मार दी गई।

आखिर प्रगतिशील विचारों से क्यों जलती है भाजपा?

जब भी भाजपा के समक्ष संकट आता है तो वह सांप्रदायिकता की पनाह में चली जाती है। चूंकि कोई भी चुनाव आसान नहीं होता, इसलिए भाजपा मण्डल के उत्तरकाल के हर चुनाव में राम नाम जपने और मुस्लिम विद्वेष के प्रसार के लिए बाध्य रही।

शिक्षा व्यवस्था को पूरी तरह मुफ्त और जनसुलभ बनाने के लिए भाजपा को हराना होगा

भाजपा सरकार की नीतियाँ हमेशा से जन विरोधी रही हैं। नई राष्ट्रीय शिक्षा उन्हीं में से एक है। यह पूरी तरह मजदूर, किसान एवं आम जनता के बच्चों के लिए शिक्षा से बेदखली का दस्तावेज है।

भाजपा और आरएसएस की हिंदुत्ववादी मानसिकता स्वतंत्रता, समानता और भाईचारे के लिए सबसे बड़ा खतरा है

बाबा साहेब डॉ. अंबेडकर ने देश में हिंदुत्ववादी ताकतों के मंसूबों को भापते हुए उस समय जो चिंता व्यक्त की थी वह अब पहले से कहीं ज्यादा खतरनाक स्थिति में पहुँच चुकी है। ऐसे में हमें आपसी भाई चारे को बनाये रखते हुए बीजेपी और आरएसएस के लोगों से दूर रहने की जरूरत है।

Loksabha मिर्ज़ापुर : सरकार की नीतियों के चलते व्यापारी समाज नाराज, चुनाव में उलटफेर की संभावना

चुनाव के इस माहौल में मिर्ज़ापुरवासियों के मन में गहरी ऊहापोह चल रही है। पिछले दो बार से इस संसदीय क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करनेवाली अनुप्रिया पटेल दो बार केंद्र में मंत्री रही हैं लेकिन व्यवसायियों का कहना है कि उन्होंने उनके हित में कुछ नहीं किया। फिलहाल वे ऐसे प्रतिनिधि को जिताने के बारे में सोच रहे हैं जो उनके शहर को नई रौनक से भर दे।

आरएसएस प्रमुख और भाजपा, आरक्षण समीक्षा की आड़ में पिछड़ों को उचित प्रतिनिधित्व से दूर रखने की मंशा रखते हैं

कुछ समय पहले तक आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ओबीसी आरक्षण के सख्त खिलाफ थे और आरक्षण को लेकर लगातार विरोध में बयान दिया करते थे लेकिन चुनाव आते ही उनके सुर बदल गए क्योंकि देश में ओबीसी का बड़ा वोट बैंक हैं।

मिर्ज़ापुर में स्थानीय समस्याओं की अनदेखी से भाजपा सरकार के प्रति लोगों में भारी आक्रोश

देखा जाय तो मिर्जापुर जिले में पर्यटन की अपार संभावनाएं हैं। यहां के पीतल उद्योग को सरकार की ओर से अगर प्रोत्साहन मिलता तो यह बडे़ पैमाने पर लोगों की रोजी रोटी का साधन बनता। लेकिन दुख की बात है कि स्थनीय जनप्रतिनिधियों का जनता से कोई सरोकार नहीं है, जिसे लेकर जनता में आक्रोश भी है। इसका असर आने वाले चुनाव में भी देखने को भी मिलेगा।

अग्निवीर योजना : दलित, पिछड़े और अल्पसंख्यक युवाओं के खिलाफ भाजपा-आरएसएस की बड़ी साजिश

अग्निवीर योजना की शुरुआत एक सोची समझी साजिश का हिस्सा है। भारतीय सेना में दलित, पिछड़े और अल्पसंख्यक युवाओं को शामिल होने से रोकने के लिए एक गहरा इकोसिस्टम तैयार किया गया है। नरेंद्र मोदी और आरएसएस द्वारा तैयार की गई इस रणनीति को समझना एक सामान्य भारतीय नागरिक के लिए आसान नहीं है।

Lok Sabha Election : महिलाओं को दिए गए टिकट की संख्या पर राजनैतिक दलों की मंशा को लेकर सवाल उठना जरूरी

वर्ष 2023 में संसद में महिलाओं की भागीदारी को बढ़ाने के लिए नारी शक्ति वंदन अधिनियम लागू हुआ, जिसमें उन्हें 33 प्रतिशत आरक्षण देने का नियम बना। महिलाओं ने जश्न मनाया और सभी दलों ने इसका स्वागत किया लेकिन जमीनी हकीकत देखें तो किसी भी राष्ट्रीय या बड़े क्षेत्रीय दलों ने इस अधिनियम के आधार पर टिकट का बंटवारा नहीं किया। देश के सबसे ज्यादा लोकसभा सीटों वाले उत्तर प्रदेश में इसका आकलन कर इस बात की वास्तविकता देख आने वाले दिनों में राजनैतिक दलों की भूमिका पर सवाल खड़ा होना स्वाभाविक है

वाराणसी: पुलिसिया दमन के एक साल बाद बैरवन में क्या सोचते हैं किसान

वाराणसी संसदीय क्षेत्र की रोहनिया विधानसभा का एक गाँव बैरवन पिछले एक साल से भय और अनिश्चितता के माहौल में जी रहा है। वाराणसी विकास प्राधिकरण द्वारा बनाए जानेवाले ट्रांसपोर्ट नगर के लिए बैरवन को भी उजाड़ा जाना है। विडम्बना यह है कि कुछ किसानों ने बहुत पहले अपनी ज़मीनों का मुआवजा ले लिया जबकि अधिसंख्य किसानों ने नहीं लिया। जिन किसानों ने मुआवजा नहीं लिया है वे आंदोलन करके आज की दर से मुआवजा और पुनर्वास की मांग कर रहे हैं। इसी रस्साकशी का फायदा उठाकर वाराणसी विकास प्राधिकरण ने पिछले साल मई महीने में ज़मीनों पर कब्जा करना शुरू किया। इसका विरोध होने पर अगले दिन पुलिस ने गाँव में घुसकर लाठीचार्ज किया। एक साल बीतने और लोकसभा चुनाव के ऐन मौके पर इस गाँव के लोग क्या सोच रहे हैं?

 नफरत की राजनीति की हदें पार करती भाजपा क्या चार सौ पार पहुँचेगी या गर्त में जाएगी?

चुनावों में जब भी भाजपा के समक्ष संकट आता है तो वह सांप्रदायिकता की पनाह में चली जाती है। चूंकि कोई भी चुनाव आसान नहीं होता, इसलिए भाजपा मण्डल के उत्तरकाल के हर चुनाव में राम नाम जपने और मुस्लिम विद्वेष के प्रसार के लिए बाध्य रही।

भाजपा-आरएसएस की राजनीति हमेशा से ही दलित,पिछड़ा,अल्पसंख्यक विरोधी रही है

भाजपा और आरएसएस हमेशा से दलित,ओबीसी विरोधी रहे हैं। देश के संविधान को बदलने के लिए इस चुनाव में 400 पार का नारा दिया लेकिन संविधान बदलने और आरक्षण खत्म करने को लेकर जनता की तरफ से आ रहे विरोध को देखते हुए इन्होंने चुनाव का नेरेटिव बदल इनके शुभचिंतक होने की बात बार-बार दोहरा रहे हैं।

पीएम नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह चुनावी मंचों से मातृशक्ति और स्त्री सशक्तिकरण के खोखले दावे करते हैं

अपने चुनावी भाषणों में देश के प्रधानमंत्री और गृहमंत्री देश की महिलाओं को मातृ शक्ति का दर्जा दे सम्मान की बात कर रहे हैं लेकिन उनके मुंह से भाजपा के कथित गुंडों और बलात्कारियों द्वारा की गई करतूतों पर एक बोल नहीं निकलता। आरएसएस की शाखाओं में शामिल होने वाले युवाओं को कभी नारी सम्मान की बात नहीं सिखाई जाती।

संविधान और आरक्षण के मुद्दे पर विश्वास लायक नहीं हैं संघ और मोदी  

लोकसभा चुनावी भाषणों में अराक्षण और संविधान को लेकर मोदी और संघ के सुर इधर बदले हुए सुनाई दे रहे हैं लेकिन वास्तविकता यही है कि आरएसएस और भाजपा का निर्माण हिंदुत्ववादी विचारधारा को आगे बढ़ाने के लिए हुआ। इस कारण संघ अपने जन्मकाल से लेकर आज तक लोकतंत्र, संविधान, सामाजिक न्याय और धर्मनिरपेक्षता का स्वाभाविक हिमायती न बन सका। आज भी 400 सीट पाने का मुख्य उद्देश्य आसानी से संविधान में बदलाव करते हुए आरक्षण को पूरी तरह से खत्म करना है।

Lok Sabha Election : मध्य प्रदेश में, जनता राजनैतिक दलों की असलियत समझ वोट डालने से बच रही है 

पिछले दस वर्षों में सत्ता में बैठे लोगों ने जनता के लिए क्या काम किया? इस बात को जनता भली-भांति समझ चुकी है। चुनाव में खड़े प्रत्याशियों को कहीं काले झंडे दिखाये जा रहे हैं तो कहीं उन्हें गाँव में घुसने नहीं दिया जा रहा है। लेकिन कहीं-कहीं जनता वोट न डाल अपनी गुस्सा जाहिर कर रही है। इसी वजह से इस बार वोट का प्रतिशत पिछले चुनाव के बनिस्बत कम है।

Lok Sabha Election : शिक्षा और उससे जुड़े मुद्दे क्यों नहीं बन रहे हैं जरूरी सवाल?

पिछले दस वर्षों में शिक्षा का स्तर जितना गिरा है उतना पहले कभी नही। प्राथमिक शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा तक सभी संस्थानों में विज्ञान और तर्क को दरकिनार कर धर्म को केंद्र में रखा गया। 2024 के लोकसभा चुनाव में शिक्षा जैसा महत्त्वपूर्ण मुद्दा जनता की नजर में क्यों नहीं है?

नारी शक्ति वंदन के दावे के बावजूद दो चरणों के चुनाव में महज आठ प्रतिशत महिला उम्मीदवार

लोकसभा के दो चरणों के चुनाव हो चुके हैं लेकिन कुल उम्मीदवारों में महिलाएँ केवल आठ प्रतिशत हैं। यह नारी शक्ति वंदन मंशा और सामाजिक न्याय की अवधारणा के लिए गंभीर संकेत है।

किसानों और युवाओं की समस्याओं के आगे हवा हो गया चार सौ सीट का भाजपाई दावा : अखिलेश यादव

लोकसभा चुनाव के दो चरण के मतदान हो चुके हैं। दो चरणों के चुनावों में भाजपा को जनता की भावना समझ आई कि जनता 400 सीटें हराने जा रही है तो भाजपा अपना नारा भूल गई, यह बात सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने संभल में अपनी जनसभा में जनता को संबोधित करते हुए कही। 7 मई को तीसरे चरण का मतदान में 10 लोकसभा सीट के लिए 182 उम्मीदवारों ने नामांकन भरा है

गैर कांग्रेसवाद के गर्भ से निकली सांप्रदायिक सरकार के मुखिया की हताशा क्या कहती है?

सन 1950 से 1977 अर्थात 27 सालों में जनसंघ को सिर्फ छह प्रतिशत मतदाताओं ने पसंद किया था लेकिन 1963 के बाद डॉ. राम मनोहर लोहिया के गैर कांग्रेसी राजनीतिक कदम के चलते शिवसेना से लेकर मुस्लिम लीग और जनसंघ जैसे घोर सांप्रदायिक दलों के साथ गठजोड़ की वजह से जनसंघ को बहुत लाभ हुआ। इस लेख में जाने-माने लेखक और सामाजिक कार्यकर्ता डॉ सुरेश प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की राजनीतिक विरासत के बहाने उनकी हताशा पर बात कर रहे हैं।

क्या मोदीजी कांग्रेस के न्याय पत्र से डर गए हैं?

विगत कई जनसभाओं में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस के घोषणापत्र के खिलाफ तथ्यहीन बातें की हैं क्या वह उनकी संभावित हार और अपने विकास कार्यों के प्रति जनता के अविश्वास का नतीजा है। आखिर वह क्यों इतनी अनर्गल और सांप्रदायिक बातें कर रहे हैं?

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