खेती किसानी में अच्छी बारिश और उचित मात्रा में खाद का छिड़काव करना जरूरी होता है। लेकिन सरकारी वितरण केंद्र पर मिलने वाली रियायती दरों पर खाद उपलब्ध नहीं होने की वजह से किसान लगातार भटक रहे हैं।
मंडल आयोग ने पूरी योजना लागू करने के बीस साल बाद इसकी समीक्षा करने की भी सिफारिश की थी। आरक्षण की समीक्षा की बात होती है पर मंडल आयोग की नहीं। सामाजिक-शैक्षणिक पिछड़ापन, गरीबी का मुख्य कारण जाति के कारण उत्पन्न बाधाएं हैं तो ऐसे में मंडल कमीशन की सिफारिशों को लागू कर सामाजिक न्याय कायम किया जाए. वर्ण-जाति श्रेणी क्रम आधारित असमानता तोड़ने या कम करने का अभी तक केवल आरक्षण ही कारगर उपाय साबित हुआ है।
इस सरकार ने सबसे ज्यादा जिसे नुकसान पहुंचाया है तो वह है किसान। देश का किसान लगातार सड़कों पर उतर कर अपने अधिकार की लड़ाई के लिए आंदोलनरत है। उसे रोज नई मुसीबतों से जूझना पड़ रहा है। सरकार भले ही खुद को किसानों का हितैषी माने लेकिन वास्तविकता कुछ और ही है।
उत्तर प्रदेश का हाइपर विकास हो रहा है। इस विकास के लिए किसानों को उनकी ज़मीनों से विस्थापित किया जा रहा है। किसान जो देश की अर्थव्यस्ठा को मजबूत करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं को सड़क पर लाने का पूरा इंतजाम सरकार कर रही है। इस वजह से देश के अनेक हिस्सों में किसानों के छोटे-बड़े आंदोलन चल रहे हैं।
किसानों ने कहा कि पीएम ने किसानों की आय दोगुनी करने का वादा किया था, पीएम मोदी ने नदियों को जोड़ने और जल संकट से निजात दिलाने का वादा किया था लेकिन कोई वादा पूरा नहीं हुआ।
महाराष्ट्र का विदर्भ क्षेत्र का नाम किसानों की आत्महत्या के मामले में अक्सर सुनाई देता रहा है। लेखिका डॉ लता प्रतिभा मधुकर ने विदर्भ के यवतमाल और वर्धा जिले के मृतक किसानों की पत्नियों से मिलकर उनके संघर्ष और जीजीविषा को नजदीक से देखा। ये आत्महत्या न कर ज़िंदगी से क्यो और कैसे लड़ती हैं? पढ़िये ग्राउंड रिपोर्ट का भाग एक-
किसान आन्दोलन की अगुवाई कर रहे किसान नेता सरवन सिंह पंधेर ने वीडियो जारी करते हुए कहा, ‘लखीमपुर खीरी से अजय मिश्र टेनी को टिकट देकर भाजपा ने किसानों के कटे पर नमक छिड़का है।
वरिष्ठ पुलिस अधिकारी के अनुसार, दिल्ली पुलिस अतिरिक्त सतर्कता बरत रही है, हालांकि प्रदर्शनकारी किसानों को हरियाणा पुलिस ने अंबाला के पास पंजाब और हरियाणा के बीच शंभू सीमा पर रोक दिया है। दिल्ली के मध्य हिस्से में भी पुलिस ने संसद और अन्य संवेदनशील स्थानों की ओर जाने वाली कई सड़कों पर बैरिकेड्स लगा दिए हैं। एक अधिकारी ने बताया कि किसानों को रोकने के लिए दिल्ली पुलिस ने 30,000 से अधिक आंसू गैस के गोले के ऑर्डर दिए हैं।
चिट्ठी में एसकेएम ने सी2+50 (पूंजी की इनपुट लागत+50%) के स्वामीनाथन फार्मूले के आधार पर सभी फसलों के लिए एमएसपी, खरीद की कानूनी गारंटी, कर्ज माफी, बिजली दरों में कोई बढ़ोतरी नहीं और स्मार्ट मीटर नहीं लगाने सहित अपनी मांगों का जिक्र किया है।
एसकेएम के घटकों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मामले में दखल देने और किसानों के खिलाफ बल प्रयोग बंद करने का अनुरोध किया है और एसकेएम-एनपी से अलग-अलग लड़ाई बंद करने और 16 फरवरी की ग्रामीण और औद्योगिक हड़ताल का समर्थन करने के लिए कहा है।
एमएसपी के लिए कानूनी गारंटी के अलावा, किसान स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को लागू करने, किसानों और कृषि मजदूरों के लिए पेंशन, कृषि ऋण माफ करने, पुलिस में दर्ज मामलों को वापस लेने, लखीमपुरी खीरी हिंसा के पीड़ितों के लिए ‘‘न्याय’’, भूमि अधिग्रहण कानून 2013 बहाल करने और पिछले आंदोलन के दौरान मारे गए किसानों के परिवारों के लिए मुआवजे की मांग कर रहे हैं।
डल्लेवाल ने कहा, ‘‘अगर सरकार यह कह रही है कि वह बातचीत के लिए सकारात्मक है तो किसान और ज्यादा सकारात्मक हैं। हमारा हंगामा करने और किसी को नुकसान पहुंचाने का कोई इरादा नहीं है। हम शांतिपूर्ण ढंग से प्रदर्शन करने वाले लोग हैं।’’
भारतीय किसान यूनियन (एकता सिधूपुर) के अध्यक्ष और एसकेएम-एनपी के वरिष्ठ नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल ने चंडीगढ़ से फोन पर द हिंदू को बताया कि जिन नेताओं को चर्चा में शामिल होना चाहिए उन्हें गिरफ्तार करके केंद्र सरकार माहौल खराब कर रही है। उन्होंने कहा कि “एक तरफ, सरकार कह रही है कि वह चर्चा के लिए तैयार है। दूसरी तरफ, उन्होंने हमारे सैकड़ों नेताओं और समर्थकों को गिरफ्तार कर लिया है।
बीएचयू(वाराणसी): केन्द्र सरकार द्वारा किये गये वादाखिलाफी के विरोध में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के छात्र-छात्राओं द्वारा सोमवार के शाम लंका गेट पर विश्वासघात दिवस...
किसान आंदोलन का एक हासिल यह भी है कि इसने सत्ता और कॉरपोरेट मीडिया के चरित्र, उसकी प्राथमिकताओं एवं रणनीतियों को आम लोगों के सम्मुख उजागर किया है। हमारी सरकारें जन आंदोलनों से निपटने के लिए उन्हीं रणनीतियों का सहारा लेती दिख रही हैं जो गुलाम भारत के अंग्रेज शासकों द्वारा अपनाई जाती थीं।