राहुल गांधी के सामाजिक न्याय के बड़े दावों के बावजूद, हरियाणा में दलितों तक पहुंचने के लिए कोई सामूहिक प्रयास नहीं किया गया। ऐन वक्त पर अशोक तंवर की एंट्री पार्टी में दलित वोट वापस नहीं ला सकी और वजह साफ है। कांग्रेस को समझना होगा कि राजनीतिक दल सामाजिक न्याय का आंदोलन नहीं हैं। एक आंदोलन एक विशेष एजेंडे पर एक वर्ग को लक्षित करके चल सकता है लेकिन राजनीति को समावेशी होना चाहिए और सभी समुदायों के साथ जुड़ाव सुनिश्चित करना चाहिए।
अठारहवीं लोकसभा में कांग्रेस ने जिस तरह प्रदर्शन किया था, उसे देखकर लगा था कि हरियाणा चुनाव में भी कोई बदलाव होगा। यहाँ तक कि सारे एग्जिट पोल भी कांग्रेस को 60 सीट जीतने की बात कहते रहे, वहीँ भाजपा को 20 से 28 सीट तक ही सीमित कर दिया था। लेकिन चुनावी नतीजे आने के बाद परिदृश्य पूरी तरह बदल गया। ऐसा क्यों हुआ? इस पर पढ़िए मनीष शर्मा की विश्लेष्णात्मक रिपोर्ट
राहुल गांधी पिछले कुछ वर्षों से एक परिपक्व सोच वाले जनता के प्रिय नेता बनकर सामने आए हैं। उन्होंने तीन दिवसीय अमेरिका प्रवास के दौरान भाजपा पर सीधे-सीधे निशाना साधा, जिस पर भाजपा नेताओं ने पलटकर जवाब दिया। यह घमासान अभी चल ही रहा है। जैसा कि भाजपा की पुरानी और घिसी-पिटी रणनीति है वैसा ही उसने इस बार भी किया है। राहुल गाँधी ने भाजपा के सांप्रदायिक एजेंडे की आलोचना की। भाजपा ने सिख विरोधी दंगे की बात शुरू कर दी।
राहुल गांधी को राजनीति विरासत में मिली, जिसके चलते उन्हें तुरंत ही सबके प्रिय और बड़े नेता बन जाना था लेकिन ऐसा हुआ नहीं। अपने को साबित करने के लिए उन्होंने खुद को पूरी तरह झोंक दिया। 2014 के बाद भाजपा ने गोदी मीडिया के माध्यम से पूरी तरह से उन्हें एक कमजोर, अपरिपक्व और नासमझ नेता बताते हुए प्रचार-प्रसार किया। राहुल ने हार नहीं मानी। जनता के बीच लोकप्रिय होने के साथ ही, सड़क से संसद तक अपने को साबित किया।
7 राज्यों में 13 सीटों पर हुए उपचुनाव में इंडिया गठबंधन ने 10 सीटों पर चुनाव जीत लिया। भाजपा को कुल 2 सीटों पर जीत हासिल हुई। इससे एक बात स्पष्ट हो गई कि जनता भी अब जायज़ मुद्दे पर ही चुनाव में प्रतिनिधि का चुनाव करेगी। जनता हिंदुतव और धर्म के मुद्दे से ऊब चुकी है। लोकसभा चुनाव में भी जनता की मंशा सामने आई थी और विधानसभा उपचुनाव के ये नतीजे भी संकेत कर रहे हैं कि राजनैतिक दल यदि ऐसे ही रहे तो उनका चुनाव जीतना मुश्किल होगा।
केंद्र की मोदी सरकार के पिछले दो कार्यकाल संसद में विपक्ष के नेता के बिना ही चला और बीजेपी सरकार ने खूब मनमानी की। लेकिन अठारहवीं लोकसभा के चुनाव के बाद इस बार संसद में विपक्ष के नेता की बागडोर राहुल गांधी के जिम्मे है, और वे इस ज़िम्मेदारी को अच्छी तरह निभा रहे हैं। इसे उन्होंने संसद के पहले सत्र में ही दिखा दिया। इस बार सत्ता पक्ष को संसद में उन सवालों से दो-चार होना ही पड़ेगा, जिनसे वह बचता आया था।
लोकसभा चुनाव 2024 में 400 के पार का नारा देने वाली भाजपा बहुमत भी नहीं ला सकी। इसके विपरीत कांग्रेस ने भारत जोड़ो न्याय यात्रा कर जनता से सीधे जुड़ते हुए सामाजिक न्याय व समान भागीदारी पर सवाल खड़ा किया। कांग्रेस के घोषणा पत्र में वे सभी बिन्दु शामिल किए गए, जो पिछ्ले दस वर्षों में जनता की जरूरत थे। सवाल यह उठता है कि आने वाले दिनों में कांग्रेस किस तरह अपना वर्चस्व हासिल कर पाएगी।
एनडीए के शपथ ग्रहण के बाद मंत्रालय का विभाजन होगा, जिसमें भाजपा ने अपने मंत्रियों के लिए मंत्रालय की घोषणा भले न की हो लेकिन मंत्रालय तय कर दिए हैं। सवाल यह उठ रहा है कि लोकसभा स्पीकर किसे बनाया जाएगा? साथ ही क्या लोकसभा उपाध्यक्ष के लिए विपक्ष को मौका मिलेगा?
भाजपा मुसलमानों को आरक्षण का हकमार बताए जा रही है, उसके पीछे का सबसे बड़ा कारण यह है कि वह आरक्षण के असल हकमार वर्ग से राष्ट्र का ध्यान भटकाए रखना चाहती है। चूँकि वह चुनाव में मुसलमानों के खिलाफ नफरत फैलाकर ही कामयाबी हासिल करती रही जिसे वह आगे भी जारी रखना चाहती है।
पिछले साल अपने भाई की हत्या का दावा करते हुए पुलिस में मामला दर्ज कराने वाली दलित समुदाय की अंजना अहिरवार की रविवार को सागर में अपने चाचा के शव को ले जाते समय एम्बुलेंस से गिरने के बाद मृत्यु हो गई। उसकी मौत ने राजनीतिक गलियारे में हलचल तेज कर दी है। प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष जीतू पटवारी ने दावा किया कि अंजना के भाई की अगस्त में बरोदिया नोनागिर में सरेआम हत्या कर दी गई थी और उनका परिवार अब भी न्याय का इंतजार कर रहा है।
जब भी भाजपा के समक्ष संकट आता है तो वह सांप्रदायिकता की पनाह में चली जाती है। चूंकि कोई भी चुनाव आसान नहीं होता, इसलिए भाजपा मण्डल के उत्तरकाल के हर चुनाव में राम नाम जपने और मुस्लिम विद्वेष के प्रसार के लिए बाध्य रही।
सदियों से शक्ति के समस्त स्रोतों पर सवर्णों का अधिकार रहा है। देखा जाय तो भेदभाव और अवसरों की कमी झेलने वाली 70 प्रतिशत आबादी को असमानताताओं के दल-दल से निकालने के जरूरत है। कांग्रेस का घोषणा पत्र इस दिशा में उम्मीद की एक किरण बना हुआ है।
वर्ष 2023 में संसद में महिलाओं की भागीदारी को बढ़ाने के लिए नारी शक्ति वंदन अधिनियम लागू हुआ, जिसमें उन्हें 33 प्रतिशत आरक्षण देने का नियम बना। महिलाओं ने जश्न मनाया और सभी दलों ने इसका स्वागत किया लेकिन जमीनी हकीकत देखें तो किसी भी राष्ट्रीय या बड़े क्षेत्रीय दलों ने इस अधिनियम के आधार पर टिकट का बंटवारा नहीं किया। देश के सबसे ज्यादा लोकसभा सीटों वाले उत्तर प्रदेश में इसका आकलन कर इस बात की वास्तविकता देख आने वाले दिनों में राजनैतिक दलों की भूमिका पर सवाल खड़ा होना स्वाभाविक है
चुनावों में जब भी भाजपा के समक्ष संकट आता है तो वह सांप्रदायिकता की पनाह में चली जाती है। चूंकि कोई भी चुनाव आसान नहीं होता, इसलिए भाजपा मण्डल के उत्तरकाल के हर चुनाव में राम नाम जपने और मुस्लिम विद्वेष के प्रसार के लिए बाध्य रही।
पांचवें चरण के नामांकन के आखिरी दिन आज अमेठी और रायबरेली से कांग्रेस ने अपने उम्मीदवारों के नाम की घोषणा कर अपने पत्ते खोल दिये। उत्तर प्रदेश के हॉट सीटों में रायबरेली और अमेठी का नाम आता है। लोकसभा चुनाव के पांचवें चरण में इन दोनों सीटों पर राहुल गांधी और किशोरीलाल शर्मा ने अपना नामांकन भर दिया है।
पिछले दस वर्षों में सत्ता में बैठे लोगों ने जनता के लिए क्या काम किया? इस बात को जनता भली-भांति समझ चुकी है। चुनाव में खड़े प्रत्याशियों को कहीं काले झंडे दिखाये जा रहे हैं तो कहीं उन्हें गाँव में घुसने नहीं दिया जा रहा है। लेकिन कहीं-कहीं जनता वोट न डाल अपनी गुस्सा जाहिर कर रही है। इसी वजह से इस बार वोट का प्रतिशत पिछले चुनाव के बनिस्बत कम है।
लोकसभा के दो चरणों के चुनाव हो चुके हैं लेकिन कुल उम्मीदवारों में महिलाएँ केवल आठ प्रतिशत हैं। यह नारी शक्ति वंदन मंशा और सामाजिक न्याय की अवधारणा के लिए गंभीर संकेत है।
विगत कई जनसभाओं में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस के घोषणापत्र के खिलाफ तथ्यहीन बातें की हैं क्या वह उनकी संभावित हार और अपने विकास कार्यों के प्रति जनता के अविश्वास का नतीजा है। आखिर वह क्यों इतनी अनर्गल और सांप्रदायिक बातें कर रहे हैं?
बरसों तक सामंती तुर्रे में जी रहे राजपूतों को यह समझ में आ गया कि राजनैतिक रूप से उनकी कोई सामाजिक हैसियत नहीं रह गई है। राजस्थान से लेकर उत्तर प्रदेश तक राजपूत संगठनों ने सम्मेलन किए और वर्तमान भाजपा सरकार के प्रति अपने असंतोष को जाहिर किया। उन्होंने इस चुनाव में वर्तमान भाजपा सरकार को सत्ता से दूर करने की कसम खा ली। यह तो आने वाला समय ही बताएगा कि उनकी कसम का क्या राजनैतिक प्रभाव पड़ता है? लेकिन उन्होंने जिस तरह से बहुजन समाज के प्रति जिस तरह से अपनी पक्षधरता जाहिर की है, उसके संकेत सकारात्मक है
भाजपा के लिए भाजपा का संकल्प पत्र (घोषणापत्र ) आखिर कब काम आएगा ? क्या मोदी की गारंटी में इतना दम नहीं है कि उसके नाम पर वोट मांगे जा सकें? क्या नरेंद्र मोदी के 10 साल के कामों में इतना दम नहीं है कि उस काम के नाम पर वोट मांगे जा सकें?