21 सालों के सफर में जहाँ राज्य ने कई कीर्तिमान बनाये हैं वहीं कई स्तर पर कई तरह की चुनौतियाँ आज भी मौजूद हैं। यह सच है कि कोविड जैसी वैश्विक महामारी ने पिछले डेढ़ दो सालों में जान माल का भारी नुक़सान तो किया ही, विकास की गति को भी अवरुद्ध किया है। जिसकी वजह से राज्य के कुल बजट की राशि का अभी तक लगभग 31 प्रतिशत ही खर्च हो पाया है जबकि वित्तीय वर्ष समाप्ति के मात्र चार पांच महीने ही शेष बचे हैं।
आज भी घरेलू काम करने वालों को नौकर, नौकरानी का दर्जा दिया जाता है। ज्यादातर घरेलू कामगार वंचित समुदायों और निम्न आय वर्ग समूहों से आते हैं, इनमें से अधिकतर पलायन कर रोजगार की तलाश में शहर आते हैं। उन्हें अपने काम का वाजिब मेहनताना नहीं मिलता है और सब कुछ नियोक्ताओं पर निर्भर होता है जो की अधिकार का नहीं मनमर्जी का मामला होता है। घरेलू कामगारों को कार्यस्थल पर गलत व्यवहार, शारीरिक व यौन-शोषण, र्दुव्यवहार, भेदभाव एवं छुआछूत का शिकार होना पड़ता है। आम तौर पर नियोक्ताओं का व्यवहार इनके प्रति नकारात्मक होता है। इस पृष्ठभूमि में क्या रत्ना और अश्विन के लिए इन सबसे पार पाना, एक दूसरे से प्रेम करना और अपने नियमों के अनुसार जीना संभव है?
सरकारी मासिक पत्रिका के संपादक से प्रतिबद्ध मासिक पत्रिका के संपादक बनने की यात्रा निश्चित ही सहज नहीं होनी चाहिए। मानसिक,पारिवारिक और आर्थिक स्तरों...
कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव की तैयारी शुरू कर दी है। अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में प्रियंका का कांग्रेस द्वारा महिलाओं को...